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श्रमण वंशवृक्ष
कराव्यु. एमां सोमसुन्दरसूरिना शिष्योनाय फाळो मोटो हतो. कहेवाय छे के नहि नहि तोय पंदरमी सदीना मध्यथी अन्तसुधीमां लाख प्रत लखाई हशे. एक श्रावके ज आ सूरिना उपदेशथी अगियार मुख्य अंगोनुं संस्करण कराव्युं हतुं. मुसलमानोनुं जोर वधतु जतुं हतुं, छतां जैनाए दिल्हीथी आवता सुबाओ साये मैत्री साधी लीधी हती अने क्वचित क्वचित ज आथी जैन समाजने शोषवू पडतुं.
तेमना रचेला ग्रन्थोमां चउशरण पयन्ना पर संस्कृतमां अवचूरि, कल्याणादि विविधस्तव, भाष्यत्रयचूर्णि, रत्नकोष, नवस्तवी वगेरे; संस्कृत सर्वनाम 'युष्मत् अस्मत्' अने जुदा जुदा रुपो बीजा शब्दो साथे बहुव्रीही सभास करे छे ते अढार स्तोत्रमां अष्टादश स्तवी, सप्तति पर अने आतुरप्रत्याख्यान पर भुवनतुंगसूरिनी वृत्ति-चूर्णि परथी अवचूर्णि, ते मुख्य छे. आ सिवाय गुजराती भाषामां जैनग्रन्थो पर बाळावबोध गद्यानुवाद लख्या, जेमां उपदेशमाळा पर, योगशास्त्र पर, षडावश्यक पर, आराधनापताका पर, नवतत्व पर, नेमीचंद भण्डारी कृत षष्टीशतक पर बालावबोध रच्या छे. वळी तेओ कवि पण हता. तेमना का योमा आराधनारास, नेमिनाथ नवरसराग अने स्थुलिभद्रफाग मुख्य छे.
सोमसुन्दरसूरिनो शिष्य-परिवार मोटा हतो अने विद्वान हता. तेमना शिष्या प्रखर लेखक, उपदेशक, वादी अने ग्रन्थकार थयेल छे. सोमसुन्दरसूरिना समयमां अने पछी, कथा साहित्य पहेला करतां पण वधारे विकास पामेल छे.
__ढूंकमां जैनधर्मना मन्दिरनिर्माणथी आचार्यपद अने वाचकपदना करावेला उत्सवाथी, पुस्तकोना उद्धारथी, अने लोकभाषामां गयग्रन्था रचवाथी- एम अनेक प्रकारे तेमणे जनसमूहनी सेवा करेल छे. तेमणे प्रतिष्टाओ करी छे, शिल्प-कलामा विशेष ध्यान आप्यु छे अने भण्डारोमा पुरायेला साहित्यने फरी ग्रन्थस्थ करी तेम ज पाठळ विद्वान शिष्यनो समुदाय मुकी साहित्य नी अपूर्व सेवा करी छे.
तेमना शिष्यपरिवारमा मुनिसुन्दरसूरि, जयसुन्दरसूरि, भुवनसुन्दरसूरि अने जिनसुन्दरसूरि मुख्य छे.
जयसुंदरमूरि पोतानी विद्वताथी तेमणे कृष्णसरस्वती-कृष्णवाग्देवता एयु बिरुद प्राप्त कर्यु हतुं. तेओ काव्यप्रकाश अने सन्मतितर्कना खास अभ्यासी हता. प्रत्याख्यान स्थानविवरण, सम्यक्त्वकौमुदि, प्रतिक्रमणविधि वगेरे प्रकरण तेमना रचेला ग्रंथ छे.
५. जैन साहित्यना संक्षिप्त इतिहासमां तेमने जिनकीर्तिसूरि जणावेल छे.
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