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भरें मुक्ताफल एक वस्तु सजोवे कि हांजू॥ एके पाट पटम्बर बहुविधि हाथन हाथ जुलीने कि हांजू ॥२॥ एकें अनी चुनी अरु पन्ना मुहर जवाहर लाये कि हांजू॥ एके मुकुट मनोहर सुन्दर धारे प्रभुजीके आगे कि हांजू ॥३॥ एक हस्ती जरद अमारी ले २ प्रभु पग लाग क हाजू॥ एक दश २ क राजा कहा २ ले धाये कि हांजू॥ ४ ॥राजा श्रेयांस पूर्वभव सुमरण सवही विधि समझाये कि हांजू ॥ तिष्ठ २ कह निर्मल जलसों प्रभु पग नमन जु कीन्हों कि हांजू ॥५॥ ऊंचौ ग्रासन दे प्रभुजीकों पग प्रक्षालन कीन्हों कि हांजू॥ भर अंजुलि ईक्षु रस दीन्हों पंचाचारज हुये कि हांजू॥६॥ एक ग्रास के ग्रास जुलीन्हें तीजो ग्रास न लीनों कि हांजू ॥ रत्न वृष्टि कीन्ही देवन ने जिन प्रभु दान जू दीन्हों कि हांजू ॥७॥ नवधा भक्ति करी प्रभुजी की सरधा शक्ति प्रकाशी किहांजू ॥ चरण वन्दना कर शिरनायौ बहु प्रतीति उर कीनी कि हांजू ॥८॥ ऐसौ समय निरख प्रभुजीको चतुरदास मन हरपाँ कि हांजू॥गारी पुन्य सकल सुखदायक नरनारी नित गावो कि हांजू ॥९॥ भक्ति हेत कारण शुभ पदवी निश्चय शिवपद पावो कि हांजू॥ अक्षय दान प्रभूजीको दीन्हो अक्षय तीज कहायौ कि हांजू ॥१०॥