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(२) न कभी औगुणकारी भोजन आप करना, न कुटुम्बियों को कराना, सदा ऋतु तथा घर के लोगों की तासीर का खयाल रखके रसोई वनाना ॥
(७) गृहस्थी के काम काज व देखरेख बड़ी सावधानी से करना और कोई भी काम दूसरे के भरोसे पर नहीं छोड़ना, फजूलखर्ची और ऊपरी दिखावट के लिये कभी हठ नहीं करना, सदा अपना घर देखकर चलना ॥.
(८) सदा भले मनुष्यों की संगति करना, धर्म तथा धर्मात्माओं से प्रीति रखना ॥
(९) अधिक चटकीले, भड़कीले वस्त्र तथा जेवर न पहिरना, परन्तु ऐसा भी न रहना जिससे स्वच्छता और मर्यादा में वट्टा लगे अर्थात् सदा साफ और सादा बर्ताव रखना ॥
(१०) कभी भूलकर भी अपने पिता की धन सम्पत्ति, प्रतिष्ठा का घमंड न करो, और न कभी उस घमंड का इशारा पति, सास,ससुर, जेठ, देवर, तथा सखी सहेलियों आदिसेकरो॥
(११) स्त्रियों का मुख्य धर्म लज्जा है शील का रहना लज्जा के आधीन है, इस लिये सदा. वहुत धीरे और नम्रतासे बोलो और धीरजसे चलो, जहां तक संभव हो कम बोलना चाहिये, खिल-खिलाकर हंसना महान अवगुण है ।।
हे पुत्रियो ! ऊपर की शिक्षायें तुम्हारी सारी जिन्दगी का आभूषण हैं ऐसा जान ग्रहण करो.
शुभेच्छु-एक माता.