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________________ - - श्रमण वंशवृक्ष तेमणे योगशास्त्रना प्रथम श्लोकना ज पांचसो अर्थ कर्या छे. आ सिवाय सुमित्ररास नामनी एक कृति तेमणे रचेल छे. विजयसेनसूरि पछी विजयतिलक ने विजयसेनसूरिनी पाटे विजयदेवसूरि थया. विजयतिलकसूरिथी आनन्दसूरिनी नवी शाखा फूटी विजयदेवमूरि तेमना संबंधी पुरातत्त्वना पुस्तक बीजामां श्री जिनविजयजीए नांध लखेली छे. तेना परथी एटलं जणाय छे के तेओ प्रखर शास्त्रार्थ करनारा अने मंत्रशास्त्री हता. पण तेमनी एके कृति होवानो उल्लेख मळतो नथी. तेमनी केटलीक सज्झायो होवानो उल्लेख मळे छे. तेमनी पाटे श्री विजयसिंहसूरि आव्या. तेमना लघुगुरुभाई विजयप्रभसूरि हता. विजयसिंहसूरिनी पाट उपर ने ते पछी छेक श्री विजयानन्दसूरिना समय सुधीमां पाट उपर आवेल मुनिओमां मुख्यत्वे गणि, पंन्यास, वगेरे छे; परन्तु कोई सूरि नथी. एटले के विजयसिंहसूरि पछी लगभग एक सैका सुधी पाट उपर कोई आचार्य आव्युं नथी. छतां तेटला अंतरमा महान विभूतिओ थई गयेली छे. तेमणे साहित्य सर्जनमां अद्भुत फाळो आपेल छे. तेमनी नेांध लेवा जतां आगळना आचार्योना महान शिष्योने अन्याय थाय तेम छे छतां ते सही लईने पण एक सैकाना अन्तरमा साहित्य- सर्जन शी रीते टकी रह्यु हतुं तेनी उपर टपके नेांध न लईए तो ते सैकाने अन्याय थाय तेम छे. आ समयना केटलाकविद्वान त्यागीओने सूरिपदनो इल्काब नहोतो मळ्यो, पण तेमनी ते मेळववानी इच्छाय न हती; तेओ स्वयं सूार ज हता. आजना कहेवाता सूरि करतां तेओ महान हता. तेमां विजयसिंहसूरि पछी तरत श्री यशोविजयजी उपाध्याय नजरे पडे छे. तेमणे रचेल साहित्यनी वाडी विशाळ छे ने तेमां तरह तरहना सुगन्धीदार अमर-फूलो छे. तेमना रचेला ग्रन्थोमां साडत्रीस ग्रन्थो अत्यारे उपलब्ध छे, पांचेक ग्रन्थो उपलब्ध छतां अप्रकट छे, ज्यारे बाकीना दसेक ग्रन्थो अनुपलब्ध ज छे. ___'आ युगना फलायमान न्यायविषयक उच्च साहित्य तरफ नजर करीए तो जणाशे के ते अनेक व्यक्तिओने हाथे लखायु नथी. तेना लेखक फक्त एक ज छे अने ते सत्तरमा अढारमा सैकामां थयेला सो [ साठ ? ] शरदो सुधी शास्त्रयोग सिद्ध करनार, संस्कृत, प्राकृत, गुजराती, अने मारवाडी चारे भाषामां विविध विषयोनी चर्चा करनार उपाध्याय श्री यशोविजयजी छे. उपध्यायजीना जैन तत्त्वज्ञान, आचार, अलंकार छन्द वगेरे अन्य विषयोनां ग्रन्थोने बाद करी मात्र जैन न्यायविषयक ग्रन्थ पर नजर नाखीए तो एम कहेवू पडे छे के सिद्धसेन ने समंतभद्रथी वादिदेवसूरि ने हेमचन्द्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003643
Book TitleTapagaccha Shraman Vansh Vruksh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantilal Chottalal Shah
PublisherJayantilal Chottalal Shah
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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