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श्री तपगच्छ
__ भगवान् महावीरे जे वृक्षनुं बीजारोपण कयु हतुं तेने सिंचवानुं तेनुं रक्षण करवानुं कार्य सावुओना ज हाथमां ह. भगवान् महावीर देवे तत्कालीन भारतना घणा राजाओ उपर जैनसंस्कृतिनी प्रबल छाप पाडी हती. तेमां मुख्य-मगध सम्राट् श्रेणिक, तेनो राजवंश, तेना उत्तराधिकारी अजातशत्रु-कोणिक छे. त्यारपछी वैशालीना गणसत्ताक राज्यना प्रमुख महाराजा चेडा अने तेनो समस्त राजवंश भगवान् महावीरना परम उपासक हता एटलुंज नहिं किन्तु जैनसंस्कृतिना पोषक अने संरक्षक पण हता. आवी ज रीते उज्जयिनीपति चंडप्रद्योत, उदायन, काशी अने कोशलना लिच्छवीओ वगेर अनेक राजामहाराजाओ प्रभुवीरनी अमृतवाणीनुं पान करी श्रमण-संस्कृतिना अनुरागी बन्या हता.
__ भगवान् महावीरनी शिष्य-परंपराए पण ए ज प्रथा वालु राखी धर्मना प्रभाव अने प्रचार माटे राजामहाराजाओने उपदेश आपयानो चालु राख्यो हतो. जेना अनेक पुरावा, प्रबल ऐतिहासिक प्रमाणो, शिलालेखो, ऐतिहासिक ग्रंथो अने प्रशस्तिओ द्वारा उपलब्ध थाय छे.
(२) जंबूस्वामी भगवान् महावीरना द्वितीय पट्टधर अने अन्तिम केवलीए, बिन्याचल पर्वतनी तळेटीमा रहेला जयपुरना कात्यायन गोत्रीय राजा जयसेनना पुत्र प्रभवाजी के जेओ पोताना ४९९ साथीदारो सहित चोरी अने धाड पाडवानो धंधो करता तेमने, पोताने ज घेर चोरी करवा आवतां प्रतिबोध आपी पोतानी साथे ज भागवती दीक्षा अपावी.
(३) प्रभवस्वामी तेमणे पोतानी पछी जैन-शासननो भार सेांपवा तत्कालीन जैन संघमां योग्य व्यक्ति न जोबाथी पोताना शिष्योने मोकली यज्ञकर्ता प्रसिद्ध ब्राह्मण पंडित शय्यंभवने प्रतिबोध पमाड्यो अने यज्ञस्थंभ नीचे रहेल श्री शान्तिनाथजीना बिंधनां दर्शन करावी सत्यधर्मनु भान कराव्यु. अने तेमणे त्यांथी प्रभवस्वामी पासे आवी दीक्षा लोधी. तेमणे दशवकालिक सूत्र बनाव्यु. प्रभवस्वामी वीरनिर्वाण संवत् ७५ मां स्वर्गे गया.
रत्नप्रभसूरि ओसवाल ज्ञातिनी उत्पत्तिना मूलभूत महापुरुष आ आचार्य महाराज छे. विक्रम संवत् चारसो वर्ष पूर्वे भिनमाल नगरीमां भीमसेन नामे प्रतापी राजा राज्य करतो हतो. तेने श्रीपुंज अने उपलदेव नामे बे पुत्रो हता. कारणवशात् बन्नेमा मतभेद पडवाथी नानो पुत्र उपलदेव राज्य छोडी चाली नीकळ्यो अने दिल्हीना राजानी रजा लइ तेणे मंडोवरनी पासे ज उपकेश अथवा ओसिया नगरी वसावी. ओसीया नगरी घणी लांबीचोडी हती अने तेमां वस्ती पण पुष्कळ हती. एकवार
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