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श्री तपगच्छ
गच्छभेद आ ज रीते भगवान् महावीरना संघमां बीजा अनेक अ--विरोधी भेदो छे, जे "गच्छभेद" तरीके संलक्षित छे. बीजी रीते कहीए तो आ पण एक जैनधर्मना प्रचार माटेनी व्यवस्था-नीति छे.
जैन इतिहासने नहीं जाणनारा "गच्छ" शब्दथी प्राचीन जैनसंघमां पण विरोधी विभागोनी कल्पना करी ल्ये छे किन्तु वास्तविक रोते ए कल्पनाओ मात्र कल्पनाओ ज छे.
आजनी गवर्नमेंट हिन्दनी व्यवस्था माटे वायसराय, गवर्नर, कमीश्नर, कलेक्टर, मामलतदार वगेरे अमलदारोनी ते ते विभागनी जवाबदारी साथे नीमणुक करे छे. आ ज व्यवस्था-शक्ति प्राचीन काळना श्रमण संघमा सक्रिय दशामा हती. एटले श्रमणोए धर्मप्रचारनी सुविधा माटे देश, गाम, विशिष्ट शक्तिधर आचार्य के अन्य ख्यातिसूचक निमित्तने अनुलक्षी जैनसंघमां गण, गच्छ, कुल तथा शाखाओना विभाग पाड्या हता.
सौराष्ट्रिका, उच्चानागरी (तक्षशिलानी शाखा), ताम्रलिप्तिका, पौड्वर्धनिका, कौशाम्बिका, चंद्रनागरी, पुण्यपत्रिका, वजूनागरी, चंपा, भद्रिका, काकंदिका, श्रावस्तिका, अंतरिजिका, राजपालिका, कोटिकगण, वज्री, वनवासी गच्छ, चंद्रकुळ, तपस्वीगच्छ, जयन्तीशाखा, आ नामो उपर्युक्त कथनने विशदभावे स्पष्ट करे छे.
आ गच्छोमां न हतो सिद्धांतभेद के न हतो क्रियाभेद. दरेक पोतपोतानी कक्षामां रही जैनसंघने ज पुष्ट करता हता. श्री कालिकाचार्ये वीरनि० सं० ४५७मां पांचमनी चोथ करी तो दरेके चोथ मानी. आ० दिनसूरिए श्रमणोनी अंतिम विधि बदलाववा फरमाव्यु, जेनो सर्वानुमते स्वीकार थयो. (पं० खुशालविजयजी रचित तपगच्छनी भाषा पट्टावाली ) एटले संघना हित माटे लेवातो मार्ग दरेकने मान्य ज रहेतो. तेमां मतभेदने अवकाश ज न हतो.
___ कदाच एक आचार्यनो अभिप्राय जूदो पडे तो "अमुक आचार्य- आम कहेवं छे” “अन्य आचार्य आम कहे छे' एम तेमनो अभिप्राय पण सर्वमान्य रीतिए स्वीकारातो हतो..
विक्रमनी ११मी सदी सुधीना ग्रंथोमां गच्छोना मतभेदो उपलब्ध नथी के जेवा अत्यारे अधिकमास, तिथि, कल्याणक, सामायिक, मुहपत्ति, स्तुति वगेरेमा जोवाय छे.
___ विक्रमनी ११मी सदी पछीना गच्छो उपरना दर्शावेल गच्छाथी भिन्न छे, जे पैकीना केटलाक अल्पांशे पण सिद्धांतभेद के क्रियाभेदने अंगे जुदा पड्या छे. एटले आ गच्छोने प्राचीन गच्छोनी कोटिमां मूकी न शकाय. प्राचीन ८४ गच्छोमां तपगच्छ, अंचळगच्छ, खरतरगच्छ, पायचंदगच्छ, लेांकागच्छ वगेरेना उल्लेखो नथी.
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