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________________ Re mi - RE धमण वंशवृक्ष मंदिर स्तोत्र रच्यु जेना पंदरमा श्लोके महदेवजीनें लींग फाट्युं अने पार्श्वजिननी प्रतिमा प्रगट थई. तेमनुं संस्कृत अने प्राकृतज्ञान बहु विशाल हतुं. तेमणे समस्त आगमोने संस्कृतमां करवानो संकल्प करीने " नमोऽर्हत्सिद्वाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः” प्रथम बनायुं. आना प्रायश्चित्तरूपे वीरविक्रमने प्रतिबोधी जैन बनायो. राजा वीरविक्रमे जैनधर्म स्वीकारी सिद्धाचलजीनो संघ काढयो, भरुचना अश्वावबोध तीर्थनो जोणीद्धार को अने ओंकारनगरमा विशाल जिनमंदिर बंधावी जैनशासननी खूब प्रभागना करी. तेओ विक्रमनी प्रथम शताब्दिना महान् आचार्य हता. तेओ जैन न्यायना आद्य सृष्टा छे. तेमणे सन्मतितर्क, न्यायावतार, द्वात्रिंशिकाओ, कल्याणमंदिरस्तोत्र आदि ग्रंथो बनाया छे. तेओ श्री दक्षिणमा स्वर्गे पधार्या. निशीथचूर्णिमा उल्लेख प्रमाणे तो सिद्धसेन दिवाकरे जैनागमो उपर पण टीकाभाष्य रच्या हशे. सिद्धसेन दिवाकरनी सर्वज्ञपुत्र तरीकेनी जबरी ख्याति छे. (१३) श्री वनस्वामी भगवान् वज्रस्वामीनो जन्म आजथी १९६७ वर्ष पूर्व मालब देशमां तुम्बवन गाममां थयो हतो. तेमनी मातानुं नाम सुनंदा अने पितानुं नाम धनगिरि हतुं, सुनन्दा गर्भिणी हती त्यारे धनगिरिए सिंहगिरिसूरि नामना प्रसिद्ध जैनाचार्यना उपदेशथी भागवती दीक्षा लीधी. पुत्र जन्म पछी माता पुत्रने धनगिरिने व्होरावी दे छे. वज्र टुंक समयमां जैनागमनो ज्ञाता बने छे अने बहु नानी उम्मरे भागवती दीक्षा ल्ये छे. शुद्ध अने उञ्चल चारित्रना धारक बनीने अनेक लब्धिओ मेळवे छे. तेमना समयमां बारावर्षी भयंकर दुकाळ पडे छे. ते वखते उत्तरापथना संघने दक्षिणमां लई जई संध-सेवा बजावे छे, अने त्यांना (पुरीना) राजाने पण प्रतिवोधी जैनधर्मी बनावे छे. पुरीनो राजा परम बौद्धधर्मी हतो. पर्युषणना दिवसोमां शुद्ध पुष्प जिनवरेन्द्र उपर चढावया नथी मलता. वज्रत्वामी ते विघ्न दूर करे छे. आवी ज रीते शत्रुजय तीर्थनो उद्धार पण तेओश्रीना हाथे ज थाय छे. पांचमा आरामा सौथी प्रथम जीर्णोद्धार आ आचार्य महाराजे करायो छे. तीर्थरक्षक देवनो उपद्रव टाळी महामहेनत अने प्रबल पुरुषार्थ दाखवी जावडशाह द्वारा जीर्णोद्धार कराव्यो छे. तेओ विक्रम संवत् ११४मां स्वर्गवास पाम्या. (१४) वज्रसेनरि तेमनी पाटे वज्रसेनमूरि थया छे. तेमणे सोपारकना जिनदत्त श्रेष्ठीना कुटुम्बने मृत्युना मुखमाथी बचाव्यु अने तेना चार पुत्रो नागेन्द्र, चन्द्र, निवृत्ति अने विद्याधरादिने कुटुम्ब सहित दीक्षा आपी. आ चारे महान् आचार्य थया छे अने तेमना नामथी चार गच्छो प्रसिद्ध थया छे. तेओ विक्रमनी बोजी शताब्दि-बीरनिर्वाग संवत् ६२० मां स्वर्ग पाग्या. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003643
Book TitleTapagaccha Shraman Vansh Vruksh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantilal Chottalal Shah
PublisherJayantilal Chottalal Shah
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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