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मानौं दामिनि दमकै मोरे लाल ॥७॥ पहिरें पीत कुसुंभी वागौ फेंटा जरकस सोहै मोरे लाल ॥८॥सुरपति हाथ चमर शिर ढोरें माथे छन विराजे मोरे लाल ॥९॥ भेरि मृदंग बीन सहनाई बाजे बजत सुहाये मोरे लाल ॥ १०॥ सुर किन्नर मिल गान करत हैं देख अप्सरा नाचे मोरे लाल ॥ ११ ॥ देखत सव नरनारि नगरके विहस विहँस हरषाय मोरे लाल ॥ १२॥ सहस नेत्र करि सुरपति निरखत जनम सफल करपाये मोरे लाल ॥ १३ ॥ याचन्द वन्दत कर जोरे चरणन शीस नवाय मोरे लाल ॥१४॥
(५९) ("मोरे लाल'की चाल-विवाहमें) सजना हो मोरी शील चुनरिया प्यारी सुरंग रंगीली लाल ॥ लै दीनी सतगुरु ने हमको कौन कौन गुन कहिये मोरे लाल ॥ टेक॥ वा चुनरी की शोभा देखो तीन लोकमें महिमा लाल ॥ सुरनर नाग लोकको देखै शील चुनरिया ऐसी मोरे लाल ॥ लैदीनी सतगुरुने-॥१॥ जा चुनरी सीताने प्रोढ़ी अग्नि कुंड जल होगयौ लाल॥ सोमा सती चुनरिया श्रोढी फणिकी माल भई मोरे लाल-॥२॥ कौरवसभा बीच रहि लज्जा सती द्रौपदी अोढ़ी लाल ॥ श्रीपालकी मैना सुन्दर देवसहाई कीनी