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गिरवर धारौ उर समताई, वरौ आठमी धरा जु भाई सुन भौंरारे॥१०॥
(४१) ("भौंरारे' की चाल-विवाहमें ) तृने सार गमायौ, पाप कमायौ, धर्म सवै विसरायौ मनुप्रां मन भौंरारे ॥ टेक ॥ तूंने पुंजी बड़ाई, नफा न पाई, बड़ी विबूच मचाई मनुयां मन भौंरारे ॥१॥ तूंतौ देव न जाने, कुदेव कुं माने झूठी बातें ठाने मनुत्रा मन भाँरारे ॥२॥ तूं तो पापतं जकड़ौ, जमधर पकड़ो, धर्म काजमें सकरौ मनुमन भौंरारे ॥३॥ तूंतौ रो रो कीन्हों, बहु दुख लीनों, रहन कळू ना दीनों मनु मन भौंरारे ॥ ४ ॥ तूंतो हाथ न दीनों, साथ न लीनों, खोटौ कारज कीन्हों मनुयां मन भौंरारे ॥५॥ तूती नरकन जैहै जब दुख पैहै, पश्चात्ताप करै है मनुयां मन भौंरारे ॥६॥ यह नर भव पाई, चेतहु भाई, बालकृष्ण सुखदाई मनुां मन भौंरारे ॥७॥
४२ ("भौंरारे” की चाल-विवाहमें) परत्रिय सेवन कहा फल होय मनुां मन भौंरारे ॥टेक॥ देव दिवाले तें तुरतई जाय मनुग्रा मन भौंरारे॥ जाति पॉतते कादौ जाय मनुयां मन भौंरारे ॥१॥