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॥ टेक ॥ स्वामी इन्द्रादिक सब देव सदा जिनके गुण गावें जू ॥ स्वामि पै चौसठ दुरते चौर छत्र शिर तीन विराजें जू ॥ १ ॥ स्वामी सिंघासन छविदार कहा कवि उपमा गावें जू ॥ स्वामी भामंडल पिछवार भानु कुति कोट लजावें जू ॥ २ ॥ स्वामी अंतरीक्ष भगवान आप कमलासन राजें जू ॥ स्वामी देव करें जयकार हुँदभी नाद बजावें जू ॥ ३ ॥ स्वामी वाणी अमृतरूप सकल गणधर समझावें जू ॥ स्वामी दोष अठारा रहित सहित छयालिस गुण राजें जू ॥ ४ ॥ स्वामी केवल रूप स्वरूप भाल शत इन्द्र नमावें जू ॥ स्वामी अतिशय हैं चौतीस कौन हम उपसा गावें जू ॥ ५ ॥ स्वामी वर्णन पर - पार पार गणधर नहिं पावें जू ॥ स्वामी दयाचन्द कर जोर चरण को सीस नमावें जू ॥ मोरौ सब भईयन सिरदार - ॥ ६ ॥
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( ३७ )
( " वनरा " विवाह में )
व्याहन सुकति पुर धाये, चेतन वनरा वन आये ॥ टेक ॥ मायें हो दिक्षा धारी जी चेतन, मन वच योग लगाये ॥ १ ॥ कानन जिनवानी सुन चेतन जा में ज्ञान समाये ॥ २ ॥ गले पहिन जिन नामकी माला, भव दधि पार लगायें ॥ ३ ॥ हिरदेमें सुमिरें पंच परम गुरु नासा