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गिरवर दास कुमति कुलटा तज सुमति प्यारी नारि, सुनत हो॥७॥
(२६) (“ सुनतही " की चाल व्याहमें) • जगते भगते सोइया चेतन राय तुम पर आवे जगजाल, सुनत हो। टेक ।। मोह नींद तोहि देय असाता भव २ भ्रम जंजाल, सुनत हो॥१॥ वालपने में ज्ञान लही ना चाले कौतुक चाल, सुनत हो ॥२॥ यहुरि जवान कमाऊ होकर तिरियन में मतवाल, सुनत हो ॥१॥ विरध भये तब भये तृष्णावश इमि तिहुँपनका ख्याल सुनत हो ॥४॥ पावक जरें कूप को खनवी सो निष्फल वा काल, सुनत हो॥५॥ तातें चेतन सुरत सम्हारी नातर कौन हवाल, सुनत हो ॥ ६ ॥ परनारी को संग छाड़ दो पहिरी शील सुमाल, सुनत हो ॥ ७ ॥ सकल परात व्याह जुड़के तुम वांधत कर्म विहाल, सुनत हो ॥८॥ नाच, तमाश, हांस, विकथा यहु करत फाग वि. कराल, सुनत हो॥९॥ रैन दिवस खिलखिल कल्मष करि डोलत लाल गुलाल, सुनत हो॥१०॥ ऐसौ नर तन पाय बावरे क्यों न भजे गुणमाल, सुनत हो ॥२१॥ नर तन पाय धर्म करलेग्रो अवसर मिलौ सुचाल, सुनत