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बाधा बिन चौमुख नाहीं कवलाहारी कि हांजू ॥ बिन उपसर्ग बिना छाया नख केश न वृद्धि उचारी कि हांजू । ॥४ासबविद्याके ईश्वर लोचन टिमकत नाहिं लगारी कि हांजू ॥ उचरत अर्घ मागधी भाषा षटरितु फूल सँवारी कि हांजू ॥५॥दर्पण सम क्षिति सव जीवनके मैत्री. भाव अपारी कि हांजू ॥ शीतल मन्द सुगन्ध पवन क्षिति कंकर नहिं अनिवारी कि हांजू ॥६॥ गगन गमन कज ऊपर करते गंधोदक की धारी कि हांजू ॥ सर्व धान्य उपजें खयमेवहि नभ निर्मल जयकारी कि हांजू ॥७॥ सर्व जीव अानन्द चक्र वृष मंगल द्रव्य प्रसारी कि हांजू ॥ अनन्त चतुष्टय वसु प्रतिहारज नव लन्धी अधिकारी कि हांजू ॥८॥अतिशय युत चौंतीस विराजत छयालिस गुण अविकारी कि हांजू ॥ इहि विधि गुण अहत सन्त भगवन्त महन्तन धारी कि हांजू ॥९॥धन्य घड़ी धन भाग आज जिनराज भक्ति हम कारी कि हांजू॥गिरवर दास चरण को चेरौ दीजे मोक्ष बिहारी कि हांजू ॥१०॥
(चाल "हां" विवाहमें ) प्रेम प्रमोद रहस निजघर की गारी सुनौ वर नारी कि हांजू ॥ टेक ॥ जव सुधि प्रावत निज प्रीतम की