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धाव क्रोध का भावे दुष्टन दोई तज .
नौधा
४४ धावै क्रोध करै अधिकाई मन भौंरारे ॥१४॥ तूंतौ ज्ञान पुराण मनै नहिं भावे दुष्टन संगति भाई मन भौंरारे ॥ १५॥ तूंतौ प्रातम भजलै दोई तज दै तीन रतन लौंलाई मन भौंरारे ॥ १६ ॥ तूंती चार संघकौं नौधा ध्यावै बाराव्रत मन लाई मन भौंरारे ॥ १७॥ तूंतौ परधन देख मनहि मन झूरै दीना था सो पाई मन भौंरारे ॥१८॥ तूंतौ पंडित केरी सेवा करलै धरलै हिये उपाई मन भौंरारे॥१९॥ तूंतौ यह करनीउर चितमें धरले तज दै संग गमारी मन भौंरारे ॥२०॥ तूंतौ साध सन्त की सेवा करले जातै तिर है पारी मन भौंरारे॥२१॥ तूंतौ केर बेर को मेला जैसौ ऐसौ फिरै सिधायौ मन भौंरारे ॥२२॥ तूंतो मरकट कैसी मूठ जु बांधी आपहि श्राप दवायौ मन भौंरारे ॥ २३ ॥ तूंती आशा बांधौ करतो धन्धौ अन्धौ हियो भुलायौ मन भौंरारे ॥ २४ ॥ तूंती ममता मोह नींद कर जकरौ पायौ नहीं ठिकानौ मन भौंरारे ॥ २५ ॥ तूंतौ इकदिन ऐसौ हूहै प्राणी खाट छोड़ भौं पारौ मन भौंरारे ॥ २६ ॥ तूंतौ सैनन २ वोलत प्राणी कोई न चितमें धारौ मन भौंरारे ॥ २७ ॥ सम्वत् अठारा सै जु भये हैं इक्यावन उरधारौ मन भौंरारे ॥२८॥ कहै जसकरन शरण प्रभु तेरे मोकों पार उतारौ मन भौंरारे ॥२९॥