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________________ श्रमण वंशवृक्ष संघ (सं० ७०५) माथुरसंघ (सं० ९०० लगभग) तारनपंथ (सं० १५७२ ) तेरहपंथ (सं० १६८०) अने गुमानपंथ (वि० सं० १८१८ ) वगैरे अनेक भेदो--पेटा भेदो छे. ----एन्साइक्लोपीडिया ऑफ रीलीजीयन एन्ड एथिक्स, वो० १, पृ० २५९) निन्दवभेद गणधरवंश तथा वाचकवंश (अथवा युगप्रधान परंपरा ), एम महावीर-श्रमणसंघना बे प्रवाहो छे. आ प्रवाहो वास्तवमा संघव्यवस्थाए अभिन्न छे, मात्र चारित्र अने श्रुतनी व्यवस्थाने अंगे भिन्न भिन्न छे. तेमां क्रिया, आचार, व्यवहार अने सिद्धांत एक ज प्रकारना हता, एटले कोई साधुनो क्रिया आदि विषयमा मतभेद पडे तो ते जुदो पडी अभीष्ट नियमो बनावी नवीन मत स्थापित करतो हतो. आ रीते वीरनिर्वाणथी ६०९ वर्ष सुधीमा सात (आठ) मतो निकळी चूक्या हता. तेनां नामो आ प्रमाणे छे. १. वी० नि० पूर्वे १४ वर्षे जमालिए " बहुरत" मत चलायो. २. वी० मि० पूर्वे १६ वर्षे तिष्यगुप्ते “जीवप्रदेश" मत चलायो. ३. वी० नि० सं० २१४मा आषाढाचार्यना शिष्योथी “ अव्यक्त" मत चाल्यो. ४. वी० सं० २२०मा आ. महागिरिना पांचमा शिष्य कौडिन्यना शिष्य अश्वमित्रे "सामुन्छेदिक" मत (शून्यवाद ) चलाव्यो. ५. वी० सं० २२८मां आ० महागिरिना शिष्य धनगुप्तना शिष्य गंगदत्ते " द्विक्रिय" मत स्थाप्यो. ६. वी० सं० ५४४मां रोहगुप्ते “ त्रिराशिक" मत स्थाप्यो. ७. वी० सं० ५८४मां गोष्टामाहिले " अबद्धिक" मत चलाव्यो. ८. वी० नि० सं ६०९ ( वि० सं० १३९ )मां शिवभूतिए. “बोटिक' (दिगम्बर) मत चलायो. --(आवश्यक नियुक्ति, गाथा ७७८ थी ७८८, भाग्य गाथा १२५ थी १४८) आमांथी द्विक्रिय सुधीना निन्हवभेदो नाश पाम्या, अने बाकी रहेला व्रण निन्हबभेदा बोटिक (दिगम्बर) मां मळी गया, एटले बी० नि० सं० ६०९ मा प्रधानतया एक ज निन्हवभेद रह्यो होय एम लागे छे. ___ आ साते मतो भगवान् महावीरना शासनथी सिद्धांतभेद तथा क्रियाभेद करी निकल्या छे. तेना स्थापकोए भगवान्ना सत्यने निहत्यु (गोप-यु) छे माटे तेओ “निन्हव" मनाय छे. आ साते प्राचीन जैनसंघनी विरोधी शाखाओ छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003643
Book TitleTapagaccha Shraman Vansh Vruksh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantilal Chottalal Shah
PublisherJayantilal Chottalal Shah
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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