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हाथ चमर शिर ढोरत माथे छत्र विराजैजू ।। दशलक्षण शिर मुकुट विराजे इह गुन माल विचारीजू । गुरुके वचन श्रवण में कुंडल राखे चतुर सॅभारीजू ।। रत्नत्रय कर कंकन सोहै सो छवि कहिय न जाईजू ॥ धर्मदया तन पनरथ सोहै राखी चतुर बनाईजू ॥ पंच महाव्रत बागौ पहिरें ध्यान ज्ञान शिर पागैजू ॥ पाठों मद तजि फैंटा सोहैं सूतन मुकति सुरंगीजू । पन अरु बीस सु पावन मोजे जावग शील सुरंगीजू ।। यह सिंगार कियौ नेमीश्वर जोग लियौ गिर ऊपरजू ।। इतनौ पहिर तब चले यदुनन्दन मुक्तिवधूको व्याहनजू ॥ इन्द्रादिक जाके अये हैं वराती वाजत अनहद बाजेजू ॥ सोलह कारण भये वराती पाठों कर्मनशायजू ॥ त्रेपन किरियां भई हैं दांजनी मंगल गान सुहायेजू ।। पंचशब्द तह वाजे वाजत कर्मनष्ट अागौनीज़, ॥ वरसत पुष्पवृष्टि सुर नभते किन्नर गान करावेंजू ।। मुक्ति वधू सँग भांवर कीन्ही कीना सुक्ख विलासाजू ॥ इहि विधि व्याह वखानों भविजन गावी परम हुलासाजू ॥ जिनवर गुण को वरण सकै कवि गणधर पार न पावें ॥ जो कोई पढे सुने अम ध्यावे मन वांछित फल पावै॥
(सौहरौ-जन्म समय) प्रणमा आदि जिनेश, जगत परमेशके चरण मनाऊं