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________________ श्री तपगच्छ धर्मरत्नसूरि शत्रुजय तीर्थना उद्धारक आ आचार्य महाराज श्री कर्माशाहना पिता तेलाशाहना धर्मगुरु हता. एकवार तेओ संघसहित यात्राए पधारतां चितोडमां पधार्या हता. ते वखते मेवाडनरेश प्रसिद्ध राणो संग (महाराणा सांगा) हाथी घोडा आदि सैन्य सहित सामे आत्यो हतो. तेमनो उपदेश सांभळी बहु ज प्रसन्न थयो हतो अने तेणे सूरिजीना उपदेशथी शिकार आदि दुर्व्यसनोनो त्याग कर्यो हतो. धर्मरत्नसूरिना स्थाने धनरत्नमरिनु पण नाम मळे छे. तेओ सोळमी शताब्दीना महान् आचार्य थया. (५८) जगदगुरु श्री हीरविजयसरि मध्य युगना जैनाचार्योमां आ आचार्यश्रीतुं स्थान बहु ज महत्त्वनु छे. सूरिजी असाधारण प्रतिभाशाली, प्रखर प्रतापी, पुण्यशाळी, अने अपूर्व विद्वान हता. सूरिजीनी यशःपताका मात्र जैनधर्मना उपासकामां ज नहि किन्तु समस्त भारतमा फरकती हती. तेम ज तेमनी यशोगाथा तेमना शिष्यो अने भक्तोए ज गाई छे एम नहि किन्तु अबुलफजले आइनेअकबरीमां अने बदाउनी विन्सेन्ट स्मीथ जेवा पाश्चात्य विद्वानोए पण पोताना ग्रंथामा मुक्तकंठे तेमनी यशोगाथा गाई छे. सूरिजी- अलौकिक ब्रह्मतेज, अगाध पांडित्य अने शुद्ध त्याग--चारित्रनो प्रभाव मात्र जन संघ उपर ज नहि किन्तु मोगल सम्राट अकबर उपर पण घणो पड्यो हतो. १६३९ ना जेठ वदि तेरशे आ प्रखर प्रतापी आचार्य महाराजे मोगलकुल-तिलक सम्राट अकबग्ने धर्मोपदेश संभळाव्यो हता. त्यारपछी घणीवार सूरिजी अकबरने मळ्या छे, धर्मोपदेश माप्यो छे अने तेने धर्मना रंग लगाड्यो छे. सूरिजीना उपदेशथी अकबरे वर्षना लगभग छ महीना माटे मांसाहार बंध कों, शिकार खेलवान तद्दन ओछु कयु, केटलांये निर्दोष पशुपंखीओने छोड्यां, शत्रुजयनो कर माफ कों, प्रसिद्ध जजीयावेरा बध कर्यो, पर्युषणापर्वादिना दिवसेोमां समस्त भारतमां हिंसा बध करावी अने जैन साधुओनो विहार भारतमा निर्विघ्ने थाय तेम प्रबंध कराव्या. सूरिजीना परम प्रताप अने उपदेशथी आकर्षाई सम्राट अकबरे सूरिजीने जगद्गुरुर्नु गौरवभर्यु बिरुद आप्यु हतु. सम्राट अकबरना दरबारमा आवं अपूर्व महान् बिरुद बीजा कोइने नथी मळ्यु. आवी ज रीते गूजरातथी फत्तेहपुरसीक्री आवतां तेमणे अमदावादना सुबाने, सिरोहीना राजाने अने मेडताना सुबाने उपदेश आप्यो हतो. सूरिजीए चार वर्ष ते प्रदेशमा गाळ्यां ते दरम्यान तेमणे शौरीपुर, आग्रा आदिमा प्रतिष्ठाओ करी हती. गूजरातमां पाछा १ श्री हीरविजयसूरिजी सम्राट अकबरने मळ्या ते पहेला सम्राट्ने नागपुरीयतपगच्छना पद्मसुंदरगणि नामना यति मळ्या हता. तेओ विद्वान अने सारा वादी हता. तेमणे अकबरनी राजसभामां एक बादीने जीत्यो हतो. तेमणे पोतानां पुस्तको सनाट्ने आप्यां हतां, ए ज पुस्तको सम्राट अकबरे श्री हीरविजयसूरिजीनी प्रथम मुलाकाते प्रसन्न थई सूरेजोने आप्यां हता. अने सूरिजीए आयामां अकबरना नामथी पुस्तक भंडार को हतो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003643
Book TitleTapagaccha Shraman Vansh Vruksh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantilal Chottalal Shah
PublisherJayantilal Chottalal Shah
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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