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हिय धारौरी मोरी गुंध्यां ॥३॥कै मोरी गुंइयां धन, कन, पशुव घटाव महा अघ मूल हैं मोरी गुंइयां ॥४॥ कै मोरी गुइयां शील रतन अनमोला सदा हिय धारियो मोरी गुंइयां ॥५॥ कै मोरी गुंइयां दयाचन्द गह लीजे अनोव्रत पांच जे मोरी गुईयां ॥६॥
(७३)
(दादरा-हरसमय) जगत सब झूठौरी मोरी गुंइयां ॥ धरम धन मोटौरी मोरी गुइयां ॥ टेक ॥ कै मोरी गुंइयां झूठी कुटुम परवार सोनो अरु चांदीरी मोरी गुंइयां ॥१॥ कै मोरी गुंइयां स्वारथ को संसार स₹ कोई पूंछे ना मोरी गुंइयां ॥२॥ कै मोरी गुंइयां थोडीसी नर परजाय पाप नहिं बांधिये मोरी गुंइयां ॥३॥ कै मोरी गुंइयां जग दुख मेरु समान सुक्ख जैसे राइ है मोरी गुंइयां ॥४॥कैमोरी गुंइयां सुनिये कथा पुराण धरम नित पालिये मोरी गुंइयां ॥५॥
(७४)
(दादरा-हरसमय) जातन लगी सोई जाने दूसरा क्या जाने भाई॥टेक॥ दादुर पंखुडी लैचलौ जिन पूजन मनलाई ॥ गज पुनि चरण परौ ता ऊपर सुरग देव भयौ जाई ॥ दूसरा क्या जाने भाई ॥१॥ श्रीपाल की देह गलित भई कुष्ट व्याधि