________________
४२
(४६) ( "भौंरारे" की चाल-विवाह, मुंडन आदिमें ) पंच परम सुमिरे सुख होय मनुत्रां मन भौंरारे ॥टेक॥ पंच मिथ्यात धरै जो कोय मनु मन भौंरारे । पंच परावर्तन दुख होय मनु मन भौंरारे ॥१॥ पांचों समिति धरें सुख होय मनुत्रां मन सौरारे ॥ पंचाणुव्रत तें सुदिढाय मनु मन भौंरारे ॥२॥ पंच पाप अनरथ करतार मनु मन औरारे ॥ पंचम थान चढ़ी भरपूर मनुत्रां मन भौंरारे ॥३॥ पांच पचत्तर दोप तजाय मनु मन भौंरारे ॥ पंचम ज्ञान लहै सुखदाय मनु मन भौंरारे ॥४॥ पंच उदम्बर जीव अपार मनुयां मन भौंरारे ॥ तिनको तज होवे भव पार मनुत्रां मन भौंरारे ॥ ६॥ पंच वेग कामिनिके जान मनुयां मन भौंरारे ॥ तिनके त्यागें होय कल्याण मनुयां मन भौंरारे ॥६॥ पंच प्रकार निगोद अनन्त मनु मन भौंरारे ॥ तिन अनुकम्पा करौ महन्त मनु मन भौंरारे ॥७॥ पंच प्रमाद् करौ दमनीय मनु मन भौंरारे ॥ पंच थावर राखौ भवि जीव मनु मन भौंरारे ॥ ८ ॥ पांचों परमेष्ठी सुखदाय मनु मन भौंरारे ॥ गिरवर पंचम गतिको जाय मनुां मन भौंरारे ॥९॥