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________________ श्रमण वंशवृक्ष आ उपरांत अत्यारे पण जे ८४ गच्छोनी नामवाळी मळे छे ते विक्रमनी बीजी सहस्त्राब्दीनी, एटले अर्वाचीन छे. जेमा घणा असली गच्छोनां नामो लखायां नथी. तेने स्थाने नवा गच्छोनां नामो दाखल करी देवामां आश्यां छे. (८४ गच्छ माटे जुओ “पट्टावली समुच्चय" भाग १, परिशिष्ट-५ ) परन्तु एक वात निर्विवाद छे के---निन्हवभेद ए वास्तविक भेद ज छे. अने गछ भेद ए कारणिक अथवा एक ज गच्छना नामांतररूप भेद छे. हवे आपणे मूळ विषय उपर आवीए : निर्ग्रन्थ गच्छ (१) भगवान् महावीर " निर्मन्थ ज्ञातपुत्र" तरीके सम्बोधित थता हता, एटले तेमनो भिक्षुसंघ पण " निम्रन्थ " तरीके ज प्रसिद्ध हतो. (वीरनि० पूर्वे ३० वर्ष ) आ रह्यां तेनां प्रमाणो--- १. जिनागमोमां स्थाने स्थाने निर्ग्रन्थ शब्द उल्लिखित छे. जेमके-न कप्पइ निग्गंथाणं निग्गंथीणं । जे इमे अज्जत्ताए समणा निग्गंथा विहरन्ति (स्थविरावली), निग्गन्थाणं महेसिणं (दशवैकालिक सूत्र ) वगेरे. २. तस्स कालकिरियाय भिन्न निग्गंथ द्वेषिक जाता (मज्झिमनिकाय, सामगामसूत्त ). गोशालानी तेजोलेश्याना प्रसंगने अनुलक्षीने आ वर्णन करेल छे. आ वर्णनमां अवदात वसननुं पण सूचन छे. ३. कौशलनो गजा प्रसेनजित निम्रन्थो (श्वे० जैन साधुओ ) ने नमस्कार करतो हतो. ( दीघनिकाय. इन्डियन हीस्टोरिकल क्वार्टरली, वो० १, पृ० १५३) ४. गोशाळाना मत प्रमाणे निर्ग्रन्थो वस्त्रयुक्त (श्वेतांबर साधु ) होवाथी लोहोभिजातिमा समाविष्ट छे. (बाबू कामताप्रसाद कृत महावीर ) ५. निर्ग्रन्थ शब्द दूसरे संप्रदायों को भी लगता था, ओर वस्त्रधारी भी " निम्रन्थ " कहलाते थे । (पं० दरबारीलालजी न्यायतीर्थ, "जैन जगत्" ता० १६-११-१९३२ का अंक) जैन साधु माटे रूढपणे वपरातो “ निर्ग्रन्थ " शब्द श्वेताम्बर साधुने उद्देशीने लखायो छे. अने श्वे० दि० आचार्यो निम्रन्थोने पांच श्रेणिमा स्थापी ए ज अर्थने स्पष्ट करे छे. श्वेताम्बगचार्य दशपूर्वधर श्रीदिन्नसूरिना शिष्य आ० शांतिश्रेणिकनी उच्चानागरी (तक्षशिला वाळी) शाखाना वाचक पूर्वविद् श्री उमास्वाति महाराज फरमावे छे के: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003643
Book TitleTapagaccha Shraman Vansh Vruksh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantilal Chottalal Shah
PublisherJayantilal Chottalal Shah
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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