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________________ ४७ : * (४) तूं तो नरक निगोदमें वहुदिन. इक अरज सुनी महाराज. भज लै श्री जिनवर जी की बानी. ८९ , हरप उर धारके श्री सम्मेद. भोजन के समय ॥ ५ हांजू आदि नाथ जिन भोजन कारण. ५३ प्रभुजी देवन देव स्वामी जिन अपने. ५४ गीत श्रीगुरु आये मोर पाहुने. ५५ मोरेलाल आगे २ राम चलत है. जन्मोत्सव के समय ॥ ७ वधाई काई घर२ मंगलाचार जन्मन प्रगटाये. कांई घर २ मंगलाचार सन्मति जन्मेजी. ९ वुन्देला समेला कानाहो जइया रावजू. १०६ , जिनेश्वर त्रिगलाकेहो. १० वधाई ऊंचौ सौ नगर सुहावनौ. १०० गीत लिया आज प्रभूजी ने जन्म. १०३ सौहरौ प्रणामों आदि जिनेश. ०४ , पूरी भई है रैन. ०९ सब देवी छप्पन कुमारी. हरसमय गाने के। ५२ हमारे आत्मा अब के नर तन पाइयौ मोरे आत्मा.
SR No.010236
Book TitleJain Gitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Sodhiya Gadakota
PublisherMulchand Sodhiya Gadakota
Publication Year1901
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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