Book Title: Jain Gitavali
Author(s): Mulchand Sodhiya Gadakota
Publisher: Mulchand Sodhiya Gadakota
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ THE FREE INDOLOGICAL COLLECTION WWW.SANSKRITDOCUMENTS.ORG/TFIC FAIR USE DECLARATION This book is sourced from another online repository and provided to you at this site under the TFIC collection. It is provided under commonly held Fair Use guidelines for individual educational or research use. We believe that the book is in the public domain and public dissemination was the intent of the original repository. We applaud and support their work wholeheartedly and only provide this version of this book at this site to make it available to even more readers. We believe that cataloging plays a big part in finding valuable books and try to facilitate that, through our TFIC group efforts. In some cases, the original sources are no longer online or are very hard to access, or marked up in or provided in Indian languages, rather than the more widely used English language. 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We shall work with you immediately. -The TFIC Team. Page #2 --------------------------------------------------------------------------  Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Com - - श्री वीतरागाय नमः ॥ ... जैन गीतावली ॥ - -~~- ~पुनोत्पत्ति, ज्यांनार, विवाह, मुण्डन, वन्दनादि मुअवः सरों पर नियों के गाने योग्य उत्तम २ गीतों का सह. - . mam e श्रीयुत श्रेष्ठिवर माणिकचंदजी जे०पी० उन्बई निवासीकी मुगुत्री विदुषी मगनबाई जी की इच्छानुसार. मूलचन्द सोधिया-गढ़ाकोटा (जिला मागर ) द्वारा संग्रहीत madruperimag . - मुनिया" रागा मकरदारा मुद्रित प्रथमावृत्ति १०००] अन स०२४३५ म०९९.०९ [मूल्य ) 1.WI Phop Page #4 --------------------------------------------------------------------------  Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वीतरागायनमः ॥ जैन गीतावली ॥ पुनोत्पत्ति, ज्यांनार, विवाह. मुण्डन, वन्दनादि मुनयः सरों पर सियों केगाने योग्य उत्तम गीतों का समर. । श्रीयुत श्रेष्टिवर माणिकचंदजी जे०पी० बम्बई निवासीसी नुपुत्री विदुषी मगनबाई जी की इच्छानुसार. मूलचन्द सोधिया-गढ़ाकोटा (जिला मागर ) द्वारा संग्रहीत. - मुंबई-"निर्णयमागर" प्रेगमे यान गमचद्र पारद्वारा नुहित. प्रथमावृत्ति १०००] जैन सं०२४३५ स०६९०९[मून्य ।। - Ret of Page #6 --------------------------------------------------------------------------  Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका प्रगट रहे कि कालगति अथवा अन्य लोगों की सङ्गति के कारण जैन सरीखी उत्तम जाति की स्त्रियों में भी मङ्गलीक गीतों की जगह निंद्य और फूहड गीतों के गाने की पद्धति चल निकली है. इस कुप्रथा के निवारणार्थ कुछ काल पूर्व चन्देरी (बुन्देलखण्डपान्त) के धर्म प्रेमी भाई जी श्रीयुत गिरवरदासजी, देवीदासजी आदि सजनों ने स्त्रियो के गाने योग्य उत्तम २ धामिक गीत रचकर प्राचीन पवित्रप्रथा का जीर्णोद्वार किया था. तिसही का फल है कि वर्तमान में बहुधा बुन्देलखंड प्रान्त की धर्मबुद्धि स्त्रियां उत्तम २ शिक्षादायक गीत गाती है. किसी को दो, किमी को चार याद है परन्तु ऐसा पुस्तकाकार सङ्ग्रह कोई भी नहीं, जिसमें हरएक अवसर पर गाने योग्य दो २ चार २ गीत हों. इसलिये चन्देरी, बंडा, सागर आदि स्थानों से एकत्र करके ये पुस्तक संग्रह किई गई है. इस सत्कार्य का यश उपर्युक्त महाशयों का है, हां इतना अवश्य है कि कई जगह लोगों ते जैनमत के विरुद्ध गब्द मिला दिये है, जिनको मैने अपनी तुच्छबुद्धि अनुसार संशोधन कियाहै, तिसपरभी दृष्टिदोप अथवा प्रमादवश इसमें कोई अशुद्धि रह गई हो या पाठान्तर होगया हो तो उस दोष का भागी मैं हूं. अतएव सजन मण्डली से निवेदन है कि जो भूलें उनको इस पुस्तक में ज्ञात हो वे कृपया मुझे सूचित करें ताकि पुनरावृत्ति में उनका मार्जन किया जाय ।। Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिन सजनोने इस पुस्तकके सग्रहमें प्राचीन तथा निजकृत नवीन गीत भेजकर सहायता किई है वे धन्यवाद के पात्र है और विशेष धन्यवाद के पात्र बम्बई निवासी श्रेष्ठिवर माणिकचन्दजी जे. पी. और उनकी सुपुत्री विदुषी मगनवाईजी है जिनकी प्रेरणासे यह ग्रंथ संग्रह हुआ है। __ यदि इस पुस्तक के द्वारा जैनजाति का कुछ भी उपकार होगा तो मै अपना परिश्रम सफल समझेगा. कार्तिक वदी १४ सं०६५ । मूलचन्द सोधिया, श्रीवीर निर्वाण सम्वत् २४३४ गढ़ाकोटा, जि० सागर. ___ ग्रंथ शुद्धाशुद्धि पत्रपृष्ठ-पंक्ति अशुद्धि शुद्ध ग्रंथ १९ ५,६ सुमतीदेय सुमति कुमती देय कुगति २३ १२ हाय होय थुति तुखार तुषार पथ पद २६ १८ युति Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका ॥ विवाह में॥ नंबर. चाल. प्रथम पट या टेक. १ हाजू प्रथमदि मुमति जिनेवर ध्या. प्रेम प्रमोद रहल निनबर की. ११ हाहां वे कि हंईवे चार धानिया कर्म नागके. १२ , जुआं माम मद चोरी केल्या. अष्ट करम की फौजें आई. १४ , अब की वेलां अवसर पार्यो. १५ बोले मोरे भाई मुरग लोक में जुरी अथाई. १६ छोद मोरे भाई सात व्यसन की लगी अबाई. मुमति कमति की लगी लगाई. १८ साजाना मोको अति सुन्दर मिजमानी. १९ हमारे नामाना पाच वचन ये मानिगे. ऐमी कुमति कहां पाइया. २१ हमारे रामाना एम चेतन मग भूलिया. २२ हमारे रामाना मुघर चेतन व पनियां . २३ मन हटकीथी जरने फर्म उदय हो जाये. २४ नुनन हो काल अनन्त निगोद गया. Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५ सुनत हो २६ " २७ , २८ नौबद पै डंका २९ रहम दिला ३० बनरा सुमति सुनारी अरज करत है. मोह नीद तोहि देत असाता. पंच उदम्बर तीन मकार. दोय घड़ी जब रात गई है. मात गर्भ मे हुए जब वासी. मोरौ शिवपुर जावनहारौ बनरा. ऐसौ सुन्दर बनरा वौतौ. व्याहु की जा अति उत्तम चाल. मै न अकेलौ जाउं सुमति बिन. हियरे से लगालेती बनरे. बनाके संग चलौगीरे. मोरौ सब भैयन सिरदार. व्याहन मुकति पुर धाये. लाला कर हथियनको मोल. तुम्हें बुलाय गईरे बन्ना. कविता वे तौ चेतन खेलत फाग भ्रमत २ बहुकाल गमायौ. ऐसी उत्तम कुलकू पायौ. तूने सार गमायौ. परत्रिय सेवन कहा फल होय. १०७ त्र ११०८ ॥ उपसहार ३८ फाग भौरारे Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ५० मा ५८ मोरे लाल ४८ जात करम कोपनियां सुघर चेतन बह पनियां को निकरी. ऐसे चेतनराय पनिया को निसरे. लाख चौरासी योनिमें भटकौ. कानासे आये कहां तुम जैहौ.. धन २ होवे रजमत वेटी. सजना हो मेरी शील चुनरिया. वाजें नेवरा घने आज अनन्द वधाये तो वाजें. चेतन राय कुमति निकारियौ. ६२ टांडी लाधे जोवन जरवा पूरव लाधे पश्चिम लाधे. ऐसे नेमीश्वर रसिया. जा नरदेही तुमने पायलई. १०१ घोरी ( सुनौजू) झूनागढ से तेजन आई. १०२ , (जू) नेमीश्वर को व्याहु बखानों. वन्दना तथा मुंडन के समय । २ हांजू श्रीभगवन्त भजौ अतिशय युत. प्रथम २ जिन पूजन को फल. ऐसे जनम नये धर २ के. ४३ भौरारे पात्र अपात्र कुपात्र जु भेव. चारों दान भली विधि देहु. ४५ , जिन दर्शन तें कह फल होय. ४६ , पंच परम सुमिरे सुख होय. ४४ " Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७ : * (४) तूं तो नरक निगोदमें वहुदिन. इक अरज सुनी महाराज. भज लै श्री जिनवर जी की बानी. ८९ , हरप उर धारके श्री सम्मेद. भोजन के समय ॥ ५ हांजू आदि नाथ जिन भोजन कारण. ५३ प्रभुजी देवन देव स्वामी जिन अपने. ५४ गीत श्रीगुरु आये मोर पाहुने. ५५ मोरेलाल आगे २ राम चलत है. जन्मोत्सव के समय ॥ ७ वधाई काई घर२ मंगलाचार जन्मन प्रगटाये. कांई घर २ मंगलाचार सन्मति जन्मेजी. ९ वुन्देला समेला कानाहो जइया रावजू. १०६ , जिनेश्वर त्रिगलाकेहो. १० वधाई ऊंचौ सौ नगर सुहावनौ. १०० गीत लिया आज प्रभूजी ने जन्म. १०३ सौहरौ प्रणामों आदि जिनेश. ०४ , पूरी भई है रैन. ०९ सब देवी छप्पन कुमारी. हरसमय गाने के। ५२ हमारे आत्मा अब के नर तन पाइयौ मोरे आत्मा. Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ हां मोर लाल ५७ मारे लाट ६३ हां कि नारे ६७ दादरा चौबीमों जिन नवन आर. कहना से आये तुम बार ईना. सौटे काम करी गतिमाई. नेम बिन नहीं रहा दिनरेन. सिद्धन को मीरा नमाऊं. नरमव रतन गमाया. निगि भोजन दुखदाई. श्री यामाजू के प्यार, धरम धन जोडियो मोरी गुल्या. जगत सत्र झुटीगे मोरी गुदयां जातन लगी मोई जाने. मोरी तो मन मोरी माखी. मत बरजो मोरी नाई हमको. जरी तुम कौन ही प्यारी. दुनिये प्राणि सफल मुसकरा. सुन लो बात हमारी. मैं तो सों पूंछो गील मदा. इक तपकी रंगला हुआओ. मैं तो कमी कर कहां जाई. वनज नहीं व्यापार नही. अब जलाय देदारी रूपाय दहीही. Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाती मडरही दिन अरु रात. ये हो को रहौ हरिया लैंनिकरौ. रथ ठाडौ करो भगवान. कैसी करों कहां जाऊं मोरी गुइया. तुम सुनियो हो दीन दयाल. शास्त्र सभा के समय ॥ अब के हो भजलो भगवान. सुनलो अव श्रावक तनौ व्रत. अपनौ रूप निहारियो. देव धरम गुरुको भजौ हो. चेतन अव निज कारज जानौ. भले भज नामारे पंच परमेष्ठी देवा. चेतन अपनी सुरत सम्हारो. श्रावण ॥ वालपनै प्रभु घर रहो. Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता का पुत्री को उपदेश ।। (१) प्यारी बेटी ! जिम लग्न में तेग विवाह हा मी समय में तूं पगई होचुकी. अब तेरा वही धर्म है कि जिन भांति हमारे आधीन रहती आई है. उमी प्रकार अपने नवीन माना पिता अर्थात मास, ममुर की आधीनता में रहकर उनकी आज्ञा पालन करना ।। (२) विवाह सम्बन्ध ने तेरे कर्मानुमार जो पनि मिलाहै उमे मव से उत्तम और आदर योग्य समझकर उनके माथ नम्रता से रहना । स्त्रियों का मन में उत्तम और प्रगमनीय कार्य पति की संत्रा करना और उनकी आज्ञानुमार चलना है। (३) अपने सास, ससुर, कुटुम्बी रिश्तेदार और पुगपड़ाम वालों से मदा अच्छा बर्ताव रचना, कभी किसी में द्वप न करना और अपने जेठों बड़ों के निम्नापन को मानना यही सुपुत्रियों का काम है। (४) यदि पति किसी कारण तुह्मारा निगदम्भी कर तो तुम भूलकर कभी क्रोध न करो और मदा नबता में अपने पति को प्रसन्न रखने का उपाय करो। (५) सदा मव में सत्य और मीठा बोलना, कभी रिनी की बुराई या चुगली न करना ॥ (६) प्रातःकाल मव में पहिले उठना और गत्रि को नव से पीछ सोना, सेल-तमागे देखने की इच्छा न रखना चार Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) न कभी औगुणकारी भोजन आप करना, न कुटुम्बियों को कराना, सदा ऋतु तथा घर के लोगों की तासीर का खयाल रखके रसोई वनाना ॥ (७) गृहस्थी के काम काज व देखरेख बड़ी सावधानी से करना और कोई भी काम दूसरे के भरोसे पर नहीं छोड़ना, फजूलखर्ची और ऊपरी दिखावट के लिये कभी हठ नहीं करना, सदा अपना घर देखकर चलना ॥. (८) सदा भले मनुष्यों की संगति करना, धर्म तथा धर्मात्माओं से प्रीति रखना ॥ (९) अधिक चटकीले, भड़कीले वस्त्र तथा जेवर न पहिरना, परन्तु ऐसा भी न रहना जिससे स्वच्छता और मर्यादा में वट्टा लगे अर्थात् सदा साफ और सादा बर्ताव रखना ॥ (१०) कभी भूलकर भी अपने पिता की धन सम्पत्ति, प्रतिष्ठा का घमंड न करो, और न कभी उस घमंड का इशारा पति, सास,ससुर, जेठ, देवर, तथा सखी सहेलियों आदिसेकरो॥ (११) स्त्रियों का मुख्य धर्म लज्जा है शील का रहना लज्जा के आधीन है, इस लिये सदा. वहुत धीरे और नम्रतासे बोलो और धीरजसे चलो, जहां तक संभव हो कम बोलना चाहिये, खिल-खिलाकर हंसना महान अवगुण है ।। हे पुत्रियो ! ऊपर की शिक्षायें तुम्हारी सारी जिन्दगी का आभूषण हैं ऐसा जान ग्रहण करो. शुभेच्छु-एक माता. Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुत्री का वेंचना, नीच काम है. अपनी तथा किसी दूसरे की लड़की के विवाह करने के पदले उसके पति अथवा पति के पिता ने रुपया ठहराकर लेलेना पुत्री बेचना कहाता है। ___ इस संसार में सव मनुप्य मुख के लिये रात दिन मिहनत करते और चाहते हैं कि हमारे कुटुम्ब की गुजर होने वाद कुछ धन इकहा भी हो. इम के लिये कितने लोग तो न्याय से धन कमाते हैं, परन्तु कितने पापी एनभी हैं जो लड़की को वेचकर धन इकट्ठा करते हैं. ऐने ही दुष्ट, अनानी लोगों ने लड़कियों के पैसे लेने की रीति जारी करदी है यहां तक कि कई लोग तो हजारों रुपये इमी च्यापार में कमाते हैं। - हे भाइयो ! तनिक विचार तो करो, पुत्रियों के बेचने का ये खोटा रिवाज जारी होने से उत्तम जातियां तो एक तरह से मिटही चुकी हैं, दिन २ इन जातियों की संख्या घटती जाती और बड़े २ कलंक और अन्याय होते हैं क्योंकि जब से धन के लोभियों ने यह रोजगार जारी किया, तव ने हजारों गरीव विचारे तो विना व्याही मरजाते तथा धन लेकर जो लड़कियां वुहों को बेची जाती है वहुधा उनके संतान नहीं होती और बालविधवा होकर जानि कुल की नाक कटाती हैं। Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४ ) 1 इस देश में अब तक दहेज ( दायजा ) देने की चाल है । अर्थात् विवाह के समय लड़की का बाप कन्यादान के साथ २ अपनी शक्ति के अनुसार जमाई को कुछ धन भी देता है जो स्त्री-धन कहलाता और कर्म योगसे आपत्ति पड़ने पर लड़की के काम आता है. परन्तु खेद ! अतिखेद ! ! कि वह देना तो दूर रहा किन्तु कितने ही बेशरम तो देने के बदले उल्टा लेने लगे हैं और लड़की को कसाई के खूंटा बांध उसके सुख दुख का कुछ भी विचार नहीं करते, यदि सच पूंछो तो ऐसे लोग दिन दहाड़े लूटनेवाले डाकुओं के सरदार हैं क्योंकि डाकू तो गैरों को लूटकर छिपते फिरते. परन्तु ये बेशरम डाकूराज अपनी पुत्रियों का सर्वस लूटकर और उनको जन्म भर के लिये दुखी बनाकर मूंछों पर ताव देते हुए साहूकार वन बैठते है ऐसे नीचों के साहूकार पने पर हजार २ चार धिक्कार हैं | यदि अपने घर में जातिको लाडू खिलाने की शक्ति नहीं है तो दामाद को सिर्फ हल्दी का टीका लगाकर लड़की के पीले हाथ क्यों नहीं करदेते, परन्तु उन बेशरमों से ऐसा होवे कैसे ? उनको तो जातिवालों को लाडू खिलाकर भ्रष्ट करना और आप साहूकार बनना है. धिक्कार है इस खोटी बुद्धि को ! जो पुत्री तो वूढे, रोगी, कुचाल पति को पाकर इन के नाम को जन्म भर रोवे और ये टेढ़ी पगड़ी Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वांधकर सेठजी वन वेठे, ऐसी ही एक दीन पुत्री ने सगाई के वक्त अपने वापसे कहा था. छंद-पांच सौ तो पहिले लीने तीन सौ की आरती।। तुम काकाजी भूल गये हो मैं तो हती हजार की ॥ खोटे खरे परख लीजो में होजाऊंगी पारकी ॥ मैं रोऊंगी तुम्हरे जी को, तुम होओगे नारकी ॥१॥ जिस प्रकार, कसाई वकरी, गाय आदि पशुओं को पालकर फिर उन्हें निर्दयी होकर मारता है, वैसे ही ये जाति के कुपूत, भाडखाऊ अपनी पुत्रियों को पालकर उनके गले में शिला वांधकर अंधे कुए में पटकते अर्थात् जल्दी मरनेवाले सफेदपोश बुद्धों को अधिक धन लेकर वचदेते हैं जिससे वे एक दो वार जाकर ही विधवा होजाती और वहुधा खोटे २ कर्म करने लगती हैं, कसाई तो पशुओंका वध करता और अपने बच्चों को पालता है परन्तु ये दुष्ट तो मनुष्यों का वध सोभी अपनी गरीव गयों अर्थात् पुत्रियों का नाश करते हैं। इसलिये इन्हें कसाई के वावा समझना चाहिये। इनके मुंह देखने से पाप लगता और छूनेसे नहाना होता है। कन्या वेंचनेवालों का घर नरक समान और धन विष्ठा समान है. यदि सच कहाजाय तो इस पाप के भागी जाति के वे मुखिये धनवान और पंच लोग हैं जो इस कुरीतिके सहाई हैं और जो जान वृझकर गरीव लड़कियों का गला कटवाते और आप ऊंचा Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) माथा करके लांडू गटकते हैं इस से अधिक कहना व्यर्थ है. - हे जाति के 'खेवटिये पंचो और धनवानो ! क्या तुमको अपनी जाति की इस कुरीति द्वारा वरवादी होती 'देखकर रंच भी दुःख नहीं होता ? जो तुम शीघ्र ही इस दुष्ट पद्धति को नहीं रोकते और ऐसे निकृष्ट अभक्ष्य भोजन को नहीं त्यागते, क्या तुम्हारा यही पंचपना और मुखियापना है ? यदि तुम लोग ऐसे पापियों से खानपान न रखकर उनको दंडित करोगे अथवा सम्बन्ध होने के पहिले ही समझाओगे, रोकोगे, अगर नहीं मानेगे तो शादी में शामिल न होगे, तो अवश्यमेव यह कुरीति शीघ्र मिटजावेगी और जाति-धर्म की : रक्षा होने से तुम पुण्य के भागी होगे. कन्याविक्रय से उत्पीडित. एक सज्जन. Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन गीतावली॥ womecomwwwm-am (नम्बर १) (विलवारी चाल "हां" विवाह में) प्रथमरि सुमति जिनेश्वर ध्याऊ, गुन गणधरहिमनाऊं कि हांजू ॥ टेक ।। सार देव सुमती देउ मोमों दुर्मति के गुण गाऊं कि हांजू ।। गारी एक मुनहु तुम चेतन सुनत श्रवण सुखदाई कि हांजू ॥१॥ तुह्मरी नारि बुरे ढंग लागी समुझन नहिं समझाई कि हांजू ॥ अति परपंच भई दारी डोले जोवन की मतवारी कि हांजू ॥२॥ पंचन तें दारी रति मानत कान न करहि तुह्मारी कि हांज । काम क्रोध दोई जन खोटे जासु वुलावन हारी कि हांजू ॥३॥ राजा मनमोहन ते विगरी मन फुसलावन हारी कि हांजू ॥ इनतो लाज तजी पंचन की ज्यों गनिका जगनारी कि हांज ॥ ४॥ घाट करम की यहिन कहावत अपजस की महनारी कि हांजू॥सात व्यसन की दती चंचल चनन नारितुम्मारी कि हांजू ॥५॥ या चंचल यारे की निगरी अय क्यों Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जात सुधारी कि हांजू ।। तुम कहिये त्रिभुवनके नायक पटतर कौन तुह्मारी कि हांजू ॥६॥ और कहा परगट कर बरनौ देखहु मनहि विचारी कि हांजू ॥ ताके संग कहा तुम डोलौ कुलहि दिवावत गारी कि हांजू ॥ ७॥ भटकत फिरत चहूं गति मांही नरक सुरग गति धारी कि हांजू ॥ कबहूं भेष धरौ भूपतिको कवहूं कि कुष्ट भिखारी कि हांजू ॥८॥ कवहूं हय गय चढ़कर निकसत कवहूं कि पीठ उघारी कि हांजू ॥ कवहूं कि शील महाव्रत पालत कबहुं तकत परनारी कि हांजू ॥९॥ कवहूं कि टेढी पाग बधावत कवहं दिगम्बर धारी कि हाँज ॥ कबहूं होत इन्द्र पुनि चक्री कबहूं कि विद्याधारी कि हाजू ॥१०॥ कबहूं कामदेव पद पावत कवह निपट भिखारी कि हांजू ॥ कवहूं सोलम वर्ग विराजत कबहुं नरक गति धारी कि हांजू ॥ ११ ॥ कबहूं पशू कवहुं बस थावर कबहुं कि सुंडाधारी कि हांजू ॥ नटके भेष: धरे बहुतेरे सो गति भई है तुह्मारी कि हांजू ॥१२॥ जासों प्रीति करन की नाही तासों कैसी यारी कि हांजू ॥ छोडौसंग कुमति गनिका को घरतें देव निकारी कि हांजू ॥१३॥ व्याहौ सिद्ध वधू शिव बनिता जो है निबाहन हारी कि हांजू ॥ तृष्णा छोड़ धरौ नित सम्बर तजहु परिग्रह भारी कि हांजू ॥ १४॥ एकाकी तुम Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ होर चेनन मानहु सीख हमारी कि हांजू ॥ दन विधि धर्म गही मुनि नायक राग्वट्ट चित्त विचारी कि हां ॥ १५॥ सोलह कारण भावन भावी जाप्य अपी नमो. कारी कि हांजू ।। तीन रतन को हार बनाया मा अपने उरधारी कि हांजू ॥ १६ ॥ श्रावक व्रत पन विधि पाला जनम जनम हितकारी कि हांज ॥ जाय यरी शिय सुन्दरि नारी मानहु सीब हमारी कि हांज ॥ १७॥ संवन् सनरास तेनालिम फागुन तेरस जारी किदांज।। लाल पिनांदी चोरी गावत भूलहि लेख मुधारी शि हांजू ॥ १८ ॥ (२) (चाल "हांजू वन्दना मुंटन आदिमें) श्रीभगवन्त भजी अतिशय चुन छयालीमों गुणकारी कि हांज ॥ टेक ॥ दस जन्मत दम केवल अतिशय चौदह सुरक्रन भारी कि हांज । मधिर सफेद पसंद सुमल बिन मुभग स्वरूप अपारी कि हांजू ॥१॥ वन वृषभ नाराच संहनन सम चतुपक अधिकारी किगंज।। देह सुगन्ध सहस इक लक्षण यल है अपरम्पारी कि हांजू ॥२॥ मधुर वचन ये दस अतिशय जिन राज जन्म अवतारी कि हांजू ॥ सा याजन वाभन नही आकाश गमन हिनकारी कि हांसब जीवन Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाधा बिन चौमुख नाहीं कवलाहारी कि हांजू ॥ बिन उपसर्ग बिना छाया नख केश न वृद्धि उचारी कि हांजू । ॥४ासबविद्याके ईश्वर लोचन टिमकत नाहिं लगारी कि हांजू ॥ उचरत अर्घ मागधी भाषा षटरितु फूल सँवारी कि हांजू ॥५॥दर्पण सम क्षिति सव जीवनके मैत्री. भाव अपारी कि हांजू ॥ शीतल मन्द सुगन्ध पवन क्षिति कंकर नहिं अनिवारी कि हांजू ॥६॥ गगन गमन कज ऊपर करते गंधोदक की धारी कि हांजू ॥ सर्व धान्य उपजें खयमेवहि नभ निर्मल जयकारी कि हांजू ॥७॥ सर्व जीव अानन्द चक्र वृष मंगल द्रव्य प्रसारी कि हांजू ॥ अनन्त चतुष्टय वसु प्रतिहारज नव लन्धी अधिकारी कि हांजू ॥८॥अतिशय युत चौंतीस विराजत छयालिस गुण अविकारी कि हांजू ॥ इहि विधि गुण अहत सन्त भगवन्त महन्तन धारी कि हांजू ॥९॥धन्य घड़ी धन भाग आज जिनराज भक्ति हम कारी कि हांजू॥गिरवर दास चरण को चेरौ दीजे मोक्ष बिहारी कि हांजू ॥१०॥ (चाल "हां" विवाहमें ) प्रेम प्रमोद रहस निजघर की गारी सुनौ वर नारी कि हांजू ॥ टेक ॥ जव सुधि प्रावत निज प्रीतम की Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ होत तये दुख भारी कि हांज।मार प्रीतम सुगुरु सयाने कुमती नारि यिगारी कि हांज ॥१॥ मेरे पिया के मुभट महन्ता चार चतुष्टय धारी कि दांजू ।। जय सुधि करें प्यारे चार सुभट की नय कुमती को मारी कि हांजू ॥२॥हाँ सुमती शिव घर की सहेली पियसे करत पुकारी कि हांजू ॥ अय पिय निज 'मट वेग सस्मारो चलिये निज घर सारी कि हांजू ॥ ॥ श्रानम सुमति सहेली राधिका लेगई शिव अधिकारी कि हांजू॥ सो निज धार सार प्रातम रस गिरवर वर शिव नारी कि हांजू ॥ ४॥ (४) (चाल "हांजू" मुंडन बन्दना आदिमें) प्रथक २ जिन पूजन को फल सुनलो जिन मुग्न पायो कि हांजू ।। टेक ।। सोमश्री कन्या बनवन्ती निर्मल धार दिवायो कि हांजू ॥ राज विभूति पाय पुनि मुरगति देवांगन मन भायो कि हांजू ॥१॥ मनायलि खगपनि की नारी चन्दन पृज कराया कि हांज। छिनमें रोग विनाश भयो जिदि सुरग रिद्धि वर पायौ कि हांजू ॥२॥ शुक सारो जुग भाव सहित जिन चरणन अन्तत नाया कि हांजू ॥ देव लोक पद् पूज्य भये वसु शिशि विगत सुख पाया कि हांज ॥ ॥ दादुर पांच कमल Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुख लेकर अन्तिमजिन शिरनायौ कि हांजू ॥ मरके वर्ग लोक सुख पायौ मेंडक चिन्ह लखायौ कि हांजू ॥४॥ सेठ सुहालिक बहुविधि चरकर श्रीजिन पूजन ठायौ कि हांजू॥राज रिडि सुख भोग धार तप शिवपुर पदवी पायौ कि हांजू ॥५॥ जिनको दीप चढा विनयंधर सेठ सुरग फल पायौ कि हांजू ।। नृप कुमार दश धूप खेयकर इन्द्रहि नाम कहायौ कि हांजू ॥६॥ देव विभूति महन्ती पाई सब विधि सुख उपजायौ कि हांजू ॥ जिनमति नारी कपि शुक शुध फल लेय जजौ हरषायौ कि हांजू ॥७॥ अन्तराय क्षयकार पंच विधि मोक्ष परमपद पायौ कि हांजू ॥ इक २ विधिसे जिन पद पूजे तिनने यह फल पायौ कि हांजू॥८॥ प्रष्ट दरब ले धन्यभाग लखि पूजत पाप नशायौ कि हांजू ॥ तातें गिरवर मन वच तन करि जिन पूजन मन लायौ कि हांजू ॥९॥ (चाल "हांजू" भोजनके समय) । श्रादिनाथ जिन भोजन कारण नगर अयोध्या आये कि हांजू ॥ टेक ॥ षटू महिना बीते प्रभुजीको जोग अहार न पाये कि हांजू ॥ कोउ प्रहार विधी नहिं जाने श्रादर बहुविधि ठाने कि हांजू ॥१॥ कोउ इक थार Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भरें मुक्ताफल एक वस्तु सजोवे कि हांजू॥ एके पाट पटम्बर बहुविधि हाथन हाथ जुलीने कि हांजू ॥२॥ एकें अनी चुनी अरु पन्ना मुहर जवाहर लाये कि हांजू॥ एके मुकुट मनोहर सुन्दर धारे प्रभुजीके आगे कि हांजू ॥३॥ एक हस्ती जरद अमारी ले २ प्रभु पग लाग क हाजू॥ एक दश २ क राजा कहा २ ले धाये कि हांजू॥ ४ ॥राजा श्रेयांस पूर्वभव सुमरण सवही विधि समझाये कि हांजू ॥ तिष्ठ २ कह निर्मल जलसों प्रभु पग नमन जु कीन्हों कि हांजू ॥५॥ ऊंचौ ग्रासन दे प्रभुजीकों पग प्रक्षालन कीन्हों कि हांजू॥ भर अंजुलि ईक्षु रस दीन्हों पंचाचारज हुये कि हांजू॥६॥ एक ग्रास के ग्रास जुलीन्हें तीजो ग्रास न लीनों कि हांजू ॥ रत्न वृष्टि कीन्ही देवन ने जिन प्रभु दान जू दीन्हों कि हांजू ॥७॥ नवधा भक्ति करी प्रभुजी की सरधा शक्ति प्रकाशी किहांजू ॥ चरण वन्दना कर शिरनायौ बहु प्रतीति उर कीनी कि हांजू ॥८॥ ऐसौ समय निरख प्रभुजीको चतुरदास मन हरपाँ कि हांजू॥गारी पुन्य सकल सुखदायक नरनारी नित गावो कि हांजू ॥९॥ भक्ति हेत कारण शुभ पदवी निश्चय शिवपद पावो कि हांजू॥ अक्षय दान प्रभूजीको दीन्हो अक्षय तीज कहायौ कि हांजू ॥१०॥ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (चाल "हांजू" वन्दना मुंडनादिके समय) ऐसे जन्म नये धर २ के काल अनादि गमाये कि हांजू ॥ टेक ॥ गर्भ विर्षे नाना दुख सहकर जन्म कष्ट करि पाये कि हांजू ॥काम क्रोध मद लोभ सुकर २ पाप अनेक कमाये कि हांजू ॥१॥ देव धर्मगुरु ग्रंथ न जानो करौ कहा जग आये कि हाजूं ॥ तीरथ व्रत अरु सन्त न माने जीव दया न सुहाये कि हांजू ॥२॥ काम सर्प की लहर सतावे चेतन क्यों सुख पावे कि हांजू तृष्णा वश नित भ्रमत रहत है मन सन्तोष न आवे कि हांजू ॥३॥ आये कहां तें ? करत कहाहौ ? क्यों निज सुधि बिसरावे कि हांजू ॥ मोह महा मदिरा के माते हित अनहित न दिखावे कि हांजू ॥ ४॥ पूजा करे न पुराण सुने कहुं पशुसम जन्म गमावे कि हांजू ॥ बाल तरुणपन ऐसहि खोवे विरधापन जव आवे कि हांजू ॥५॥ तनको जोर तनक नहिं रहियो नैनन नाहिं सुझावे कि हांजू ॥ सुने न कान बात नहिं बूझै बूढौ अब पछतावे कि हांजू ॥ ६॥ नारी पूत कही नहिं माने परौ २ बिल्लावे कि हांजू ॥ रोग अनेक उद्य जव अावें तब बहुविधि दुख पावे कि हांजू॥ ७॥ मरती बिरियां सोच करत है कोऊ नाहिं बचावे कि हांजू ॥ दान पुण्य Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कछु करत न बन टुकर मुकर मुग्व जावे कि हांजू ॥८॥ प्रभुको नाम कहावन लागे प्रकृति न झुटन छुटायें कि हांजू ॥ यये यमूल पाम रस चाहे सो कैमे कर पाये कि हांजू ॥९॥ यही जान कडु चेतहु चेतन फिरना रही मुलाने कि हांज ॥ रहनी नगर पसें सब श्रावक शान पुराण जु माने कि हांजू ॥ १० ॥ संवत् अटारास शुभ यीते पैतिस ऊपर कीजे कि हांजू ॥ कर जमकरन शरण प्रभु तेरे मोको निर्भय कीजे कि हांज ॥ ११ ॥ (“बधाई" जन्मके समयकी) ___ काई घर २ मँगलाचार जन्मन प्रगटाये ॥ टेक ॥ कॉई आदि जिनेश्वर अजितनाथ जिनस्वामीजी, अभिनन्दन नाथ दयाल जन्मन प्रगटाये ॥१॥ कांह मुमनि अनन्न जिनेश्वरौ जिनस्वामी जी, कार्ड नमी अजुध्यायादि जन्मन प्रगटाये ॥२॥ काई संभव श्रावस्ती पुरी जिन. स्वामीजी, कोसंभि पदम जिनराय जन्मन प्रगटाये॥॥ काई यानरसी नगरी विपं जिनस्वामीजी, श्रीपाद सुपारस देव जन्मन प्रगटाये ॥ ४ ॥ कोई चन्द्रपुरी । चन्द्रप्र जिनस्वामीजी, हरिपुर श्रेयांस जिनश जन्मन प्रगटाये ॥५॥ कांई यासपूज्य चंपापुरी जिनम्वामीजी, काकंदी सुमति जिनेश जन्मन प्रगटाये ॥ ६॥ कांद Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शीतल भद्दलपुर विषै जिनखामीजी, कपिल्ला विमल जिनेश जन्मन प्रगटाये ॥७॥ कांई रत्नपुरी वृषनाथजी जिन खामीजी, जय हस्तनागपुर जान जन्मन प्रगटाये ॥८॥ कांई मल्लिनाथ नमिनाथजी जिनखामीजी मिथिलापुर नमत सुरेश जन्मन प्रगटाये ॥९॥ कांई सुव्रत राजग्रही विर्षे जिनस्वामीजी, काई द्वारावति नेम जिनेश जन्मन प्रगटाये॥१०॥ कांई कुंडनपुर महावीरजी जिन स्वामीजी, कांई बन्दौं जिन चौबीस जन्मन प्रगटाये॥११॥ कांई जब श्रावक ग्रह पुत्र है जिनस्वामीजी, तव करौ बधावौ येहु जन्मन प्रगटाये ॥ १२॥ कांई खोटे गीत छुड़ायके जिनस्वामीजी, भवि पढिये मन वच काय जन्मन प्रगटाये ॥ १३ ॥ कांई पुत्र सुलक्षण ऊपजे भवि प्राणी हो, निज तात मात सुखदाय जन्मन प्रगटाये ॥ १४ ॥ कांई अनुक्रम पंडित पद लहै भवि प्राणीहो, कांई भोगै भोग विलास जन्मन प्रगटाये ॥ १५॥ कांई पीछे शिवमारग लहै जिनस्वामी हो, कांई सर्व दुःख क्षय जाय जन्मन प्रगटाये ॥१६॥ कांई हम तुम को सब जीवन को जिनस्वामीजी, कांई गिरवर होउ सुखदाय जन्मन प्रगटाये ॥१७॥ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ ( 6 ) ( " वधाई" जन्म समयकी ) कोई घर २ मँगलाचार सन्मति प्रगदाये ॥ टेक ॥ air ferrer forकारिणी जिनस्वामीजी ॥ कांई कुंटनपूरमें श्राय सन्मनि जन्मेजी ॥ १ ॥ कांटे व्याघ्र चिन्ह चरणन लसे जिनस्वामीजी ॥ कांई तपने सुवरन काय सन्मति जन्मेजी ॥ २ ॥ कांई वर्ष बहत्तर श्रायुधर जिनस्वामीजी ॥ कांई ऊंचे हाथजु सात सन्मनि जन्मेजी ॥ ३ ॥ कांई पुष्पोत्तरतं श्राहयौ जिनस्वामीजी ॥ कांई तीन ज्ञान सुखकार सन्मनि जन्मेजी ॥ ४ ॥ कां छुट थपाद सुदि जन्म लियो जिनस्वामीजी || सुदि चैत्र तेरसी जन्म सन्मति जन्मेजी ॥ ५ ॥ कांई माघवदी दश तप धरी जिनस्वामीजी ॥ कांई वंशास वदी पट ज्ञान सन्मति जन्मेजी ॥ ६ ॥ कां कार्तिक श्याम अमावसिया जिनस्वामीजी || कां गये अचन शिव धाम सन्मति जन्मेजी ॥ ७ ॥ कांई धर्मदृष्टि तुमने करी जिनस्वामीजी ॥ कांई जिनमारग दियौ पताय सन्मनि जन्मेजी ॥ ८ ॥ कांदे भव्य कमल प्रतियोधियां जिनस्वामीजी ॥ कांईं उपल नहीं विकसाय सन्मनि जन्मेजी ॥ ९ ॥ कांई अन ज्ञानमें तप घरों जिनस्वामीजी ॥ कोई एक सहस नृप साथ सन्मनि जन्मेजी ॥ १० ॥ चरन Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१३॥ काई लघु बुधि गिर काई नदी बड़ाहर तीरपै जिन स्वामीजी ॥ काई प्रगटौ केवल ज्ञान सन्मति जन्मेजी ॥ ११॥ कांई पावापुर सरवर विर्षे जिन स्वामीजी ॥ कांई पहुंचे शिवपुर धाम सन्मति जन्मेजी ॥१२॥ कांई मम अरजी चित धारियो जिनस्वामीजी॥प्रभु वेग करहु भवपार सन्मति जन्मेजी ॥१३॥ कांई लघु वृधि गिरवरदास हैं जिनस्वामीजी। कांई दीजे चरणन साथ सन्मति जन्मेजी ॥१४॥ (९) ("बुंदेला" जन्मके समयका) समेला काना हो जइया रावजू ॥टेक॥ दोहा दीगाना करो हो भइया नाहिं भरौ मवाल ॥१॥ जव तो विपत पराइया हो भाई तब सुमरौ जिनदेव ॥२॥ बध बंधन सब छूटहीं हो परमातम पद ध्याय ॥३॥ अधिकी भीर भराभरी हो जिया आदि जिनन्द सुमिराय ॥४॥ तबहुं निसारा हुत्री हो चेतन धर सन्यास विचार ॥५॥ नगर चंदेरी बानियां हो गिरवर क्षारे वाल ॥ समेला काना हो ॥६॥ (“ बधाई” जन्मके समयकी) ऊंचौ सौ नगर सुहावनौ प्रभु झांझरिया ॥ जह समुदविजयजीको राज सुमति प्रभु झांझरिया ॥१॥ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाले २ चन्दन कटाये के ये प्रमु झांझरिया ॥ अच्छी भार पलकियां गड़ाव मुमति प्रभु मांझरिया ॥२॥ अच्छी मित्रवन भँवर मुंश्राव कि ये प्र झाझरिया ॥ अच्छी नियत रेशम पाट सुमति प्रभु झाझरिया ॥३॥ अड़वायन दई मखतृल कि ये प्रभु झांझरिया ॥ घरी अलम शाही गंडवा सुमति प्रा झांझरिया ॥ ४ ॥ ना पौड़ी शिव देवी माय कि ये प्रभु प्रांमरिया ॥ जन्म श्रीनेमकुमार सुमति प्रभु झांझरिया ॥५॥ काईके श्रोलक थाधियो यमसु झाझारया || अच्छ गगनांक अोलक यांधे सुमति प्रभु झांझरिया ॥ ६ ॥ अम काईके यंधनवार तो ये प्रभु झांझरिया । पाछे फूलोंके यंधनवार सुमति प्रभु झांझरिया ॥७॥ काहेके छुरा नरा चीरियो ये प्रच झांझरिया ॥ सोनेके हरा नरा चीरियो ये प्रमु झांझरिया ॥८॥ सो ती काईके खप्पर ग्नान तो ये प्रच झांझरिया ॥ श्राई रूपेके खप्पर स्नान सुमति प्रभु झांझरिया ॥ ९॥ उरहीके सूप मजोडया ये प्रभु झांझरिया ॥ श्रम मुतियोंके अमन टाल सुमति प्रच झांझरिया ॥१०॥मो ना घर २ उँटवारी भरगयी ये प्रभु झांझरिया ॥ सो तो इलियों में भरगई दय समनि प्रभु झाझरिया ॥ ११॥ मो ती घर घर गायें गोगनी ये प्रभु झांझरिया ।। सो नी मंगल गीत अपार Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुमति प्रभु झांझरिया ।। १२॥ काहेकी वांटी तिलचांवड़ी ये प्रभु झांझरिया ॥ सो तो हीरन बांटी तिलचांवरी ये प्रभु झांझरिया ॥ १३ ॥ अरु मुहरन वटी है तमोर सुमति प्रभु झांझरिया ॥ कैसे नखत प्रभु जन्मये ये प्रश्नु झांझरिया ॥ १४ ॥ भले हो नखत प्रभु जन्मये ये प्रभु झांझरिया ॥ गिरनारीको करें वे राज सुमति प्रभु झांझरिया ॥ १५ ॥ गिरवर धन प्रभु जन्मियौ ये प्रभु झांझरिया ॥ मोहि देहु शिव पुरको राज सुमति प्रभु झांझरिया ॥ १६ ॥ (११) (“हाहां वे कि हूंहूं।” की चाल-च्याहमें) देव जिनेश्वर रूप पिछानों तिनके गुण बतलाऊंचे ।। हाहां वे कि हूंहूंवे ॥ टेक ॥ चार घातिया कर्म नाशके ज्ञेय सकल दशाऊं वे ॥ केवल ज्ञान लहौ जव जिनजी लोकालोक लखाऊं वे ॥१॥ जिनके प्रातिहार्य वसु सोहत चार चतुष्टय गाऊ वे॥ अतिशय युत चौतीस विराजत तिनके भेद बताऊं बे॥२॥ दस जन्मत दश ज्ञान सुरन कृत चौदह मनमें भाऊ वे ॥ ऐसे गुण छ्यालिस संपूरण तिनकों भाऊ चाँऊ वे॥३॥ पुनि सर्वज्ञ परम उपदेशी वीतराग पद पाऊं वे ॥ इस विधि देव जिनेश्वर पदको वार २ शिर नाऊ वे ॥४॥ देव शास्त्र Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरु निशदिन बन्दी भव प्रेम लगाऊये। दिन रजिन पद नमी भावसं फेर न भव भरमाऊं ये ॥५॥ यय के नर तन पाय अमालक यविधि भक्ति पदाऊये। फिर नरतन मिलनी नहिं गिरवर जो शिव पंथन पाऊया ("हाहां ये हं-हं में" की चाल-च्याहमें) मेरीरी अलबेला मनुयां यो शिव मारग धाव ये॥ हाहा ये कि हहं ये ॥ टेक || जुधा, मांम, मद, चारी, वेश्या, खेट नारि पर जाये ये । सान यिमन इनके वश परिक साता नर्क लहावे ॥१॥ एत्तिसमाय घरे पुनि जो सो गति निगोद की जावे ये॥सान भाव धारे पुनि प्राणी ज्ञानावणे उपाय चे॥ २॥ पंच चतुर मादश पनि दो घर भव२ गोता ग्वाये थे। अपने तन पोषन के कारण पर जिउ घात कराये ये 1 ग्यद न जाने भेद न जाने नाहक भरम मुलाये ये ॥ रागदप मद मांड छोह तजि सम्यक ज्ञान लद्दावे थे ॥४॥ विषय कपार पाप मिथ्या तजि निज ध्यावे शिव पाये ये ।। मुख अनन्त विलसे अविनाशी गिरवर दास कहाचे ये॥॥ ("हाहां वे हंडं, ये" की घाट, यामें) मेरीरी मलयली मनुमा यो शिव मारग माये ॥ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ हांहां वे कि हूं वे ॥ टेक ॥ अष्ट कर्म की फौजें आहे ज्ञान खड़ग ले धावे वे ॥ पंच महाव्रन, पांचौं समिती तीनों गुप्ति निभावै वे ॥ १ ॥ दुर्धर तप व्रत बारह माडै करम की धूल उड़ावे वे ॥ बाइस परीषह आपुन माड़े क्षमा की ढाल बनावे वे ॥ २ ॥ पंच परावर्तन को चूरे लोक शिखरको धावे वे ॥ छिंगनी छगन ललितपुर लल्ले कारीकमल बसावे वे ॥ ३ ॥ देवीदास गुपाल दिगोड़े जिनमत गारी गावे वे ॥ हीन वुद्धि अरु कवि लघुताई बुधजन शोध मिलावे वे ॥ ४ ॥ ( १४ ) ("हांहां वे हूंहूं वे” की चाल व्याहुमें) अव की बेलाँ अवसर पायौ फेर न यौ भव पावे वे, हांहां वे कि हूंहूं वे ॥ टेक ॥ बसौ अनादि निगोद मांहि तूं बहुविधि दुख भुगतावे वे ॥ तहाँ तें निकसन बहुत कठिन है तालीकाक समावे वे ॥ १ ॥ एक श्वासमें अठदश बारी जामन मरण लहावे वे ॥ छ्यासठ सहस तीनसौ छत्तिस अन्तरमुहूर्त धरावे वे ॥ २ ॥ एक प्रदेश अनन्त भाग की सूक्ष्म देह कहावे वे ॥ इक अक्षर के भाग बरावर तच तूं ज्ञान लहावे वे ॥ ३ ॥ खंघरु पुलवी देह जीव आवास पंच भरमावे वे ॥ इक इकमें हैं जीव अनन्ते जन्म मरण दुख पावे वे ॥ ४ ॥ यों निगोद दुख Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोड़ी बरनी बहुतक ग्रंथ बढावे बे॥ मापाचार, कुशीत झूट युत ऐसी गति को जावे में ॥५॥विकया पाप ग्य. सन मिथ्याग सों निगोद घर थावे ॥ तात वार २ समझाऊं मति कुदेव को ध्यावे ॥६॥ यो तन पाय धरम कलु करले नाहक जन्म गमावे॥ जाग मके नो जागले चेतन फिर पीछे पछताये ये ॥ ७॥ आनंद धन सर्वज्ञ जिनेश्वर चरण कमल को ध्यावे ।। सय जीयन से क्षमा करीजे गिरवर दास जनावे ये॥८॥ ("घोल मोरे भाई की चाल-विवाहमें) सरग लोकमरी अधाई.कि पोल मारे भाका सेठ सुदर्शन मूली पाई, कि गोल मेरे भाई ॥ भयो वि. मान मुरग मुखदाई, कि योल मेरे भाई ॥ १ ॥ मीना मती अगनि पर धाई, कि योल मेरे भाई ॥ देवन पनि कीन्हों आई, कि चोल मेरे भाई ॥२॥ तस्कर सनी मंत्र जपाई, कि योल मेरे भाई । सुरग जाप अनुन रिधि पाई, कि योल मेरे भाई ॥ ३॥ श्रीपाल कोटीध्वज राई, कि पोल मेरे भाई ॥ धर्म ननं नव निधि निन पाई, कि पोल मेरे भाई ॥ ४ ॥ रविद पोर मनी घरवाई, कि योल मेरे भाई । एमांकार ते मुरपद पाई, कि पोल मेरे भाई ॥२॥ वेगपती वृपधारी नारी, कि पोल मोरे भाई ।। Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ ता प्रसाद सुख पायौ भारी, कि बोल मोरे भाई ॥ ६ ॥ धर्म तनें फल अगम अपारी, कि बोल मोरे भाई ॥ गिरवरदास हिये विचधारी कि बोल मोरे भाई ॥ ७ ॥ ( १६ ) ( "छोड मोरे भाई" की चाल - व्याह में ) सात व्यसन की लगी अथाई, कि छोड़ मोरे भाई ॥ तिन की कथा सुनहु चितलाई, कि बोल मोरे भाई ॥ टेक ॥ जुआ खेल पांडव दुख पाई, कि छोड़ मोरे भाई ॥ पल भखि के बक नरकै जाई, कि छोड़ मोरे भाई ॥ १ ॥ मदिरा पी यदुवंश नशाई, कि छोड़ मोरे भाई ॥ चारुदत्त वेश्या भटकाई, कि छोड़ मोरे भाई ॥ २ ॥ खेट ब्रह्मदत्त नृप पछताई, कि छोड़ मोरे भाई || दशमुखने परनारि चुराई, कि छोड़ मोरे भाई ॥ ३ ॥ कीचकने व्यभिचार कराई, कि छोड़ मेरे भाई ॥ इक २ सेवत बहु दुख पाई, कि छोड़ मेरे भाई ॥ ४ ॥ सातों सेवत का फल पाई, कि छोड़ मेरे भाई || गिरवर दास चंदेरी में गाई, कि छोड़ मेरे भाई ॥ ५ ॥ ( १७ ) ( " छोड मेरे भाई ” की चाल - व्याहमें ) सुमति कुमति कि लगी लडाई कि छोड़ मेरे भाई ॥ टेक ॥ मांस खाय नर नरकै जाई कि छोड़ मेरे भाई ॥ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९ मदिरा खाय ताकी हम नसाई कि छोड़ मेरे भाई ॥ ||१|| कुमति नारि को याग कराई कि छोड़ मेरे भाई ॥ कुमनि नारि कुकरम करवाई कि छोड़ मेरे भाई ॥ २ ॥ मोहराय की बेटी जाई कि छोड़ मेरे भाई ॥ सुमनी देव सुगति दुखदाई कि छोड़ मेरे भाई ॥ ३ ॥ मति मन भाई कि गढ़ मेरे भाई ॥ कुलटा छिड़काई, कि छोड़ मेरे भाई ॥ ४ ॥ देवीदान सुकुमति दे ( १८ ) ( " साजाना" की चाल-विवाहमें ) मा मोकों अनि सुन्दर मिजमानी लाये जिनवर साजाना ॥ टेक ॥ शील चुनरिया रंग रंगीली मारी ॥ १ ॥ पांच नोव्रत घोली पांचों जरतारी वरना ||२|| चौ शिक्षावन बेसर लाये मोनिन के भुलना ॥ ३ ॥ सम्यक दर्शन गजरा लाये समता झलकाना ॥ ४ ॥ ज्ञान चरित दोई हार त्याचे झलके मां यदना ॥ कानन को लाये सोहं जिन वचना ॥ ६ ॥ कंकण लागे यहियोमें भरना ॥ ७ ॥ सुमनि लाये भंभरी के धरना ॥ ८ ॥ सय मिजमानी पहिर सजन की गिरनारी जाना || ९ || जिन सजनाके - कमल भज भवसागर नरना ॥ १० ॥ ५॥ क दश लक्षण र फजरौटी Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (“ हमारे रामाना" की चाल-विवाहमें ) पांच वचनये मानियौ मोरे रामाना ॥ तुम राखौ हिरदे बीच हमारे रामाना ॥ टेक ॥ सात व्यसन तुम छोड़ियौ मोरे रामाना ॥ अरु पाठई मद तज देव हमारे रामाना ॥१॥ पंच अनुव्रत पालियौ मोरे रामाना। कछु व्योरा देहुं बताय हमारे रामाना ॥२॥ जिय हिंसा तज दीजिये मोरे रामाना । पुनि कर चोरीको त्याग हमारे रामाना ॥३॥ झूठ वचन नहिं बोलिये मोरे रामाना । यौ परिग्रह दुख को मूल हमारे रामाना ॥४॥ यह शील रतन नित पालिये मोरे रामाना ॥जो भव २ में सुखदाय हमारे रामाना ॥५॥ रात रसोई ना करौ मोरे रामाना ॥ पुनि अनगल पियौ न नीर हमारे रामाना ।। ॥६॥ निशिभोजन ना कीजिये मोरे रामाना ॥ ये है हिंसा को मूल हमारे रामाना ॥७॥ देव एक अहंत हैं मोरे रामाना ॥ अरु हैं सब देव कुदेव हमारे रामाना॥ ॥८॥ पूजा जिन की कीजिये मोरे रामाना ॥ वो स्वर्ग मुक्ति मुख देत हमारे रामाना ॥९॥ भंड गीत ना गाइये मोरे रामाना ॥ नित सुनिये कथा पुराण हमारे रामाना ॥१०॥ ये दुर्लभ नर भव पाइयौ मोरे रामाना । जो चूकपरै नहिं दाव हमारे रामाना ॥ ११॥ धर्म या चित Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१ राखियौ मोरे रामाना ॥ ये है सतगुरुकी सीन हमारे रामाना ॥१२॥ यह दयाचंद निन गाइये मोरे रामाना ।। ये गारी सब हितकार हमारे रामाना ॥१॥ (२०) ("हमारे रामाना" की घाल-च्याहमें) धरम तला की पाराना, मोरे रामाना,सतगुरु सपरन जॉय हमारे रामाना ॥ टेक ॥ ऐसी कुमति कहां पायी मोरे रामाना ॥ दुर्गति को लेजाय हमारे रामाना ॥१॥ काड़ी कुमति दारी याहिर मोरे रामाना ॥ तोहि मत गुरु दई निकराय हमारे रामाना ॥२॥जा नर देही पा. इयो मोरे रामाना ॥ श्रावक कुल अवतार हमारे रामाना ॥३॥ कुमति को घरदई पाराना मोरे रामाना। मुमति सखी लई साय हमारे रामाना ॥ ४॥ देवी टास जु गाइयो मोरे रामाना ॥ भाई दे जिनमत उपदेश हमारे रामाना ॥५॥ (२१) ("हमारे नामाना" की चार-च्याहमें) ऐसे चेतन मग भूलियो मोर नामाना ॥ टेक ॥ जिम मारगम कांदे ययं मारनामाना। निम मारग दिगमन जाय हमारे नामाना ॥१॥ मो मारग काना फही मारे नामाना । निहि मारग मंद बनार हमारे नामाना॥ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ '२२ · ॥ २ ॥ मारग खोटा कुशींलिया मोरे नामाना ॥ सो तिस पथ भूल न जाय हमारे नामाना ॥३॥ चोरी अति खोटी कही मोरे नामाना ॥ हिंसा पुनि झूठी साख हमारे नामाना ॥ ४ ॥ सल्ल दल्ल परमंल्लिया मोरे नामाना ॥ जूवादिक व्यसन तजाहु हमारे नामाना ॥ ५ ॥ हुंडक डील दुखावनौ मोरे नामाना || नर्क बसे बहु काल हमारे नामाना ॥ ६ ॥ खटमल षट्पद चींटिया मोरे नामाना ॥ मख मच्छर टीड़ी पतंग हमारे नामाना ॥ ७ ॥ अहि बीछू पुनि चूहड़ा मोरे नामाना ॥ अरु कीड़ी भेक मराल हमारे नामाना ॥ ८ ॥ छाग नाग कनकेवड़ा मोरे नामा' ना ॥ वो तो मिरग सिंह इत्यादि हमारे नामाना ॥ ९ ॥ - इन जीवनको जो मारही मोरे नामाना ॥ तिनकी गति कहा होय हमारे नामाना ॥ १० ॥ और सबै दुरपंथिया मोरे नामाना ॥ है इकसांची जिनधर्म हमारे नामाना ॥ ॥११॥ ये बातें जिनमत कहीं मोरे नामाना ॥ ते सुनलो गिरवर दास हमारे नामाना ॥ १२ ॥ ( २२ ) " हमारे रामाना की चाल" व्याहमें ) धरम तला के पाराना, मोरे रामाना ॥ सतगुरु सपरन जाय हमारे रामाना ॥ टेक ॥ सुघर चेतन बहु पनि - यां भरन गई निजगुण छमकत पैजाना, मोरे रामाना ॥ Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१॥ तला किनारे दृष्टि पसारी मिलगये सतगुरु याराना, मोरे रामाना ॥२॥ सुघर चेतन बहु सुमती दारी मुनि चरणन चित धाराना, मोरे रामाना ॥ ३ ॥ दोह मिल रमत रहें निज मन्दिर अपनी रूप विचाराना,मोरे रामाना ॥४॥ गिरवर दास शील व्रतपाले पहुंचे भव: धि पाराना, मोरे रामाना ॥ ५ ॥ (“ मैने हटकी थी मैंने वरजीथी"की चाल-व्याहमें) मैंने हटकी थी मैंने घरजी थी तुमती कर्म की संगति नाहिं तजी ॥ टेक ।। जय जे कर्म उदय द्वै आये, तिन की सुधि बुधि सर्व भुलाये मैंने हटकी थी-॥ १॥ साता असाता उदय हाय आये, मिश्रित कर्म रहौ तहां छाये मैंने हटकी थी-॥ २॥ राग द्वेप की क्या थिति होय, इनकी थिति नर्कन तक होय मैंने हटकी थी-॥ ३॥ होव मुखी इनको देव छोड़,विषय कपायन ते मुख मोड़ मैंने हटकी थी-॥ ४॥ कहै देवीदास सुनी हो गुपाल, जिनमत गारी है गुनपाल मैंने हटकी थी॥५॥ (२४) (“ सुनत हो" की चाल-व्याहमें) हो चेतन गुणराय सुनत हो, हो चेतन गुणराया।टेका। काल अनन्त निगोद गमायौ इकइन्द्री तन पाय, सुनत Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ हौ ॥ लख चौरासी योनिमें भटके बहुत धरे तन जाय, सुनत हो ॥१॥ गर्भ निवास सहे दुख भारी सो तूं सब विसराय, सुनत हो ॥ बालापन ख्यालनमें खोयो तरुणपने त्रिय भाय, सुनत हो॥२॥ कुगुरु कुदेव कुवृष नित सेयौ, कीन्ही तीन कषाय, सुनत हो ॥ जय दुख पावे तब जिन ध्यावे सुखमें सुधि विसराय, सुनत हो ॥ ३ ॥ मूलचन्द विनवै सुन चेतन जिनवर नाम सहाय, सुनत हौ । निशदिन भजन करौप्रभुजीका पावी शिवसुख दाय, सुनत हौ ॥४॥ (२५) (“ सुनत हौ" की चाल, व्याहमें ) जगते भगते सोइयौ चेतन राय,आवै कुमति कुनारि सुनत हौ प्राव कुमति कुनारि ॥ टेक ॥ सुमति सुनारी अरज करत है लेव चेतन चित धार, सुनत हो ॥ १॥ बा दारी पूरी फरफन्दन तुम पर डारै जार, सुनत हौ ॥ ॥२॥ दुखिया करे अनादि काल तें मोह की पाँस पसार सुनत हो ॥ ३॥ वाके प्रेम भूल रहे आपा भरमत हो गति चार, सुनत हो ॥ ४॥ जो सुख चहौ तजौ वाको सँग क्यों सेवौ व्यभिचार, सुनत हौ ॥५॥ निजानन्द निजरस में पागौ लेहु सुमति हिय धार, सुनत हो ॥६॥ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गिरवर दास कुमति कुलटा तज सुमति प्यारी नारि, सुनत हो॥७॥ (२६) (“ सुनतही " की चाल व्याहमें) • जगते भगते सोइया चेतन राय तुम पर आवे जगजाल, सुनत हो। टेक ।। मोह नींद तोहि देय असाता भव २ भ्रम जंजाल, सुनत हो॥१॥ वालपने में ज्ञान लही ना चाले कौतुक चाल, सुनत हो ॥२॥ यहुरि जवान कमाऊ होकर तिरियन में मतवाल, सुनत हो ॥१॥ विरध भये तब भये तृष्णावश इमि तिहुँपनका ख्याल सुनत हो ॥४॥ पावक जरें कूप को खनवी सो निष्फल वा काल, सुनत हो॥५॥ तातें चेतन सुरत सम्हारी नातर कौन हवाल, सुनत हो ॥ ६ ॥ परनारी को संग छाड़ दो पहिरी शील सुमाल, सुनत हो ॥ ७ ॥ सकल परात व्याह जुड़के तुम वांधत कर्म विहाल, सुनत हो ॥८॥ नाच, तमाश, हांस, विकथा यहु करत फाग वि. कराल, सुनत हो॥९॥ रैन दिवस खिलखिल कल्मष करि डोलत लाल गुलाल, सुनत हो॥१०॥ ऐसौ नर तन पाय बावरे क्यों न भजे गुणमाल, सुनत हो ॥२१॥ नर तन पाय धर्म करलेग्रो अवसर मिलौ सुचाल, सुनत Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ ॥ १२ ॥ सकल गुणन कर पूरन जिनवर नमलै गिरवर भाल, सुनत हौ ॥ १३ ॥ ( २७ ) ( " सुनतहौ " की चाल. विवाहमें ) जगते भगते सोइयौ चेतन राय करम फन्द निनुचारौ, सुनत हौ ॥ टेक ॥ पंच उदंवर तीन मकार पुनि सात व्यसन परिहारौ, सुनत हौ ॥ १ ॥ सप्त तत्व अरु नौई पदारथ वारा तप व्रत धारौ, सुनत हौ ॥ २ ॥ कठिन २ कर नर भव पाई जप तप धर्म प्रचारी, सुनत हौ ॥ ३ ॥ देवीदास की लघु कविताई जिनमत बात विचारौ, सुनत हौ ॥ ४ ॥ ( २८ ) ( " नौवद पै डंका लागोहो " की चाल-विवाहमें ) नौवद पै डंका लागौ हो, नौबद पै डंका ॥ टेक ॥ दोय घड़ी जब रात गई है तब सब कारज त्यागौ हो ॥ १ ॥ बालक, जठर, युवा, नरनारी जिन मन्दिर को भागौ हो ॥ २ ॥ कर पग धोय मल जल सेती वन्दन मन अनुरागौ हो ॥ ३॥ गद्य पद्य युति कर जिन आगे नाय माथ क्षिति लागौ हो ॥ ४ ॥ कर सम्पुट युग जप नवकारे शब्द अर्थ मन पागौ हो ||५|| करत आरती धरत हरष उर मोह तिमिर सब भागौ हो ॥ ६ ॥ फिर सुनिये जिन Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ वैन सुधामृत परम प्रीति उर जागी हो ॥ ७॥ चार योग चारों सुकथा सुनि सकल भरम तम भागी हो ॥ ८ ॥ विनय सकल घरि करत प्रश्न सो तातें विध पट दागों हो ॥ ९ ॥ विनयवान के ज्ञान उपन्नत तातें विनय प्रवागी हो ॥ १० ॥ विषय कषाय दोष दुख दूषण सुनत चैन सय त्यागौ हो ॥ ११ ॥ पुनि सन्तोष धार पद कहिये उर समता रस जागौ हो ॥ १२ ॥ बदली दास तनुज गिरवर हम गांवें राग सुभागी हो, नौयद पै ढंका लागौ हो ॥ १३ ॥ ( २९ ) ( " रहमदिला " विवाह में ) हांहां जी काशी के वासी रहम दिला ॥ टेक ॥ मातगर्भ में हुए जब वासी, रहम दिला | सोलह सपने भये सुख भासी रहम दिला ॥ १ ॥ उन स्वपनन फल पिता कहासी, रहम दिला || सुन माता पाई सुख राशी, रहम दिला ॥ २ ॥ दशवें मास प्रगट दिखलासी, रहम दिला ॥ पैदा भये प्रभु ता दिन काशी, रहम दिला ||३|| सब घर २ आनन्द मनासी, रहम दिला ॥ मात सेव देवी करें खासी, रहम दिला || ४ || मन प्रसन्न जिनमात रहासी, रहम दिला ॥ बहुत तमाशे देव करासी, रहम दिला ॥ ॥ ५ ॥ पारशनाथ नाम दुखनाशी, रहम दिला ॥ घरौ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिता पायौ सुख जासी, रहम दिला ॥ ६ ॥ नाग चिन्ह पद देव दिखासी, रहम दिला ॥ कान्ति श्याम रंग हरा दिखासी, रहम दिला ॥७॥ सप्त हाथ तन बाल उदा. सी, रहम दिला ॥ कारण पाय भये बनवासी, रहमदिला ॥ ८॥ तप धरि कमों कीन्ही नाशी, रहम दिला॥ केवलज्ञान भयौ भव नाशी, रहम दिला ॥९॥ भव्यन को शिवमार्ग बतासी, रहम दिला ॥ गये शिवपुर कर्मों को नाशी, रहम दिला ॥ १० ॥ नाथुराम ये विनय करासी, रहम दिला ॥ मुझे राख प्रभु चरणन पासी रहम दिला ॥११॥ (३०) ("बनरा” विवाहमें) मोरौ शिवपुर जावन हारौ चेतन जग उजियारो री॥ टेक । मेरौ पंच महाव्रत धारी वनरा जगते न्यारौ री ॥१॥ मोरौ रत्नत्रय को धारी वनरा शिव त्रिय प्यारौ री॥२॥ मोरौ दश लक्षण को धारी वनरा सुमति सम्हारौरी ॥३॥ मोरौ सोलह कारन धारी बनरा जग उपकारौरी ॥ ४॥ मोरौ द्वादश तप को धारी वनराकर्म प्रजारौ री॥५॥ मोरौ सहे परीषह बाईस वौ तो शिव मग त्यारौरी ॥६॥ मोरौ राग द्वेष को त्यागी बनरा Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुण गरवारौरी ॥७॥ मोरौ शिव बनरी व्याहन को उमहो जिनमतवारी री ॥ ८॥ (" वनरा" विवाहमें) ऐसौ सुन्दर बनरा पोतो बहुतै सुन्दर यनरा शिव दिव्या जीको ऐसौ सुन्दर यनरा सुदेखौरी सखी मोरी ऐसौ सुन्दर यनरा॥ टेक ॥ घर नहिं चाहे यनरा कुटुम ना चाह यनरा सो गिरपर जावे को मचल रही यनरा ॥१॥ यसतर ना चाहै मनरा भूपण ना चाहै यनरा सो तो जीव दया कौं मचल रही यनरा ॥२॥ मौर न चाह यनरा यागौ न चाहै धनरा सो तप धरवे को मचल रही पनरा ॥३॥ व्याहु न चाहै यनरा चलाव न चाहै यनरा सो शिव बनरी को मचल रही यनरा।।४।। दिक्षा घर लई बनरा सु केवल पायौ बनरा सुभवि जीव ताखे को मचल रही यनरा ॥५॥ निर्वाण पधारौ यनरा नथमल को तारो बनरा सु येही अरज तुमसे है मेरी यनरा॥६॥ (३२) (" वनरा" विवाहमें) चेतन सुनहु हवाल हाल ॥ व्याट्ट की जा उत्तम चाल || टेक ॥ दश धर्मन को मार सुवांधी, सुमौर सी बांधौ मुमौर सौ यांधौ जामें लगे अति सुन्दर भाल । Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१॥ दर्शन ज्ञानचारित्र की पगड़ी, चारित्रकी पगड़ी, चारित्रकी पगड़ी सुवांधेसे लगत है परम रसाल ॥२॥ सुगुरु वचन सोई कानों में कुंडल, सोई कानों में कुंडल, सोई कानों में कुंडल सु पहिनौ जामें अति झलकत लाल ॥३॥ सोलह कारण को वागी पहिनौ सुवागौ पहिनौ, सुवागौ पहिनौ सुजामें जीव दया नितपाल ॥ ॥४॥ पंच महाव्रत रंगदार फेंटा, सुरंगदार फेंटा, सुरगदार फेंटा, सुबाँध के कर्मों के काटहु जाल ॥५॥पचीस कषाय के मोजा पहिनौ, सुमोजा पहिनौ, सुमोजा पहिनौ सुशील को पायजामा सोहै विशाल ॥ ६॥ अाठौँ ही मद् की पहिनौं पनहियां, सु पहिनौ पनहियां, सुपहिनौ पनहियां सुजामें वे अति होवै कमाल ॥७॥ पात्र दान कर कंकन बांधौं सुकंकन वांधी, सुजामें धर्म बढे तिहुँ काल ॥ ८॥ सो ऐसे हो चेतन वनके हो वनरा सुबनकर हो वनरा, सुवनकर हो वनरा, सुध्यान को रथ तुम लेहु सँभाल ॥९॥ ताही रथ पर चढकर हो बनरा, चढ कर हो वनरा, चढकर हो बनरा सुज्ञान वराती सँग रखवाल ॥१०॥ ऐसे हो सजकर जात्रो प्यारे बनरा, सु जात्रो प्यारे वनरा, सु जाके कर्मोंकी अगौनी प्रजाल ॥ ११॥ जिनवर गुणके बाजे बजाओ, सुबाजे वजात्रो, सुवाजे वजारो सुपंच परमेष्ठी के गीत रसाल ॥१२॥ ऐसे हो वनरा सुशिव रमनी सँग, सु. Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३ शिव रमणी सँग, मुशिव रमणी संग पाड़ो मांवर कटजाय भ्रमजाल ॥१३॥ शिव रमणी सँग सुक्ख निरन्त. र, सु सुक्ख निरन्तर, सु सुक्ख निरन्तर भोगी जन्म मरण भय टाल ॥ १४ ॥ व्याहु यखान के अरज करत इम, अरज करत इम, अरज करत इम, सो मेरे भो प्रभु भव दुख टाल ॥ १५॥ भूल पड़ी हो ठीक करी सुधि, ठीक करौ सुधि, ठीक करौ सुधि, अल्प वुदि कई नधमल बाल ॥ १६ ॥ (३३) (“वनरा-विवाहमें ) मैं न अकेली जाऊं, सुमति बिन अडरही वनरा ॥ छोडी कुमति सी नारि, सुमतिसे अडरही बनग टेका। दया धरम इक माता यना की मोरे कहे से जाव,मुमनि विन अडरहौ यनरा ॥१॥ सोलह कारण काकी बनाकी मोरी गरज से जाव, सुमति विन अडरही धनरा॥२॥ दश लक्षण हैं पिता यनाके मोरी गरज से जाव, सुमति विन अडरहो यनरा ॥३॥ पंच महाव्रत काका बनाके मोरे कसे जाव, सुमति बिन अडरही यनरा ॥४॥ तीन रतन से भैया यनाके मोरे कह से जाव, सुमनि बिन अडरही वनरा ॥५॥ द्वादश भावना बहिनें यना. की, मोरी गरज से जाव, सुमति विन अड़रही धनरा ।। Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥६॥ त्रेपन किरियां दाँजनी बनाकी मोरी गरज से जाव, सुमति बिन अडरहौ धनरा ॥७॥ याचन्द प्रभु थारौ हाँ सेवक मोरी अटक सुलझाव, सुमति बिन अड़ रही वनरा ॥ ८॥ (३४) (वनरा-विवाहमें) "हियरेसे लगा लेती बनरे, जो चुनरीको छोड़ की चाल. सुमति कहै सुन चेतन बनरे मानौ वचन अमोल ॥ सुख सांचौ बता देती बनरे, जो कुमती को छोड़ शिव रमनी मिला देती बनरे जो कुमती को छोड़ ॥ टेक ॥ केसरिया बागौ पहिरौ राजा बनरे शील कौ परम अमो ल, सुख सांचौ बता देती बनरे-॥ १॥ माथे मौर धरौ राजा बनरे समकित परम अमोल सुख सांचौ बता देती बनरे-॥२॥ हाथन कंकण पहिनौ राजा बनरे रत्नत्रय परम अमोल, सुख सांचौ बता देती बनरे-॥३॥हिय को हार बनाव राजा बनरे द्वादश व्रत अनमोल, सुख सांचौ बता देती बनरे-॥ ४॥ कानन कुंडल अजब अनोखे गुरु के वचन अमोल. सुख सांची बता देती बनरे॥५॥ ध्यान तुरंग सजौ राजा बनरे, समता गज अन मोल, सुख सांचौ बता देती बनरे जो कुमती को छोड़ ॥६॥ याचन्द शिव मग गहु बनरे जहँ है सुक्ख अतौल,सुख सांचौबता देती बनरेजो कुमतीको छोड़ ॥७॥ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (बनरा-विवाहमें) "बनाक संग चलोगीरे, अटरिया छोड चलूंगीर" बना स्यामलिया स्वामी जी, बना सबमें सिर नामी जी, वना मेरो जगसे न्यारी जी, बना स प्यारी जी, बनाके संग चलूंगी जी, नेह सब तोड़ चलूंगी जी ॥ टेक ।। वनाको जाय मनाऊं जी, चरणमें सीस नमाऊं जी, बना तो जगत उदासी जी, बना की वनहीं दासी जी, चनाके संग चलूंगी जी, नेह सय नोड चलूंगी जी ॥१॥ बना तो शरण सहाई जी, बनाकी कौन बड़ाई जी, यना निज रसमें डूबा जी, मुमतिके द्वार ऊभी जी, बनाके संग-॥ २॥ वना निज नेम सँभारी जी, कुमति की सैन बिडारीजी, सुमति की सेज पधारी जी, वना दस सखिन सिंगारी जी, बनाके संग-॥ ॥ बना धन भाग हमारी जी, पना जी शरण तिहारा जी, बना करुणाकर तारी जी, दद्याचद दास विचारी जी, घना के संग-॥४॥ (३६) ( वनरा-विवाहमें) मारी सब भैयन सिरदार बना करें क्या बवि लागीर।। स्वामी तीन लोक सरदार श्यामलिया नाथ कहा जु Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ ॥ टेक ॥ स्वामी इन्द्रादिक सब देव सदा जिनके गुण गावें जू ॥ स्वामि पै चौसठ दुरते चौर छत्र शिर तीन विराजें जू ॥ १ ॥ स्वामी सिंघासन छविदार कहा कवि उपमा गावें जू ॥ स्वामी भामंडल पिछवार भानु कुति कोट लजावें जू ॥ २ ॥ स्वामी अंतरीक्ष भगवान आप कमलासन राजें जू ॥ स्वामी देव करें जयकार हुँदभी नाद बजावें जू ॥ ३ ॥ स्वामी वाणी अमृतरूप सकल गणधर समझावें जू ॥ स्वामी दोष अठारा रहित सहित छयालिस गुण राजें जू ॥ ४ ॥ स्वामी केवल रूप स्वरूप भाल शत इन्द्र नमावें जू ॥ स्वामी अतिशय हैं चौतीस कौन हम उपसा गावें जू ॥ ५ ॥ स्वामी वर्णन पर - पार पार गणधर नहिं पावें जू ॥ स्वामी दयाचन्द कर जोर चरण को सीस नमावें जू ॥ मोरौ सब भईयन सिरदार - ॥ ६ ॥ ८ ( ३७ ) ( " वनरा " विवाह में ) व्याहन सुकति पुर धाये, चेतन वनरा वन आये ॥ टेक ॥ मायें हो दिक्षा धारी जी चेतन, मन वच योग लगाये ॥ १ ॥ कानन जिनवानी सुन चेतन जा में ज्ञान समाये ॥ २ ॥ गले पहिन जिन नामकी माला, भव दधि पार लगायें ॥ ३ ॥ हिरदेमें सुमिरें पंच परम गुरु नासा Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दृष्टि लगाये ॥४॥ शिव वनरी व्याहन को उमहे, ज्ञान अनन्त लहाये ॥५॥ गिरवर दास व्याहु यो उत्तम जगतें पार लगाये ॥६॥ (३८) ("बड़े गरजी" की चाल-विवाह फागमें) वे तौ चेतन खेलत फाग हमारे बड़े गरजी ॥ टेक ॥ वे तो आतम रस सम्यक गुण गारे, बड़े गरजी ॥ वे तौ ज्ञान गुलाल गंगजल डारे, बड़े गरजी ॥१॥ वे तौ शील पिचकले दाय निहारें, बड़े गरजी॥वे तौ भरि २ सुमति नारि पर डारं, बड़े गरजी ॥२॥ वे तौ सुमति सैन करि कुमति बिडारे, बड़े गरजी ।। वे तो निजानन्द थिरता रस धारें, बड़े गरजी ॥३॥ वे तो वारह भावन सुभट सम्हारें, बड़े गरजी ॥ तहां बाजें त्रयोदश चंग नगारे, वडे गरजी॥४॥ तौ सोलह कारण भावत प्यारे, बड़े गरजी ॥ वे तौ वुध गिरवर यह सीख सुना रे, बड़े गरजी॥५॥ (३९) (“भौंरारे" की चाल-विवाहमें ) • भ्रमत २ बहु काल गमायौ सुन भौंरारे ॥ काल अनन्त निगोद वसायौ सुन भौंरारे ॥ टेक ॥ तिन की कथा कहै को गाई, चेतौ चेतन राई सुन भौंरारे ॥१॥ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ ये तूतौ ज्ञान ध्यान पूजा तप करलै, षट् अावश्य सुमिर लै सुन भौंरारे ॥२॥ ये तूंती पंच पाप मन वच तन तजदै, देव धरम गुरु भजलै सुन भौंरारे ॥ ३ ॥ ये तूंतौ अपने पदको सुमिरण करलै, पर पद भूल विसर दै सुन औरारे ॥४॥ ये तूतौं शील विरत धारौ हरषाई, तजहु सकल कुटिलाई सुन भौंरारे॥५॥ ये तूं तो धर्म धुरन्धर धार परम उर गिरवर भज वर पाई सुन भौंरारे ॥६॥ ("भौंरारे" की चाल-विवाहमें) ऐसी उत्तम कुलको पायौ, सो तें वृथा गमायो सुन भौंरारे ॥ टेक ॥ अब के तूं श्रावक तन पायौ, रत्नत्रय उर भायौ सुन भौंरारे ॥१॥ देव धरम गुरु नहीं लखायौ, स्वपर भेद नहिं पायौ सुन भौंरारे ॥२॥ मुनि श्रावकको भेद न चीन्हों, जिनपद् चित्त नहिं दीन्हों सुन भौंरारे ॥३॥ रत्नत्रय दश धर्म न जानों विषय कषाय न छानों सुन भौंरारे ॥४॥ त्रेपन किरिया नाहिं पिलानी, सत्रह नेम न जानी सुन भौंरारे ॥५॥ रात दिवसको भेद न पायौ, भक्ष्य अभक्ष्य जु खायौ सुन भौंरारे ॥६॥ पाप पुण्य को भेद न जानों जल बरतौ अनछानों सुन भौंरारे ॥७॥ जिनवर दरश करे नहिं भाई, खोटी गति बधवाई सुन भौंरारे ॥८॥ सकल कलुषता उरमें धारी, सेई है परनारी सुन भौंरारे॥९॥ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गिरवर धारौ उर समताई, वरौ आठमी धरा जु भाई सुन भौंरारे॥१०॥ (४१) ("भौंरारे' की चाल-विवाहमें ) तृने सार गमायौ, पाप कमायौ, धर्म सवै विसरायौ मनुप्रां मन भौंरारे ॥ टेक ॥ तूंने पुंजी बड़ाई, नफा न पाई, बड़ी विबूच मचाई मनुयां मन भौंरारे ॥१॥ तूंतौ देव न जाने, कुदेव कुं माने झूठी बातें ठाने मनुत्रा मन भाँरारे ॥२॥ तूं तो पापतं जकड़ौ, जमधर पकड़ो, धर्म काजमें सकरौ मनुमन भौंरारे ॥३॥ तूंतौ रो रो कीन्हों, बहु दुख लीनों, रहन कळू ना दीनों मनु मन भौंरारे ॥ ४ ॥ तूंतो हाथ न दीनों, साथ न लीनों, खोटौ कारज कीन्हों मनुयां मन भौंरारे ॥५॥ तूती नरकन जैहै जब दुख पैहै, पश्चात्ताप करै है मनुयां मन भौंरारे ॥६॥ यह नर भव पाई, चेतहु भाई, बालकृष्ण सुखदाई मनुां मन भौंरारे ॥७॥ ४२ ("भौंरारे” की चाल-विवाहमें) परत्रिय सेवन कहा फल होय मनुां मन भौंरारे ॥टेक॥ देव दिवाले तें तुरतई जाय मनुग्रा मन भौंरारे॥ जाति पॉतते कादौ जाय मनुयां मन भौंरारे ॥१॥ Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा सुनें तो दंड करेय मनु मन भौंरारे ॥ यातौ कथा या भव तनी मनु मन भौंरारे ॥२॥ श्रागे का गति होय सुनौ मनु मन भौंरारे ॥ नके भूमि जब पहुंचे जाय मनु मन भौंरारे ॥३॥ लोह पूतरी अंग भिड़ा सुनौ मनुत्रां मन भौंरारे ॥ ताँवो सीसौ औंट पिावें मनुआँ मन भौंरारे ॥ ४ ॥ कहैं देवीदास सुनौ गोपाल मनु मन भौंरारे ॥ परतिय, सेयें ये दुख होय मनुप्रा मन भौंरारे ॥५॥ (“भौंरारे" की चाल-वंदना मुंडन आदिमें) पात्र अपात्र कुपात्र जु भेव सुनौ मनुआं मन औरारे॥ पन्द्रह भेद कहे जिनदेव मनुनां मन भौंरारे ॥१॥तिनमें पात्र दान शिव दाय मनु मन भौंरारे ॥ और सबहि जगमें भरमाय मनुप्रां मन भौंरारे ॥२॥ दान बिना घर असान समान मनु मन भौंरारे ॥ दान से पावे वर्ग विमान सनु मन भौंरारे ॥३॥ दान करें घर होय पवित्र मनु मन भौंरारे॥ दान विना निर्फल सब कोय मनु मन भौंरारे ॥ ४॥ दान करौ भामंडल जी मनु मन भौंरारे ॥ दान करौ श्रीषेण अती मनुश्रां मन भौंरारे ॥५॥ दान करौ नृप शेखर पीठ मनुत्रां मन भौंरारे ॥ तीर्थंकर पद पाय सदीव मनुभां मन Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भौंरारे ॥ ६॥ तातें दान करौ मन लाय मनुां मन भौंरारे गिरवर अविनाशी पदपाय मनुमन भौंरारे ७ (४४) ("भौंरार" की चाल-व्याहु, मुण्डन आदिमें ) चारों दान भली विधि देव मनु मन भौंरारे । चार दानकी विधि सुन लेव मनु मन भौंरारे ॥टेक।। औपधि दानको कहा फल होय मनु मन भौंरारे ।। भय २ देह निरोगी होय अनुयां मन भौंरारे ॥ १॥ आहार दानको कहा फल होय मनु मन भौंरारे ॥ भव २ अह धन सम्पति होय मनुयां मन भौरारे ॥२॥ अभय दानको कहा फल होय मनु मन भौंरारे ।। परसव श्रायु बड़ी थिति होय मनुयां मन भौंरारे ॥३॥ शास्त्र दानको कहा फल होय मनुआं मन भौंरारे ॥ भव २ में पढ़ पंडित होय अनुयां मन भौंरारे ॥४॥ चारों दान को यो फल होय मनु मन भौंरारे॥चक्री, खगपति इन्द्र कहाय मनुयां मन भौंरारे॥५॥ चारों दान देयो मन लाय मनुयां मन भौंरारे ॥ भोगभूमि में जन्म लहाय मनु मन भौंरारे । कहै देवीदास सुनौ गोपाल मनुयां मन भौंरारे ॥ दान दियें नर सुर शिव होय मनु मन भौंरारे॥७॥ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० (४५) ( " भौंरारे” की चाल-विवाह, मुंडन आदिमें) जिन दर्शनतें कह फल होय मनुत्रां मन भौरारे || देक॥ जिन दर्शनको फल सुन लेव मनुत्र मन भौंरारे ॥ जिन दर्शनको जानों भेव मनुत्रां मन भौंरारे ॥ १ ॥ जो मनमें चिन्ते जिनराय मनुत्रां मन भौंरारे ॥ घर बैठो फल सहस उपाय मनुत्रां मन भौंरारे ॥ २ ॥ गमन करे जिन दर्शन काज मनुत्रां मनु भौरारे ॥ इक लख फल पावै महाराज मनुयां मन भौंरारे ॥ ३ ॥ जब जिनवर दृग देखे खोल मनुयां मन भौंरारे ॥ तब कोड़ा कोड़ी फल लेव मनुयां मन भौंरारे ॥ ४ ॥ यौ तौ है दृष्टान्त कहत मनु मन भौंरारे ॥ जिन दर्शनको फलहि महन्त मनुत्रां मन भौंरारे ॥ ५ ॥ जिन दर्शन ऐसी विधि जान मनु मन भौंरारे ॥ जब जिन मन्दिर ध्वजा लखान मनुत्रां मन भौंरारे ॥ ६ ॥ नमस्कार तब कीजे भाय मनु मन भरारे ॥ फिर आगेको गमन कराय मनुयां मन भौंरारे ॥ ७ ॥ जिन मन्दिर द्वारे शिर नाय मनुत्रां मन भौंरारे ॥ ता पीछे भीतरको जाय मनुयां मन भौरारे ॥ ८ ॥ जय २ नाद करै धरि प्रेम मनुत्रां मन भौंरारे ॥ कोमल मन वच काय सुतेम मनुत्रां मन भौंरारे ॥ ९ ॥ जब पहुंचे जिनचरणन पास मनुत्रां मन भौंरारे ॥ तब मानों मन परम हुलास मनुत्रां मन भौंरारे Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१ ॥ १० ॥ आठ अंग युत वन्दे देव मनुयां मन भारारे ॥ गद्य पद्य स्तुति कर सेव मनुओं मन भौंरारे ॥ ११ ॥ बहुविधि फिर २ नमन कराय मनुयां मन भौरारे ॥ चारों दिशिमें इहि विधि भाय मनुयां मन भारारे ॥ १२ ॥ फिर परिक्रमा दीजे तीन मनुयां मन भौंरारे ॥ त्रिधा रोग तहां कीजे छीन मनुयां मन भारारे ॥ १३ ॥ जप नमोकार सुनिये जिनचैन मनुयां मन भौंरारे ॥ तत्र धरौ समता थल एन मनु मन भौंरारे ॥ १४ ॥ पुनि सम्पुट युग मस्तक नाय मनुयां मन भारारे ॥ इस विधिदर्शन प्रीति लगाय मनुयां मन भारारे ॥ १५ ॥ मनोरमा जिनदर्शन कीन्ह मनु मन भारारे ॥ जिन दर्शन हठव्रत परवीन मनुयां मन भौंरारे ॥ १६ ॥ कमलश्री जिनदर्शन धार मनुयां मन भौरारे ॥ इत्यादिक यह जीव अपार मनुयां मन भाँरारे ॥ १७ ॥ जिन दर्शन शिव सुखको देत मनुयां मन भौरारे ॥ तिनको भविजन उर घर लेत मनुयां मन भौंरारे ॥ १८ ॥ जिनदर्शन विन पशू समान मनुयां मन भरारे ॥ दर्शनसे पाव निर्माण मनु मन भरारे ॥ १९ ॥ जिनदर्शनसे शिव सुख होय मनुयां मन भरारे ॥ जिनदर्शन सम पुन्य न कोय मनु मन भरारे ॥ २० ॥ तातं दिन प्रति दर्शन धार मनु मन भौंरारे ॥ सो गिरवर पावै सुख सार मनुयां मन भरारे ॥ २१ ॥ Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ (४६) ( "भौंरारे" की चाल-विवाह, मुंडन आदिमें ) पंच परम सुमिरे सुख होय मनुत्रां मन भौंरारे ॥टेक॥ पंच मिथ्यात धरै जो कोय मनु मन भौंरारे । पंच परावर्तन दुख होय मनु मन भौंरारे ॥१॥ पांचों समिति धरें सुख होय मनुत्रां मन सौरारे ॥ पंचाणुव्रत तें सुदिढाय मनु मन भौंरारे ॥२॥ पंच पाप अनरथ करतार मनु मन औरारे ॥ पंचम थान चढ़ी भरपूर मनुत्रां मन भौंरारे ॥३॥ पांच पचत्तर दोप तजाय मनु मन भौंरारे ॥ पंचम ज्ञान लहै सुखदाय मनु मन भौंरारे ॥४॥ पंच उदम्बर जीव अपार मनुयां मन भौंरारे ॥ तिनको तज होवे भव पार मनुत्रां मन भौंरारे ॥ ६॥ पंच वेग कामिनिके जान मनुयां मन भौंरारे ॥ तिनके त्यागें होय कल्याण मनुयां मन भौंरारे ॥६॥ पंच प्रकार निगोद अनन्त मनु मन भौंरारे ॥ तिन अनुकम्पा करौ महन्त मनु मन भौंरारे ॥७॥ पंच प्रमाद् करौ दमनीय मनु मन भौंरारे ॥ पंच थावर राखौ भवि जीव मनु मन भौंरारे ॥ ८ ॥ पांचों परमेष्ठी सुखदाय मनु मन भौंरारे ॥ गिरवर पंचम गतिको जाय मनुां मन भौंरारे ॥९॥ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७) ("भौंरारे" की चाल-चंदना, मुंडन आदिमें) तूं तो नरक निगोदमें बहुदिन भटकौ अव करि शुद्ध सुभाऊ मन भौंरारे।।टेक ॥ तूंती लाख चौरासी योनिनमाही धरे बहुत तन जाई मन भौरारे ॥१॥ तूंतौ गर्भही के जे दुःख सहे हैं तेही विसरे आई मन भौंरारे ॥२॥ तूंती वालापन सब खेल गमायौ तरुणापने त्रिय भाई मन भौंरारे ॥३॥ तूंती मान गुमान करौ मद छाको बोलत है इतराई मन भौंरारे ॥४॥तूंतो मदको मातो रहै न सांतौ जोरै सबसे नातौ मन भौंरारे ॥५॥ तूंतौ अधरन करने में धन खोयौ धरम सुने मुख मोरो मन भौंरारे॥६॥ तूंतो कुगुरु, कुदेवै सेवै ध्याचे मन भावे सो कराई मन भौंरारे ॥७॥ तूंतौ दुनियां केरे गुनियां जोरे परौ भरममें भाई मनुग्रां मन भौंरारे ॥८॥तूंती अपनी शक्ति सम्हारै नांही मृगतृष्णाको धाई मन भौंरारे ॥९॥ तूंती जय दुख पाये तब प्रभु ध्यावे सुखमें नाम भुलाई मन भौंरारे ॥१०॥ तूंती देने लेने में दिन खोयौ रात्री सोय गमाई मन औरारे ॥ ११॥ तूंती अनहोते में बातें मारे होते लोभ कराई मन भौंरारे ॥ १२॥ तूंतौ तीरथ व्रतको हल २ कम्पै पार कौन विधि पाई मन भौंरारे ॥१३॥ तूंतौ दान पुण्य सुन मारन Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाव क्रोध का भावे दुष्टन दोई तज . नौधा ४४ धावै क्रोध करै अधिकाई मन भौंरारे ॥१४॥ तूंतौ ज्ञान पुराण मनै नहिं भावे दुष्टन संगति भाई मन भौंरारे ॥ १५॥ तूंतौ प्रातम भजलै दोई तज दै तीन रतन लौंलाई मन भौंरारे ॥ १६ ॥ तूंती चार संघकौं नौधा ध्यावै बाराव्रत मन लाई मन भौंरारे ॥ १७॥ तूंतौ परधन देख मनहि मन झूरै दीना था सो पाई मन भौंरारे ॥१८॥ तूंतौ पंडित केरी सेवा करलै धरलै हिये उपाई मन भौंरारे॥१९॥ तूंतौ यह करनीउर चितमें धरले तज दै संग गमारी मन भौंरारे ॥२०॥ तूंतौ साध सन्त की सेवा करले जातै तिर है पारी मन भौंरारे॥२१॥ तूंतौ केर बेर को मेला जैसौ ऐसौ फिरै सिधायौ मन भौंरारे ॥२२॥ तूंतो मरकट कैसी मूठ जु बांधी आपहि श्राप दवायौ मन भौंरारे ॥ २३ ॥ तूंती आशा बांधौ करतो धन्धौ अन्धौ हियो भुलायौ मन भौंरारे ॥ २४ ॥ तूंती ममता मोह नींद कर जकरौ पायौ नहीं ठिकानौ मन भौंरारे ॥ २५ ॥ तूंतौ इकदिन ऐसौ हूहै प्राणी खाट छोड़ भौं पारौ मन भौंरारे ॥ २६ ॥ तूंतौ सैनन २ वोलत प्राणी कोई न चितमें धारौ मन भौंरारे ॥ २७ ॥ सम्वत् अठारा सै जु भये हैं इक्यावन उरधारौ मन भौंरारे ॥२८॥ कहै जसकरन शरण प्रभु तेरे मोकों पार उतारौ मन भौंरारे ॥२९॥ Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५ ( ४८ ) ( " जात करम कोपनियां" की चाल व्याहमें ) सुघर चेतन यहु पनियां को निकरी पीछे कर्म लगेयां कि भाई मेरे जात करम कोपनियां ॥ १ ॥ माँग में आय गये सुधर चेतन राय हलकों उठाय लई कंईयां कि भाई मेरे ॥ २ ॥ छोड़ा २ तुम मोरे करम हो अब नहिं मुख दिखेंयां कि भाई मेरे ॥ ३ ॥ व तो कैसे छोड़ों चेतनराय तुम को शुभ गति नईयां कि भाई मेरे ॥ ४ ॥ हीन बुद्धि अरु कवि लघुताई देवीदास कहां कि भाई मेरे ॥५॥ ( ४९ ) ( " जात करम कोपनियां " की चाल व्याह ) ऐसे चेतनराय पनियाँको निसरे जान करम कोपनियां, कि धीरें २ जान करम कोपनियां ॥ टेक ॥ रान दिवस दिनरैन घड़ी पल बीनत आयु बहनियां कि धीरें २ ॥ १ ॥ आठ करम भाग दुखदाता जे भव २ भरमनियां कि धीरें २ ॥ २ ॥ नर्क, तिथेच, देव, मानुष जे चारों गति भटकनिया कि धीरें २॥ ३ ॥ सप्त तन्त्र नय द्रव्य पदारथ इन सरधा ज करइयाँ कि धीरे २॥ ४ ॥ पंच मिध्यात्व पंच पापनको मन, वच, तन नाज़नियां कि धीरें २ ॥ ५ ॥ जयहि चेनन तुम पंचम पार्टी मुक्त वधू साजनियां कि धीरें २॥ ३ ॥ तानें चेनन सुरत Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ सम्हारौ नातर फिर पछताया कि धीरें २॥७॥ दुर्लभ नर भव पाय लई है फिर पावे की नइयाँ कि धीरें २-स ॥ ८ ॥ जिनमत गारी रची चंदेरी गिरवर दास जु बनियाँ कि धीरे २ ॥ ९ ॥ ( ५० ) ( " सुनौजु ” की चाल व्याहमे ) लाख चौरासी योनि में भटकौ पुनि कुल कोड़ि बताउं सुनौजू ॥ टेक ॥ पृथ्वी, अगनि, पवन, जल इनकी सात २ लख गाऊं सुनौ ॥ १ ॥ इत्तर निगोद, नित्य गोलक के सात २ लख पाऊँ सुनौजू ॥ २ ॥ तरु दस लाख कहे इम थावर बावन लाख गिनाऊं सुनौजू ॥३॥ बे, ते, चौ इन्द्री दो २ लख पँच इन्द्री पशु चार सुनौ ॥ ४ ॥ ऐसे बासठ लाख कहे सब तिर्यचन समझाऊं सुनौजू ॥ ५ ॥ सुर नारक व २, नर चौदह लाख चौरासी जनाऊं सुनौ ॥ ६ ॥ अब कुल कोड़ि पृथ्वी वाइस लख पौन वारि सत सात सुनौजू ॥ ७ ॥ अनल तीन तरु आठबीस लख बेइन्द्री लख सात सुनौजू ॥ ८ ॥ ते इन्द्री वसु चौइन्द्री नव अहि नव थल दस लाख सुनौजू ॥९॥ जलचर साड़े बार गगन पति बारह लाख जताऊं सुनौज ॥ १० ॥ नर चौदह नारक पच्चीसों सुर छब्बिस बतलाऊं सुनौजू ॥ ११ ॥ शतक एक साड़े निन्याऊं Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७ कोड़ा कोड़ि गिनाऊं सुनौजू ॥ १२ ॥ ऐसी चहुंगति भरमी गिरवर तातें या सिखाऊं सुनौजू ॥ १३ ॥ (५१) (“ सुनौजु " की चाल, व्याहमें ) काना से आये कहां तुम जैही काना रहे लुभाइ सुनौजू ॥ टेक ॥ कौन के बंधु हितू बैरी को कौन तात को माइ सुनौजू॥१॥ बेटा वनिता झुद्धमा पौरिया कौनकी है ठकुराइ सुनौजू ॥२॥ कौनके सहल अटम्बर दल बल कौन की संतति जाइ सुनौजू॥ ३ ॥ हरि हलधर चक्रेश्वर मन्मथ कारके संग न जाइ सुनौजू ॥४॥ पुण्य पाप सव उद्य व्यवस्था प्राय जाय पलाइ सुनौजू॥५॥ कुटुम कवीला अपनी गरज के ज्या तरुपंथ सहाइ सुनौ जू॥६॥ दो दिनके मिजमान वन फिर गैल आपनी जाइ सुनौजू॥७॥ कर्मनवश मेला ज्या जुरियो लेबहु पुन्य कमाइ सुनौजू ॥८॥ कोउ परजीव हितू नहिं वैरी धर्म एक सुखदाइ सुनौजू ॥ ९॥ गिरवर एक शरण जिन सांची और सबै कुटिलाइ, सुनौजू ॥ १० ॥ (५२) ("हमारे आत्मा" की चाल-हरसमय) अब के नरतन पाइयौ मोरे आत्मा ॥ सो खाद, अखाद न खाय हमारे प्रात्मा ॥ टेक ॥ अोरा घोर जले Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिया मोरे श्रात्मा || निशि भोजन बिदल न खाय ह. मारे प्रात्मा ॥१॥ बहु बीजक बैंगन कहे मेरे श्रात्मा संघाना (अथाना) कधी न खाय हमारे प्रात्मा ॥२॥ बड़ पीपल कठऊमरा मेरे प्रात्मा ॥ ऊमर पिलकर त्रस थाय हमारे प्रात्मा ॥ ३॥ बिन जानौ फल ना भखौ मेरे प्रात्मा ॥ सब कन्द मूल सुतजाय हमारे आत्मा ॥४॥ विष माटी मक्खन तजौ मेरे आत्मा।। मद मांस तजौ दुखदाय हमारे प्रात्मा ॥५॥ छोटौ फल मत खाइयौ मेरे प्रात्मा ॥ रस चलित वस्तु नहिं खाय ह. मारे अात्मा ॥ ६॥ फूल तुखार अखाद्य है मेरे अात्मा ॥ इत्यादिक और गिनाय हमारे अात्मा ॥७॥ जे वावीस अभक्ष हैं मेरे आत्मा ॥ इनके फल दुर्गति जाय हमारे प्रात्मा ॥८॥ तातें इनको त्यागिये मेरे प्रात्मा ॥ ये भव २ में दुखदाय हमारे प्रात्मा ॥९॥ धर उत्तम कुल प्राचार हमारे प्रात्मा ॥ सो तो गिरवर प्रभु गुण गाय हमारे प्रात्मा ॥१०॥ (५३) (“ प्रभुजी" की चाल-भोजनके समय ) देवन देव स्वामी जिन अपने को सुमरण के गुण गाऊ कि प्रभुजी ॥ गगन मँड़न मोरे सजना बसत हैं उनहीं यात जिमाऊं कि प्रभुजी ॥१॥ काहे की पातल Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काहे को दौना काहे की सींक लगा कि प्रमुजी ।। करनी की पातर कथनी को दीना ज्ञान कीसीक लगा कि प्रभुजू ॥२॥ नेम के नीरन चरण पग्वारी चित चौका वेठाऊ कि प्रभुजी ॥ सोनेके थारन व्यंजन परोसे रूपे करछुल दधा कि प्रभुजी ॥३॥भावके भान दया की दालें क्षमाके यमला बनाऊं कि प्रभुजी ॥ ममता के माड़े साहस कि फैनी प्रेमके धीव परसाऊं कि प्रभुज़, ॥ ४ ॥ रहनी की दूध साहस की खोवा शकर सुमनि मिलाऊं कि प्रभुजी ।। पांच पचीस पकर नव नारी सजनाको गीत गवाऊं कि प्रभुजी ॥५॥ जो सुग्व पार्व जेवं सजना हमारे स्वासा पवन हुलाऊं कि प्रमुजी।। नत्ता तमोली वरई हमारे सजनाको विड़ियाँ चया कि प्रभुजी ॥६॥ पांच पान पैच विड़ियां लगाई वाही में लौंग ठटाऊं कि प्रभुजी ॥ लींग लायची प्रेम मसाले सजनों को खाद चग्वाऊं कि प्रधुजी ॥७॥ मन भर कसर दिल भर चन्दन सजनाको वृष लगाऊं कि प्रभुजी । इकइस खंड महल हक राखी निर्भय पलॅग विचाऊं कि प्रभुजी ॥ ८॥शील सन्तोष ग्ववास हमारे सजनोंके पांव दयाऊ फि प्रभुजी ।। गारी गवाॐ गिर. वर सुनाऊँ सजन चित पहलाऊं कि प्रभुजी ॥९॥ Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (गीत-भोजनके समय) श्रीगुरु आये मोरे पाहुने धन भाग हमारे ॥ टेक ॥ सम्यक् दर्शन ज्ञानके अनहद् वजत नगारे ॥ कंचन जल अति सीयरे गुरु चरण पखारे ॥१॥ चन्दन चौकी धरदई गुरु अान पधारे ॥ सुन्नेके थार आहार दियौ गुरु जेवन लागे ॥२॥ कंचन झारी भराइयौ गुरु अँचवन लागे । संजम विड़ियाँ लगाइयौ गुरु चावन लागे ॥३॥ गुरु हो चले शिवदेश को सब मिल करी हैं जुहारें ।। गुरु उपदेशौ गिरवरदास को अरु पार लगावो ॥४॥ ("मोरेलाल"की चाल-दामादके जीमते समय) आगू २ राम चलत हैं पीछे लछमन भाई मोरे लाल ॥१॥ तिनके पीछे भरत शत्रुघन शोभा बरनी न जाय मोरे लाल ॥२॥ राम हँसें लक्ष्मण मुसक्यावें कौन जनकजू की पौरेंमोरे लाल॥३॥ ऊंची अटरियां लाल किवरियां सूरज साट् द्वार मोरे लाल ॥४॥ जाय जु पहुंचे जनक जू के द्वारे अनहद वाजे वाजें मोरे लाल ॥५॥ मोर मुकुट मकराकृत कुण्डल चन्दन खौर विराजे मोरे लाल ॥६॥ चरण पखार हरष अति कीन्हों' उज्जल अक्षत माथे मोरे लाल ॥७॥ हाथ जोर शिरनाय जनक Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कह भीतर चलवी होय मोरे लाल ॥८॥पकर छिगु रिया भीतर लैगये तखत दये लटकाय मोरे लाल ॥९॥ चारों भाई बैठे तखत पै शोभा वरनी न जाय मोरे लाल ॥१०॥इंजन विजन और निगौना रहनके दश दौना मोरे लाल ॥११॥ चरी कचौरी अरु मैदा की बेरौ पापर ल्याव मोरे लाल ॥ १२॥ सेमें (बालौरें) बनाई अधिक रसीली केरा छोंक बघारे मोरे लाल ॥१॥ सोनेके थाल परोसे जनकजू रूपेके वेलन दूध मोरे लाल ॥१४॥ठाडे जनकजू अरज करत हैं कुंवर कलेऊ होय मोरे लाल ॥ १५॥ कुंवर कलेऊ जवहि जु हुइ है हमरी नेग ल्याव मोरे लाल ॥ १६ ॥ हाथ जोरके अरज करत हैं हम क्या देवे सक मोरे लाल ॥१७॥तुम तो हौ राजन के राजा हमका देवे लायक मोरे लाल ॥ १८ ॥ गोवर को गुवरारीदीनी, पानीको पनिहारी मोरे लाल ॥ १९॥ झनझन भारी गंगाजल पानी कुंवर कलेवा होय मोरे लाल ॥ २०॥ सारी सराजे गारी गावें सारे लगावें पान मोरे लाल ॥ २१ ॥ बीड़ा चावत बाहिर निकसे पांवडी दई हैं लुकाय मोरे लाल ॥ २२॥ हमरी पांवडी कौने लुकाई हमको जल्दी बताव मोरे लाल ॥ २३ ॥ तुमरी जु कहिये ललिता सारी ताने दई हैं लुकाय मोरे लाल ॥ २४ ॥ पांवडी तुमरी जवही मिल है हमरौ नेग ल्याव Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोरे लाल ॥ २५॥ दहिने हाथकी पैंती उतारी ललि तै दइ पहिराय मोरे लाल ॥ २६ ॥ इस विधि कुंवर __कलेऊ करके डेरें पधारे राम मोरे लाल ॥ २७ ॥ (५६) (“ हां मोरे लाल" की चाल-हरसमय) चौबीसों जिन सज्जन आये सब मिल करत प्रणाम कि हां मोरे लाल ॥१॥ जीवनको मिजमानी लाये धारौ अन्तर मांझ कि हां मोरे लाल ॥२॥ ज्ञान दरश इक घोड़ा लाये समकित को असवार कि हां मोरे लाल ॥३॥ जिनवानी को चावुक लाये देखत ही उड़जाय कि हां मोरे लाल ॥४॥ उड़कर पंछी शिवपुर पहुंचे फिर नहिं श्रावन जान के हां मोरे लाल ॥५॥ अटल मूर्ति अवगाहन राजा नर त्रिय करत प्रणाम कि हां मोरेलाल ॥ ६॥ जो कुबुद्धि यह छोड़ सवारी नेरु तलें फिर जाय कि हां मोरे लाल ॥७॥राजू सातमें दुःख सहोगे भ्रमौ अनन्तौ काल कि हां मोरे लाल ॥ ८॥ वालचन्द यह अरज करत है पकरौ मेरी बांह कि हां मोरे लाल ॥९॥ जब लग भवको पार न पाऊं राखों नाम अधार कि हां मोरे लाल ॥१०॥ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३ (५७) (“ मोरे लाल" की चाल-हरसमय) कहना से तुम आये वारे हंसा कहना को तुम जाव मोरे लाल ॥१॥ अग्गम दिशासे आये मोरे हंसा पश्चिम दिशाको जॉय मोरे लाल ॥२॥ कहा संग ले आये वारे हंसा कहा संग लेजाव मोरे लाल ॥३॥ मुठी बांधके आये वारे हंसा हाथ पसारे जाव मोरे लाल ॥४॥ ऐसी करनी कर चलो हंसा फेर न जगमें श्राव मोरे लाल ॥५॥ लाल विनोदी अरज करत है मनुष जनम फल पाव मोरे लाल ॥६॥ (५८) ("मोरे लाल" की चाल-विवाहमें) धन २ होवे रजमत बेटी जिनवरसे वर पाये मोरे लाल ॥ टेक ॥ सजी बरातें प्राइँ झूनागढ सुर नर खग हरषाये मोरे लाल ॥१॥ छप्पन कोट संग यदुवंशी चतुरंग सेना लाये मोरे लाल ॥ २॥ एरावतपर सोहें प्रभूजी माथे मुकुट सुहाय मोरे लाल ॥ ३ ॥ कानन कुंडल हाथन चूरा सोहै रतन जड़ाउ मोरे लाल ॥४॥ कंठ सिरी दुलरी छवि छाजे मोतिन माल सुहाइ मोरे लाल ॥५॥ कर कंकण की शोभा न्यारी पायन मोजे जराव मोरे लाल ॥६॥ कटि किंकणि करधौनी सोहै Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मानौं दामिनि दमकै मोरे लाल ॥७॥ पहिरें पीत कुसुंभी वागौ फेंटा जरकस सोहै मोरे लाल ॥८॥सुरपति हाथ चमर शिर ढोरें माथे छन विराजे मोरे लाल ॥९॥ भेरि मृदंग बीन सहनाई बाजे बजत सुहाये मोरे लाल ॥ १०॥ सुर किन्नर मिल गान करत हैं देख अप्सरा नाचे मोरे लाल ॥ ११ ॥ देखत सव नरनारि नगरके विहस विहँस हरषाय मोरे लाल ॥ १२॥ सहस नेत्र करि सुरपति निरखत जनम सफल करपाये मोरे लाल ॥ १३ ॥ याचन्द वन्दत कर जोरे चरणन शीस नवाय मोरे लाल ॥१४॥ (५९) ("मोरे लाल'की चाल-विवाहमें) सजना हो मोरी शील चुनरिया प्यारी सुरंग रंगीली लाल ॥ लै दीनी सतगुरु ने हमको कौन कौन गुन कहिये मोरे लाल ॥ टेक॥ वा चुनरी की शोभा देखो तीन लोकमें महिमा लाल ॥ सुरनर नाग लोकको देखै शील चुनरिया ऐसी मोरे लाल ॥ लैदीनी सतगुरुने-॥१॥ जा चुनरी सीताने प्रोढ़ी अग्नि कुंड जल होगयौ लाल॥ सोमा सती चुनरिया श्रोढी फणिकी माल भई मोरे लाल-॥२॥ कौरवसभा बीच रहि लज्जा सती द्रौपदी अोढ़ी लाल ॥ श्रीपालकी मैना सुन्दर देवसहाई कीनी Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोरे लाल ॥ ३ ॥ सती अंजना निर्जन बनमें सिंघ आय जय घेरी लाल ॥ देव सहाय भये इक छिनमें अष्टापद तन धारे मोरे लाल ॥४॥ पावक तें जल होय क्षणक में फन से माला होवे लाल | सागरसे थल होवे ज्ञानी सिंघ स्याल सम होवे मोरे लाल ॥ ५ ॥ धन २ भाग सुहाग मनोहर नरतन जनम सफल भयो लाल ॥ शील सिंगार विना सव निर्फल दयाचंद धारौ मोरे लाल ॥६॥ ("वाजे नेवरा घने की चाल-विवाहमें) आज अनन्द वधाये तो वाजें नेवरा घने ॥देख समद विजयजूके लाल तो बाजे नेवरा घने ॥ टेक ॥ व्याहन झूनागढ़ आये तो वाजें नेवरा घने । सिवदिव्याके परम अधार तो वाजे नेवरा घने ॥१॥ साजे कृष्ण मुरारि तो वाजें नेवरा घने ॥ सव साजेसुर खग इन्द्र तो वाजें नेवरा घने ॥ २॥ जादों नृप सब साजियो बाजें नेवरा घने ॥ हय गय रथ असवार तो वाजें नेवरा घने ॥३॥ गीत किन्नरी गावें तो वाजें नेवरा घने ॥ अपचरा नचत बधाई तो वाजें नेवरा घने ॥४॥सव सज्जन मिल आइयौ वाजें नेवरा धने ॥ श्रीउग्रसैन दरवार तो वाजे नेवरा घने ॥५॥ देख परम सुख पाइयौ वाजें नेवरा Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घने ॥ ऐसे श्रीजिन दीनदयाल तो वाजें नेवरा घने ॥६॥ कंचन कलश भराइयौ वाजें नेवरा घने ॥ पठये श्रीकृष्णजीके वाग तो वाजें नेवरा घने ॥७॥ भई रसोई वागमें वाजें नेवरा घने । स्वामी सव जीमी जिंवनार तो बातें नेवरा घने ॥ ८॥ भई है सांझ की वेरा तो वाजें नेवरा घने ॥ चाले उग्रसैनजीके द्वार तो वाजें नेवरा घने ॥९॥ हय गज रथ पायक सजे वाजें नेवरा घने ॥ जहां बाजे बजे हैं अपार तो वाजें नेवरा घने ॥१०॥ कलश वन्दना भई तौ वाजें नेवरा घने ॥ गावें सखि मंगलचार तो वाजें नेवरा घने ॥ ११॥ टीका कीन्हों है राय तो वाजे नेवरा घने ॥ पशुजीवन करी है पुकार तो वाजें नेवरा घने ॥१२॥ प्रभु दीनानाथ दयाल तो वाजें नेवरा घने तब पूंछियौ नेम कुमार तो वाजें नेवरा घने ॥१३॥ काहे को ये पशु अान घिराये तो वाजें नेवरा घने । तव अरज सारथी यों करी वाजें नेवरा घने ॥ १४ ॥ जे सव जिउ घाते जांय तो वाजें नेवरा घने ॥ जिननायसे करी है पुकार तो वाजें नेवरा घने ॥ १५ ॥ धृग २ है यह काज तो बाजे नेवरा घने॥बहु जीवन होय अकाज तो वाजें नेवरा घने॥१६॥ छांडो २ पशुनकी बंध तो वा नेवरा घने ॥ पर हम जावें गिरनार तो वाजें नेवरा घने ॥१७॥ तव उग्रसैन कर जोड़ियौ वाजें नेवरा घने ।। Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७ छोडौं छोड़ों में इनकी बंध तौ वाजें नेवरा घने॥१८॥तुम होमभु दीन दयाल तो बाजे नेवरा घने ।। तुम मत जाओ गिरनारतोया नेवरा घने ॥१९॥ तव प्रभुजीने यों भाखियो बाजें नेवरा घने ॥ या जगको अथिर स्वभाव तो वाजें नेवरा घने ॥ २०॥ प्रभु मन उपजौ वैराग तो वाजें नेवरा घने । अव आगयौ तप को जोग तो वाजें नेवरा घने ॥ २१ ॥ दयाचन्द विनती करें वाजें नेवरा घने ।। मेरी काटौ करम जंजीर तो वाजें नेवरा घने ॥ २२ ॥ ("वाजें नेवरा धने" की चाल-विवाहमें) चेतन राय कुमति निकारियौ वाजें नेवरा धनें । अरु घर तें दई है निकार तौ वाजें नेवरा घने ॥टेका। चारहि गति कुमती फिरे चाजे नेवरा धने । ताकी कोऊ न पूंछे चात तो वाजें नेवरा घने ।।१।। तब मन चंचल यों चिन्तवै बाजे नेवरा घने । अब कुमति न मो दिगाव तो वाजें नेवरा घने ॥२॥ यो कुमति नारि को त्यागियौ वाजे नेवरा घने ॥ वो तो दुर्गति को लेजाय तो बाजें नेवरा घने ॥३॥ सुमति नारि को सँग गही बाजें नेवरा घने।वाती सुरगन को लेजाय तो बाज नेवरा घने ॥४॥ यो गिरवरदास अरज कर वाजें नेवरा घने।कोई कुमति न धारौ भूल तौ वाजें नेवरा घने ॥५॥ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६२) ("टांडौ लाधे जोवन जरवा" की चाल-विवाहमें ) टांडौ लाधैं जोवन जरवा ॥ टाडौ लाधे जोवन जरवा ॥ टेक ॥ पूरव लाधे पश्चिम लाधे, लाधे दखिन उतरवा।। ऊरध लाधे नीचे लाधे, लाधे मध्यम पुरवा ॥१॥ थावर लाधे जंगम लाधे, लाघे त्रस अरु धरवा ।। विकल सकल दोऊ हम लाधे जनम मरण हम करवा ॥२॥ नर्क ति येच मनुज सुरमें हम गति चारों दुख भरवा ॥ पंच प. रावर्तन हम भटके पंच मिथ्यात्व सहरवा ॥३॥ शतकतीन तेतालिस राजू संपूरन क्षिति भरवा ॥बहु विधि विषय कषाय भजो हम सो किमि जात उचरवा ॥४॥ हम पापी पापन के भाजन सोही करत सपरवां ॥ ताते चेतन अब सुनलीजे धीरज धर्म नजरवां ॥५॥ अनुकंपा षट काय सभी पर धारो धर्म मिहरवाँ ॥ या व्रत सेती बहुतक तिरगये जिन धारे दुख हरवा ॥ ६॥ तातें भूल करहु जनि भाई यह औसर है तरवा ॥ गिरवर दास भायजी गावत नगर चंदेरी परवा ॥७॥ (६३) ("हां कि ना रे” की चाल-हरसमय) हां कि ना रे, खोटे काम करौ मत भाई। टेक।। परजिय घात करौ मति कोई हां कि ना रे ॥ परदुख तें Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आपों दुख होई ॥१॥ झूठी बात कहन की नाहीं हां किनारे ।। झूठ कूट ते दुर्गति जाई ॥ २ ॥ परचोरी नरकन की दाता हांकिनारे॥याकों छोड़ लही सुख साता ॥३॥ पापन की जड़ है परदारा हां किनारे।।दूर करौ ऐसो भ्रम भारा ॥४॥ परिग्रह तृष्णा अति दुख दाई हां किनारे ॥याको तजे लहै सुख थाई॥५॥ पंच पाप बहु दुख के दाता हां कि ना रे॥ बहु प्रकार भ्रम करे अ. साता ॥६॥ सात व्यसन सातों नरकाना, हां कि नारे॥ अधिक हरामी गति भरमाना ॥७॥ परनिन्दा नहिं भूल करीजे हां कि ना रे ।। पर चुगली कबहूं नहिं कीजे॥८॥ आप बडाई करहु मति भाई, हां किनारे॥कटुक वचन बोले नहिं जाई॥९॥ मीठी वानी सब से बोलो, हां कि ना रे ॥ परगट जगम आपा खोलौ ॥१०॥ समता भाव धरौ उर मेरा, हांकि नारे। जिनवर भक्ति करौ हो चेरा ॥११॥ विकथा चार तजौ दुखकारी, हां कि नारे॥ चारों कथा करौ हो चारी ॥ १२ ॥ धरि सन्तोष लोभ परिहारी, हांकिनारे॥गिरवर दास होय भवपारी॥१३॥ (६४) ("रसिया" विवाहमें) ऐसे नेमीश्वर रसिया विरसिया मुक्ति वधू मन व सिया, जल्दी सों मुक्ति वधू मन वसिया ॥ टेक ॥ जी Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वन ऊपर करुणा करी है तज नारी गिर वसिया, जल्दी सो मुक्ति वधू मन वसिया ॥१॥ शील शिरोमणि रतन जगत में दया दान नित करिया, जल्दी सों मुक्ति बधू मन वसिया ॥२॥ पट कायन की दया करे ते जय२ देव उचरिया, जल्दी सो मुक्ति वधू मन बसिया ॥३॥ बालचन्द जिन दया न पाली गत चारों दुख सहिया जल्दी सों मुक्ति वधू मन वसिया ॥४॥ जिन जीवन ने द्या करी है नेम प्रभू गह चहियां, जल्दी सी मुक्ति बधू मन वसिया ॥५॥ ("रसिया" विवाहमें) जानर देही तुमने पाय लई हो जन्म सुफल करलेव मोरे रसिया ॥ टेक ॥ ऐसी विधि से दान दीजिये हो आवागमन मिटजाय मोरे रसिया ॥१॥ पंच अनुव्रत तीन गुणाव्रत धारौ जातें धरम हिय वसिया ॥२॥ चौ शिक्षाबत पालियौ मुक्ति वधू से प्रीति मोरे रसिया ॥३॥ दुर्द्धर तप व्रत पालियौ मुनि तेरह विधि चारित मोरे रसिया ॥ घट बढ दस्कत जानियौ हो गिरवर शोध लेव मोरे रसिया ॥५॥ ("आसों के साहुन सैंया घर रहौ की चाल" श्रावण) बाल पनै प्रक्षु घर रहौ अरे नेमनाथ जिनराय, बाल Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पने ममु घर रही ।।टेक॥ समुद्र विजय नृप तातजी शिव देवी तुम्हारी माय, ॥ छप्पन कोटी यादवासय और पि. भव अधिकाय, यालपने प्रच-॥१॥ गजकुमार हरि पति किसन पुनि हलघर से है भाय, || राज मती प्रमुखी सती हैं इत्यादिक सुखदाय, यालपने प्रहः॥ २॥ इन को तजि प क्यों भजी शेपावन (सहस्राम्र यन )में जाय, ॥ गिरनारी शिवपति चरण तहां बन्दे गिरवर जाय, बालपने प्रभु घर रही हो नेमनाथ जिनराय॥३॥ (दादरा हरसमय) नेम विन नहीं रही दिन रैन घटी पल याम ॥ टेक॥ भोजन पान नहान, जे रस गंध विलेपन जान नीत नि. रत ताम्बूल जे मैथुन पुनि वस्तु प्रमान ॥ टेक ॥ १॥ श्राभूपए वाहन गमन सेज्यासन सचिन पग्वान ॥ इहि विधि सत्रह नेम जे धारी नित हिन कल्याण ॥२॥ हिंसा झूठ कुशील चोरि तज परिग्रह की परमान ।। दि. गनत देश अनथे जु घारी मन यच तन कर मान || ॥ सामायिक प्रोषध करो दाई भोगन संख्या ठान ।। - तिथि संविभागकरी जे यारह व्रत महान ॥ ४॥ पृथ्वी जल श्रम अनिल सु पुनि पवन वनस्पति काय ॥ थायर पंचन घातिये इन घातें पाप पंवाय या प्रम काया को Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दाल के सब जीव समान लखान ।। चौदह उन्निस और सतावन अबाउनवै मान ॥ ६॥ जीव द्या नित कीजिये जो सार धर्म का चिन्ह ।। धर्म करता जीव जो पावे प द्वी अजघन्य।॥ ७॥ इहि विधि दिन प्रति घारियो क्रिया व्रत नेम महान ॥ गिरवर चंदीपुर नमो चोवीसी अनुपम थान ॥५॥ (६८) (दादरा-हरसमय) सिडन को शीस नमाऊं, सदा जिनके गुण गाऊं ।। टेक ॥ लोक शिखर के शीश विराजे तिनको ध्यान लगाऊं ॥ अजर अमर नितही अविनाशी चिन्मूरत मन लाऊं ॥१॥ सम्यक् दर्शन ज्ञान अगुरु लघु ने आठों गुन गाऊं ॥ दयाचन्द तिन चरण कमल को हियरा मांझ मडाऊं ॥२॥ (६९) (दादरा-हरसमय) नरभव रतन गमाया, धरम को भेदई न पाया टेका। निशदिन भूल रहे विषयन में ज्यो तरवर की छाया ।। कुगुरु कुदेव करी बहु सेवा विरथा काल गमाया ॥१॥ जिनवाणी निजकान सुनीना हिरदं ज्ञान न पाया। दयाचन्द जिन मत सेये विन जग का पार न पाया ॥२॥ Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७०) (दादरा-हरसमय) निश भोजन दुख दाई, तजीमन वच तन भाईटिका। निश के मांहि रसोद्द करत ही जीव मरें अधिकाई ।। जोर धुंवा को अगनि की ज्वाला गिनती कौन यताई ॥१॥ एक दिया में जीव असंखे देखत ही मरजाई ।। टयाचन्द भोजन के माही जीव गिरें अधिकाई ॥२॥ (दादरा-हरममय) श्री वामा जू के प्यारे ॥ हमें गिनियों नहिं न्यारे ॥ टेक ॥ अंजन चोर महा अघ करना क्षणमें पार इ. तारे॥ गौतम विज मिथ्यान दर कर गणधर पद दातारे ॥ १ ॥ शूकर सिंह नकुल अफ चांद्र श्रीगुण नाहिं गिचारे।। दद्याचन्द चरणन को चरी ही तुम तारन होगा। (दादरा-हरममय) धरम धन जोडियो मारी गुढ़याँ, जगन मुग्य मादिगा मोरी गुइँया ॥ टेक ॥ के मोरी गुदया हिंसा को करी ए. रिहार दया जीव पालियो मारी गुइयां ॥ १॥ मार्ग गुइयां चोरी बड़ी दृग्व ग्वोरी राज दुग्न दयरी मारी गु. ईया ॥२॥ के मोरी गुइयां ही बड़ीही म्बाटी मांग Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ हिय धारौरी मोरी गुंध्यां ॥३॥कै मोरी गुंइयां धन, कन, पशुव घटाव महा अघ मूल हैं मोरी गुंइयां ॥४॥ कै मोरी गुइयां शील रतन अनमोला सदा हिय धारियो मोरी गुंइयां ॥५॥ कै मोरी गुंइयां दयाचन्द गह लीजे अनोव्रत पांच जे मोरी गुईयां ॥६॥ (७३) (दादरा-हरसमय) जगत सब झूठौरी मोरी गुंइयां ॥ धरम धन मोटौरी मोरी गुइयां ॥ टेक ॥ कै मोरी गुंइयां झूठी कुटुम परवार सोनो अरु चांदीरी मोरी गुंइयां ॥१॥ कै मोरी गुंइयां स्वारथ को संसार स₹ कोई पूंछे ना मोरी गुंइयां ॥२॥ कै मोरी गुंइयां थोडीसी नर परजाय पाप नहिं बांधिये मोरी गुंइयां ॥३॥ कै मोरी गुंइयां जग दुख मेरु समान सुक्ख जैसे राइ है मोरी गुंइयां ॥४॥कैमोरी गुंइयां सुनिये कथा पुराण धरम नित पालिये मोरी गुंइयां ॥५॥ (७४) (दादरा-हरसमय) जातन लगी सोई जाने दूसरा क्या जाने भाई॥टेक॥ दादुर पंखुडी लैचलौ जिन पूजन मनलाई ॥ गज पुनि चरण परौ ता ऊपर सुरग देव भयौ जाई ॥ दूसरा क्या जाने भाई ॥१॥ श्रीपाल की देह गलित भई कुष्ट व्याधि Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५ दुखदाई ॥ श्री चरणोदक अंग लगायौ कंचन देह बनाई || दूसरा क्या जाने भाई ॥ २ ॥ सीता शील ध्यान निस वासर प्रभु चरणन लौंलाई ॥ जब ही अग्नि कुंड में परियौ सागर नीर बहाई ॥ दूसरा क्या जाने भाई ॥ ३ ॥ कहत खुमान लाज रह मेरी तुम त्रिभुवन के राई | अष्ट करम रिपु पिंड गहौ है तासें लेहु बुडाई ॥ दूसरा क्या जाने भाई ॥ ४ ॥ ( ७५) ( दादरा - हरसमय ) मोरी तो मन मोरौ साखी गढ़ गिरनारवे ॥ होरी मैं खेलन जैहों जहां मुनिराज ॥ टेक ॥ मुक्त रमन में मोरो साखी मचरहै ख्यालवे || चंदनकी पिचकारी छूटे ज्ञान गुलाल ॥ १ ॥ दशलक्षण कौ बागौ पहिने श्री मुनिराज ॥ रत्नत्रय की माला पहिनें तप को करें प्रकाशवे ॥ २ ॥ श्रदीश्वर से करों बीनती जोरों दोई हाथ वे ॥ मोरौ तो मन मोरौ साखी गढ गिरनारवे ॥ ३ ॥ ( ७६ ) ( दादरा - हरसमय ) मत वरजौ मोरी माई हमको गिरनारी को जाने दो, मत छेड़ो मोरी ॥ टेक ॥ बाजत ताल मृदंग मधुरि ध्वनि अलगोजा सन्नाई, अरी मा अलगोजा सन्नाई ॥ १ ॥ सम Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वशरण सब देवन रचियौ रतनन जड़े जडाई, अरी मा रतनन जड़े जडाई ॥२॥ अाठ दरव लै पूजा कीन्ही मन बांछित फलदाई, अरीमा मन वांछित फलदाई॥३॥ आपुनि जाय चढे गिरनारी सुधि मेरी विसराई, अरी मा सुधि मेरी विसराई ॥४॥ (७७) (दादरा-हरसमय) अरी तुम कौन हो प्यारी, फुलवा बीनन हारी ॥ टेक ॥ काहे को तारो बनौ बगीचौ काहे की है फुलवारी ॥१॥ रतन जड़त को बनौ बगीचौ फूल रही फुलवारी ॥२॥ समुद् विजय जी ससुर हमारे उग्रसैन धिय प्यारी ॥ ३ ॥ नेमनाथ जी पती हमारे हम हैं राजुलनारी ॥४॥ इतै द्वारका इत भूनागढ़ मध्य शिखर गिरनारी ॥५॥ गिरवर अरज करत प्रभुजी से तारौ मोहि भव तारी॥६॥ (७८) (दादरा-हरसमय) सकल सुख केरा,सुनिये प्राणी सकल सुख केरा ॥ टेक॥ सात तत्व नव पद षट कायिक जीव और बहुतेरा ॥ सुनिये प्राणी०॥१॥थावर पंच एक त्रस ऊपर धारी दद्या सवेरा, सुनिये प्राणी०॥२॥ विकलत्रय दो, तीन, चौइन्दी तिनको कर निरवेरा, सुनिये प्राणी ॥ ३॥ सैनी Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ और असनी दूजे लग्ना भान भरि जीरा, मुनिये प्राणी. ॥४॥ नरक गती सातों नरकाना पापननी या वेरा, सुनिये प्राणी ॥५॥छेदन मेदन शुलारोपन गंत्र मंज कंटेरा,सनिय प्राणी ॥ वहरि नियंच योनि के मांडी दुग्व सहे यहुनेरा, सुनिये प्राणी ॥ ७ ॥ इनर निगोद नित्य के भीतर काल अनन्त यमेरा, सुनिय प्राणी ॥ ८॥ मनुप मलेच्छ नीच गृहन में चांडालादि चनंग, मुनिये प्राणी ॥९॥ गिरवर या विधि भवमें भटक अब ह चेत मवेरा, सुनिये प्राणी ॥ १० ॥ (दादरा-हरनमय) सुनलो घात हमारी. जा भव नारनहारी ॥ टेक ॥ जा भव माग्न करम निवारन भारत तृष्णा मारी || पारन रौद्र कुध्यान पाठ विधि ने भय २ इन्च कारी ॥१॥ हरी नरी (बदनसी) मद भरी वानरें नकन पराई नारी ॥ मृढमती अज गृढ परपनी विनय जगन उरधारी ॥२॥ इन्हें तजी जिनदेव भजी भयि मी उदर घटारी ।।रात्रि यहार करी न घरी पर उप! यन सँभारी ॥ ३ ॥ धरि सन्नोप ढको पर दापन पापा घरम पिहारी॥रागडेप मद मोह लाम इल पदपण तज भारी ॥४॥ धरि दश लक्षण नप दादरा फर वाइन Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ परीषह सारी ॥ धरौ चरित तेरह विधि नीकें गिरवर वर शिवनारी ॥ ५ ॥ ( ८० ) ( गीत - वंदना के समय ) इक अरज सुनौ महाराज हमारे दुखित करम दूरी करौ ॥ टेक ॥ अरे हांहो कि प्रभुजी आठ करम दुखदाइया ते करावत भ्रमण अपार, हमारे दुखित करम दूरी करौ ॥ १ ॥ अरे हांहो कि प्रभुजी ज्ञानावरणी छाइयो तिन प्रकृति पंच परकार, हमारे० ॥ २ ॥ अरे हांहो कि प्रभुजी दर्शन आवरणी अबै नव भेद न दर्श कराय, हमारे० ॥ ३ ॥ अरे हांहो कि प्रभुजी, करम वेदी दो कही सिधार पयूष समान, हमारे० ॥ ४ ॥ अरे हांहो कि प्रभुजी मोह करम वारुणि समा सो खपर रूप आछाद, हमारे० ॥ ५ ॥ अरे हांहो कि प्रभुजी, श्रायु चार गति के विषै जा भरमावत अति क्रूर, हमारे ०||६|| अरे हांहो कि प्रभुजी नाम तिराएवे दुखभरी बहु नाम धराये मोह, हमारे० ॥ ७ ॥ अरे हांहो कि प्रभुजी करम गोत्र घर कृति समा जिमि ऊंच नीच जगमांहि, हमारे ॥ ८ ॥ अरे हांहो कि प्रभुजी अन्तराय पन विधि कहा "सब कार्य करै अन्तराय, हमारे० ॥ ९ ॥ अरे हांहो कि प्रभुजी ये वसु रिपु दूरी करौ मम पूरौ कीजे ज्ञान, Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हमारे० ॥१०॥ अरे हांहा कि प्रभुजी श्राप अनेक मुगुन भरे, सोदीजे मैं धारो दाम, हमारे॥ ११ ॥ यर हाहो कि प्रभुजी पद पंकज सेवा मिले भव २ तुम संगति पाय, हमारे॥ १२ ।। अरे हांहा कि प्रभुजी अप करणा करके प्रभू मुझे दीजे यातम ज्ञान, हमारे ॥ १॥ अरे हांहो कि प्रभुजी श्राप तरी पर तारह हो, अय गिरवर को देव तार, हमार०॥ १४॥ (८१) (गीत-गाख नभाम) अय के हो भजलो भगवान फिर पीछ पछतायोगे ।। ॥ टंक ॥ अरे करह जाय निगोद बसे थे पंच गोल नहां दुख की थान ॥ कयह जाय नरक गति पहुंचे मात व्यसन के कर्ता जान ॥ १॥ यंर छेदन भदन शलाराहन पेलन यंत्र करॉनन यान ।। कुंभीपाक वैतरणी ग्वारी घंटाकार असिपत्र प्रमाए ।॥ २॥ अरे मज कंटकी लाल पृतली रांग गाल टाल मुग्वतान। ऊंट ग्रीय मुख आकृति यानी उछलन तड़फन चीरन थान |॥३॥ थर नारक जीव परस्पर मार असुर कृमार मिटा श्रान || नायक दुग्व की खयर तहां ही यहां तो मंतिम फहानाया अरे कयह जाय कुटिल भावन में पाई हो नियंग टर वान ।। भय थहार परिग्रह मधुन ये मंशा चारो मर Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कान ॥५॥ अरे कबहूं जाय सुरग पद् पायौ मानसीक दुख को घमसान ॥ कवहूं अबला को तन धारौ जहां कपट छल की है खान ॥ ६॥ अरे कवहूं जाय मलेक्षखंड में उपजै तहां महा अज्ञान ॥ कयह मानी रागी द्वेषी माया अहंकार दुखखान ॥७॥ अरे अव के नर तन उत्तम पायौ उत्तम कुल प्रारब्ध महान ॥ तातें गिरवर कहत चंदेरी भजलो हो श्री जिन भगवान ॥८॥ (८२) गीत (वन्दना के समय) भजलै श्री जिनवरजी की बानी, वानी के सुनतन करम नशानी कि पावे सुरग अमानी,कि भजलेनाटेकोचतुरयोग जिनवरजी ने भाषे चार कथा सुखदानी ग्यारह अंग पूर्व चौदह युत चौदह वाहिज थानी, कि भजलै०॥१॥ जिनवाणी से गती सुधरगई नाग नागिनी सानी ॥भूपति तो यमदंड हुप्रो इक तिनधारी जिनवानी, कि भजलै० ॥२॥ जिनने मन वच तन कर धारी पाई अविचल रानी ॥ जिनवानी गज कपि अज धारी पहुंचे वर्ग विमानी, कि भजलै० ॥३॥ जिनवाणी नृप शेखर फणपति परम प्रीति उर पानी ॥ जिनवानी इक ग्वाल जीव धरि वरी महा शिवरानी, कि भजलै०॥४॥ जिनवाणी धारे विन भविजन गति चारों भरमानी ॥ जो जिनवानी धारै उर में Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पावै शीतल पानी, कि भजलै०॥५॥ जिनवच अमृत पान, करे तेंपावे अनुपम थानी ॥ समकित ज्ञान चरण धारण करि वरै शीघ्र शिवरानी, कि भजलै०॥६॥ तातें अब जिन वर वचनामृत पान करौ भविप्राणी ॥ गिरवर सो यांचतप्रभुजीसे दीजे मोक्ष निशानी,कि भजलै०॥७॥ (गीत-हरसमय) मैं तोसों पूंछौं शीलसहुद्रा कौन २ व्रत पाले जी ।। शील को पाल कुशील को त्यागौ तप में मेरो मन लागौजी॥१॥ मैं तोसों पूंछौं पन्नाजु बाई कौन २ तीरथ बन्देजी॥ शिखर जी बन्दे सोनागिर वन्दे गिरनारी में मोरो मन लागौ जी ।। २ ।। मैं तोसों पूंछौ गेंदीजु बाई कौन २ शास्तर भ्यासे जी || नाटक जी भ्यासे पद्म पुराण अभ्यासे गोमटसार में मेरी मन लागौ जी॥३॥ कार्तिक सुदी पूनम के दिन यह ऊधौ गारी गाई जी ।। गारी जु गाई पढ़के सुनाई सब जीवों मन भाई जी ॥४॥ (गीत-हरसमय) इक तप को बंगला बुवायो झरोखा विरतन को ॥टेक ॥ इक तप को दियला लिसानो तो तेल बरै आठौं करमन कौ॥ इक तप की सेज विछाव दुलीचा Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संजम कौ ॥१॥ येतौ सुमति कुमति दोइ साथ पलँग पर पौढ़ गई ॥ छोड़ो २ जी कुमति मोरौ साथ तो तोसें मैं दूरई भली ॥२॥ चलौ चलौ जी गुरुन के पास तो हमरीतुमरी न्याव चुके ॥ ऐसी भई दोइ की तकरार तो गुरुजी के पास चली ॥३॥ विच मिलगये श्री मुनिराज तो हाथ में विवेक की छड़ी ॥ करदे २ गुरुजी मोरौ न्याव कुमति से दूर ही भली ॥ ४ ॥ तव गुरुजी कुमति करी दूर सुमति को संग लई ॥ कहें देवीदास विचार सुमति मोहि होहु सही ॥५॥ गीत (शास्त्रजीके वक्त) सनलो अब श्रावक तनों व्रत नेम महाना ॥ टेक॥ सात व्यसन पण पाप को तजियो दिलजाना ।। चार कषाय कलंक को छोड़ो दुखदाना ॥१॥ अविरत योग वशी करौ मिथ्यात्व नशाना ॥ पंद्रह जे परमाद हैं छोड़ी अलसाना ।।२॥ वस्तु अभक्ष्य न खाइयेगुनमूल प्रमाना। सकल दोष समकित तने तजिये वसु माना ॥३॥ विकथा अाश्रव जे बुरे षट रिपु छुड़काना ॥ तेरह कॉठीवार जे तिन मारौ वाना ॥४॥ बारह व्रत तप भावना दश धर्म महाना ॥ रत्नत्रय सोलह तथा चौभाव सुमाना ॥५॥ तेतिस अर्थ सुतत्व हैं सत्तावीस वखाना ॥ त्रेसठ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३ गुण छत्तीस गुण धारौ समताना ॥ ६॥ सत्रह नेम धरौ सदा सातो असनाना ॥ सात मौन धारौ सवै नव गो परखाना ॥ ७॥ पाठ ध्यान खोटे तजौ धारौ शुभ ध्याना॥ किरिया तीन तिरेपना धारौ मन दाना ।। ८॥ लाज आठ जागा नहीं कीजे भवि प्राना ॥ छह परिवतेन लाइयो षट् धरौ सयाना ॥९॥ पट् काया मन छेडियो तजि आच्छादाना ॥ वसु विधि श्री जिन पूजियो पावी वसु थाना ॥१०॥ मीठी वाणी बोलिये जीवन हित छानामत्सर ममता छोड़िये होवे कल्याणा ॥११॥ औषधि शास्त्र अभय तथा आहार सुदाना।। द्वारापेक्षण कीजिये विधि द्रव्य समाना ॥ १२ ॥ मिथ्या परणति परिहरौ पदलो गुणठाणा || राना रावल रंकिया सव करम बसाना ॥ १३ ॥ अपनी २ गरज के सारे दुनियाना ॥ तुम पर शल्य निवार के भजलो भगवाना ॥१४॥ किरिया से भोजन करौ पीवी जलछाना ॥ निशदिन ज्ञान विरागसों परखी निजध्याना ॥ १५॥रागद्वेष विषया सबै जु कषाय न भाना ॥ निन्हव गौरव छांडदो माडौ क्षपकाना ॥ १६॥ एक द्वितिय पण तीन हैं अठवीस जु ज्ञाना । छयालिस वसु पद तीसपन विस नमत सयाना ॥ १७॥ चांदी पुर बदली तनुज गिरवर मति. माना ।। विनवत है करजोर के दीजे शुभ थाना ॥१८॥ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ (गीत-गास्त्र समय) अपनौ रूप निहारियौ भला चेतन प्यारे ।। तुम तो चारों गुणभरे त्रिभुवन पति वारे ॥ टेक ॥क्रोध कपट छल लोभ जे पुद्गल परजारे ॥ विपय कपाय दुखी महा तुमसे सव न्यारे ॥१॥ सांख्यमती, शिव, मस्करी क्षणकी वटपारे । बौधमती मासानियां जे पट मत वारे ॥२॥ अपनी २ सिर करें दुर्गति दातारे ॥ एक जैनमत एन है शिव सुख करतारे ॥ ३॥ वपुसंसार असार जे दुख सुख पतियारे॥पूरण गलन स्वभाव तन जग अधिर लखारे॥४॥ सब जग भीतर जानिये घट देखनहारे ॥ इक चेतन सब ऊपरै निश्चय व्यवहारे ॥५॥ खोटा २ सब कहें कोई खोटा ना रे ॥ गिरवर है खोटा महा कर जीव दयारे ॥६॥ (८७) (गीत-हरसमय) मैं तो कैसी करूं कहां जाऊं मोरी गुइयां (सखी) सो पिया तो गये गिरनारी को ॥ टेक ॥ व्याहन आये निशान घुमाये करी वरात तयारी को. मैं तो०॥१॥ छल इक भयौ हरि पशु घिरवाये उन तप लीन्हों ब्रह्मचारी को. मैं तो॥२॥ पिय सँग जाय तपस्या लीनी उग्रसैन Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ की कुंवारी को. मैं तो॥३॥ नेम प्रभू अद्भुत शिव पायौ अच्युत राजुल नारी को. मैं तो०॥४॥ गिरनारी पर तीन कल्याणक वन्दौं वारंवारी को.मैं तो०॥५॥ गिरवर अरज करत जिनवर से दीजे मोन अपारीको. मैं तो कैसी कर कहां जाऊं मोरीगुइयांपिया तोगये गिरनारीको॥६॥ (८८) (गीत-हरसमय) वनज नहीं व्यापार नहीं चेतनराय काहे को याये, अरे भाई काहे को आये ॥ टेक ॥ मुमति झुमति की न्याव लगी है सो तो न्याय निवेरन पाये, अरे भाई न्याव निवरन ग्राये ॥ १॥ जाय उतारी है समकित वजार में सो सब कोई देग्वन पाये, अरे भाई सब कोई देखन पाये ॥२॥ कुमति नारि को कोउ न पूंछ सो सुमति की राह गहाये, अरे भाई सुमति की राह गहाये ॥३॥ कुमति नारि को तजी दूर ते मुमति सखी उर लाये, अरे भाई सुमति सखी उरलाये ॥४॥ कुमति नारि को संग दुरीहै चढंगति में भरमाये, अरे भाई चढंगति में भरमाये ॥५॥ सुमति सुहागिन कंठ लगाओ सुरग मुकति लेजाये, अरे भाई सुरग मुकति लेजाये ॥६॥ सतगुरु सीख हृदय में धरके सो लाल विनोदीने गाये, अरे भाई लाल विनोदीने गाये ॥७॥ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ (८९) गीत ( वन्दना के समय) हरष उर धारके श्री शिखर सम्मेद निहार, हरप उर धारके ॥ टेक ॥ प्रथम सौनागिरि चन्दके जहां नंगानंग कुमार ॥ तहां तें लश्कर वन्दनों रेअतिशय शोभासार, हरष उर धारिके ॥१॥ बहुरि आगरा वन्दि के मथुरा पुर पहुंचे सार । जंवू स्वामी शिव गये चौरासी थान विचार, हरष उर धारिके ॥ २॥ और कानपूर बन्दिये चैत्यालय भवन सुढार ॥ लखनौ बन्दों भाव सों पुनि रत्नपुरी नमि सार, हरष - उर०॥३॥ नगर अयोध्या श्रावस्ती किहकंधा पुरी सँभार ॥ तहां तें गोरखपुर विष पुनि छवड़ा अतिशय सार, हरष उर०॥ ४ ॥ पुनि पोद्नपुर वन्दिये उर चम्पापुर पुनि धार ॥ भागलपुर तें प्रायके ग्रेडी टेशन जिनगार, हरप उर० ॥५॥ नदी बड़ाकर बन्दिये श्री वीर नमौं गुणकार | शिखर समेद नमी प्रभू मोहि भवद्धि पार उतार, हरष उर० ॥६॥ मुनिवर शिवपुर थल गये जहां संखासंख चितार ॥ जिनवन्दन जिन ने करी तिन कीन्हों भव दुख छार, हरष उर०॥७॥ पुनि प्रदक्षिणा देय के जनमादिक मरण विडार ॥ बहुविधि भक्ति करीजिये तह हे प्रभु जी मोहि तार, हरष उर०॥८॥ तहां ते कलकत्ता गये Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुनि जाय पुरा वख्तयार ॥ पावापुर कुन्दनपुरी फिर गुना जी और विहार, हरप उर० ॥९॥ पंच पहाड़ी वन्दिये श्री राजग्रही मन धार ।। विपुलाचल, सोना गिरी इत्यादिक आनँद कार, हरप उर०॥ १० ।। बहुरि नगर पारा नमों अट्टाविस भवन निहार ।। काशी भेलू पुर विषं पुनि पुरी भदैनी त्यार, हरप उर० ॥ ११ ॥ सिंघपुरी चन्दापुरी सकटावन प्राग विचार ॥ कौसम्बीपुर वन्द के कटनी मुड़वाड़ा सार, हरष उर० ॥१२॥ वांदकपुर से आय के कुंडलपूर वन्दन कार॥ फिर वीना नैनागिरी पुनि नगर मडावर सार, हरप उर०॥ १३॥ नगर पपौरा टेरिया द्रोणागिरि चैत्य चितार ।। वैरसिया थूवौनजी पुनि वन्दों जिन खंदार, हरपउर० ॥१४॥ पचरारी वारागडा कोलारस पाटन चार ॥ जयति नगर कोटा श्री अरु नगर चंदेरी सार, हरष उर०॥ १५॥ गोलाकोट सागौद् सौ रे दक्षिण चन्दनकार ।। गिरनारी श→जये श्री ऋषभ जिनेश्वर सार, हरपउर० ।।१६।। गर्भ जन्म तप ज्ञान सां निर्वाण गये असरार ।। तिनकों बन्दों भाव सों ते दुखहर आनंदकार,हरप उर० ॥१७॥ मो उर ज्ञान जगौ जवै तव देखे नैन पसार ।। गिरवर दास तनी अचं प्रभु कोज भवदाघ पार, हरष उर धारि के०॥१८॥ Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८ ( ९० ) गीत ( गांस्त्र सभा के समय ) देव धर्म गुरु को भजौ हो श्रातम ज्ञानी ॥ टेक ॥ देव छयालिस गुण भरे सव रतन अमानी ॥ दोष विवर्जित रूप या छवि नैन हरानी ॥ १ ॥ तन परमौदारीक है लोकालोक लखानी ॥ युगपत काल अनन्त की देखन सब जानी || २|| सूरज कोटि सु चन्द्रमा कोड़ा कोड़ानी ॥ दीपत तिनकी मन्द है जिन परम प्रमाणी ॥ ३ ॥ रुधिर धवल मलमूत्र है नहिं खेद निशानी ॥ भवि जीवन हितकारने भाषी जिनवानी ॥ ४ ॥ जीव दद्या ता में कही सब दोष विहानी || परम पुरुष पीवें तहां वचनाम्बुज पानी ॥ ५ ॥ सुरपति नर खगपनि तहां राजा अरु रानी ॥ सुन श्रीजी के वैन को होगये सरधानी ॥ ६ ॥ चार संघ मुनि अर्जिका श्रावक श्रावकानी | हिरदें हरष वढावही धनि ते भवि प्राणी ॥ ७ ॥ ऐसे देव दयाल के चरणन शिर लानी ॥ गिरवर को दीजे अवै सेवा सुखदानी ॥ ८ ॥ ( ९१ ) गीत ( शास्त्र सभा के समय ) चेतन अव निज कारज जानौ ॥ टेक ॥ तुम्हरौ कारज है तुमही में सो किमि करत भुलानौ ॥ तुम्हरौ पथ Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तुमही को शोभित ज्या जल पय के थानो॥१॥ तुम सब राजन के हौ राजा सो अच वेग पिछानौ ॥ तुम अधिपति भूपति चक्रेश्वर निज सम्पति सुख मानौर। तुम्हरी रूप तुम्ही को शोभित ज्यों उदयाचल भानी ।। तुम में हम में सब सिद्धन में भेद कळू नहिं मानौ ॥३॥ तुम्हरौ रूप अनन्त चतुष्टय तुम गुण ज्ञायक ज्ञानौ ।। तुम पंडित कवि शूर शिरोमणि तुम सब भीतर स्थानी ॥४॥ तुम सब कम हतन के कारण का तो अधिको नानौ ॥अब के अवसर दाव मिली है कोटा रतन समानी ॥५॥ सो नाहक खोनो मनि भाई फिर पीछे पछतानौ।। तुम सज्जन सरदार मोक्ष सुख यही तुम्हारी थानौ ॥६॥ ताको शीघ्र करो तुम प्रापत होवे भव दुख हानौ । तातं गिरवर मन वच तन करि धरि जिन वच सरधानी ॥७॥ गीत (शास्त्र समा में) भले भज नामारे पंच परमेष्ठी देवा ।। टेक ।। इन परमेष्ठी रूप विचारोधारौ गुन उर भेवा ॥ पहिले भजलो गुणहि छयालिस श्री अहंत कहेवा ॥१॥ दूजे सिद्ध प्राठगुण वन्दों प्रानन्दों हरषेवा ॥ पुनि तीजे प्राचारज गुरुवर छत्तीसों गुण लेवा ॥ २॥ उवझायाजी चौथे वन्दों जे पच्चिस गुण वेवा।। पंचम साधु शिरोमणि वन्दों अठविस गुण साधेवा ॥३॥ छट्टे जिन ागम मन धरिये Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८० हरिये दुर्मति खेवा ॥ सातयें जिनवर भवन अनूपम वन्द नाय कर लेवा ॥ ४ ॥ अष्टम धर्म जिनेश्वर भाषित धरौ आठ पहरेवा ॥ नवमें प्रतिमा कीर्त अकीर्तम शुध मन हो बन्देवा ॥५॥ इस विधि नव प्रकार सम्यक् धरि देव नमो नव देवा ॥ शतक एक तेतालिस ऊपर गुण समस्त कर भेवा ॥६॥ ऐसे देव सुदेव नमों तिन नमत पाइयत भेवा ॥ तिनपद् गिरवरदास सुनौ भवि कीजे नित प्रति सेवा ॥७॥ गीत (शास्त्र सभा में) चेतन अपनी सुरत सम्हारो, अव तुम अपनी सुरत सम्हारौ ॥ टेक ॥ काना से आयौ कहां तूं जैहै काना रहौ लुभयारौ ॥ मात पिता दारा सुत बांधव कोई न संग सहारौ ॥१॥ गति चारों में तूं भटकत है कर मिथ्या पतियारौ ॥ रही अनादि निगोद उभय विधि भुगतौ दुःख अपारौ ॥२॥ तिर्यग मांहि बहुत दुख भोगे नरकन को नहिं पारौ ॥ कवहूं जाय पुन्य भागन तें पायौ सुरगत प्यारौ ॥३॥ काकतालवत् पाय मनुष गति दूर करौ अँधियारौ ॥ कर श्रद्धान वचन जिनवानी परम प्रीति उर धारौ ॥४॥ अष्ट कर्म ये वहु दुख दाता तिनको कर निरवारौ ॥ परनारी से भूल न बोलो शील Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घरम उर धारो ॥ ५॥ विषय कपाय दुखित दोनों भवतिन को कर परिहारौ ॥ तातें अब सव नारिं पुरुप हो सुनलो सीख हमारौ ॥६॥ सम्यक चरित घरी उरमांही जो है तारन हारी ॥ अरज करत शिर धरत चरण तल प्रभु कीजे भवपारौ ॥ ७॥ अल्पबुद्धि मोहि दीन जानके दीजे सेव तुम्हारी ॥ गिरवर दास चंदेरी वाले को कीजे उपगारौ ॥८॥ (९४) - गीत-( हरसमय) अव जराय देहौरे, मैं खिपाय दैहीरे, ये दुईमारे कमों को जराय देहोरे, ॥ टेक ॥ श्रीकृष्णने छल बल करके पशू जीव घिरवाये ॥ पिय पशुवन पर करुणा करके गिरनारी को धाये ॥ १॥ मात पिता मोहि प्राज्ञा दीजे में गिरनारी जाऊं ॥ प्रभुसे अग्निरूप दिक्षाले कर्मों की खाक उड़ाऊं ॥२॥ काहे को बेटी उदास होत है क्यों मन में पछताय ॥ सुन्दर सुघर ढूंढ कर वर मैं तोकों ' देखें विवाह ॥ ३॥ बात कहत में लाज न आवे तुम को तात सुजान ॥ तुम समान सब जग को मानों नेम विना सोई श ) कही तात ने तब समझाके कुल मेंदाग न आवे ॥ नेम कुंवर पर दिक्षा लेनो दुष्ट कर्म जल जावे ॥५॥राजुल ने जब अाज्ञा पाई पहुंची प्रभुके पास ॥ Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बोली हे प्रभु दिक्षा दीजे करूं कर्म को नाश ॥६॥ नेमीश्वर प्रभुने तप करके केवल ज्ञान उपायौ ॥ समवशरण में भवि जीवन को मोक्ष पंथ दरशायौ ॥७॥ जो पद प्रभू आपने पायौ सो अव मोकौं देहु ।। नाथूराम कहैं करजोरें ये भारी जसलेहु ।। जराय दैहौरे,मैं खिपायदैहौरे, इन दईमारे, कर्मों को जरायदैहौरे ॥ ८॥ (९५) गीत-( हरसमय) बातौ, मड़रही दिन अरु रात, लाल करमन वश चौपड़ मडरही हो ॥ टेक ॥ बातो काहे की चौपड़ बनी अरु काहे की बनी सोलह गोट, लाल करमन वश चौपड़ मड़रही हो ॥१॥.बातो चारों गति चौपड़ बनी जग जीव बने सोलह गोट, लाल करमन वश चौपड़ मड़रही हो ॥२॥ वेतो काहे के पासे बने अरु काहे के घर कहलाय, लाल करमन वश चौपड़ मड़रही हो ॥३॥ वे ,तो चौरासी लख योनि हैं सो तो चौपड़ के घर जान; लाल करमन वश चौपड़ मड़रही हो ॥ ४॥ अरु राग द्वेष, दोई करम हैं सो तो उलट पुलट परें पांस, लाल करमन वश चौपड़ मड़रही हौ ॥५...... समताके -पाँसे परें सो नो कर्मों लेंगाय दये दाव, लाल करमन वश चौपड़ मड़रही हो ॥६॥ वेतौ गिरवर दास अर्जी Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८३ करें मोरे प्रभु काटौ करम के जाल, लाल करमन वश चौपड़ मड़रही हो ॥ ७ ॥ ( ९६ ) गीत - ( हरसमय ) येहो को रहो हरिया लै निकरौ कोवा भई समराई, हमपे करम मोहनियां डाली ॥ टेक ॥ जे चेतन रहे हरिया हरले निकरौ इन्द्री भई समराई, हमपे करम० ॥ १ ॥ येहो लोभ मोह दोई चाकर राखे क्रोधके संगे यारी, हमपै करम० ॥ २ ॥ ऐहो सात मनों की खेती करके आठ विषै रखवारी, हमपे करम० ॥ ३ ॥ कहें देवीदास सुनौ भाई जैनी श्रावक कुल अवतारी, हमपे करम० ॥ ४ ॥ येहो कर्म नाशकर शिव सुख पावो होय हृदय सुख भारी, हमपे करम० ॥ ५ ॥ ( ९७ ) गीत - ( हरसमय ) रथ ठाडौ करौ भगवान, तुम्हारे संग हमहू चलें बनवासा को ॥ टेक ॥। सो मोरे प्रभु काहे के रथला बने अरु काहे के जड़े हैं जड़ाव, तुम्हारे संग० ॥ १ ॥ अरे हां मोरे प्रभू चन्दन के रथला बने अरु मुतियों के जड़े हैं जड़ाव, तुम्हारे संग० ॥ २ ॥ अरे हां मोरे प्रभु रथला में को बैठिया अरु को भुलावनहार, तुम्हारे संग t Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४ ॥३॥ अरे हां मोरे प्रभु राजुल व्रत रथ बैठियौ,गिरवर नेमजी चलावनहार, तुम्हारे संग० ॥४॥ गीत-( हरसमय) कैसी करूं कहां जाऊं मोरी गुइयां पिया तो गये गिरनारी को ॥ टेक ॥ व्याहन आये निशान घुमाये करी बरात तयारी को ॥१॥ छल इक भयौ पशु जिय घिरवाये प्रभु व्रत लियौ ब्रह्मचारी को ॥ २॥ पिया सँग धाय तपस्या लीनी उग्रसैनकी कुमारी को ॥३॥ नेम प्रभु शिव पुर पद पायो अच्युत राजुल नारी को॥ गिरवर अरज करत प्रभु सन्मुख दीजे कर्म निवारीको॥४ गीत-(हरसमय) तुम मुनियौ हो दीन दयाल हमा सो तो उस चोरी को करहु न्याय, हमारी इक चोरी भई ॥१॥ मेरौ कुमति ज्ञान लियो लूट, हमारी इक चोरीभई ॥२॥ मेरौ शील विरत गयौ छूट, हमारी इक चोरी भई ॥३॥ मेरे दया धरम गयौ टूट, हमारी इक चोरी भई ॥४॥ वसु करमन कीन्हीहै लूट, हमारी इक चोरी भई ॥५॥ सो तो गिरवर शिव फल देहु अटूट, हमारी इक चोरी भई ॥ ६ ॥ Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१००) गीत (जन्म समय का) लिया श्राज प्रभूजीने जन्म सखी चलो अवध पुरी गुन गावन को ।। टेक ॥ तुम सुनौरी सुहागिन भाग भरी चलो मुतियन चौक पुरावन कौ ॥१॥ सुवरण कलश धरौ शिर ऊपर जल त्यावें प्रभु न्हावन को ॥२॥ भर भर थाल दरव ले २ कर चलो री अर्घ चढावन को ॥३।। नैनानंद कहै सुन सजनी फिर नहि अवसर प्रावन को॥४॥ (१०१) (घोरी-सुनौजू की चाल-विवाह में ) __झूनागढ़ से तेजन आई दूलह खेंच वुलाई सुनौजू ॥ पांव पैजना जराव के सोह मुख कंचन कर हार सुनौजू॥ अंगारी पिछाडी रेशम की सोहै मलयागिर की मेख सुनौजू ॥ पीठ पलेंचा जीन जरदको मुहरा रतन जड़ाव सुनौजू॥ झूनागढ़ तें तेजन आई दूलह करत सिंगार सुनौजू ॥ इह तेजन मेरो चढे हो लाड़लौ तिहि कारण इह आइ सुनौजू ॥ पाखर डार ठाड़ी बछेरी दुल्लह करत सिंगार सुनौजू ॥ पाग जरकसी वागौ पहिरं फैंटा झालावार सुनौजू ॥ पांवन मोजे जराव के सोहें पगरख की छवि न्यारि सुनौजू ॥ पांचों कपड़ा पहिर Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लाड़लौ शिर चन्दनकी खौर सूनौजू ॥ कंठ श्रीदुलरी तिलरी छवि मोतिन माल सुहाइ सुनौजू ॥ माथे मुकुट कुंडल अति सोहें चंद सुरज दुरिजांय सुनौजू ॥ इत्यादिक वहु पहिर यदुनन्दन वाजे वजत अपार सुनौजू॥ इन्द्रादिक जाके भयेहैं बराती सुरपति चमर दुरांय सुनौजू॥ छप्पन कोट जादौं युत सँग हरि, हलधर पान खवाय सूनौजू॥ नर नारी सव मंगल गावें किन्नर नाद सुनावें सुनौजू॥मंगल गीत प सव वनिताहासविलास करांय सुनौजू ॥ हर्षित ब्रजनारी सव सुन्दर नाटक नृत्य करायँ सुनौजू ॥ इहि विधि घरात सजी नेमी प्रभुकी वर्णन कौन कराय सुनौजू ।। भविजन तजि सब राग रंगको गढ़ गिरनारी धाय सुनौजू ॥ शिवनारीको हाथ पकड कर ता सँग रमन कराय सुनौजू ॥ ऐसो नेमीश्वर व्याहु वखानी सब जन चित्त लगाय सुनौजू॥ (१०२) (गीत-ढाल घोरीकी-ब्याह में) नेमीश्वरको व्याहु बखानों लघुमति कही न जाईजू ॥ आगम पंथ पुरानन जानों सुनो भव्य चित लाईजू ॥ मनसा चंचल घोड़ी आई दुल्लह खेंच वुलाईजू ॥घोड़ी है जिनवानी समरस वाग सुलक्षण दाईजू ॥ तिहि घोड़ी चढि चलह लाड़लौ मुकति बधूको व्याहनजू ॥ सुरपति Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हाथ चमर शिर ढोरत माथे छत्र विराजैजू ।। दशलक्षण शिर मुकुट विराजे इह गुन माल विचारीजू । गुरुके वचन श्रवण में कुंडल राखे चतुर सॅभारीजू ।। रत्नत्रय कर कंकन सोहै सो छवि कहिय न जाईजू ॥ धर्मदया तन पनरथ सोहै राखी चतुर बनाईजू ॥ पंच महाव्रत बागौ पहिरें ध्यान ज्ञान शिर पागैजू ॥ पाठों मद तजि फैंटा सोहैं सूतन मुकति सुरंगीजू । पन अरु बीस सु पावन मोजे जावग शील सुरंगीजू ।। यह सिंगार कियौ नेमीश्वर जोग लियौ गिर ऊपरजू ।। इतनौ पहिर तब चले यदुनन्दन मुक्तिवधूको व्याहनजू ॥ इन्द्रादिक जाके अये हैं वराती वाजत अनहद बाजेजू ॥ सोलह कारण भये वराती पाठों कर्मनशायजू ॥ त्रेपन किरियां भई हैं दांजनी मंगल गान सुहायेजू ।। पंचशब्द तह वाजे वाजत कर्मनष्ट अागौनीज़, ॥ वरसत पुष्पवृष्टि सुर नभते किन्नर गान करावेंजू ।। मुक्ति वधू सँग भांवर कीन्ही कीना सुक्ख विलासाजू ॥ इहि विधि व्याह वखानों भविजन गावी परम हुलासाजू ॥ जिनवर गुण को वरण सकै कवि गणधर पार न पावें ॥ जो कोई पढे सुने अम ध्यावे मन वांछित फल पावै॥ (सौहरौ-जन्म समय) प्रणमा आदि जिनेश, जगत परमेशके चरण मनाऊं Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८ हो ॥ शुभ मंगल दातार परम सुखकार सोहरे गाऊं हो ॥१॥ जे चौदह कुलकर उपजे तीजे कालमें, तीजे कालमें हो ॥ चौदमें नाभि नरेन्द्र, श्री नाभिनरेन्द्र नमाऊं भाल मैं हो ॥२॥ सुरग पुरी सम नगर अयोध्या, सम नगर अयोध्या शोभा कहा२ गाइये हो॥माता मरुदेवीजू की कुंख, देवीजू की दूख गरभ प्रभु भाइयौ हो ॥३॥ षटू महिना पहिले से रतन की बरषा मनोहर बरषा हो॥होरही अँगना मझार नाभि वर बार देख मन हरषा हो॥४॥सरभि सुगंधी फूल कल्पतरू फल देव बरसावें हो॥चालै हो मन्द सुगंध पवन, सुगंध पवन ढुंदभी बाजै हो ॥५॥ बोलतजय २ शब्द, वे जै जै शब्द, मनोहर शब्द गगन में हो हो।मंगल चार अनूप, सबनमुखरूप, सबन सुखरूप, हरष मय सोभे हो॥६॥ तजि सर्वारथ सिद्ध गरभ जब आये, गरभ प्रभु आये हो॥ माता देखे हैं सोलह स्वप्न, वे सोलह स्वप्न, बहुत सुख पाये हो ॥७॥ छाई कपूर सुगंध, अगर की सुगंध चंदन की सुगंधी हो ॥ मानों फैली है धर्म सुगंध, व दिव्य सुगंध, फूलन की सुगंधी हो ॥८॥ होरही जगमग जोति रतन की जोति दीपकी जोति कहीं नहिं पाइये हो॥ माता सोवे है सुखकी सेज, फूलन की सेज, मनोहर सेज उपमा क्या गाइये हो ॥९॥ भई है सोने की रात Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोने की रात, नींद सुखपाई नींद सुख पाइयो हो । वदि अषाढ की दोज शुभ निशि गाई गरभ निशि गाइयो हो॥१०॥श्री आदीश्वर अवतार प्रथम अवतार हमें जगतार चरण नित ध्याऊं होदयाचन्द विनवै करजोर भलां कर जोर चरण की ओर सोहरे गाऊं हो ॥११॥ (१०४) (सोहरौ-जन्म समय) पूरी भई है रैन, बड़े सुखचैन नींद से जागी हो। जहां वाजै वजहँ प्रभात, श्रवण हरपात मधुर ध्वनि लागी हो ॥१॥ धुनि भई भेरी मृदंग चीन सहनाई, बड़ी सुखदाई शंखधुनि छाई हो ॥ वंदीजन विरद वखाने बहुत हरपाने अनूपम गाई हो ॥२॥ मन्द २ चालै है पवन, मनोहर पवन, मनोहर पवन पत्र कछु हालें हो ॥ बोले कोयल मोर मराल, विरछ की डाल विरछ की डालें हो ॥३॥होरही रतन की चरपा, फूल की वरषा प्रांगन में वरषा हो ॥ देखै हैं मात प्रभात, प्रफुल्लित गात, प्रफुल्लित गात बहुत मन हरपा हो ॥४॥ पहरें है वस्त्र मनोग बहुत शुभ जोग उन्हींके जोग वसन प्राभूपण हो॥चली २ है मात जगमात, मुमन की बात राय से पूंछन हो॥५॥आवत देखी राजा Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराज, राज महाराज, आद्र से लीनीहो ॥ अर्ध सिंहासन राय बड़ौ सुखपाय बैठक तव दीनी हो॥६॥ प्राण वल्लभे चन्द्र मुखी, मृग लोचनी हे मृग लोचनी हो॥जग जीवन सुखकार परम सुखकार प्रागमन कहिये हो॥७॥ जग माता करजोरे, वचन धीरे वोले राय से बोली हो ॥ पिछली रैन भये सोलह स्वप्न मनोहर खम तासु फल कहिये हो ॥८॥ सुन राजा हँस बोले विहँस कर वोले प्रेम कर बोले सुनौ तुम रानीहो॥ह है आदि कुंवर अवतार प्रथम अवतार निश्चय हम जानी हो॥९॥ ये सुन रानी अानन्द भयो आनन्द हिये हुलसानी परम हुलसानी हो ॥ इहै श्री आदि कुंवर अवतार, कुंवर अवतार कूख अव जानी हो ॥ १०॥ श्री रिषभ देव, जिनदेव करें सुरसेव किन्नरी गावें किन्नरी गावे हो ॥ जहँ मंगल हों दिनरैन बड़े सुखचैन महासुखचैन सुनत सुख पावें हो ॥११॥ गावै जो ये सोहरौ मंगल कारी सवन सुखकारी सवन सुखकारी हो । ताके मंगल होंय दिनरैन बरै सुख चैन पडै नरनारी हो ॥१२॥श्रीश्रादीश्वर महाराज सुफल है काज सुफल होय काज भजी नरनारी भजौ नरनारी हो । दयाचन्द कह करजोर, कहैं करजोर शरण हों तोर वंदना म्हारी हो॥१३॥ Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०५) (सोहरौ जन्म समय) सव देवी छप्पन कुंवारी रुचकगिर वासनी कुलगिर वासनी हो ॥ करती माता जू की सेव परम सुख पावती हो ॥ टेक ॥ कोई दरपण लीयें हाथ, खड़ी सव साथ, दीप लिये थारी हो ॥ कोई गूंथें फूलन माल, वजावें ताल सुगावें ख्याला हो ॥ १॥ कोई माताको करती सिंगार, पहिरावती हार, आभूपण माला हो॥लिये पंखा ढोरेंहाथ नमा माय देवन कीवाला हो॥२॥ कोई चुन २ सेज विछावें, कोई मंगल गावें कोई पांय पलोटें हो। कोई पूंछतीं मिलकर बात धन्य यह स्यात मात समझा हो ॥ ३ ॥ प्रभु तीन ज्ञानके धारी, येक अवतारी गरभ में सोहें हो । ज्यों दर्पण में प्रतिबिम्ब मनोहर विंव सूर्य दुति होवे हो॥४॥ कळु गर्भ वेदना नाहिं, अकुलता नाहिं, पीत दुति नाही हो । तिन त्रिवलि भंग नहिं कोय, हर्ष हिय होय अतिशय प्रभु जानों हो ॥५॥ गर्भ कल्याणक महिमा सौहरौ भारी, कथा अति भारी हो। दश अतिशय हूँ जिनराय पावै को पारी, पावै को पारी हो ॥ ६॥ श्री आदीश्वर जिननाथ, जगत के नाथ, त्रिलोकी नाथ के सोहरे गावें हो ॥ दयाचंद चरण को चेरो दास है तेरो, दास है तेरी दरश नित पाव हा ।।शा Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०६) बुंदेला (पुत्रोत्पत्ति के समय) जिनेश्वर त्रिसला के हो, दुलारे सिद्धारथ के हो खामी वीरनाथ जिनराय ॥ टेक ॥ कुंडनपुर जन्मन लियौ हो, स्वामी रतन देव बरसाय ॥ जिनेश्वर त्रिसला के हो, हुलारे सिद्धारथ के हो स्वामी वीरनाथ जिन राय ॥१॥ केशरिया रंग तन बनौ हो, स्वामी केसरि चिन्ह लखाय | जिनेश्वर०॥२॥ सिद्ध शिला पावापुरी हो, स्वामी मोक्ष पधारे जाय ॥ जिनेश्वर०॥३॥ औरंगजेब राजा चढौ हो, स्वामी इजमत दई बताय ॥ जिनेश्वर० ॥ ४॥ देश देश के देवता हो, स्वामी नक बंगत करवाय ॥ जिनेश्वर०॥५॥ कुंडनपुर महावीर को हो, स्वामी टांकी मारीजाय ॥ जिनेश्वर०॥६॥ दूध धार छूटी जबै हो, स्वामी पलँग पछारे राय ॥ जिनेश्वर० ॥७॥ भौंर मछौं उड़ २ लगी हो, स्वामी फौज भगी चिल्लाय ॥ जिनेश्वर० ॥८॥ बादशाह विनती करी हो, स्वामी वार २ शिरनाय ॥ जिनेश्वर० ॥९॥ अब प्रभु रक्षा मम करौ हो, स्वामी दुलीचन्द गुणगाय ॥ जिनेश्वर त्रिसला के हो, स्वामी० ॥१०॥ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९३ ( १०७ ) बनरा - ( व्याहुमें) चाल ( कजरी शहर से नीकरे वारे वनरारे, लाला कर हथियन का मोल, सुघर शाही वनरारे ) कौन नगर से रिंग चले, लटकन वनरारे ॥ लाला कौन को यह दल जाय, सुघर शाही वनरारे ॥ १ ॥ नगर द्वारिका से चले, लटकन बनरारे ॥ लाला जदुवंशी दल जाय, सुघर शाही बनरारे ॥ २ ॥ कौन के हौ तुम लाड़ले, लटकन बनरारे ॥ लाला कौन नगर के राय, सुघर शाही बनरारे ॥ ३ ॥ समद विजै जू के लाड़ले, लटकन वनरारे ॥ लाला नम्र डार्का के राय, सुधर शाही बनरारे ॥ ४ ॥ कौन के होगे भजीहजे, लटकन बनरारे ॥ लाला कौन के लहुरे वीर, सुघर शाही बनरारे ॥ ५ ॥ वसुदेव जी के हैं भतीहजे, लदकन वनरारे ॥ लाला कृष्णके लहुरे वीर, सुघर शाही बनरारे ॥ ६ ॥ कौन सी जननी के लाल हौ लटकन चनरारे ॥ लाला कौन बहिन के बीर, सुघर शाही वनरारे ॥ ७ ॥ शिव देवीमात के लाल हैं, लटकन यनरारे ॥ लाला बहिन समुद्रा के वीर सुघर शाही बनरारे ॥ ८ ॥ सज के बरात जु रिंग चले लटकन बनरारे ॥ लाला व्याहु करन को जांय सुघर शाही वनरारे ॥ ९ ॥ बीच बगीचे मेलियाँ लटकन बनरारे || लाला भूनागढ Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (जूनागढ़) से ग्राम सुघर शाही बनरारे॥१०॥ टीका होन को जब चले, लटकन बनरारे ॥ लाला पशु जिव करी है पुकार, सुघर शाही बनरारे ॥ ११॥ कृष्णहि तुरत वुलाइयो, लटकन वनरारे ॥ लाला ये जिव क्यों घिरवाये, सुघर शाही बनरारे ॥ १२॥ भील किरात बरात में, लटकन बनरारे ।। लाला इनको करें हो अहार सुघर शाही बनरारे ॥१३॥ सुनकर रथ से उतरे, लटकन बनरारे ।। लाला पशु जिव दये हैं छुड़ाय, सुघर शाही बनरारे ॥ १४ ॥ मौर उतार के धर दियौ, लटकन बनरारे ॥ लाला कंकन डारौ है टोर, सुघर शाही बनरारे ॥१५॥ गिरनारीकों चढ चले, लटकन वनरारे ।। लाला घर मन में वैराग्य सुघर शाही बनरार ॥ १६ ॥ ठाडे पिता समझावते, लटकन बनरारे । लाला भोगी हो भोग अपार सुघर शाही वनरारे ॥१७॥ भोग वुरे संसार में, लटकन वनरारे ।। लाला तात को यों समुझाय सुघर शाही बनरारे ॥१८॥ इतनी सुनी राजुल जबै, लटकन बनरारे ।। लाला गिरी है धरनि मुरझाय, सुघर शाही बनरारे ॥ १९॥ मात पिता समझावते लटकन वनरारे ॥ पुत्री क्यों करै सोच विचार, सुघर शाही बनरारे ॥ २० ॥ देशों से भूप वुलाय हों, लटकन बनरारे ॥अर फिरके रचहीं व्याह, सुघर शाही बनरारे ॥ २१ ॥ बात अजुक्ती का Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कही, लटकन यनरारे ॥ तुम योलौ न बोल कुवोल, सुघर शाही वनरारे ।। २२।। तुम सम पितु सव कों लखों, लटकन वनरारे ॥ मेरे प्रीतम गये गिरनार, सुघर शाही वनरारे ॥ २३ ॥ गहनों उतार के रिंग चली, लटकन वनरारे । लाला पहुंची है प्रभुके पास, सुघर शाही वनरारे ॥ २४ ॥ हाथ जोर ठाडी भई, लटकन यनरारे ॥ प्रभु हम को दिक्षा देहु सुघर शाही वनरारे ॥ २५ ॥ दुर्द्धर तप उनने कियौ, लटकन वनरारे ।। लाला पहुंची है स्वर्ग मझार, सुघर शाही वनरारे।॥ २६ ॥ केवल पा प्रभु शिवगये लटकन वनरारे॥ प्रभु हम को पार लगाव सुघर शाही बनरारे ॥ २७ ॥ (१०८) वनरा-व्याह में चाल (तुम्हें बुलाय गईरे वन्ना, सैन चलाय गईरे वन्ना) तुम्हें बुलाय गहरे पन्ना, सैन चलाय गईरे पन्ना, चौतौ चेतन नारी तुम्हारी, तुम्हें वुलाय गई० ॥१॥ वौतौ सुमति सरीखी प्यारी, चौतो अनुभव सुखकरतारी, तुम्हें बुलाय गई० ॥ २॥ चौतौ शिवपुर की अधिकारी,वौती भव जीवन हितकारी,तुम्हें वुलाय गई। ॥३॥ चौतौ कुम करते न्यारी, चौती कहती है ललकारी, तुम्हें बुलाय गई० ॥ ४ ॥ चौतौ छोड़ कुमति से गे, फिर पहुंचौ तुम शिव द्वारी, 'तुम्हें बुलाय गई० Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥५॥ बौतौ नाथूराम अनारी, तूं तजदै कुमता नारी, तुम्हें बुलाय गईरे बन्ना, सैन चलाय गईरे बन्ना ॥६॥ उपसंहार ॥ दोहा॥ समधन सम धन अन नहीं, सो समधी आधीन । समधन मम धन जानिये, ता बिन चित्त मलीन ॥१॥ कवित्त ॥ समधन के निकट नित्य रहत अहंत देव, समधन तें रमत नित सिद्ध परमात्मा ॥समधन की चाह कर ध्यान धरें प्राचारज, उपाध्याय साधु श्री अवृती अंतरात्मा ॥ समधन से प्रेम करें लोक परलोक बने, पायौ समधन तिन मम धन को रस बमा ॥ समधन के प्रेम मांहि फस रहौ मेरो मन, हे प्रभु ! समधी देहु मम धन करि के क्षमा ॥१॥ सोरठा॥ समधन समधी प्रेम, मम धन मम धी है नहीं। निजधन निज धी जेम, सो नित मन में धारिये ॥१॥ 'समधन सुख करतार, समधी तें नित रमत है॥ यामें फेर न सार, मोक्ष मार्ग हित कारिणी ॥२॥ समधन सम धन नाहिं, शोध शोधिया ने कियौ। तातें मम उर चाह, निशदिन सम धन मिलन की ॥३॥ सम्पूर्णम् ॥ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- _