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________________ श्रमण वंशवृक्ष आचार्योनी ज्यां ज्यां नजर पडी छे ते ते विषयमां ऊंडा उतरवानी दरेक तक तेमणे लीधी छे अने साहित्यना कोई पण विषय पर हाथ अजमाववो तेमणे बाकी नथी राख्यो. वळी तेओ निःस्पृही होवाथी श्रावक समुदाय पासेथी समयने अनुसरी काम लोधेलुं छे. तेमना उपदेशथी लखायेल हजारो ताडपत्रो ने पुस्तको अत्यारे जेवी ने तेवी स्थितिमां भंडारोमां मोजूद छे. आ वस्तु पाठळ जैन समाजे फक्त पैसो ज नथी खरच्यो पण तेमणे जाते ताडपत्रो ने पुस्तको लखेल छे. ताडपत्र परथी पुस्तकने कागल उपर उतारवामां पण एटली जहेमत उठावेल छे. तपगच्छना आचार्योए प्रबन्ध लखवानी कळाने अने लोककथा साहित्यने वधु विकसावेल छे, अने ए द्वारा गुजराती भाषानुं सर्जन पण करेल छे. तेओनी-साधुओनी एक विशिष्टता ए पण छे के तेओ जीवता जागता भंडारो समा छे. तेमनी पीठ पर ज ज्ञान-भंडारनुं वहन थाय छे; आथी ने विहारथी अन्य कोई धर्मना साधुए जे कार्य नथी कर्यु ते जैन धर्मना साधुओए करी बताव्युं छे, बल्के तेमांय तपगच्छना आचार्योनो मोटो फाळो छे. तेमणे तपगच्छना स्थापक जगचन्द्रसूरिथी आज सुधी एटले के लगभग सातसो वर्ष सुधी--शिल्प, स्थापत्य तथा बीजी कलाओ साथे साहित्य सर्जन अने रक्षणमा जराये कचाश आववा नथी दीधी, बल्के तेमां ऊमेरण कयुं छे. अने ते द्वारा जैन संस्कृतिने टकावी राखी छे, जैन इतिहासने जाळवी राख्यो छे, जैनोनी महत्ताने तेमणे चिर यशस्वी बनावी छे. ते माटे खरेखर तेओ वंदनीय छे, स्मरणीय छ, ने पूजनीय छे. ___भाई जयंतीलाले आ निबन्ध लखवा माटेनी मने तक आपी ते बदल तेमनो आभार मार्नु छं ने निबन्धमा जे क्षति रही गई होय ते बदल वा चकनी क्षमा मागी आ निबन्ध पूर्ण करुं छं. C/o गूर्जर ग्रन्थरत्न कार्यालय गांधीरोड : अमदावाद भीमअगियारस : १९९२ 卐 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003643
Book TitleTapagaccha Shraman Vansh Vruksh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantilal Chottalal Shah
PublisherJayantilal Chottalal Shah
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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