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सोने की रात, नींद सुखपाई नींद सुख पाइयो हो । वदि अषाढ की दोज शुभ निशि गाई गरभ निशि गाइयो हो॥१०॥श्री आदीश्वर अवतार प्रथम अवतार हमें जगतार चरण नित ध्याऊं होदयाचन्द विनवै करजोर भलां कर जोर चरण की ओर सोहरे गाऊं हो ॥११॥
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(सोहरौ-जन्म समय) पूरी भई है रैन, बड़े सुखचैन नींद से जागी हो। जहां वाजै वजहँ प्रभात, श्रवण हरपात मधुर ध्वनि लागी हो ॥१॥ धुनि भई भेरी मृदंग चीन सहनाई, बड़ी सुखदाई शंखधुनि छाई हो ॥ वंदीजन विरद वखाने बहुत हरपाने अनूपम गाई हो ॥२॥ मन्द २ चालै है पवन, मनोहर पवन, मनोहर पवन पत्र कछु हालें हो ॥ बोले कोयल मोर मराल, विरछ की डाल विरछ की डालें हो ॥३॥होरही रतन की चरपा, फूल की वरषा प्रांगन में वरषा हो ॥ देखै हैं मात प्रभात, प्रफुल्लित गात, प्रफुल्लित गात बहुत मन हरपा हो ॥४॥ पहरें है वस्त्र मनोग बहुत शुभ जोग उन्हींके जोग वसन प्राभूपण हो॥चली २ है मात जगमात, मुमन की बात राय से पूंछन हो॥५॥आवत देखी राजा