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________________ श्री तपगच्छ जैनोना इतिहास पर एक दृष्टिपात —योगनिष्ठ आचार्य बुद्धिसागरसरि जैनधर्म आ जगतमां अनादि काळथी छे. जैनो जगतने अनादि काळनुं माने छे. परमेश्वर परमात्माआने अनादि काळथी माने छे. एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, अने पंचेन्द्रिय जीवोने कर्म सहित संसारी जीवो माने छे. अनादि काळथी जीवो छे अने तेओनी साथे अष्ट कर्म लाग्यां छ एम माने छे. जीवोने पुण्ययोगे सुख थाय छे अने पापयोगे दुःख थाय छे. पुण्य ए शुभ कर्म छे अने पाप ए अशुभ कर्म छे. अत्यंत अशुभ कर्मथी नरकमां जवाय छे अने अत्यंत शुभ कर्मथी स्वर्गनी प्राप्ति थाय छे. पुण्य सहित अल्प पापथी मनुष्यनी गति प्राप्त थाय छे. कपट वगेरथी तिथंचनी गति प्राप्त थाय छे. मनुष्यनी गतिमां आत्मानी पूर्ण शुद्धि थवाथी मोक्ष मळे छे, एम जैनो माने छे. गृहस्थजैनो, देश अर्थात् अंशथकी बार व्रतोने अंगीकार करे छे. जेओ त्यागीना पंच महाव्रत ग्रहीने कंचन कामिनी वगेरेनो त्याग करे छे तेओने त्यागी मुनिओ-साधुओ कहेवामां आवे छे. तेओ सर्वविरति मुनि कहेवाय छे. मुनिओना उपरीने आचार्य कहे छे. त्यागीधर्म ग्रहण करनारी स्त्रीने साध्वी, श्रमणी-आर्या कहेवामां आवे छे अने तेनी उपरी साध्वीने प्रवर्तिनी कहेवामां आवे छे. जे साधुओने अने साध्वीओने आगमो वगेरे भणावे छे ते उपाध्याय कहेवाय छे. पंडित साधुओने पंन्यास कहे छे. जैनधर्म माननारा गृहस्थ स्त्रीवर्गने श्राविका-संघ तरीके कहेवामां आवे छे. जैन गृहस्थो श्रावक-संघ तरीके कहेवाय छे, साधुओने साधु-संघ अने साध्वीओने साध्वी-संघ एम चतुर्विध संघ कहेवाय छे. चतुर्विध संघने तीर्थ कहे छे अने एवा तीर्थनो उच्छेद थवानो समय आवतां जे केवळज्ञानी अर्हतो, संघरूप तीर्थने स्थापे छे ते तीर्थंकरो कहेवाय छे. चोवीश तीर्थंकरोना कालमां बार चक्रवतिओ थया, अगियार रुद्र, नव नारद, नव वासुदेव, नव प्रतिवासुदेव, अने नव बळदेव थया. (चोवीश तीर्थकर, बार चक्रवर्ति, नव वासुदेव, नव बळदेव, नव प्रतिवासुदेव ए त्रेसठ शलाका पुरुषो कहेवाय छे.) आजसुधी अनेक तीर्थंकरो थइ गया. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003643
Book TitleTapagaccha Shraman Vansh Vruksh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantilal Chottalal Shah
PublisherJayantilal Chottalal Shah
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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