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श्रमण वंशवृक्ष
वीश तीर्थकरो बिहार - काशी वगेरेमां थया. बावीशमा श्री नेमिनाथ सौराष्ट्रदेश द्वारकापुरीमां थया. शौरीपुरमा ( मथुरामां) जन्म्या हता. ते यदुवंशी हता. तेमणे भारतदेशमां जैनधर्म प्रसराव्यो. चोवीशमा तीर्थंकर श्री क्षत्रियकुंड नगरमां थया, ( बिहार मगधदेशमां वैशाली नगरी पासे क्षत्रियकुंड नगर आवे छे ) तेमना पिता सिद्धार्थ राजा हता, अने तेमनी माता त्रिशला राणी हतो. जन्मथकी ते मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अने अवधिज्ञान ए त्रण ज्ञानवाळा हता. युवावस्थामा सिन्धुसौवीर देशनी समरवीर राजानी पुत्री यशोदा साथे लग्न कर्तुं हतुं सांवत्सरिक दान देइने तेमणे त्रीशमा वर्षे दीक्षा अंगीकार करी. कार्तिक वदी दशमे दीक्षा लीवा पछी तेमणे बार वरस पर्यंत ध्यान धर्यु अने मनुष्यो वगैरे तरफथी थता उपसर्ग परिसहोने समभावे सहन कर्या. बेंतालीशमा वर्षे ऋजुवालिका नदीना तीरे श्यामाक कुटुंबीना क्षेत्रमां सालवृक्ष नीचे वे उपवास करो शुक्ल ध्यान धर्यु तेथी तेमना शुद्रात्मामां केवलज्ञान प्रगट्युं तेथी ते लोकालोक, सर्वरूपी तथा अरूपी पदार्थो - तत्त्वोने साक्षात् देखवा
लाग्या.
प्रभु केवलज्ञान पाम्या के तुर्त समवसरणनी रचना थई. तेमना समवसरणमां, आर्यावर्तमां दादिक विद्यामा पारंगत, महावादी गौतम ( इन्द्रभूति ), अग्निभूति, वायुभूति वगेरे अगियार आचार्य ब्राह्मणो आव्या. तेओ संपूर्ण भारतमां प्रसिद्ध हता. तेओनी शंकाओने भगवान् श्री महावीर देवे वेदोनी श्रुतियो सापेक्षपणे समजावी दुर करी, अने अगिआरे ए श्री महावीरदेव पासे दीक्षा अंगीकार करी. महावीरप्रभु गौतमादि अगियार ब्राह्मणोने गणधर स्थाप्या. न्यायशास्त्राना रचनार गौतमऋषि तथा अन्य गौतमऋषिथी प्रभुना गणधर गौतमऋषि जुदा हता. परमात्मा महावीरदेवे जैनधर्मनो प्रकाश कर्यो अने चतुर्विध संघने स्थापी दुनियामां तीर्थ प्रवर्तायुं. तेमणे चौद हजार साधुओ कर्या, छत्रीश हजार साध्वीओ करी, एक लाख ने ओगणसाठ हजार बारव्रतधारी श्रावको बनाव्या, अने अविरती सम्यग्दृष्टि जैनो करोडोनी संख्यामां बनगव्या. तेमणे त्रण लाख अढार हजार बारव्रतधारी श्राविकाओ बनावी . अगियार गणधरोए तथा ते गणधरोना साधुओए करोडोनी संख्यामां श्रावको अने श्राविकाओ बनावी. प्रभु महावीरदेवनो बोध आखा हिन्दुस्तानना श्रेणिक, उदयन, उदायी, चंडप्रयोत, चेटक वगेरे राजाओए स्वीकार्यो अने महावीरदेवना भक्त बन्या. प्रभुए ज्ञान, दर्शन, चारित्रनुं स्वरूप समजायुं. आत्मज्ञाननो विश्वमां प्रकाश कर्यो. प्रभु महावीरदेव आषाढ सुदि छ मातानी कुमां आव्या अने चैत्र शुद्ध तेरसनी मध्यरात्रीए जन्म्या. प्रभु महावीर भगवाने केवळज्ञान पामीने त्रीश वर्ष सुधी भारतदेशमां सर्व लोकोने धर्मनो उपदेश दीघो. शूद्र- चंडाल जातिने पण त्यागदशानो अधिकार जणावीने त्यागी बनाव्या. भारतदेशमां दया, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अध्यात्मज्ञान, योगज्ञान प्रगट कर्यु अने भारतना लोकोनां हृदयोने दयाथी भरी दीघां. त्यागी महात्माओने बनावी हिंदुस्तानथी बाह्यना देशोमां जैनधर्मनो प्रचार कर्यो,
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