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श्री तपगच्छ
___ भगान् महावीर स्वामीनी आठमी पाटना आचार्य श्री सुहस्तिसूरिने १२ प्रधान शिष्यो हता. जे पैकीना पांचमा अने छट्ठा शिष्य आ० सुस्थित तथा आ० सुप्रतिबद्धे उदयगिरिनी पहाडी पर कोडलार सूरिमंत्रनो जाप को. आथी जनताए तेओने “कोटिक' तरीके जाहेर कर्या, अने तेमनो शिष्य-संघ पण वी. नि० सं० ३०० लगभगमां " कोटिक-गच्छ” ना नामथी प्रसिद्ध थयो.
कोटिक-गच्छनी उच्चानागरी, विद्याधरी, वज्री अने मध्यमिका एम चार शाखाओ छे. श्रेणिका, तापसी, कुबेरी, ऋषिपालिता, ब्रह्माद्वीपिका, नागीली (नाईल ), पद्मा, जयन्ती तथा तापसी उपशाखाओ छे. अने ब्रह्मलिज्ज, वस्त्रलिज, वाणिज तथा प्रश्नवाह्न एम चार कुल छे. आ कोटिकगच्छ निम्रन्थगच्छर्नु ज बीजुं नाम छे.
- (स्थानांगसूत्र, कल्पसूत्र, गुर्वावली, तपगच्छपट्टावली. )
चन्द्रगच्छ (३) निम्रन्थगच्छनी तेरमी पाटे आ० वज्रस्वामी थया. तेओ अंतिम दशपूर्वधर होवाथी दिगम्बर इतिहास तेओने द्वितीय भद्रबाहु तरीके ओळखावे छे. आ आर्यथी "वत्री" शाखानो प्रादुर्भाव थयो छे.
विक्रमनी बीजी रादीना पूर्वार्धमा पुनः बार वर्षना भोषण दुकाळ पड्यो. श्री वज्रस्वामीए ५०० साधु साथे दक्षिणमा एक पहाड़ी पर अनशन कर्यु अने तेमना एक क्षुल्लक शिष्ये पासेनी पहाडी पर अनशन कयु. ते श्रमणसंधमांथी श्री वज्रसेनसूरिजी, गुरुनी आज्ञा प्रमाणे श्रमण-परम्पराने कायम राखवा माटे, जीवन्त रह्या. पछी तेओए सोपारक (सोपारा-मुंबई )मां जई दुकाळनी शान्तिनुं भविष्य देखी, शेठ जिनदत्त, शेठाणी ईश्वरी, पुत्रो नागेन्द्र, चन्द्र, निवृत्ति अने विद्याधरने मृत्युना मुखमांथी बचावी जिनदीक्षा आपी आचार्य बनान्या.
आ चारे आचार्योए वी० नि० सं० ६३० पछी नागेन्द्रगच्छ, चन्द्रगच्छ, निवृत्तिगच्छ अने विद्याधरेग छनी स्थापना करी छे. आ चारे गच्छमांथी नामान्तरथी अने पेटाभेदे ८४ गच्छ थया छे.
७. नागेन्द्रगच्छमां वनराज-प्रतिबोधक श्री शीलगुणसूरि, वस्तुपालना गुरु श्री विजयसेनसूरि, स्याद्वादमंजरीकार मल्लिषेणसूरि, चंद्रकुलमां नवांगीवृत्तिकार श्री अभयदेवसूरि, निर्वृत्तिकुलमां द्रोणाचार्य, नवखंडापार्श्वप्रतिष्ठापक महेन्द्रसूरि तथा विद्याधरगच्छमां श्री नागहस्तिसूरि, वृद्धवादिसूरि, सिद्धसेनदिवाकर, पादलिप्तसूरि वगेरे प्रसिद्ध आचार्या थया छे.
८. दिगम्बर ग्रन्थकारो पण द्वितीय भद्रबाहुस्वामीना शिष्य श्री चंद्रगुप्तसूरिने दिगम्बर श्रमण-परंपराना आदि पुरुष तरीके संबोधे छे. तदीयवंशाकरतः प्रसिद्धादभूददोषा यतिरत्नमाला
--(विन्ध्यगिरि शिलालेख नं. १०८, श्लो० १०.) दि० ग्रन्थोमां अन्यत्र इंद्र, चंद्र तथा नागेन्द्र गच्छीय श्रमणो (ताम्बरो) ने मिथ्यात्वी बताव्या छे.
-पं० आशाधर कृत सागारधर्मामृत, पृष्ठ-५. षड़प्राभृत टीका, पृष्ट-११८, २३९, २८३, ३२३.
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