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संजम कौ ॥१॥ येतौ सुमति कुमति दोइ साथ पलँग पर पौढ़ गई ॥ छोड़ो २ जी कुमति मोरौ साथ तो तोसें मैं दूरई भली ॥२॥ चलौ चलौ जी गुरुन के पास तो हमरीतुमरी न्याव चुके ॥ ऐसी भई दोइ की तकरार तो गुरुजी के पास चली ॥३॥ विच मिलगये श्री मुनिराज तो हाथ में विवेक की छड़ी ॥ करदे २ गुरुजी मोरौ न्याव कुमति से दूर ही भली ॥ ४ ॥ तव गुरुजी कुमति करी दूर सुमति को संग लई ॥ कहें देवीदास विचार सुमति मोहि होहु सही ॥५॥
गीत (शास्त्रजीके वक्त) सनलो अब श्रावक तनों व्रत नेम महाना ॥ टेक॥ सात व्यसन पण पाप को तजियो दिलजाना ।। चार कषाय कलंक को छोड़ो दुखदाना ॥१॥ अविरत योग वशी करौ मिथ्यात्व नशाना ॥ पंद्रह जे परमाद हैं छोड़ी अलसाना ।।२॥ वस्तु अभक्ष्य न खाइयेगुनमूल प्रमाना। सकल दोष समकित तने तजिये वसु माना ॥३॥ विकथा अाश्रव जे बुरे षट रिपु छुड़काना ॥ तेरह कॉठीवार जे तिन मारौ वाना ॥४॥ बारह व्रत तप भावना दश धर्म महाना ॥ रत्नत्रय सोलह तथा चौभाव सुमाना ॥५॥ तेतिस अर्थ सुतत्व हैं सत्तावीस वखाना ॥ त्रेसठ