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की कुंवारी को. मैं तो॥३॥ नेम प्रभू अद्भुत शिव पायौ अच्युत राजुल नारी को. मैं तो०॥४॥ गिरनारी पर तीन कल्याणक वन्दौं वारंवारी को.मैं तो०॥५॥ गिरवर अरज करत जिनवर से दीजे मोन अपारीको. मैं तो कैसी कर कहां जाऊं मोरीगुइयांपिया तोगये गिरनारीको॥६॥
(८८)
(गीत-हरसमय) वनज नहीं व्यापार नहीं चेतनराय काहे को याये, अरे भाई काहे को आये ॥ टेक ॥ मुमति झुमति की न्याव लगी है सो तो न्याय निवेरन पाये, अरे भाई न्याव निवरन ग्राये ॥ १॥ जाय उतारी है समकित वजार में सो सब कोई देग्वन पाये, अरे भाई सब कोई देखन पाये ॥२॥ कुमति नारि को कोउ न पूंछ सो सुमति की राह गहाये, अरे भाई सुमति की राह गहाये ॥३॥ कुमति नारि को तजी दूर ते मुमति सखी उर लाये, अरे भाई सुमति सखी उरलाये ॥४॥ कुमति नारि को संग दुरीहै चढंगति में भरमाये, अरे भाई चढंगति में भरमाये ॥५॥ सुमति सुहागिन कंठ लगाओ सुरग मुकति लेजाये, अरे भाई सुरग मुकति लेजाये ॥६॥ सतगुरु सीख हृदय में धरके सो लाल विनोदीने गाये, अरे भाई लाल विनोदीने गाये ॥७॥