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परीषह सारी ॥ धरौ चरित तेरह विधि नीकें गिरवर वर शिवनारी ॥ ५ ॥
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( गीत - वंदना के समय )
इक अरज सुनौ महाराज हमारे दुखित करम दूरी करौ ॥ टेक ॥ अरे हांहो कि प्रभुजी आठ करम दुखदाइया ते करावत भ्रमण अपार, हमारे दुखित करम दूरी करौ ॥ १ ॥ अरे हांहो कि प्रभुजी ज्ञानावरणी छाइयो तिन प्रकृति पंच परकार, हमारे० ॥ २ ॥ अरे हांहो कि प्रभुजी दर्शन आवरणी अबै नव भेद न दर्श कराय, हमारे० ॥ ३ ॥ अरे हांहो कि प्रभुजी, करम वेदी दो कही सिधार पयूष समान, हमारे० ॥ ४ ॥ अरे हांहो कि प्रभुजी मोह करम वारुणि समा सो खपर रूप आछाद, हमारे० ॥ ५ ॥ अरे हांहो कि प्रभुजी, श्रायु चार गति के विषै जा भरमावत अति क्रूर, हमारे ०||६|| अरे हांहो कि प्रभुजी नाम तिराएवे दुखभरी बहु नाम धराये मोह, हमारे० ॥ ७ ॥ अरे हांहो कि प्रभुजी करम गोत्र घर कृति समा जिमि ऊंच नीच जगमांहि, हमारे ॥ ८ ॥ अरे हांहो कि प्रभुजी अन्तराय पन विधि कहा "सब कार्य करै अन्तराय, हमारे० ॥ ९ ॥ अरे हांहो कि प्रभुजी ये वसु रिपु दूरी करौ मम पूरौ कीजे ज्ञान,