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मोरे लाल ॥ २५॥ दहिने हाथकी पैंती उतारी ललि
तै दइ पहिराय मोरे लाल ॥ २६ ॥ इस विधि कुंवर __कलेऊ करके डेरें पधारे राम मोरे लाल ॥ २७ ॥
(५६) (“ हां मोरे लाल" की चाल-हरसमय) चौबीसों जिन सज्जन आये सब मिल करत प्रणाम कि हां मोरे लाल ॥१॥ जीवनको मिजमानी लाये धारौ अन्तर मांझ कि हां मोरे लाल ॥२॥ ज्ञान दरश इक घोड़ा लाये समकित को असवार कि हां मोरे लाल ॥३॥ जिनवानी को चावुक लाये देखत ही उड़जाय कि हां मोरे लाल ॥४॥ उड़कर पंछी शिवपुर पहुंचे फिर नहिं श्रावन जान के हां मोरे लाल ॥५॥ अटल मूर्ति अवगाहन राजा नर त्रिय करत प्रणाम कि हां मोरेलाल ॥ ६॥ जो कुबुद्धि यह छोड़ सवारी नेरु तलें फिर जाय कि हां मोरे लाल ॥७॥राजू सातमें दुःख सहोगे भ्रमौ अनन्तौ काल कि हां मोरे लाल ॥ ८॥ वालचन्द यह अरज करत है पकरौ मेरी बांह कि हां मोरे लाल ॥९॥ जब लग भवको पार न पाऊं राखों नाम अधार कि हां मोरे लाल ॥१०॥