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________________ श्री तपगच्छ 66 17 विक्रमनी चौदमी सदीना प्रारम्भमां शासनदेवीए संग्राम सोनीने जणान्युं के- 'हे संग्राम ! भारतमा उत्तमोत्तम गुरु आ० श्री देवेन्द्रसूरि छे, तेनो मुनिवंश विस्तार पामशे अने युगपर्यंत चालशे. तुं ए गुरुनी सेवा कर. - ( गुर्वावली, श्लोक - १३८) विक्रमनी चौदभी सदीना उत्तरार्धमा खरतरगच्छीय आचार्यवर्य श्री जिनप्रभसूरने पद्मावती देवीए प्रत्यक्ष थई जणान्युं के ४० " तपगच्छनो दिन प्रतिदिन अभ्युदय थशे माटे तमो तमारां स्तोत्रो तपगच्छना वर्तमान- विद्यमान आचार्य श्री सोमतिलकसूरिने समर्पित करो. " -- (आ० जिनप्रभसूरिशिष्य आदिगुप्तरचित सिद्धांतस्तवावचूरि ) माणिभद्रवीरे आ० श्री विजयदानसूरिने स्वप्नमां कह्यं के" तमारा गच्छनुं कुशलपणुं करीश. तमारी पाटपर विजय शाखा स्थापजो. --- (पं खुशालविजयकृत भाषा - पट्टावली, सं० १८८९ जे० व० १३ शुक्रवार, सिरोही ) वास्तविक रीते जोई शकाय छे के आ जैनशासनसंरक्षक अने हितवादी देवदेवीओनी भविष्यवाणी अत्यार सुधी निरपवाद साची पडी छे. आपणे पण प्रस्तुत निबन्ध समाप्त करतां पुनः पुनः ए देवीवचनोनी निरन्तर सफळता इच्छी विरमीए. जैनं जयति शासनम् वीर नि० संवत् २४६२, कार्तिक पुनम, डावला, अमदावाद. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003643
Book TitleTapagaccha Shraman Vansh Vruksh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantilal Chottalal Shah
PublisherJayantilal Chottalal Shah
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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