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(६) माथा करके लांडू गटकते हैं इस से अधिक कहना व्यर्थ है. - हे जाति के 'खेवटिये पंचो और धनवानो ! क्या तुमको अपनी जाति की इस कुरीति द्वारा वरवादी होती 'देखकर रंच भी दुःख नहीं होता ? जो तुम शीघ्र ही इस दुष्ट पद्धति को नहीं रोकते और ऐसे निकृष्ट अभक्ष्य भोजन को नहीं त्यागते, क्या तुम्हारा यही पंचपना और मुखियापना है ? यदि तुम लोग ऐसे पापियों से खानपान न रखकर उनको दंडित करोगे अथवा सम्बन्ध होने के पहिले ही समझाओगे, रोकोगे, अगर नहीं मानेगे तो शादी में शामिल न होगे, तो अवश्यमेव यह कुरीति शीघ्र मिटजावेगी और जाति-धर्म की : रक्षा होने से तुम पुण्य के भागी होगे.
कन्याविक्रय से उत्पीडित.
एक सज्जन.