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गुरु निशदिन बन्दी भव प्रेम लगाऊये। दिन रजिन पद नमी भावसं फेर न भव भरमाऊं ये ॥५॥ यय के नर तन पाय अमालक यविधि भक्ति पदाऊये। फिर नरतन मिलनी नहिं गिरवर जो शिव पंथन पाऊया
("हाहां ये हं-हं में" की चाल-च्याहमें) मेरीरी अलबेला मनुयां यो शिव मारग धाव ये॥ हाहा ये कि हहं ये ॥ टेक || जुधा, मांम, मद, चारी, वेश्या, खेट नारि पर जाये ये । सान यिमन इनके वश परिक साता नर्क लहावे ॥१॥ एत्तिसमाय घरे पुनि जो सो गति निगोद की जावे ये॥सान भाव धारे पुनि प्राणी ज्ञानावणे उपाय चे॥ २॥ पंच चतुर मादश पनि दो घर भव२ गोता ग्वाये थे। अपने तन पोषन के कारण पर जिउ घात कराये ये 1 ग्यद न जाने भेद न जाने नाहक भरम मुलाये ये ॥ रागदप मद मांड छोह तजि सम्यक ज्ञान लद्दावे थे ॥४॥ विषय कपार पाप मिथ्या तजि निज ध्यावे शिव पाये ये ।। मुख अनन्त विलसे अविनाशी गिरवर दास कहाचे ये॥॥
("हाहां वे हंडं, ये" की घाट, यामें) मेरीरी मलयली मनुमा यो शिव मारग माये ॥