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वन ऊपर करुणा करी है तज नारी गिर वसिया, जल्दी सो मुक्ति वधू मन वसिया ॥१॥ शील शिरोमणि रतन जगत में दया दान नित करिया, जल्दी सों मुक्ति बधू मन वसिया ॥२॥ पट कायन की दया करे ते जय२ देव उचरिया, जल्दी सो मुक्ति वधू मन बसिया ॥३॥ बालचन्द जिन दया न पाली गत चारों दुख सहिया जल्दी सों मुक्ति वधू मन वसिया ॥४॥ जिन जीवन ने द्या करी है नेम प्रभू गह चहियां, जल्दी सी मुक्ति बधू मन वसिया ॥५॥
("रसिया" विवाहमें) जानर देही तुमने पाय लई हो जन्म सुफल करलेव मोरे रसिया ॥ टेक ॥ ऐसी विधि से दान दीजिये हो आवागमन मिटजाय मोरे रसिया ॥१॥ पंच अनुव्रत तीन गुणाव्रत धारौ जातें धरम हिय वसिया ॥२॥ चौ शिक्षाबत पालियौ मुक्ति वधू से प्रीति मोरे रसिया ॥३॥ दुर्द्धर तप व्रत पालियौ मुनि तेरह विधि चारित मोरे रसिया ॥ घट बढ दस्कत जानियौ हो गिरवर शोध लेव मोरे रसिया ॥५॥
("आसों के साहुन सैंया घर रहौ की चाल" श्रावण) बाल पनै प्रक्षु घर रहौ अरे नेमनाथ जिनराय, बाल