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गीत ( वन्दना के समय) हरष उर धारके श्री शिखर सम्मेद निहार, हरप उर धारके ॥ टेक ॥ प्रथम सौनागिरि चन्दके जहां नंगानंग कुमार ॥ तहां तें लश्कर वन्दनों रेअतिशय शोभासार, हरष उर धारिके ॥१॥ बहुरि आगरा वन्दि के मथुरा पुर पहुंचे सार । जंवू स्वामी शिव गये चौरासी थान विचार, हरष उर धारिके ॥ २॥ और कानपूर बन्दिये चैत्यालय भवन सुढार ॥ लखनौ बन्दों भाव सों पुनि रत्नपुरी नमि सार, हरष - उर०॥३॥ नगर अयोध्या श्रावस्ती किहकंधा पुरी सँभार ॥ तहां तें गोरखपुर विष पुनि छवड़ा अतिशय सार, हरष उर०॥ ४ ॥ पुनि पोद्नपुर वन्दिये उर चम्पापुर पुनि धार ॥ भागलपुर तें प्रायके ग्रेडी टेशन जिनगार, हरप उर० ॥५॥ नदी बड़ाकर बन्दिये श्री वीर नमौं गुणकार | शिखर समेद नमी प्रभू मोहि भवद्धि पार उतार, हरष उर० ॥६॥ मुनिवर शिवपुर थल गये जहां संखासंख चितार ॥ जिनवन्दन जिन ने करी तिन कीन्हों भव दुख छार, हरष उर०॥७॥ पुनि प्रदक्षिणा देय के जनमादिक मरण विडार ॥ बहुविधि भक्ति करीजिये तह हे प्रभु जी मोहि तार, हरष उर०॥८॥ तहां ते कलकत्ता गये