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________________ श्रमण वंशवृक्ष ४३ राजाए पार्श्वनाथ प्रभुना सातमा पधर आचार्य श्रीरत्नप्रभरि पांच सो शिष्यो सहित पधार्या, अनेत्यां नजीकनी लुणादिनी नानी पहाडीमां जइ तपस्या अने स्वाध्याय करवा साथे ध्यानमग्न रहेवा लाग्या. नगरजनो ने राजाने आ परम त्यागमूर्तिनी उपदेशधाराए शुद्ध धर्मना अनुरागी बनाव्या. एकवार राजपुत्रने सर्प करड्यो लाभनुं कारण जाणी आचार्य महाराजे एनुं विष दूर कर्यु. त्यार पछी आचार्य महाराजना उपदेशथी ओसिया नगरीनी समस्त जनताए जैनधर्म स्वीकार्यो. अने तेना समस्त कुटुम्बोवर्गे पण बहु ज श्रद्धापूर्वक जैनधर्म स्वीकार्यो. राजपुतोनी कुलदेवी चामुंडाने पाडा ने बकरानो बलि चढतो ए पण आचार्य महाराजना उपदेशथी बंत्र थयो. राजमंत्री उद्दडे ओसिया नगरीमां प्रभु श्री वीरतुं मंदिर बंधात्र्युं अने आचार्य महाराजे तेनी प्रतिष्ठा करो. आज समये कोरंटामां पण वीर प्रभुना मंदिरनी प्रतिष्ठा आचार्य महाराजे करेली छे. आने माटे नीचे प्रमाणे प्रमाण मळे छे : 46 सप्तत्या (७०) वत्सराणां चरमजिनपतेर्मुक्तजातस्य वर्षे, पंचम्यां शुक्लपक्षे सुहगुरुदिवसे ब्रह्मणः सन्मुहूर्ते । रत्नाचार्यैः सकलगुणयुतैः सर्वसंघानुज्ञातैः, श्रीमद्वीरस्य fare भवशतमथने निर्मितेयं प्रतिष्ठाः ॥ १ ॥ उपकेशे च कोरंटे तुल्यं श्रीवीरबिम्बयोः । प्रतिष्ठा निर्मिता शक्त्या श्रीरत्नप्रभसूरिभिः ॥ २ ॥ ओसीयानगरीना राजपुतोए ज जैनधर्म स्वीकार्ये एटलं ज नहि किन्तु ओसीया निवासी समस्त जातिए जैनधर्म स्वीकार्यो. भगवान् महावीर पछी जैनधर्मना प्रचारनुं मीशन स्थापनार आ आचार्य महाराज छे. वर्तमान औसवाल समाजमांथी बहुधा ओसवालो आ आचार्य महाराजना उपदेशथी ज जैनधर्म पामेला छे. रत्नप्रभसूर क्यारे थया आ विषयमा वर्तमान इतिहासकारोमां मतभेद छे. परन्तु एटलं तो निर्विवाद सिद्ध छे के भगवान् महावीर पछी लाखोनी संख्यामां जैनो बनावनार आ प्रथम ज आचार्य थया छे. मूळ रत्नप्रभसूरिजी नामना अनेक आचार्यो थया एटले संवत्नो निर्णय थवो मुस्केल छे. जैन ग्रन्थोमां तो वीरनिर्वाण संवत् ७० नो उल्लेख मले छे एटले में पण एज समय स्वीकार्यो छे. Jain Education International १. आ श्लोकना त्रीजा पादमां छंदोमंग छे अने केटलीक अशुद्धि पण छे, छतां " जैन साहित्य संशोधक" ना प्रथम भागमां जे प्रमाणे आपेल छे ते ज प्रमाणे अक्षरशः अहीं आपेल छे. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003643
Book TitleTapagaccha Shraman Vansh Vruksh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantilal Chottalal Shah
PublisherJayantilal Chottalal Shah
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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