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घने ॥ ऐसे श्रीजिन दीनदयाल तो वाजें नेवरा घने ॥६॥ कंचन कलश भराइयौ वाजें नेवरा घने ॥ पठये श्रीकृष्णजीके वाग तो वाजें नेवरा घने ॥७॥ भई रसोई वागमें वाजें नेवरा घने । स्वामी सव जीमी जिंवनार तो बातें नेवरा घने ॥ ८॥ भई है सांझ की वेरा तो वाजें नेवरा घने ॥ चाले उग्रसैनजीके द्वार तो वाजें नेवरा घने ॥९॥ हय गज रथ पायक सजे वाजें नेवरा घने ॥ जहां बाजे बजे हैं अपार तो वाजें नेवरा घने ॥१०॥ कलश वन्दना भई तौ वाजें नेवरा घने ॥ गावें सखि मंगलचार तो वाजें नेवरा घने ॥ ११॥ टीका कीन्हों है राय तो वाजे नेवरा घने ॥ पशुजीवन करी है पुकार तो वाजें नेवरा घने ॥१२॥ प्रभु दीनानाथ दयाल तो वाजें नेवरा घने तब पूंछियौ नेम कुमार तो वाजें नेवरा घने ॥१३॥ काहे को ये पशु अान घिराये तो वाजें नेवरा घने । तव अरज सारथी यों करी वाजें नेवरा घने ॥ १४ ॥ जे सव जिउ घाते जांय तो वाजें नेवरा घने ॥ जिननायसे करी है पुकार तो वाजें नेवरा घने ॥ १५ ॥ धृग २ है यह काज तो बाजे नेवरा घने॥बहु जीवन होय अकाज तो वाजें नेवरा घने॥१६॥ छांडो २ पशुनकी बंध तो वा नेवरा घने ॥ पर हम जावें गिरनार तो वाजें नेवरा घने ॥१७॥ तव उग्रसैन कर जोड़ियौ वाजें नेवरा घने ।।