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सुमति प्रभु झांझरिया ।। १२॥ काहेकी वांटी तिलचांवड़ी ये प्रभु झांझरिया ॥ सो तो हीरन बांटी तिलचांवरी ये प्रभु झांझरिया ॥ १३ ॥ अरु मुहरन वटी है तमोर सुमति प्रभु झांझरिया ॥ कैसे नखत प्रभु जन्मये ये प्रश्नु झांझरिया ॥ १४ ॥ भले हो नखत प्रभु जन्मये ये प्रभु झांझरिया ॥ गिरनारीको करें वे राज सुमति प्रभु झांझरिया ॥ १५ ॥ गिरवर धन प्रभु जन्मियौ ये प्रभु झांझरिया ॥ मोहि देहु शिव पुरको राज सुमति प्रभु झांझरिया ॥ १६ ॥
(११) (“हाहां वे कि हूंहूं।” की चाल-च्याहमें) देव जिनेश्वर रूप पिछानों तिनके गुण बतलाऊंचे ।। हाहां वे कि हूंहूंवे ॥ टेक ॥ चार घातिया कर्म नाशके ज्ञेय सकल दशाऊं वे ॥ केवल ज्ञान लहौ जव जिनजी लोकालोक लखाऊं वे ॥१॥ जिनके प्रातिहार्य वसु सोहत चार चतुष्टय गाऊ वे॥ अतिशय युत चौतीस विराजत तिनके भेद बताऊं बे॥२॥ दस जन्मत दश ज्ञान सुरन कृत चौदह मनमें भाऊ वे ॥ ऐसे गुण छ्यालिस संपूरण तिनकों भाऊ चाँऊ वे॥३॥ पुनि सर्वज्ञ परम उपदेशी वीतराग पद पाऊं वे ॥ इस विधि देव जिनेश्वर पदको वार २ शिर नाऊ वे ॥४॥ देव शास्त्र