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________________ श्रमण वंशवृक्ष ३५ आ चन्द्रगच्छ ते निम्रन्थगच्छर्नु त्रीजुं नाम छे. ----(आवश्यकनियुक्ति-वृत्ति, गुर्वा वली.) वनवासीगच्छ (४) आ० चन्द्रसूरिनी पाटे ओ० समन्तभद्रसूरि थया. आ समये श्वेताम्बर-दिगम्बरना विभागो पड़ी चूक्या हता. छतां बन्ने विभागो आ पूर्वविद् आचार्यने सरखी रीते मानता हता. आज पण तेमना ग्रन्थो नि:शंक भावे "आप्तवचन" तरीके मनाय छे. __ तेओए १. आप्तमीमांसा काव्य--१४४ (देवागमस्तोत्र ), २. युक्तयनुशासन पद्य-६४, ३. स्वयंभूस्तोत्र पद्य-१४३ (समन्तभदस्तोत्र-चैत्यवंदनसंग्रह ), ४. जिनस्तुतिशतक पथ-१६६ (स्तुतिविद्या-जिनशतक-जिनशतकाल कार ) वगेरे प्रौढ सर्जनो आप्यां छे, जे हाल उपलब्ध छे. जे पैकीनु देवागमस्तोत्र तेमणे पोताना शिष्य " वृद्धदेवसूरि "ने (प्रतिबोधवा) माटे बनायुं होय ए । स्वाभाविक छे. तेओ दिगम्बर होय एवं एक पण प्रमाण प्रस्तुत ग्रन्थमां मळतुं नथी, परन्तु उत्कट त्याग अने वन-निवास करवाना कारणे ज दिगम्बर संप्रदाये तेमने अपनाच्या छे. तेओ पूर्वविद् हता, घोर तपस्वी हता, आगमानुमारी क्रियाधारक हता अने अधिकांशे देवकुल, शून्यस्थान तथा वनमां स्थिति करता हता. आथी लोको तेमने तथा तेमना शिष्य संप्रदायने वीरनिक ७०० लगभगमां " वनवासी" ना संकेतथी ओळखबा लाग्या. आ रीते निम्रन्थगच्छनुं चो, नाम वनवासीगच्छ पड्यु. --- ( गुर्वावली, स्वामी समन्तभद्र.) वडगच्छ (५) भगवान् महावीरनी पांत्रीशमी पाटे श्री उद्योतनसूरि थया. तेओश्रीए मथुरा तीर्थनी अनेकवार अने सम्मेतशिखर तीर्थनी पांचवार यात्रा करी छे. ते एकवार ए पुनीत तीर्थोनी यात्रा करी आतुनी यात्राए पधार्या. अहीं आबुनी तोटीमा रहेल टेली गामने सीमाडे ( पादरमा) एक विशाळ वड नीचे बेटा हता. ए वखते आकाशमा सुन्दर " ग्रहयोग " थयो हतो. आचार्यजीए अत्यारे शुभ अने बळवान् ९. दिगम्बर ग्रन्थकारो कहे छे के श्री समन्तभद्रसूरिए जीवसिद्धि, तत्त्वानुशासन, प्राकृतव्याकरण, प्रमाणपदार्थ, कर्मप्राभृत टीका, अने गंधहस्तिभाष्य ग्रंथो बनाव्या हता जे हाल मळी शकता नथी. दिगम्बर विद्वानो समन्तभद्र-श्रावकाचार ( रत्नकरंडक उपासकाध्ययन ) ने पण तेओनी कृति माने छे, पण जेम कुंदकुंदश्रावकाचार, उमास्वामीश्रावकाचार वगेरे नकली ग्रंथो ते आचार्यानां नाम पर चडावी देवामा आव्या छे तेम आ श्रावकाचार माटे पण बन्युं होय ए स्वाभाविक छ, अथवा आ ग्रन्थना विधाता लघु-समन्तभद्र होय ए पण संभवित छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003643
Book TitleTapagaccha Shraman Vansh Vruksh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantilal Chottalal Shah
PublisherJayantilal Chottalal Shah
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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