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श्रमण वंशवृक्ष
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जैनाचार्योनो औपदेशिक प्रभाव
लेखक-मुनिराज श्री न्यायविजयजी ( दील्हीवाला ) जैन-संस्कृतिनी अहिंसा अने त्याग-वैराग्यनी भावना आजे जगप्रसिद्ध छे. एनी पाछळ एक प्रबल अने स्वतंत्र संस्कार, बळ अने भावना छुपायां छे. एज भावनाना बळे जैनधर्म अने जैनसंस्कृति अविचल-शुद्रस्थान पामी शकेल छे. अने एनुं मूळ जैनतीर्थ करो अने तेमनो शिष्यसमुह, आचार्य बन्द अने साधुगण छे. श्री तीर्थंकर, गणधर महाराजोए स्थापित जैन-संस्कृतिना प्रचार माटे तेमनी पछीना साबुसमूहे उघाडे माथे अने खुल्ले पगे भारतमा विचरी घगो उपकार को छे. जेम एक वृक्षमांथी अनेक डाळीओ अने शाखाओ फूटे तेम जैनधर्म भारतना खुणे खुगामा फेलायो; छतांये जैनधर्मनी संस्कृतिने क्यांय आंच आवया दीधो न होय के क्याय उणप थवा न दीधी होय तो ए जैनाचार्योने ज आभारी छे. ज्यां ज्यां ए त्याग अने तपनी मूर्तिसमा, शांतिना अवतार जैन मुनिओ पहेांच्या त्यां त्यां तेमणे अमी ज वर्षाच्या. परम शान्तिथी उपदेशधारा वर्षावी संसारना त्रिविध तापथी पीडाता मानवसमूहमे परम शान्ति अर्पवानुं काम एमणे कर्यु छे.
___ आ सिवाय शुं साहित्यक्षेत्रे के धर्मक्षेत्रे, शुं शिल्पक्षेत्रे के कलाक्षेत्रे जैनसंस्कृतिने ए सूरिपुंगवोए अपूर्ण नथी रहेवा दीधी. आ बधुं करवा साथे जैनधर्मना उपासको वधारवा माटे पण तेमणे पुरेपुरु लक्ष्य आप्यु छे. राजामहाराजाओथी लइने गरीबोनां झुपडां सुधी पहोंची जई श्रमण-संस्कृतिनो प्रवाह तेमणे वहेवडाव्यो छे. मोटा मोटा कुबेर भंडारीओ, चक्रवर्ति सगा राजाओ, महामुत्सदो मंत्रीश्वरो अने आम जनताने तेमणे श्रमण-संस्कृतिना दिव्यामृतनुं पान करावी अहिंसा, संयम, अने शांतिनो डिडिमनाद वगाड्यो छे. आजे एमनां ए बयां कार्यानो परिचय आपवानो समय नथी अने एटलं स्थान पण नथी. एटले आ तपगच्छ-श्रमण-वंशवृक्षमा मुख्य मुख्य जैनाचार्योना औपदेशिक प्रभावनो परिचय आपवा धारुं छु,
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