SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री तपगच्छ चंडराय पछी तेनी त्रीजी पेढीए क्षेमराज कलिंगनो राजा बन्यो. वीरनिर्वाण संवत् २२७ मां एनो राज्याभिषेक श्रो. एना समयमा प्रसिद्ध मौर्य सम्राट् अशोके कलिंग उपर चढाई करी कलिंगने मनुं आज्ञाधारी बनायुं. ४६ क्षेमराज पछी तो पुत्र डुराज कलिंगाधिपति थयो. ते परम जैनधर्मी हतो. तेणे कुमारगिरि ने कुमारी गिरी पर्वत उपर श्रमणोने रहेवा माटे ११ गुफाओ बनावी. वीरनिर्वाण संवत् ३०० मां तेनी पछी तेनो पुत्र भिक्खुराज कलिंगनी गादीए बेो. ते परम वीतरागोपासक अने निर्बन्धनो भक्त हतो. भिक्खुराजनां त्रण नामो हतां : भिक्षुराज, महामेघवाहन अने खारवेल. भिक्षुराज अतिशय पराक्रमी अने वीर पुरुष हतो. तेणे पोतानी प्रबल सेनाथी विजययात्रा आरंभी. मगध नरेश पुष्यमित्र युद्धमां हरावी तेने पोतानी आज्ञा मनावी अने नंदराज जे आदिनाथ प्रभुनी प्रतिमा, कलिंग देशमांथी अडी लाव्यो हतो ए सुवर्ण प्रतिमा पाछी कलिंगमां लाव्यो, अने कुमारगिरिपर्वत उपर नवीन मंदिर बंधावी प्रसिद्ध श्वेतांबराचार्य सुप्रतिवद्धसूरिजी पासे तेनी प्रतिष्ठा करावी. आर्य महागिरि अने आर्य सुहस्तिसूरिजीना समयमां बारावर्षीय भयंकर दुष्काळ पड्यो हतो. ते वखते घणा त्यागी साधु-महात्माओ त्यां अनशन करी स्वर्गे सिवाच्या हता. ए दुष्काळना प्रभावथी आगमज्ञान क्षीण थतुं जतुं जोइ कलिंगाधिपति खारवेले प्रसिद्ध प्रसिद्ध जैनस्थविरोने कुमारीपर्वत उपर एकत्र कर्या, जेमां आर्य महागिरजीनी परंपराना आर्यवलिस्सह, बोधिलींग, देवाचार्य, धर्मसेनाचार्य, नक्षत्राचार्य वगैरे बसो साधुओ, तेमज आर्य सुस्थित अने सुप्रतिबद्ध तथा 'उमास्वाति, श्यामाचार्य वगैरे ऋण सो स्थविरकल्पी साधुओ एकत्र थया हता. आर्या पोइणी प्रमुख त्रणसो साध्वीओ आवी हती. कलिंगराज, भिक्षुराज, सीवंद, चूर्णक, सेलक वगेरे सातसो श्रमणोपासको अने कलिंग महाराणी पूर्णमित्रा आदि सातसो श्रमणोपासका -श्राविकाओ एकत्र थइ हती. कलिंगराजन विनतिथी अनेक साधुओ अने साम्नीओ मगध, मथुरा, बंग आदि देशोमां धर्मप्रचार माटे नोकळ्या, अने आगमवित् पूर्वधरोए आगमनो संग्रह कर्यो. राजानी विनतिथी शेष बचेल दृष्टिवादनो पण संग्रह कर्यो. आत्री रीते आ राजा द्वादशांगीनो संरक्षक बन्यो. १. तत्त्वार्थसूत्र सभाष्यना कर्ता. वीर निवाणनी चोथी शताब्दिमां स्वर्ग. प्रशमरति, श्रावकप्रज्ञप्ति आदि पांचसो प्रकरणग्रंथोना रचयिता. २. पन्नवणासूत्रना कर्ता. वीरनिर्वाण संवत् ३६७मां स्वर्ग. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003643
Book TitleTapagaccha Shraman Vansh Vruksh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantilal Chottalal Shah
PublisherJayantilal Chottalal Shah
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy