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आपों दुख होई ॥१॥ झूठी बात कहन की नाहीं हां किनारे ।। झूठ कूट ते दुर्गति जाई ॥ २ ॥ परचोरी नरकन की दाता हांकिनारे॥याकों छोड़ लही सुख साता ॥३॥ पापन की जड़ है परदारा हां किनारे।।दूर करौ ऐसो भ्रम भारा ॥४॥ परिग्रह तृष्णा अति दुख दाई हां किनारे ॥याको तजे लहै सुख थाई॥५॥ पंच पाप बहु दुख के दाता हां कि ना रे॥ बहु प्रकार भ्रम करे अ. साता ॥६॥ सात व्यसन सातों नरकाना, हां कि नारे॥ अधिक हरामी गति भरमाना ॥७॥ परनिन्दा नहिं भूल करीजे हां कि ना रे ।। पर चुगली कबहूं नहिं कीजे॥८॥ आप बडाई करहु मति भाई, हां किनारे॥कटुक वचन बोले नहिं जाई॥९॥ मीठी वानी सब से बोलो, हां कि ना रे ॥ परगट जगम आपा खोलौ ॥१०॥ समता भाव धरौ उर मेरा, हांकि नारे। जिनवर भक्ति करौ हो चेरा ॥११॥ विकथा चार तजौ दुखकारी, हां कि नारे॥ चारों कथा करौ हो चारी ॥ १२ ॥ धरि सन्तोष लोभ परिहारी, हांकिनारे॥गिरवर दास होय भवपारी॥१३॥
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("रसिया" विवाहमें) ऐसे नेमीश्वर रसिया विरसिया मुक्ति वधू मन व सिया, जल्दी सों मुक्ति वधू मन वसिया ॥ टेक ॥ जी