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________________ प्राक्कथन नवसर्जननी उन्नत भावनाथी रंगायेला आ युगमां, लोकरुचिए इतिहासना क्षेत्र तरफ टीकठीक पगलां मांड्यां छे. भूतकालीन इतिहासमुं दर्शन करीने तेमांथी वर्तमान उन्नतिनु दिशासूचन मेळववा माटे आजे लगभग दरेक समाज प्रयत्न करी रहेल छे, कोई अल्प अंशे तो कोई अधिक अंशे . आवा प्रसंगे, जैन श्रमण संस्कृतिना एक महत्त्वना अंगभूत तपगच्छना श्रमणोनी पट्ट परंपरा आळेखतुं आ–'श्री तपगच्छ श्रमण वंशवृक्ष'-पुस्तक समाज समक्ष भेट धरतां हुं अत्यंत हर्ष अनुभवू छं. वि. सं. १९९० मां श्री राजनगर (अमदावाद ) मां भरायेल अखिल भारतवर्षीय जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक मुनि सम्मेलननो शुभ प्रसंग हजु गई काल जेटलो ज ताजो छे. आ प्रसंगे मारे अमदावादमां आववान थयुं अने बधुमां नगरशेठ श्रीमान् कस्तुरभाई मणिभाईना वंडामा ए सम्मेलनना कार्यालयमा ज कामकाज करवानो प्रसंग सांपड्यो. परम पूज्य मुनिमहाराज श्री दर्शनविजयजी (दिल्हीवाळा ) आदि त्रणे मुनिराजो आ गसंगे अमदाशदमां पधारेला अने तेमनी स्थिरता पण नगरशेठना वंडामा ज थई. जैन इतिहासना पट्टावली-पट्टपरंपराना क्षेत्रमां आ पूज्य मुनिराजो निष्णात मनाय छे. वर्तमान श्रमण समुदायनी गुरुपरंपराथी समाजना सामान्य वर्ग पण परिचित थई शके ए, एकाद पुस्तक तैयार करवानी भावना भने धणा समयथी थई आवती. आ पूज्य मुनिराजोना सहवासथी मारी ए भावनाने वधु बळ मळ्यु. अने ज्यारे में ए जाण्यु के “ श्री तपगच्छ श्रमण वंक्षवृक्ष" नामर्नु एक मोटुं रंगीन चित्र तेओश्रीए संवत् १९७९ मां तैयार कर्यु हतुं, त्यारे ए चित्रनी सुधारा वधारा साथे बोजी आवृत्ति ज प्रकाशित करवानो मने विचार आन्यो. परन्तु वॉलपोस्टर जेवू एवढें मोटुं चित्र बराबर महावीने दरेक जण पोताना घरमा बसावी शके प बात वधु शक्य न लागी. वळी प्रामानुग्राम विहार करता पूज्य मुनिराजो पण ए चित्रने हमेशां पोतानी साथे न ज राखी शके. अने आम थाय तो एने तैयार करवानो मुळ आशय सफळ थयो न गाय. एटले दरेक जण सहेलाईथी आने वसावी शके, एनो बराबर उपयोग करी शके अने पूज्य मुनिराजोने पण हमेशां एने साथे राखवामां अडचण न आवे एवी रीते ए वस्तु तैयार करवानो में विचार कर्यो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003643
Book TitleTapagaccha Shraman Vansh Vruksh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantilal Chottalal Shah
PublisherJayantilal Chottalal Shah
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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