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श्री तपगच्छ
जैनशास्त्र जगावे छे के रागद्वेपादि मोहनीय कर्म, ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय अने अंतराय, ए चार घातीकर्मनो ज्ञानध्यानसमाधीथी क्षय थतां सर्व विश्वनुं संपूर्ण प्रकाशक एवं केवलज्ञान प्रगटे छे, तेथी केवलज्ञानी तीर्थंकर महावीर आदि सर्वज्ञो आ विश्वमां प्रगटे छे. तेओ बीतराग होवाथी तथा सर्वज्ञ होवाथी सर्वथा सत्यधर्मनो प्रकाश करे छे अने ते ज जैनधर्म छे. सर्वज्ञ केवलीओनो उपदेश ते सत्य ज्ञानमयवेद छे, ज्यारे ज्यारे दुनियामांथी सत्य धर्मशास्त्रमां असत्यनुं मिश्रण थाय छे त्यारे एवा सर्वज्ञ तीर्थंकरो प्रगटे छे ते पुनः सत्यधर्मनो प्रकाश करे छे. तेओनां वचन ते प्रत्यक्ष ज्ञानथी भरेलां होवाथी ते आगम-सिद्धांत तरीके होवाथी जैनोने ते वेदोरूप थाय छे अने तेथी तेना पूर्व समयनी भाषालिपि ग्रन्थो वगेरेनी पण उपयोगिता रहेती नथी. वर्तमानमां जे भाषा होय छे अने जेथी पंडितो बालो वगेरे समजी शके छे ते भाषामा सर्वज्ञ तीर्थंकर उपदेश आपे छे. सर्वज्ञ वीतराग श्री महावीरप्रभुए केवलज्ञान प्रगटाव्युं, अने तेथी सर्वे जाण्युं अने सर्व देख्युं ते प्रमाणे उपदेश दीघो. तेथ तेओनां वचनो ते वेदो - आगमो सिद्धांत रूप थयां छे. ज्यारे तेओनी वाणीरूप श्रुताज्ञान टळी जो एटले ते पछी उत्सर्पिगीना त्रीजा आराना छेडे पहेला पद्मनाभ ( के जे श्रेणिक बिंबीसारराजा हता ते) तोर्थंकर तरीके थशे. जैमिनी आदि वैदिक ऋषियो कहे छे के सर्वथा रागद्वेष नहीं टळवाथी मनुष्य सर्वज्ञ थई शकतो नथी. माटे वेदो प्रमाणे वर्ततुं जोइए. भरत, अंगिरा, वायु वगेरेना हृदयमां परमेश्वरे सत्यज्ञान प्रकारयुं अने तेमणे वेदो रच्या. जैनो कहे छे के ज्यारे भरत, वायु, अंगिरानां हृदय शुद्ध त्यारे सत्य वेदो अर्थात् सत्यज्ञाननो प्रकाश थयो, तो ऋषभादिक चोवीश तीर्थंकरोए ज्ञानध्यान समाधियोग आदर्यो, सर्व रागद्वेषादिक दोषोनो नाश कर्यो तेथी तेमना शुद्ध आत्मामां विश्वनुं ज्ञान अर्थात् संपूर्ण केवलज्ञान प्रगटयुं, अने तेओनां वचनो ते वेदश्रुतियोरूपे अर्थात् आगमोरूपे थयां ते जैनशास्त्रो छे, एम मानवामां युक्ति अनुभवनी समानता छे. सर्वज्ञ वीतराग - वचनो ते ज आप्तवाक्यो छे एम जैनो स्वीकारे छे.
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-" विजापुरवृत्तांतमांथी '
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