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श्री तपगच्छ
(६) श्री भद्रबाहु स्वामी तेओश्री यशोभद्रमूरिना शिष्य हता अने वीरनिर्वाण संवत् १७०मां स्वर्ग पाम्या हता. तेओ अन्तिम श्रुत केवली होवा साथे अनेफ नियुक्तिओना अने उबसग्गहर स्तोत्रना कर्ता हता. तेमना लघु बन्धु वराहमिहीरे उपद्रव को त्यारे तेमणे संघरक्षा करी हती. तेमणे दक्षिणना राजाने प्रतिबोध्यो हतो अने नंदवंशना राजाओने पण उपदेश आप्यो हतो.
(७) श्री स्थूलभद्रजी __तेओ श्री संभूतिसूरिजीना शिष्य, नंद वंशना मंत्रीश्वर शकटालना पुत्र, कोशावेश्याना प्रतिबोधक अने एक समर्थ चारित्रधारी हता. नंदवंशना अन्तिम राजाओने प्रतिबोध करनार अने मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्तने प्रतिबोध पमाडी जैनधर्मनो उपासक बनावनार अने तेमना द्वारा जैनधर्मनो खूब खूब प्रचार करावनार तेओ हता. वीरनिर्वाण संवत् २१५मा तेमनो स्वर्गवास थयो.
(८) आर्य महागिरि अने आर्य सुहस्तियरि स्थूलभद्रजीनी पाटे आ बन्ने आचार्यो थया छे. आर्य महागिरिजी जिनकल्पनी तुलना करता हता. तेओ परम त्यागी अने महायोगीश्वर हता. आर्य सुहस्तिसूरिजीना उपदेशथी अवन्तिना भद्रा शेठाणीना पुत्र अवन्तिसुकुमाले दीक्षा लीथी अने स्मशानमां का उस्सग्गध्याने ज स्वर्ग गया. ते स्थाने आचार्यश्रीना उपदेशथी तेना पुत्रे अवन्ति पार्श्वनाथनुं भव्य मंदिर स्थाप्यु जे तीर्थरूपे पूजायु. अने आर्य सुहस्तिसूरिजीए मौर्यसम्राट चन्द्रगुप्तना पौत्र अशोकना पौत्र सम्पतिने प्रतिबोध पमाडी परम आहेतोपासकजैन बनायो हतो. सम्प्रति राजाए जैनधर्म स्वीकार्या पछी उज्जयिनीमा साधुओनी एक मोटी सभा एकत्र करावी अने आचार्य महाराज द्वारा प्रांतवार साधुओना विभाग करी आर्य देशमा सर्वत्र साधुओनो विहार कराव्यो. आ उपरांत अनार्य देशमां पग साधुओनो विहार करावी जैनधर्मनो प्रचार कराव्यो.' जैनधर्म स्वीकार्या पछी आचार्य महाराजना उपदेशथी सम्राट् सम्प्रतिए सवा लाख नवीन जिन-मंदिर बनायां, छत्रीस हजार मन्दिरोना जीर्णोद्वार कराव्या, सात सो दानशाळाओ बनावी, सवा करोड जिनबिंब कराव्यां अने पंचागु हजार धातुप्रतिमाओ करावी. ए राजाने प्रतिज्ञा हती के निरन्तर एक जिनमंदिर बन्यानी वधामणी आव्या पछी दंनयावन क..२
सम्राट् सम्प्रतिए मरु देशमां धांधणी नगरमां श्रीरामप्रमस्वामीन मंदिर बंधाव्यु. पावागढमां श्री संभवजिननु, हमीरगढमां श्री पार्श्वजिननु, इलोरगिारमा नेमिनाथनु, पूर्व दिशामां रोहीशनगरमां श्री सुपार्श्वनाथनु पश्चिममां देवपत्तन (प्रभासपाटण) मां........जिननु,
१. हिमवंतर्थरावली. २. तपगच्छ पट्टावली, श्री. जै. को. हेरल्ड. ३. पट्टावलीकार लखे छे के आ स्थान दक्षिणमा छे आ स्थान बीजं कोई नहिं किन्तु प्रसिद्ध इलारानी गुफा ज छे. पुरातत्त्व शोधकोए इलोरानी गुफानुं जैन-मंदिर शोधी काढवू जोईए.
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