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गुण गरवारौरी ॥७॥ मोरौ शिव बनरी व्याहन को उमहो जिनमतवारी री ॥ ८॥
(" वनरा" विवाहमें) ऐसौ सुन्दर बनरा पोतो बहुतै सुन्दर यनरा शिव दिव्या जीको ऐसौ सुन्दर यनरा सुदेखौरी सखी मोरी ऐसौ सुन्दर यनरा॥ टेक ॥ घर नहिं चाहे यनरा कुटुम ना चाह यनरा सो गिरपर जावे को मचल रही यनरा ॥१॥ यसतर ना चाहै मनरा भूपण ना चाहै यनरा सो तो जीव दया कौं मचल रही यनरा ॥२॥ मौर न चाह यनरा यागौ न चाहै धनरा सो तप धरवे को मचल रही पनरा ॥३॥ व्याहु न चाहै यनरा चलाव न चाहै यनरा सो शिव बनरी को मचल रही यनरा।।४।। दिक्षा घर लई बनरा सु केवल पायौ बनरा सुभवि जीव ताखे को मचल रही यनरा ॥५॥ निर्वाण पधारौ यनरा नथमल को तारो बनरा सु येही अरज तुमसे है मेरी यनरा॥६॥
(३२)
(" वनरा" विवाहमें) चेतन सुनहु हवाल हाल ॥ व्याट्ट की जा उत्तम चाल || टेक ॥ दश धर्मन को मार सुवांधी, सुमौर सी बांधौ मुमौर सौ यांधौ जामें लगे अति सुन्दर भाल ।