________________
४०
(४५)
( " भौंरारे” की चाल-विवाह, मुंडन आदिमें) जिन दर्शनतें कह फल होय मनुत्रां मन भौरारे || देक॥ जिन दर्शनको फल सुन लेव मनुत्र मन भौंरारे ॥ जिन दर्शनको जानों भेव मनुत्रां मन भौंरारे ॥ १ ॥ जो मनमें चिन्ते जिनराय मनुत्रां मन भौंरारे ॥ घर बैठो फल सहस उपाय मनुत्रां मन भौंरारे ॥ २ ॥ गमन करे जिन दर्शन काज मनुत्रां मनु भौरारे ॥ इक लख फल पावै महाराज मनुयां मन भौंरारे ॥ ३ ॥ जब जिनवर दृग देखे खोल मनुयां मन भौंरारे ॥ तब कोड़ा कोड़ी फल लेव मनुयां मन भौंरारे ॥ ४ ॥ यौ तौ है दृष्टान्त कहत मनु मन भौंरारे ॥ जिन दर्शनको फलहि महन्त मनुत्रां मन भौंरारे ॥ ५ ॥ जिन दर्शन ऐसी विधि जान मनु मन भौंरारे ॥ जब जिन मन्दिर ध्वजा लखान मनुत्रां मन भौंरारे ॥ ६ ॥ नमस्कार तब कीजे भाय मनु मन भरारे ॥ फिर आगेको गमन कराय मनुयां मन भौंरारे ॥ ७ ॥ जिन मन्दिर द्वारे शिर नाय मनुत्रां मन भौंरारे ॥ ता पीछे भीतरको जाय मनुयां मन भौरारे ॥ ८ ॥ जय २ नाद करै धरि प्रेम मनुत्रां मन भौंरारे ॥ कोमल मन वच काय सुतेम मनुत्रां मन भौंरारे ॥ ९ ॥ जब पहुंचे जिनचरणन पास मनुत्रां मन भौंरारे ॥ तब मानों मन परम हुलास मनुत्रां मन भौंरारे