Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 01 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A विभाग : 1/1 संपादकः संशोधकथ्य प.पळ्यास श्रीजिनेन्द्रविजयजी गणिवर Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ N EEDSEKXSEED श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला-ग्रन्थाङ्कः-५३ श्री महावीर जिमेन्द्राय नमः / तपोमूर्ति पूज्याचार्यदेवश्रीविजयकर्पूरसूरिगुरुभ्योः नमः / हालारदेशोद्धारक-पूज्याचार्यदेवश्रीविजयामृतसूरिगुरुभ्यो नमः / पञ्चम-गणधर श्रीमत्सुधर्मस्वामि-निर्मितं KE KOTEKKESE KHES श्रीमदाचारांग-सूत्रम् प्रथममङ्गलम्। (मूलम्) संपादकः संशोधकश्च तपोमूर्ति-पूज्याचार्यदेवश्रीमद्विजयकपूरसूरीश्वर-पट्टालङ्कार-हालारदेशोद्धारक... कविरत्न पूज्याचार्यदेवश्रीमद्विजयामृतसूरीश्वर-विनेयः पंन्यास--श्री--जिनेन्द्रविजय--गणी प्रकाशिका *EET श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला लाखाचावल-शांतिपुरी (सौराष्ट्र) का Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाधिका-श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला लाखापानल-बांतिपुरी (सौराष्ट्र) गुजरात वीर..] विक्रम सं० 2011 [सन् 1974 आ आगमना अधिकारी योगवाही गुरुकुलवासी है सुविहित साधु-साध्वी महाराजो छे. mwww मूल्य रु. 10-00 ज्ञानोदय प्रिन्टिंग प्रेस पिण्डवा (राजस्थान) (बाबा-विरोही रोग) Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय निवेदन अमारी ग्रन्थमाला तरफथी आ श्री आचारांग सूत्र मूल प्रगट करता आनंद अनुभवीए छोए / वि. सं 2022 मा 'मणिसिद्ध मेघ मनोहर स्वाध्याय' रूपे गुजराती टाइपमा आ. स्त्र अमे प्रगट कयु हतु / हालमा 45 आगम मूल अने केटलाक आगम टीका सहित प्रगट करवानु काम शरू करता आ सूत्र नागरी लिपिमा मोटा टाइपमा प्रगट करेल छ / आ ग्रन्थन संशोधन संपादन हालारदेशोद्धारक कविरत्न स्व. पू. आचार्यदेव श्रीमद्विजयअमृतसूरीश्वरजी महाराजना शिष्यरत्न पू० पंन्यास श्री जिनेन्द्रविजयजी गणिवरे घणी खंत थी करेल के। कामळ छपाइ आदिना भाव वधवाने कारणे खर्च धार्या करता वधु आवे छे / मोटा टाइपमा मुद्रित कराता पेज वधारे थाय छ। परंतु टकवानी भने अभ्यासनी दृष्टिए अनुः कुलता रहेशे। आगम सूत्रोना अधिकारी योगवाही गुरुकुलवासी सुविहित मुनिओ छ / ए शास्त्रविधि मुजब पूज्य श्रमणसंघमा आगम वांचनादिमां अनुकूलता थाय ते रूप आ श्रुतभक्ति करता भमे आनंद अनुभविए छीए / श्री आचारांग सूत्रादि मूल सूत्रो प्रगट थइ रहयां छ / श्री सूत्रकृताङ्ग सूत्र तैयार थई गयु है। श्रीस्थानाङ्गसूत्रनु मुद्रण काम चालु छ। एज रीते सटीक आगमोमा श्रीमदन्तकृद्दशा, बने श्रीमदन्तरोपपातिकदशा तैयार थइ गया छे अने श्रीमदुपासकदशा सूत्रनु मुद्रण काम लि: पौर संवत् 2501 वि० सं० 2031 मागशार सुद 11 नेमचंद पाघजी गुढका नवीनचंद्र बाबुलाल शाह Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * अनुक्रमः * // 1 // प्रथम ब्रह्मचर्य श्रुतस्कंधः मम अध्ययन- माम पृष्ठ क्रम अध्ययन नाम पृष्ठ 1 शस्त्रपरिज्ञा (उद्देशा-७) . 1 6 घून (उद्देशा-५) 28 2 लोकविजय (उद्देशा-६) 7 महापरिज्ञा (व्युच्छिन्नम्) . .. 3. शीतोष्णीय . (उद्देशा-४) .. 16. 8 विमोक्ष . (उद्देशा-८) .... 33 5 सम्यक्त्व (उद्देशा-४) 19 6 उपधान श्रुत (उद्देशा-४) .. 5 लोकसार (उद्देशा-६) . 23 // 2 // हितोयोऽग्र-श्रुतस्कंधः प्रथमाचूलिका-- 1 (1) पिण्डेसणा(उद्देशा-११) . 47 5 14) वस्त्रैषणा (उद्देशा-२) 99 2 (11) शय्यैषणा (उद्देशा-३) 71 6 (15) पात्रषणा (उद्देशा-२) 105 3 (12) ईर्या (उद्देशा-३) 83 7 (16) अवग्रह-प्रतिमा(उद्देशा-२) 108 4 (13) भाषा जात(उद्देशा-२) द्वितीया चूलिका 1 (17) स्थान 113 5 (21) रूप 2(18) निषीधिका 114 6 (22) परक्रिया 3 (16) उच्चार प्रश्रवणा 114 7 (23) अन्योन्यक्रिया 124 4 (20) शब्द 118 तृतीया चूलिका 1(24) भावना. चतुर्था चूलिका 1 (25) विमुक्ति कामाला .. . .. 120 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // शुद्धिपत्रकम् // पृष्ठं पंक्तिः अशुद्धं समारंभंतो समारंभंते कट्ठनिस्सिया = क्झनिस्सिया करुसयं फरुसयं 24 . 10 चेयं आयणं सवस्सिणोमि विणवन्ने 34. जिवीए 6 = = = = = = = = = = = = = अपि पुण्णकम्मासं पयलमाले पुक्खलं एय आयाण समुस्सिणोमि विणयन्ने जीपिए अप्पं पुराणकुम्मा पयलमाणे पुक्खलं वा अजाणया विस्वरूवे वियट्टित्तए निक्खित्तपुव्या अभिहणेज ०वणिमगा भिक्खू वा अणासादए . बहुदेसिएण एवमाहिज्जति पणीयरसभोयणभोई अइमत्तपाणमोयणमोई अजाण्या निरूवरूवे वियद्वित्तए निक्खत्तपुव्वा अलिहणेज . वणिमागा विक्खुवा अणालाइए पदेसएण अवमाहिज्जंति पणीयरसभोयणभाइ. अहमत्तपाणभोयण- मोयणभाइ मंखिजा x 1.2 14 127 14 भंसिमा 136 18 मेहुणो मेहुणे Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ श्री वीरपाटपरंपरा-स्तवना॥ महावीरं जिनं नत्वा स्मृत्वा च गौतमं गुरुम् / / पवित्रा हि स्मरिष्यामि सुधर्मादि परंपराम् // 1 // श्री सुधर्मा गुरुर्जम्बूर्जयतात् प्रभवप्रभुः / शय्यंभवो यशोभद्रः संभूतिर्भद्रबाहुपः // 2 // स्थूलभद्रः सदा भद्रो महागिरिसुहस्तिनौ / सुस्थितो मुनिनाथो हि सुप्रतिबद्धकौटिकः // 3 // सूरीन्द्रदिनदिन्नौ हि श्री सिंहगिरिवज्रपो / बज्रसेनश्च चन्द्रस्सामंतभद्रो हि पातु नः // 4 // वृद्धदेवो गुरुः प्रद्योतनो वै मानदेवकः / श्री मानतुङ्गवीरौ हि जयदेवश्च रक्षतात् // 5 // देवानन्दो गुरुर्जीयात् विक्रमो नरसिंहज्ञः / . समुद्रो मानदेवश्च विबुधप्रभसूरिपः // 6 // जयानन्दो रविप्रभो यशोदेवो दयानिधिः / प्रद्युम्नमानदेवौ हि मूरिविमलचन्द्रकः // 7 // उद्योतनः सर्वदेवो देवश्च सर्वदेवकः / , यशोभद्रश्च . श्रीनेमिचन्द्रश्च मुनिचन्दकः // 8 // अजितदेवसिंही सोमप्रभो मणिरत्नकः / जगच्चन्द्रस्तपा जीयात् तपोधर्मप्रभावकः // 9 // देवेन्द्रो धर्मघोषस्सोमप्रभः सोमतिलकः / श्रीदेवसुन्दरः सोमसुन्दरो मुनिसुन्दरः // 10 // श्रीरत्नशेखरः लक्ष्मीसागरः सुमतिस्तथा / श्रीहेमविमलाणंदविमलौ दानहीरको // 11 // श्रीसेनदेवसिंहाश्च सूरयः सत्यपण्डितः / श्रीकपूर-क्षपाविज्ञी जिनोत्तमौ च पाकः // 12 // रूपः कीतिश्च कस्तूरः गणीन्द्रो मणिपण्डितः / / बुद्धिगणीन्द्रपन्न्यासो द्विसप्ततितमोऽवतात् // 13 // आणंदविजयो हर्षकपूरामृतसूरयः / स्तुताः पधराः प्रेम्णा जिनेन्द्रेण सिवाय ते // 14 // Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // श्री महावीरजिनेन्द्राय नमः छन्दोऽमृतरसः शिवशर्मप्रदातारं चरमतीर्थनायकम् / भक्तिभावेन वन्देऽहं गणेशगौतमन्तथा // 1 // स्मृत्वा कपूरसूरीशं तपोधर्मप्रभावकम् / .... छन्दोऽमृतरसं वक्ष्ये नत्वाऽमृतगुरु स्वकम् / / 2 // ग्रन्थोऽयं सुखबोधाय, संक्षेपेण विरच्यते / लक्षणं छन्दसां यत्र, श्रुतमात्रेण ज्ञायते // 3 // सानुस्वारविसर्ग हि, संयुक्ताद्यं तथा गुरु / विज्ञेयमक्षरं दीर्घ पादान्तस्थं विकल्पतः / / 4 / / आदिमध्यावसानेषु, यरता यान्ति लाघवम् / / भजसा गौरवं यान्ति, मनौ तु गुरुलाघवम् // 5 // यस्याः पादे प्रथमे, द्वादश मात्रास्तथा तृतीयेऽपि / अष्टादश द्वितीये, चतुर्थक पञ्चदेश साऽऽर्या // 6 // आर्यापूवार्धसमं, पराईमपि यच्छन्दसि मुने ! भवति / छन्दोविदस्तदानी-मा-गीति तां मुदा कथयन्ति // 7 // आर्योत्तरार्धतुल्यं, पूर्वार्धं यच्छन्दसि स्यात् / तच्छन्दो भाषन्ते, ह्यार्यामुपगीति सुकवयः // 8 // आद्यचतुर्थ, पश्चमकं चेत् / . यत्र गुरु स्याद् भगौगिति पङ्क्तिः // 6 // अगुरुचतुष्कं भवति गुरु द्वौ / विनतमुनेऽसो, शशिवदना न्यौ // 10 // तुर्य पश्चमकं चेद्यत्र स्याल्लघु साधो।।। विद्वद्भिः कथिता सा म्सौ गः स्यान्मदलेखा // 11 // ज्ञेयं षष्ठं गुरु श्लोके, लघु सर्वत्र पश्चमम् / द्विचतुष्पादयोह स्वं, दीर्घ सप्तममन्ययोः // 12 // ज्ञेयं षष्ठं गुरु श्लोके, लघु सर्वत्र पञ्चमम् / द्विचतुष्पाद यों सप्तमं इस्वं पद्य-लक्षणम् / / 13 / / Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आदिगतं तुर्यगतं, पञ्चमकं चान्त्यगतम् / स्याद्गुरु चेत्तत्कथितं, माणवकं भात्तलगाः // 14 // द्वितुर्यषष्ठमष्टमं, यदा गुरु प्रयोजितम् / बुभाः प्रकाशयन्ति ता, प्रमाणिको जगै लगौ / / 15 / / वर्णाः सर्वे दीर्घा यस्यां, विश्रामः स्याद्वेदैर्वेदैः / व्याख्याता सा विद्वद्वन्दै-मोमो गो गो विद्युन्माला / / 16 // यत्र गुरु स्यादाद्यचतुर्थ, पञ्चमषष्ठं चान्त्यमुपान्त्यम् / चम्पकमाला चेद्भमसागाश्चेन्द्रियवाणैर्यत्र विरामः // 17 // चम्पकमाला यत्र भवेदन्त्यविहीना काव्यमते / / स्यान्मणिबन्धो भम्सगणैरिन्द्रियवेदैर्यद्विरतिः // 18 // .. मन्दाक्रान्ताऽन्त्ययतिरहिता, चत्वारः प्राग्दशमगुरुकाः / . विश्रामः स्याधुगरसमिते-हंसी मत्ता मभनागयुता // 16 // हस्वो वर्णो जायते शैक्ष ! षष्ठ छन्दोबुद्धे तद्वदेवाष्टमान्त्यः / विश्रामः स्पायन वेदैस्तुरङ्गैः / शालिन्युक्ता म्तौ तगो गो सुसाधो // 20 // . आधचतुर्थमखण्डतपस्विन्सप्तमकं दशमं गुरु चान्त्यम् / दोधकवृत्तमिदं भभभाद्गौ यत्कथितं कविमण्डलमुख्यैः।।२१।। यस्यां त्रिषट्सप्तममक्षरं स्याद् - ध्रस्वं तथा चेन्नवमं च तद्वत् / स्यादिन्द्रवज्रा यदि तो जगौ गो . _' यस्ता क्रियापदप्रमितेविरामः // 22 / / यदीन्द्रवज्राचरणेषु पूर्वे, - भवन्ति वर्णा लघवः सुकर्मन् / उपेन्द्रवज्रा जतजास्ततो गौ, . भवेत्क्रियापट्रमितेविरामः // 23 // अनन्तरोदीरितलक्ष्मभाजी, . ' पादौ यदीयावुपजातयस्ताः / / Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यास क्रियाषट्पमितेविरामो, .. ____भवन्ति सुज्ञैः परिकीर्तिता याः // 24 // आख्यानकी स्याद्विपरीतपूर्वा, ____ यदीन्द्रवज्राचरणः पुरस्तात् / उपेन्द्रवज्राचरणास्त्रयोऽन्ये, मनीषिणोक्ता शुभकार्यकारिन् // 25 // प्रथमलघुकषट्कवर्णकं नवमचरमपूर्वकं तथा।। भवति सुजन ! यत्र भाषिता, ननरलगयुतैव भद्रिका | // 26 // आद्यमक्षरमतस्तृतीयकं सप्तमं च नवमं तथान्तिमम् / दीर्घमब्धिगतिभि-विरामका रानराविह रथोद्धता लगौ // 27 // अक्षरं तु नवमं दशमं चेद्व्यत्ययाद्भवति पूर्वत आर्य / स्वागतेति रनभाद्गुरुयुग्मं चाब्धिवेदसुमितैर्हि विरामः // 28 // प्रथमाक्षरमाद्यतृतीययोद्रुतविलम्बितकस्य न पादयोः।। लगपारसकारगणैस्त्रिभि-नभमरैस्तु गणैर्हरिणीप्लुता // 29 // इस्वो वर्णः स्यात्सप्तमो यत्र योगिन् ! तद्वद्विन्यस्तो वर्ण एकादशायः / बाणैर्विश्रामस्तत्र चेत्स्यात् तुरङ्ग. मौं यो नाम्ना सा भाषिता वैश्वदेवी // 30 // उपेन्द्रवज्राचरणेषु सन्ति चे दुपान्त्यवर्णा लघवः कृता यदि / जतौ तु वंशस्थमुदीरितं जरौ ___ सनाथ ! निदोपमिदं बुधैस्तदा // 3 // वंशस्थपादा गुरुपूर्ववर्णका यस्यां भवेयुः क्षतिभिर्विवर्जिताः / स्यादिन्द्रवंशा खलु तो जरौ मुने! ___ विश्रामभाग्या शरवाहसंख्यकैः // 32 / सतृतीयकषष्ठमखण्डमते ! नवमं विरतिप्रभवं गुरु चेत् / इह तोटवृत्तमिदं गतिसैः निपुणैः कविभिः कमनीयमते // 33 // यदि तोटकस्य गुरु पश्चमकं, रससंख्यकं गुरु न चेदिहितम् / प्रमिताक्षरा सजससैरुदिता शुभकर्मवीर! निपुणैः कविभिः॥३४॥ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यदायं चतुर्थ तथा सप्तमं चेत्, तथैवाक्षरं इस्वमेकादशाधम् / भुजङ्गप्रयातं भवेद्यैश्चतुर्भि ___ यदुक्तं कवीन्द्रजिनेन्द्रादिभक्तैः // 3 / / अपि सनिप्रिय ! यत्र चतुर्थक गुरु च सप्तमकं दशमं तथा विरतिगं च तथैव विशेषविद् द्रुतविलम्बितमाह नभौ भरौ // 36 // द्वितीयकपश्चमकाष्टमकञ्च तथा दशमान्त्यगतं गुरु यत्र / चतुर्जगणं यदि मौक्तिकदाम ____ वदन्ति बुधा विगतेन्द्रियदोष // 7 // आधतुर्यान्त्यकं ह्यष्टमेकादशं हस्वमेवं नियुक्तं भवेच्छन्दसि / विश्ववात्सल्यदेवाधिदेवार्चक ! रेश्चतुभिर्मता. कोविदः स्रग्विणी // 38 // मायं द्वितीयमथ तुर्यमष्टमं, चैकादशाद्यपरके तथैव चेद् / दीर्घ सुकाव्यकुशलैर्मनोहरा धीरैरभाणि ललिता तभी जरौ // 36 // करतलगतधर्मरत्नसाधो! विगलितमोहगजेन्द्रमोक्षयात्रिन् / भवति जगति नौ ततः परौ यौँ नजसहित रंगैश्च पुष्पिताग्रा // 4 // सत्तीयपश्चमसुवर्णकं तथा नवमं यथा दशमकान्त्यकान्त्यकम् / गुरुकं सुभाषितमभूद्धि नन्दिनी सजसा जगौ भवति मजुभाषिणी // 4 // Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयतुर्यनवममक्षरं गुरु, भवेत्तथैव च दशमान्त्यमन्तिमम् / ' सुभाषिता विबुधगणैः प्रभावती ... जभौ सजौ गिति रुचिरा चतुर्ग्रहः // 42 // तुर्य पञ्चममपि षष्ठसप्तमं वै स्याद्धस्वं खलु नवमं च रुद्रसंख्यम्। अन्यत्स्याद् गुरु यदि गीयते तदा सा . म्नौ जौगस्त्रिदशयतिः प्रहर्षिणीयम् // 43 // तुर्याद्यतुर्यपरषष्ठकसप्तमं वै ___स्याद् हस्वकश्च नवमं दशमं तथैव / चेद् द्वादशं भवति यत्र सुकाव्यविज्ञै रुक्ता वसन्ततिलका तभजा जगौ गः // 44 // प्रथममगुरुषट्कं यत्र चैकादशाचं ___ भवति लघु तथा चेदक्षरं द्वादशान्त्यम् / सुकविजनमनोज्ञा सा सुचारु प्रसिद्धा ननमयययुतेयं मालिनी भौगिलोकैः // 4 // चत्वारो यत्र वर्णा आद्यास्तथा पञ्चमान्त्या ___श्चत्वारो यत्र वर्णा दीर्घास्तथा चेदिशोन्त्यौ। .. द्वावेवं यत्र . वर्णावत्यौ तथा स्यात्सुवर्णा नौ म्यौ यान्तौ भवेतां सप्ताष्टकैश्चन्द्रलेखा // 46 // चत्वारः प्राविहितगुरवो ये दिगेकादशौ चे द्वी दीक़ तदनु भवतः शोभनौ द्वादशान्त्यौ / तद्वच्चान्त्यौ सुगुरुतनुको वर्णिता सुप्रसिद्धा मन्दाक्रान्ता मभनततगा गः समुद्रतु लोकैः।।४७|| यदा पूर्वो हस्वः प्रभवति ततः षष्ठकपरा स्ततो वर्णाः पञ्च प्रकुशल ! तथैवात्र लघवः / त्रयोऽन्ये चोपान्त्याः प्रवरकविभिई सुभणिता रसै रुद्वैच्छिन्ना यमनसभला गः शिखरिणी // 48 // Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयमथ यत्र चेद्गुरु षडष्टमं द्वादशं चतुर्दशमपीह पश्चदशमान्तिमं स्यात्तथा / ततः प्रकथिता क्षमामतिमुने ! सुबोधान्वितै:: जसो जसयला वसुप्रहयतिश्च पृथ्वी गुरुः // 46 // विबुध ! लघवः पञ्च प्राच्यास्ततो दशमान्तिक स्तदनुविहितौ हस्वौ चेद्यत्र वै त्रिचतुर्दशौ / प्रभवति पुनयंत्रोपान्त्यस्तथैव सुभाषिता ... रसयुगहयैन्सौ म्रौ स्लो गो यदा हरिणी तदा // 50 // आद्याश्चेद्गुरवस्त्रयस्तदनु चेत्षष्ठस्तथा चाष्टमः स्यादेकादशतस्त्रयः खलु तथैवाष्टादशाद्यौ ततः / स्यादेवं ननु चान्तिमो भवति तच्छन्दोऽमृते चेन्मुने ! . सूर्याश्वैर्मसजाः स्तताः सगुरवः शार्दूलविक्रीडितम् / / 5 / / चत्वारो यत्र वर्णाः प्रथममलघवः पश्चमान्त्यौ तथैव दौ तद्वत्षोडशाद्यौ यदि गुरुतनुको षोडशान्त्यौ तथान्त्यौ / विद्ववृन्दैः सदा साऽन्वयगगनमणे ! सेविता सुप्रसिद्धा प्रौ भनौ यानां त्रयेण त्रिमुनियतियुता स्रग्धरा कीर्तितेयम् / / 52 / / , पूर्वग्रन्थानुसारेण, छन्दोऽमृतरसो मुदा।। छन्दोगणसुबोधार्य संक्षेपतः प्रकीर्तितः // 53 // अमृतसूरिशिष्येण जिनेन्द्रविजयेन यः / रसभूखद्रिके वर्षे गुम्फितो जामपट्टने // 4 // वेदान्ताचार्यवर्येण व्रजलालेन शोधितः / / जीयाकाव्यमतीनेष प्रददानो . मुदं सदा // 55 // - शिवमस्तु सर्वजगतः - Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // अहम् // // श्री प्राचाराङ्ग-सूत्रम् // // 1 // अथ प्रथमः श्रुतस्कंधः // // शस्त्रपरिज्ञा-अध्ययनं प्रथमोद्देशकः // सुयं मे पाउसं ! तेणां (प्रामुसतेगां, श्रावसंतेगां) भगवया एवमक्खायं-इहमेगेसिं णो सराणा भवइ ।सू. 1 // तं जहा-पुरस्थिमायो वा दिसायो यागयो ग्रहमंसि, दाहिणायो वा दिसायो ग्रागयो ग्रहमंसि, पञ्चत्थिमायो. वा दिसायो यागयो ग्रहमंसि, उत्तरायो वा दिसायो श्रागयो ग्रहमंपि, उडायो वा दिसायो यागयो ग्रहमंसि, ग्रहोदिसाए वा यागयो ग्रहमंसि, अरणयरीयो वा दिसायो अणुदिसायो वा बागयो अहमंसि, एवमेगेसि णो णायं भवति ॥सू० 2 // अत्थि मे पाया उववाइए, नत्थि मे पाया उववाइए, के अहं बासी ? के वा इथो चुए इह पेचा भविस्मामि ? ॥सू. 3 // से जं पुण जाणेज्जा सह संमइयाए परवागरगोणं अराणेसिं अंतिए वा सोचा तं जहा-पुरस्थिमायो वा दिसायो भागयो अहमंसि जाव अरणयरीयो दिसायो अणुदिसायो वा आगयो ग्रहमंसि एवमेगेसिं जं णायं भवति-अस्थि मे पाया उववाइए, जो इमायो दिसायो अणुदिसायो वा अणुसंचरइ (अणुसंसरइ), सव्वायो दिसायो अणुदिसायो, सोऽहं ॥सू० 4 // से अोयावादी लोयावादी कम्मावादी किरियावादी सू० 5 // अकरिस्सं चाहं कारवेसु चऽहं, करो श्रावि समगुन्ने भविस्तामि ॥सू० 6 // एयावंति सव्वावंति लोगंसि कम्मसमारंभा परिजाणियव्या भवंति ॥सू० 7 // अपरिगणायकम्मा(म्मे) खलु अयं पुरिसे जो इमायो दिसायो अणुदिसायो अणुसंचरइ, सव्वाश्रो दिसायो सव्वायो Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः प्रथमो विभागः अणुदिसायो साहेति ॥सू० 8 // यणेगरूपायो जोणीयो संधेइ (संधारइ), विरूवरूवे फासे पडिसंवेदे ॥सू० 1 // तत्थ खलु भगवता परिगणा पवेश्या ॥सू० 10 // इमस्त चेव जीवियस्त परिवंदणमाणणप्यणाए जाइमरणमोयणाए दुक्खपडिघायहेउं ॥सू० 11 // एयावंति सब्वावंति लोगंसि कम्मसमारंभा परिजाणियब्बा भवंति ॥सू० 12 // जस्सेते लोगंसि कम्मसमारंभा परिगणाया भवंति, से हु मुणी परिगणायकम्मे त्ति बेमि ।।सू० 13 // // इति प्रथमाद्देशकः // 1-1 // // अध्ययनं-१ उद्देशकः 2 // अटे लोए परिजुगणे दुस्संबोहे अविजाणए, यस्मि लोए पवहिए तत्थ तत्थ पुढो पास यातुरा परितावेति ॥सू. 14 // संति पाणा पुढो सिया लज्जमाणा पुढो पास; अणगारा मोत्ति एगे पवयमाणा, जमिणं विरुवरूवेहिं सत्येहिं पुढवीकम्मसमारंभेणं पुढवीसत्थं समारंभेमाणा अणेगरूवे पाणे विहिंसइ / तत्थ खलु भगवया परिगणा पवेड्या, इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदणमाणणपूयणाए जाइमरणमोयणाए दुक्खपडिघायहेउं स सयमेव पुयोसत्यं समारंभइ, अराणेहिं वा पुढविसत्थं समारंभावेइ, अराणे वा पुढविसत्थं समारंभंते समणुजाणइ ॥सू. 15 // तं से अहियाए तं से अबोहीए से तं संबुज्झमाणे पायाणीयं समुट्ठाय सोचा खलु भगवयो अणगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिं णात भाति-एस खलु गथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णरए, इच्चत्थं गडिए ल ए जमिणं विरूवरूवेहिं सत्येहिं पुढविकम्मसमारंभेण पुढविसत्थं समारंभमाणे अराणे यणेगरूवे पाणे विहिंसइ, से बेमि, अप्पेगे अंधमभे अप्पेगे अंधमच्छे अप्पेगे पायमभे अप्पेगे पायमच्छे अप्पेगे गुप्फमब्भे अप्पेगे गुप्फमच्छे अप्पेगे जंघमन्भे (2) अप्पेगे जाणुमभे (2) अप्पेगे ऊरुमब्भे (2) अप्पेगे कडिमन्भे (2) अप्पेगे णाभिमभे (२)अप्पेगे उदमभे (2) अप्पेगे पासमन्भे (2) अप्पेगे पिट्ठिमन्भे (2) अप्पेगे Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [3 श्री आचाराङ्ग-सूत्रम् :: श्रुस्किंधः 1 अध्ययनं 1 ] उरमभे (2) अप्पेगे हिययमन्भे (2) यप्पेगे थणमब्भे (2) अप्पेगे खंधमन्भे (2) अप्पेगे बाहुमभे (2) अप्पेगे हत्थमन्भे (2) अप्पेगे अंगुलिमन्भे (2) अप्पेगे णहमम्मे (2) अप्पेगे गीवमन्भे (2) अप्पेगे हणुममे (2) अप्पेगे होट्टमभे (2) अप्पेगे दंतमन्भे (2) अप्पेगे जीभमभे (2) अप्पेगे तालुमब्भे (2) यप्पेगे गलमम्मे (2) अप्पेगे गंडमभे (2) अप्पेगे कराणमन्भे (2) अप्पेगे णासमभे (2) अप्पेगे अच्छिमन्भे (2) अप्पेगे भमुहमभे (2) अप्पेगे णिडालम भे (2) अप्पेगे सीसमन्भे (2) अप्पेगे संपमारए अप्पेगे उद्दवए, इत्थं साथं समारंभमाणस्स इच्चेते ग्रारंभा अपरिगणाता भवंति ॥सू. 16 // एत्थ सत्थं असमारभमाणस इच्चेते यारंभा परिगणता भांति, ते परिरणाय मेहावी नेव सयं पुढवीसत्थं समारंभेजा, गोवराणेहिं पुढविसत्थं समारंभावेजा, गणेवराणे पुढविसत्थं समारंभंतो समगुजाणेजा, जस्सेते पुढविकम्मसमारंभा परिगणाता भवंति, से हु मुणी परिगणातकम्मे त्ति बेमि ।।सू. 17 // // इति द्वितीय उद्देशकः // 1-2 // अध्ययनं-१ उद्देशकः 3 से बेमि जहा अणगारे उज्जुकडे नियायपडिवगणे (निकायपडिबन्ने) यमायं कुब्वमाणे वियाहिए ॥सू० 18 // जाए सद्धाए निक्खंतो तमेव अगुपालिजा, वियहित्ता विसोत्तियं (विजहिता पुत्रसंजोय) ॥सू० 11 // पणया वीरा महावीहिं ॥सू० 20 // लोग व ग्राणाए अभिसमेचा अकुयोभयं ।।सू० 21 // से बेमि, णेव सयं लोगं अभाइक्खिज्जा, णेव यत्ताणं यभाइक्खिजा, जे लोयं अभाइक्खइ, से अत्ताणं अभाइक्खइ, जे अत्ताणं अभाइक्खइसे लोयं अभाइक्खइ ॥सू० 22 // लज्जमाणा पुढो पास; यणगारा मो त्ति एगे पश्यमाणा जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं उदयकम्मसमारंभेणं उदयसत्थं समारंभमाणे अराणे योगरूवे पाणे विहिंसइ / तत्थ खलु भगवता परिगणा पवेदिता। इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदणमाणण Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4] दुवा विभमा अदुवा अदिनादाणवी पासा, पुतण उदयजीवा विया जीवा [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : प्रथमो विभागः पूयणाए जाइमरणमोयणाए दुक्खपडिघायहेउं से सयमेव उदयसत्थं समारंभति, अराणेहिं वा उदयसत्यं समारंभावेति, अराणे उदयसत्थं समारंभते समणुजाणति। तं से अहियाए, तं से अबोहीए, से तं संबुझमाणे पायाणीय समुट्ठाय सोचा भगवयो अणगाराणं अंतिए इहमेगेसिं णायं भवति-एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णरए, इचत्थं गड्डिए लोए जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं उदयकम्मसमारंभेणं उदयसत्थं समारंभमाणे अराणे अणेगरूवे पाणे विहिंसइ / से बेमि संति पाणा उदयनिस्सया जीवा अणेगे ॥सू० 23 // इहं च खलु भो ! अणगाराणं उदयजीवा वियाहिया ॥सू० 24 // सत्यं चेत्थ अणवीइ पासा, पुढो सत्यं (पास) पवेइयं ॥सू० 25 // अदुवा अदिनादाणं ॥सू० 26 // कप्पइणे कप्पइ णे पाउं, अदुवा विभूसाए ।सू० 27 // पुढो सत्थेहिं विउट्टन्ति ।।सू० 28 // एत्थावि तेसिं नो निकरणाए ॥सू० 26 // एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेए प्रारंभा अपरिगणाया भवंति, एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते प्रारंभा परिराणाया भवंति, तं परिगणाय मेहावी णेव सयं उदयसत्यं समारम्भेजा, नेवराणेहिं उदयसत्थं समारंभावेजा, उदयसत्थं समारंभंतेऽवि श्ररणे ण समणुजाणेजा, जस्सेते उदयसत्थसमारंभा परिराणाया भवंति से हु मुणी परिगणातकम्मे त्ति बेमि ॥सू० 30 // // इति तृतीयोद्देशकः / / 1-3 // // अध्ययनं-१ उद्देशकः 4 // से बेमि णेव सयं लोग अभाइक्खेजा व अत्ताणं अब्भाइक्खेजा, जे लोयं अन्भाइक्खइ से अत्ताणं अभाइक्खइ जे अत्ताणं अभाइक्खइ से लोय अभाइक्खइ ॥सू० 31 // जे दीहलोगसत्थस्स खेयराणे से असत्थस्स खेयरणे, जे असत्थस्स खेयराणे से दीहलोगसत्थस्स खेयरणे ॥सू० 32 // वीरेहिं एवं अभिभूय दिठ, संजएहिं सया जत्तेहिं सया अप्पमत्तेहिं ॥सू० 33 // जे पमत्ते Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आचाराङ्ग-सूत्रम् श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 1 ] गुणट्ठीर से हु दंडेत्ति पवुच्चइ ॥सू० 34 // तं परिगणाय मेहावी इयाणिं जो जमहं पुब्वमकासी पमाएणं ॥सू० 35 // लजमाणा पुढो पास, अणगारा मोत्ति एगे पवदमाणा जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं अगणिकम्मसमारम्भेणं अगणिसत्थं समारंभमाणे अराणे अणेगरूवे पाणे विहिंसंति / तत्थ खलु भगवता परिराणा पवेदिता, इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदणमाणणपूयणाए जाइमरणामोयणाए दुक्खपडिघायहेउं से सयमेव अगणिसत्थं समारभइ, अण्णेहिं वा अगणिसत्थं समारंभावेइ अराणे वा अगणिसत्थं समारंभमाणे समणुजाणइ; तं से अहियाए, तं से अबोहियाए, से तं संबुज्झमाणे, श्रायाणीयं समुट्ठाय सोचा भगवयो अणगाराणं इहमेगेसिं णायं भवति–एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णरए, इचत्थं गड्डिए लोए जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं अगणिकम्मसमारंभमाणे अराणे योगरूवे पाणे विहिंसइ ।सू. 36 // से बेमि-संति पाणा पुढवीनिस्सिया, तणणिस्सिया, पत्तणिस्सिया, क्टुनिस्सिया, गोमयणिस्सिया, कयवरणिस्सिया, संति संपातिमा पाणा, याहच्च संपयंति, अगणिं च खलु पुट्ठा एगे संघायमावज्जंति, जे तत्थ संघायमावज्जति ते तत्थ परियावज्जति जे तत्थ परियावज्जति ते तत्थ उद्दायति ॥सू. 37 // एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते श्रारंभा अपरिगणाया भवंति, एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते प्रारंभा परिगणाया भवंति, तं परिगणाय मेहावी व सयं अगणिसत्थं समारंभे, नेवऽगणेहिं अगणिसत्थं समारंभावेजा, अगणिसत्थं समारंभमाणे असणे न समणुजाणेजा, जस्सेते अगणिकम्मसमारंभा परिगणाया भवंति, से हु मुणी परिराणायकम्मे त्ति बेमि ॥सू० 38 // // इति चतुर्थ उद्देशकः // 1-4 // Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः // अध्ययनं-१ उद्देशकः 5 // तं णो करिस्लामि समुहाए, मत्ता मइमं अभयं विदित्ता, तं जे णो करए एसोवरए, एत्थोवरए, एस अणगारेत्ति पवुच्चइ ॥सू. 36 // जे गुणे से श्रावटे जे प्रावटे से गुणे ॥सू० 40 // उड्ड ग्रहं तिरियं पाइणं पासमाणे रूवाई पासति, सुणमाणे सदाई सुणोति, उड्ड अहं पाइणं मुच्छमाणे रूवेसु मुच्छति, सेसेसु यावि।सू० 4 1 // एम लोए वियाहिए एत्थ अगुते अणाणाए ॥सू 42 // पुणो पुणो गुणासाए, वंकसमायारे सू० 43 // पमत्त गारमावसे ॥सू० 44 // लजमाणा पुढो पास, अणगारा मोत्ति एगे.. पवदमाणा जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं वगरसइकम्मसमारंभणं वणस्सइसत्थं समारममाणा अराणे अणेगरूवे पागो विहिंसंति, तत्थ खलु भगवया परिराणा पवेदिता, इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदणमाणणपूयणाए जाती(जरा)मरणमोयणाए दुक्खपडिघायहेउं से सयमेव वारसइसत्थं समारंभइ, अराणोहिं वा वणस्सइसेत्थं समारंभावेइ, अराणो वा वणस्सइसत्थं समारंभमाणे समणुजाणइ, तं से अहियाए, तं से अबोहीए, से तं संबुज्झमागो, पायाणीयं समुहाए सोचा भगवयो अणगाराग्ग वा यतिए इहमेगेसिंणायं भवति-एस खलु गंथे, एस खलु मोहे; एस खलु मारे, एस खनु णरये, इवत्थं गट्टिए लोए, जमिणं विरूवरूवेहिं सत्येहिं वणस्सइकम्नसमारंभेगणं वगरसइसत्थं समारंभमाणे अरणे अणेगरूवे पाणे विहिंसंति ॥सू. 45 // से बेमि, इमंपि जाइधम्मय, एयंधि जाइधम्मयं, इमपि वुड्डिधामयं, एयपि वुहिधामय, इमंपि चित्तमंतयं, एयपि चित्तमतयं, इमपि छिराणं मिलाइ, एयपि छिराणं मिलाइ, इमंपि याहारगं, एयपि याहारगं, इमंपि अणिचयं, एयपि अणिचयं, इमपि असासयं, एयपि असासयं (इमपि अधुवं एयपि अधुर्व) इमंपि चोर चइयं, एयंपि चोवचझ्यं इमंपि विपरिणामधामय (नामियं) एयपि विपरिणामधम्म ॥सू. 46 // एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते प्रारंभा अपरिराणाता भवंति, Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आचाराङ्ग-सूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 1 ] [7 एत्य सत्यं असमारंभन्माणस्न इच्वेते प्रारंभा परिणाया भवंति, तं परिगणाय मेहावी नेत्र सवस्मसह त्थं समारंभेजा, गेवराणेहिं वणस्मइमत्थं समारंभावेजा, गोवराणे वणस्पडसत्थं समारंभंते समगुजाणेजा, जस्सेते वणमाइसस्थामारंभा परिगणा या भवंति, से हु मुणो परिगणायक मे त्ति बेमि ।।सू०४७॥ // इति पंचम उद्देशकः // 1-5 // // अध्ययनं-१ : उद्देशकः 6 // से बेमि संतिमे तसा पाणा, तं जहा-अंडया पोयया जराउया रसया मंसेयया संमुच्छिमा उभियया उबवाइया, एस संसारेत्ति पन्चः ॥सू. 48 // मंदसलावियाणयो ।सू० 41 // निझाइत्ता पडिलेहिता पत्तेयं परिनिव्वाणं मवेसि पाणाणं सव्वेसिं भूयाणं, सबेसि जीवाणं, सब्वेसिं सत्ताणं अस्सायं यारिनिव्वाणं महभयं दुक्खं त्ति बेमि, तसंति पाणा पदिसो दिसासु य ॥सू० 50 // तत्थ तत्थ पुढो पास, यातुरा परिताति, संति पुढो सिया सू० 51 // लजमाणा पुढो पास, अणगारा मोत्ति एगे पवयमाणा जमिण विख्वस्वेहिं सत्थेहिं तसकायसमारभेण तसकायसत्थं समारंभमाणा घराणे योगरूवे पाणे विहिंमति, तत्थ खलु भगक्या परिराणा पवेइया, इमस्स वेव जीवियस्म परिवंदणमाणणपूयणाए जाइमरणमोयणाए दुक्खपडिघायहेउं से सयमेव तस कायमत्थं समारंभति, अराणेहिं वा तसकायसत्थं समारंभावेइ, अगणे वा तसकापसत्थं समारंभमाणे समणुजाणइ तं से अहियाए, तं से अबोहोए से तं संबुज्झमाणे यायाणीयं समुट्ठाय सोचा खलु भगवयो यणगाराणं अंतिए इहमेगेसिं णायं भवति–एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णरए, इचत्थं गड्डिए लोए जमिणं विख्वरूवेहिं सत्थेहिं तसकायसमारंभेण तसकायसत्थं समारंभमाणे अराणे अणेगरूवे पाणे विहिसति ॥सू. 52 // से बेमि अप्पेगे अचाए हणंति, अप्पेगे अजिणाए वहंति, अप्पेगे मंसाए वहंति, अप्पेगे सोणियाए वहन्ति, एवं हिययाए पित्ताए वसाए Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 8] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः पिच्छाए पुच्छाए वालाए सिंगाए विसाणाए दंताए दादाए णहाए राहारुणीए अट्ठीए अट्टिमिंजाए अट्टाए यणट्टाए, अप्पेगे हिंसिसु मेत्ति वा वहंति, अधेगे हिंसंति मेत्ति वा वहति, अप्पेगे हिंसिस्संति मेत्ति वा वहति ॥सू० 53 // एत्यं सत्थं समारभमाणस्स इच्चेते यारंभा अपरिराणाया भवंति, एत्थ सत्थं यसमारभमाणस्स इच्चेते श्रारभा परिराणाया भवति, तं परिगणाय मेहावी णेव सयं तसकायसत्थं समारंभेजा, णेवऽराणेहिं तसकायसत्थ समारंभावेजा, णेवाणे तप्सकायमत्थं समारभंते समणुजाणेजा, जस्सेते तसकायसस्थसमारंभा परिराणाया भवंति, से हु मुणी परिराणायकम्मे त्ति बेमि ॥सू० 54 // // इति षष्ठ उद्देशकः // 1-6 // // अध्ययनं-१ : उद्देशकः 7 // पहू एजस्स (एगस्स) दुगुछणाए ॥सू० 55 // यायंकदंसी अहियंति णचा, जे अज्झत्थं जाणइ से बहिया जाणइ, जे बहिया जाणइ से अज्झस्थं जाणइ, एयं तुलमन्नेसिं ॥सू० 56 // इह संतिगया दविया णावकखंति जीविउं ।सू० 57aa लज्जमाणे पुढो पारस, अणगारा मोत्ति एगे पवयमाणा जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं वाउकम्मसमारंभेणं वासस्थं समारंभमाणे अराणे श्रणेगरूवे पाणे विहिंसति / तत्थ खलु भगवया परिगणा पवेझ्या / इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदणमाणणपूयणाए जाइमरणमोयगाए दुवखपडिघायहेउ से सयमेव वाउसत्थं समारंभति, अगणेहिं वा वाउसस्थं समारंभावेइ, अराणे वाउसत्यं समारंभंते समणुजाणति, तं से अहियाए, तं से अबोहिए, से तं संबुज्झमाणे पायाणीए समुट्ठाए सोचा भगवो अणगाराणं अंतिए इहमेगेसिं णायं भवति-एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु गिरए, इच्चत्थं गड्डिए लोए जमिणं विरूवरूवहिं सत्थेहिं वाउकम्मसमारंभेणं वाउसत्थं समारंभमाणे अराणे अणेगरूवे पाणे विहिंसति ॥सू० 58 // से बेमि संति संपाइमा पाणा ग्राहच संपयंति य फरिसं च खलु पुट्ठा एगे संघायमावंजंति, Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आचाराङ्ग-सूत्रम् / श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 2 ] [ह जे तत्थ संघायमावजंति ते तत्थ परियावज्जति, जे तस्थ परियावज्जति ते तत्थ उदायंति, एस्थ सत्थं समारभमाणस्स इच्चते प्रारंभा अपरिगणया भवति, एत्थ सत्थं असमारभमाणस्स इच्चेते श्रारंभा परिगणाया भवंति, तं परिगणाय मेहावी व सयं वाउसत्थं समारंभेजा, रोवराणेहिं वाउसत्थं समारंभावेजा, णेवऽरणे वाउसत्थं समारंभंते समणुजाणेजा, जस्सेते वाउस(थसमारंभ परिणाया भवंति, से हु मुणी परिराणायकम्मेत्ति बेमि ॥सू० 51 // एत्थंपि जाणे उवादीयमाणा, जे पायारे ण रमंति, यारंभमाणा विणयं वयंति, छंदोवणीया अझोववराणा, प्रारंभसत्ता पकरति संगं ।।सू. 60 // से वसुमं समराणागयपराणाणेणं अप्पाणेणं अकरणिज्जं पावं कम्मं णो अरणेसिं तं परिगणाय मेहावी व सयं छज्जीवनिकायसत्थं समारंभेजा, णेवऽराणेहिं छज्जीवनिकायसत्थं समारभावेजा, गोवऽराणे छज्जीवनिकायसत्थं समारंभंते समणुजाणेज्जा, जस्सेते छजीवनिकायमत्थसमारंभा परिणाया भवंति से हु मुणी परिगणायकम्मे त्ति बेमि ॥सू० 61 // ॥इति सप्तमोद्देशकः // १-७॥इति प्रथममध्ययनम् // 1 // // 2 : लोकविजय-अध्ययनं : उद्देशकः-१॥ जे गुणे से मुलडाणे, जे भूलट्ठाणे से गुणे / इति से गुणट्ठी महया परियावेणं पुणो पुणो रसे पमत्ते–माया मे, पिया मे, भाया मे, भगिणी मे, भजा मे, पुत्ता मे, धूया मे, गहुसा मे, सहिसयणसंगंथसंथुत्रा मे, विवित्तुवगरणपरिवट्टणभोयणच्छायणं मे / इञ्चत्थं गड्डिए लोए यहो य रायो य परितप्पमाणे कालाकालसमुट्ठाई संजोगट्ठी अट्ठालोभी पालुपे सहसाकारे विणिविट्ठचित्ते, एत्थ सत्थे पुणो पुणो, अप्प च खलु पाउयं इहमेगेसिं माणवाणं तं जहा-सू० ६२॥सोयपरिगणाणेहिं परिहायमाणेहिं, चक्खुपरिगणाणेहिं परिहायमाणेहिं, घाणपरिगणाणेहिं परिहायमाणेहिं रस Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः णापरिगणाणेहिं परिहायमाणेहिं फासपरिगणाणेहिं परिहायमाणेहिं अभिकंतं च खलु वयं संपेहाए तयो से एगदा मूढभावं जयंति ॥सू० 63 // जेहिं वा सद्धि संवसति ते वि णं एगदा णियगा पुब्बिं परिवयंति सोऽवि ते णियए पच्छा परिवएजा, णालं ते तव ताणाए वा सरणाए वा, तुमपि तेसिं णालं ताणाए वा सरण ए वा, से ण हासाय ण किड्डाए ण रतीए ण विभूसाए ॥सू० 64 // इच्चेवं समुट्ठिए ग्रहोविहाराए अंतरं च खलु इमं संपेहाए धीरे मुहुत्तमवि णो पमायए वयो अच्चेति जोव्वणं व ॥सू० 65 // जीविए इह जे पमत्ता से हंता छेत्ता भेत्ता लुपित्ता विलुपित्ता उद्दवित्ता उत्तासइत्ता, अकडं करिस्सामित्ति मण्णमाणे, जेहिं वा सद्धिं संवसइ ते वा णं एगया नियगा तं पुब्बिं पोसेंति, सो वा ते नियगे पच्छा पोसिजा, नालं ते तव ताणाए वा सरणाए वा, तुमंपि तेसिं नालं ताणाए वा सरणाए वा ॥सू० 66 // उवाइयसेसेण या संनिहिसंनिचयो किजइ, इहमेगेसिं असंजयाण भोयणाए, तयो से एयगा रोगसमुप्पाया समुप्पज्जति, जेहिं वा सद्धिं संवसइ ते वा णं एयगा नियगा तं पुब् िपरिहरति, सो वा ते नियगे पच्छा परिहरिजा, नालं ते तव ताणाए वा सरणाए वा, तुमंपि तेसिं नालं ताणाए वा सरणाए वा ॥सू० 67 // जाणित्तु दुक्खं पत्तेयं सायं ॥सू० 68 // अणभिक्कं च खलु वयं संपेहाए ॥सू०६६॥ खणं जाणाहि पंडिए ॥सू० 70 // जाव सोयपरिगणाणा अपरिहीणा, नेत्तपरिराणाणा अपरिहीणा, घाणपरिगणाणा अपरिहीणा, जीहपरिगणाणा अपरिहीणा, फरिसपरिगणाणा अपरिहीणा इच्चेएहिं विरूवरूवेहिं पण्णाणेहिं अपरिहीणेहिं, पायठं संमं समणुवासिन्जासि त्ति बेमि ॥सू०७१॥ // इति प्रथमोद्देशकः // 2-1 // Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 11 श्री आचाराङ्ग-सूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 2 ] // अध्ययनं-२ : उद्देशकः-२॥ अरई अउट्टे स मेहावी, खणंसि मुक्के ॥सू० 72 // श्रणाणाय पुट्ठावि एगे नियति, मंदा मोहेण पाउडा, अपरिग्गहा भविस्सामो समुट्ठाय लद्रे कामे अभिगाहइ, यणाणाए मुणिणो पडिलेहंति, इत्थ मोहे पुणो पुणो सन्ना नो हब्बाए नो पाराए ॥सू० 73 // विमुत्ता हु ते जणा जे जणा पारगामिणो लोभमलोभेण दुगुछमाणे लद्धे कामे नाभिगाहइ ॥सू० 74 // विणावि लोभं निक्खम्म एस अकम्मे जाणइ पासइ पडिलेहाए नावकंखड, एस यणगारित्ति पवुच्चइ, अहो य रायो परितप्पमाणे कालाकालसमुट्ठाई संजोगट्ठी अट्ठालोभी बालुपे सहकारे विणिविठ्ठचिते, इस्थ सत्थे पुणो पुणो से श्रायबले, से नाइबले, से सयणवले, से मित्तबले, से पिञ्चबले, से देवबले, से रायवले, से चोरबले, से अतिहिबले, से किविणवले, से समणवले इच्चेएहिं विरूवरूवेहिं कज्जेहिं दंडसमायाणं संपेहाए भया कज्जइ, पावमुक्खुत्ति मन्नमाणे अदुवा यासंसाए ॥सू० 75 // तं परिगणाय मेहावी नेव सयं एएहिं कज्जेहिं दंडं समारंभिजा, णेव अन्नं एएहिं कज्जेहिं दंडं समारंभाविजा, एएहिं कज्जेहिं दंडं समारंभंतंपि अन्नं न समणुजाणिजा, एस मग्गे पारिएहिं पवेइए, जहेत्थ कुसले नोवलिंपिजासि त्ति बेमि ॥सू० 76 // // इति द्वितीय उद्देशकः // 2-2 // // अध्ययनं-२ उद्देशकः-३ // से असई उच्चागोए असई नीयागोए, नो हीणे नो अइरित्ते (एगमेगे खलु जीवे अईअदाए असइ उच्चागोए असइ नीयागोए, कंडगट्ठयाए नो हीणे नो अइरित्ते) नोऽपीहए, इय संखाय को गोयावाइ को माणावाइ ? कंसि वा एगे गिज्मा, तम्हा नो हरिसे नो कुप्पे, भूएहिं जाण पडिलेह सायं ॥सू० 77 // समिए एयाणुपस्सी (पुरिसे णं खलु दुक्खुव्वेअसुहेसए) Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 12 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः तं जहा, अन्धत्तं बहिरत्तं मूयत्तं काणत्तं कुंटत्तं खुजत्तं वडभत्तं सामत्तं सबलत्तं सह पमाएणं अणेगरुवायो जोणीयो संधायइ विरूवरूवे फासे परिसंवेयइ ॥सू०७८॥ से अबुझमाणे होवहए जाइमरणं अणुपरियट्टमाणे, जीवियं पुढो पियं इहमेगेसिं माणवाणं खित्तवत्थुममायमाणाणं, भारत्तं विरतं मणिकुंडलं सह हिरराणेण इत्थियायो परिगिज्झति तत्थेव रत्ता, न इत्थ तवो वा दमो वा नियमो वा दिस्सइ, संपुराणं बाले जीविउकामे लालप्पमाणे मूढे विप्परियासमुवेइ ॥सू० 79 // इणमेव नावखंति, जे जगा धुवचारिणो। जाइमरणं परिनाय, चरे संकमणे बढे, नथि कालस्स णागमो, सव्वे पाणा पियाउया (पियायया) सुहसाया दुक्खपडिकूला अप्पियवहा पियजीविणो जीविउकामा, सव्वेसिं जीवियं पियं, तं परिगिज्म दुपयं चउप्पयं अभिजु. जिया णं संसिंचिया णं तिविहेण जाऽवि से तस्थ मत्ता भवइ अप्पा वा बहुया वा, से तत्थ गड्डिए चिट्ठइ, भोषणाए, तयो से एगया विविहं परिसिटुं संभूयं महोवगरणं भवइ, तंपि से एगया दायाया वा विभयन्ति, श्रदत्तहारो वा से अवहरति, रायाणो वा से विलुपंति, नस्सइ वा से, विणस्सइ वा से, अगारदाहेण वा से डज्झइ इय, से परस्सऽट्ठाए कूराई कम्माइं बाले पकुवमाणे तेण दुक्खेण संमूढे विप्परियासमुवेइ, मुणिणा हु एवं पवेइयं, अणोहंतरा एए नो य योहं तरित्तए, अतीरंगमा एए नो य तीरं गमित्तए, अपारंगमा एए नो य पारं गमित्तए, श्रायाणिज्जं च श्रायाय तंमि ठाणे न चिट्ठइ, वितहं पप्पऽखेयन्ने तंमि ठाणंमि चिट्टइ ॥सू० 80 // उसो पासगस्स नत्थि, बाले पुण निहे कामसमणुन्ने असमियदुवखे दुक्खी दुक्खाणमेव श्रावटुं अणुपरियट्टइ त्ति बेमि ॥सू० 81 // // इति तृतीयोद्देशकः // 2-3 // Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 13 श्री आचाराङ्ग-सूत्रम् श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 2 ] // अध्ययनं-२ उद्देशकः-४ // तयो से एगया रोगसमुप्पाया समुप्पज्जंति, जेहिं वा सद्धिं संवसइ ते व णं एगया नियया पुब्बिं परिवयंति, सो वा ते नियगे पच्छा परिवइज्जा, नालं ते तव ताणाए वा, सरणाए वा, तुमपि तेसिं नालं ताणाए वा, सरणाए वा, जाणितु दुक्खं पत्तेयं सायं, भोगा मे व अणुसोयन्ति इहमेगेसि माणवाणं ॥सू० 82 // तिविहेण जाऽवि से तत्थ मत्ता भवइ अप्पा वा बहुगा वा, से तत्थ गड्डिए चिट्टइ, भोयणाए, तयो से एगया विपरिसिटुं संभूयं महावगरणं भवइ, तंपि से एगमा दायाया विभयंति, अदत्तहारो वा से हरति, रायाणो वा से विलुपंति नस्सइ वा से, विणस्तइ वा से. अगारदाहेण वा से डझइ इय, से परस्स अट्टाए कूराणि कम्माणि बाले पकुव्वमाणे तेण दुक्खेण मूढे विपरियासमुवेइ ।।सू० 83 // यासं च छन्दं च विगिं च धीरे!, तुमं चेव तं सल्लमाहटु जेण सिया तेण नो सिया, इणमेव नावबुज्झति जे जणा मोहपाउडा, थीभि लोए पव्वहिए, ते भो ! वयंति एयाई प्राययणाइं से दुक्खाए मोहाए माराए नरगाए नरगतिरिक्खाए, सययं मूढे धम्म नाभिजाणइ. उयाहु वीरे, अप्पमायो महामोहे, अलं कुसलस्स पमाएणं, संतिमरणं संपेहाए भेउरधम्म संपेहाए नालं पास अलं ते एएहिं ॥सू०८४॥ एयं पस्स मुणी ! महब्भयं, नाइवाइज कंचणं एस वीरे पसंसिए जे न निविजइ अायाणाए. न मे देइ न कुपिज्जा थोवं लद्धं न खिसए, पडिसेहियो (पडिलाभियो) परिणमिज्जा, एयं मोणं समणुवासिज्जासि त्ति बेमि॥सू० 85 / / // इति चतुर्थोद्देशकः // 2-4 // // अध्ययनं-२ उद्देशकः-५ // जमिणं विरूवरूवेहिं सत्येहिं लोगस्स कम्मसमारंभा कज्जंति, तं जहा अप्पणो से पुत्ताणं, धूयाणं, सुराहाणं, नाइणं, धाइणं, राइणं, दासाणं, Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 14 ] __ [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / प्रथमो विभागः दासीणं, कम्मकराणं, कम्मकरीणं पाएसाए पुढोपहेणाए, सामासाए, पायरासाए, संनिहिसंनिचयो कज्जइ, इहमेगेसिं माणवाणं भोयणाए ।सू० 86 // समुट्ठिए अणगारे ग्रारिए पारियपन्ने पारियदंसी अयंसंधित्ति अदक्खु, से नाइए नाइयावए न समणुजाणइ, सब्बामगंधं परिन्नाय निरामगंधो परिवए ॥सू. 87 // यदिस्समाणे कयविक्कयेसु, से ण किणो, न किणावए, कितन समणुजाणइ, से भिक्खू कालन्ने, बालन्ने, मायन्ने, खेरन्ने, खणयन्ने, विणयन्ने स-समय-पर-समयन्ने, भावन्ने, परिग्गहं अममायमाणे कालाणुहाइ अपडिरणे ॥सू० 88 // दुहयो छेत्ता नियाइ, वत्थं, पडिग्गहं, कंबलं, पायपुंछणं, उग्गहणं च कडासणं एएसु चेव जाणिज्जा ।सू० 86 // लद्धे याहारे यणगारो मायं जाणि(ए)ज्जा, से जहेयं भगवया पवेइयं, लाभुत्ति न मज्जिज्जा, अलाभुत्ति न सोइज्जा, बहुपि लथुन निहे, परिग्गहायो अप्पाणं अवसकिज्जा ॥सू. 10 // अन्नहा णं पासए परिहरिज्जा, एस मग्गे थायरिएहिं पवेइए, जहित्थ कुसले नोवलिंपिज्जासि त्ति बेमि ॥सू० 11 // कामा दुरतिकमा, जीवियं दुष्पडिवूहगं, कामकामी खलु अय पुरिसे, से सोयइ जूरइ तिप्पइ परितप्पइ ।।सू. 12 // श्राययचवखू लोगविपस्सी लोगस्स ग्रहो भागं जाणइ, उर्दु भागं जाणइ, तिरियं भागं जाणइ, गडिए लोए अणुपरियट्टमाणे, संधि विइत्ता इह मच्चिएहि, एस वीरे पसंसिए जे बद्धे पडिमोयए, जहा अंतो तहा बाहिं, जहा बाहिं तहा अंतो, अंतो अंतो पुइदेहंतराणि पासइ, पुढोवि सवंताई पंडिए पडिलेहाए ॥सू० 13 // से मइमं परिनाय मा य हु लालं पचासी, मा तेसु तिरिच्छमप्पाण-मावायए, कासंकासे खलु अयं पुरिसे, बहुमाई कडेण मूढे, पुणो तं करेइ लोहं, वेरं वड्डइ अप्पणो, जमिणं परिकहिज्जइ इमस्स चेव पडिवूहणयाए, अमरा य महासडी अट्टमेयं तु पेहाए अपरिगणाए कंदइ ।सू० 14 // से तं जाणह जमहं बेमि, तेइच्छं पंडिए पवयमाणे से इंता छित्ता भित्ता Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आचाराङ्ग-सूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 2 ] [ 15 लुपइत्ता विलुपइत्ता उद्दवइत्ता, अकडं करिस्सामित्ति मन्नमाणे, जस्सवि य णं करेइ, अलं बालस्स संगेणं, जे वा से कारइ बाले, न एवं यणगारस्स जायइ त्ति बेमि ॥सू० 15 // // इति पंचमोद्देशकः // 2-5 // // अध्ययनं-२ उद्देशकः-६ // से तं संबुज्झमाणे अायाणीयं समुट्ठाय तम्हा पावकम्मं नेव कुज्जा, न कारवेज्जा ॥सू० 16 // सिया तत्थ एगयरं विष्परामुसइ छसु अन्नयरंमि, कप्पइ सुहट्ठी लालपमाणे, सएण दुक्खेण मुढे विप्परियासमुवेइ, सएण विप्पमाएण पुढो वयं पकुवइ, जंसिमे पाणा पव्वहिया, पडिलेहाए नो निकरणयाए, एस परिन्ना पवुच्चइ, कम्मोवसंती ॥सू० 17 // जे ममाइयमई जहाइ स चयइ माइयं, से हु दिट्ठपहे मुणी जस्स नस्थि ममाइयं, तं परिन्नाय मेहावी विइत्ता लोगं वंता लोगसन्नं से मइमं परिकमिज्जासि त्ति बेमि // नारई सहइ वीरे वीरे न सहइ रति // जम्हा अविमणे वीरे, तम्हा वीरे न रज्जइ // 1 // सू० 18 // सद्द फासे अहियासमाणे, निविंद नंदि इह जीवियस्स / मुणी मोणं समायाय, धुणे कम्म सरीरगं // 2 // पंतं लुहं सेवंति, वीरा संमत्तदंसिणो। एस योहंतरे मुणी, तिन्ने मुत्ते विरए वियाहिए // 3 // ति बेमि ॥सू० 16 // दुव्वसुमुणी अणाणाए, तुच्छए गिलाइ वत्तए, एस वीरे पसंसिए, अच्चेइ लोयसंजोगं, एस नाए पवुचइ ॥सू० 100 // जं दुक्खं पवेइयं इह माणवाणं तरस दुक्खस्स कुसला परिन्नमुदाहरंति, इह कम्मं परिनाय सव्वसो जे अणन्नदंसी से अणन्नारामे, जे अणाणारामे से अणनदंसी, जहा पुराणस्स कथइ तहा तुच्छस्स कथइ, जहा तुच्छस्स कथइ तहा पुराणस्स कथइ ।सू० 101 // अवि य हणे, अणाइयमाणे, इत्थंपि जाण सेयंति नस्थि केयं पुरिसे कंच नए ! एस वीरे पसंसिए, जे बद्धे पडिमोयए, उड्डे अहं तिरियं दिसासु, से सव्वो Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 16 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः सवपरिन्नाचारी, न लिप्पइ छणपएण; वीरे, से मेहावि अणुग्घायणखेयन्ने जे य बन्धपमुक्खमन्नेसी कुसले पुण नो बद्धे नो मुक्के ।।सू० 102 // से जं च प्रारंभे जं च नारभे, अणारद्धं च न थारभे, छणं छणं परिगणाय लोगसन्नं च न सचसो ॥सू० 103 // उद्दे सो पासगस्त नत्थि, बाले पुणे निहे कामसमणुन्ने, असमियदुक्खे दुक्खी दुक्खाणमेव श्रावटै अणुपरियट्टइ त्ति बेमि ॥सू० 104 // // इति षष्ठोद्देशकः // 2-6 // इति द्वितीय मध्ययनम् // 2 / / ॥३:शीतोष्णीयाध्ययन-३ उद्देशकः-१ // सुत्ता अमुणी सया मुणिणो जागरंति ।।सू० 105 // लोयंसि जाण अहियाय दुक्खं, समयं लोगस्त जाणित्ता, इत्थ सत्थोवरए, जस्सिमे संदा य रूवा य रसा य गंवा य फासा य अभिसमन्नागया भवंति ॥सू. 106 // से प्रायवं नाणवं वेयवं धंमवं बंभवं पनाणेहिं परियाणइ लोयं, मुणीति वुच्चे, धम्मविऊ उज्जू, पावट्टसोए संगमभिजाणइ ॥सू. 107 // सीउसिणचाई से निग्गंथे अरइरइसहे, करुसयं नो वेएइ, जागरे वेरोवरए वीरे एवं दुक्खा पमुक्खसि, जरामच्चुवसोवणिए नरे सययं मूढे धम्म नाभिजाणइ ॥सू० 108 // पासिय पाउरपाणे अप्पमत्तो, परिव्वए मंता य मइम, पास प्रारंभनं दुक्खमिणं ति णचा, माइ पमाइ पुण एइ गर्भ, उवेहमाणो सहरुवेसु उज्जू माराभिसंकी मरणा पमुचइ, अप्पमत्तो कामेहिं, उबरयो पावकम्मेहिं, वीरे धायगुते खेयन्ने, जे पज्जवजायसत्थस्स खेयराणे, से असत्थरस खेयराणे जे असत्थस्त खेयराणे से पज्जवजायसत्थस्स खेयराणे, अकम्मस्स ववहारो न विजइ, कम्मुणा उवाही जायइ; कम्मं च पडिलेहाए ॥सू० 101 // कम्ममूलं च जं छणं, पडिलेहिय सव्वं सामायाय दोहिं अंतेहिं अदिस्समाणे तं परिनाय मेहावी विइत्ता लोगं वंता लोगसन्नं से मेहावी परिकमिजासि त्ति बेमि ॥सू० 110 // // इति प्रथमोद्देशकः // 3-1 // Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आचाराङ्गसूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 2 ] [ 17 // अध्ययनं-३ : उद्देशकः-२ // जाई च बुद्धिं च इहऽज ! पासे, भूएहिं जाणे पडिलेहसायं // तम्हातिविज्जे परमंति णाचा, संमत्तदंसी न करेइ पावं // 1 // उम्मुच पास इह मच्चिएहिं, ग्रारंभजीवी उभयाणुपस्सी / कामेसु गिद्धा निचयं करति, संसिचमाणा पुणरिंति गभं // 2 // अवि से हासमासज्ज, हंता नंदीति मन्नइ / / अलं बालस्स संगेण, वेरं वड्ढेइ अप्पणो // 3 // तम्हातिविज्जो परमंति णचा, यायंकदंसी न करेइ पावं // अग्गं च मूलं च विगिंच धीरे, पलिच्छिदिया णं निकमदंसी // 4 // एस मरणा पमुच्चइ, से हु दिट्ठभए मुणी, लोगंसि परमदंसी विवित्तजीवी उवसंते समिए सहिए सयाजए कालकंखी परिवए, बहुच खलु पावं कम्मं पगडं ॥सू० 111 // सिञ्चमि धिई कुव्वहा, एत्थोवरए मेहावी सव्वं पावं कम्मं जोसइ ॥सू० 112 // अणेगचित्ते खलु अयं पुरिसे, से केयणं अरिहए पूरिगणए, से अण्णवहाए अण्णपरियावाए गएणपरिग्गहाए, जणवयवहाए जणवयपरियावाए जणवयपरिग्गहाए ॥सू० 113 // यासेवित्ता एतं(वं) अट्ठ इच्चेवेगे समुट्ठिया, तम्हा तं बिइयं नो सेवे, निस्सारं पासिय नाणी, उववायं चवणं णचा अणगणं चर माहणे से न छणे न छणावए छणतं नाणुजाणइ, निव्दि नंदि, अरए पयासु, अणोमदंसी निसराणे पावेहिं कम्मेहिं ॥सू० 114 // कोहाइमाणं हणिया य वीरे, लोभस्स पासे निरयं महतं // तन्हा य(हि) वीरे विरए वहायो, बिंदिज सोयं लहुभूयगामी // 1 // गंथं परिगणाय इहज ! धीरे, सोयं परिगणाय चरिज दंते // उम्मज लद्भुइह माणवेहिं, नो पाणिणं पाणे समारभिज्जा सि // 2 // ति बेमि // // इति द्वितीय उद्देशकः // 3-2 / / Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 18 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः // अध्ययनं-३ : उद्देशकः-३ // संधि लोयस्स जाणित्ता, बाययो बहिया पास, तम्हा न हंता, न वि घायए, जमिणं अन्नमन्नवितिगिच्छाए पडिलेहाए न करेइ पावं कम्म, किं तत्थ मुणी कारणं सिया ? ॥सू० 115 // समयं तत्थुवेहाए अप्पाणं विप्पसायए- अणनपरमं नाणी, नोपमाए कयाइ वि / प्रायगुते सया वीरे, जायामायाइ जावए // 1 // विरागं रूवहिं गच्छिज्जा महया खुडुएहि य, थागई गई परिराणाय दोहिवि अतेहिं अदिरसमाणेहिं से न लिज्जइ, न भिज्जइ, न डझइ, न हमइ कंचणं सब्बलोए ॥सू. 116 // अवरेण पुचि न सरंति एगे, किमस्स तीयं किं वाऽऽगमिस्सं / भासंति एगे इह माणवायो, जमस्स तीयं तमागमिस्सं // 1 // (अवरेणपुब् िकिह से अतीतं, किह श्रागमिस्सं न सरंति एगे। श्रासंति एगे इह माणवायो, नह से अईयं तह ग्रागमिस्सं // 1) नाईयमट्ठन य श्रागमिस्सं, अट्ठ नियच्छन्ति तहागयाउ / विहुयकप्पे एयाणुपस्सी, निझोसइत्ता खवगे महेसी // 2 // का अरइ के याणंदे ?, इत्थंपि अग्गहे चरे, सव्वं हासं परिचज पालीणगुत्तो परिव्वए, पुरिसा ! तुममेव तुम मित्तं, किं बहिया मित्तमिच्छसि ? सू० 117 // जं जाणिज्जा उच्चालइयं तं जाणिजा दूरालइयं, जं जाणिज्जा दूरालइयं तं जाणिज्जा उच्चालइयं, पुरिसा ! अत्ताणमेवं अभिणिगिझ एवं दुक्खा पमुच्चसि, पुरिसा ! सचमेव समभिजाणाहि, सच्चस्स याणाए से उवट्ठिए मेहावी मारं तरइ, सहियो धम्ममायाय सेयं समणुपस्सइ ।सू० 118 // दुहयो जीविअस्स परिवंदणमाणणप्यणाए जसि एगे पमायंति॥सू०१११॥ सहियो दुक्खमत्ताए पुट्ठो नो झझाए, पासिमं दविए लोकालोकपवंचायो मुचइ त्ति बेमि ॥सू. 120 // // इति तृतीयोद्देशकः // 3-3 // Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आचाराङ्गसूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 3 ] [ 19 // अध्ययनं-३ : उद्देशकः-४ // से वंता कोहं च माणं च मायं च लोभं च, एयं पासगस्स देसणं, उवरयसत्यस पलियंतकरस्स, अायाणं सगडभि ॥सू. 121 // जे एगं जाणइ से सवं जाणइ. जे सव्वं जाणइ से एगं जाणइ ॥सू. 122 // सव्वयो एमत्तस्स भयं, सव्वयो अपमत्तस्स नस्थि भयं, जे एगं नामे से बहुं नामे, जे बहुं नामे से एगं नामे; दुवखं लोगस्स जाणित्ता वंता लोगस्स संजोगं जंति धीरा महाजाणं, परेण परं अंति, नावखंति जीवियं ॥सू. 123 // एगं विगिंचमाणे पुढो विगिचइ, पुढोवि, सड्डी प्राणाए मेहादी लोगं च गाए अभिसमिच्चा अकुयोभयं, अत्थि सत्थं परेण परं, नथि यू.सत्यं परेण परं ॥सू० 124 // जे कोहदंसी से माणदंसी, जे माणदंसी से मायादंसी, जे मायादंसी से लोभदंसी, जे लोभदंसी से पिज्जदंसी, जे पिज्ज सी से दोसदंसी, जे दोसदंसी से मोहदंसी, जे मोहदंसी से गम्भदेसी, जे गम्भदंसी से जम्मदंसी, जे जम्मदंसी से मारदंसी, जे मारदंसी से नरय दंसी, जे नरयदंसी से तिरियदंसी, जे तिरियदंसी से दुक्खदंसी / से मेहावी भिणिवट्टिज्जा, कोहं च माणं च मायं च लोमं च पिज्जं च दोसं च मोहं * च गन्मं च जम्मं च मारं च नरयं च तिरियं च दुक्खं च, एयं पासगरम दंसणं उवरयसत्थस्स पलियंतकरस्स, बायाणं निसिद्धा सगडन्भि, किमाथ योबाही पासगस्स ? न विज्झइ ? नत्थि त्ति बेमि ॥सू० 125 // // इनि चतुर्थ उद्देशकः // 3-4 / / इति तृतीयमध्ययनम् // 3 // // 4 : सम्यक्त्वाध्ययन-४ : उद्देशकः-१ // से बेमि जे अईया, जे य पडुपन्ना, आगमिस्सा अरहंता भगवंतो, ते सब्वे एवमाइक्खन्ति, एवं भासंति, एवं पराणविंति, एवं परूविंति-सब्वे पाणा सब्वे भूया सव्वे जीवा सब्वे सत्ता न हंतव्वा, न अज्जावेयव्वा, न परिधि Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 20 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः त्तव्वा, न परियावेयव्वा, न उद्दवेयव्वा, एस धम्मे शुद्धे निइए समिच लोयं खेयराणेहिं पवेइए, तं जहा-उट्ठिएसु वा, अणुट्टिएसु वा, उवट्ठिएसु वा, अणुवट्ठिएसु वा, उवरयदंडेसु वा, अणुवरयदंडेसु वा, सोवहिएसु वा, अणोवहिएसु वा, संजोगरएसु वा, असंजोगरएसु वा, तच्चं चेयं तहा चेयं अस्सि चेयं पवुच्चइ ॥सू. 126 // तं श्राइत्तु न निहे न निक्खिवे जाणित्तु धम्मं जहा तहा दिठेहिं निव्वेयंगच्छिज्जा, नो लोगस्सेसणं चरे॥सू० 127 // जस्स नत्थि इमा जाइ अण्णा तस्स कयो सिया ?, दिटुं सुयं मयं विराणायं जं एवं परिकहिजइ, समेमाणा पलेमाणा पुणो पुणो जाई पकप्पति ॥सू. 128 // ग्रहो अरायो य जयमाणे धीरे सया भागयपराणाणे पमत्ते बहिया पास, अप्पमते सया परिकमिज्जासि त्ति बेमि ॥सू. 126 // // इति प्रथमोद्देशकः // 4-1 // // अध्ययनं-४ : उद्देशकः--२॥ जे यासवा ते परिस्सवा, जे परिस्सवा ते पासवा, जे अणासवा ते अपरिस्सवा, जे अपरिस्सवा ते अणासवा, एए पए संबुज्झमाणे लोयं च याणाए अभिसमिचा पुढो पवेइयं ।।सू० 130 // श्राघाइ नाणी इह माणवाणं संसारपडिवराणाणं संबुज्झमाणाणं (अाघाइ धम्म खलु से जीवाणं, तं जहा संसारपडिवन्नाणं माणुसभवत्थाणं प्रारंभविणईणं दुक्खुव्वेअसुहेसगाणं धम्मसवणगवेसयाणं सुस्सुसमाणाणं पडिपुच्छमाणाणं) विनाणपत्ताणं, अट्टावि संता अदुवा पमत्ता अहा सच्चमिणं तिबेमि, नाणागमो मच्चुमुहरस अत्थि, इच्छा पणीया वंका निकेया कालगहिया निचयनिविट्ठा पुढो पुढो जाई पकप्पयंति (एत्थ मोहे पुणो पुणो) ॥सू. 131 // इहमेगेसिं तत्थ तत्थ संथवो भवइ अहोववाइए फासे पडिसवेयंति, चिट्ट कम्मेहिं कूरेहिं चिट्ठ परिचिट्टइ, अचिट्ठ कूरेहिं कम्मेहिं नो चिट्ठ परिचिट्ठइ, एगे वयंति अदुवावि नाणी, नाणी वयंति अदुवावि एगे ॥सू. 132 // अवंती Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आचारागसूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 4 ] [ 21 केयावंती लोयंसि समणा य माहणा य पुढो विवायं वयंति, से दिलृ च णे, सुयं च णे, मयं च णे, विराणायं च णे, उड्ड ग्रहं तिरियं दिसासु सब्बयो सुपडिलोहेयं च णे-सवे पाणा, सव्वे जीवा, सव्वे भूया, सव्वे सत्ता, हन्तव्वा यजावेयव्वा, परियावेयव्वा, परिघेत्तव्वा, उद्दवेयव्वा, इत्थ वि जाणह नथिस्थ दोसो प्रणारिय वयणमेय; तत्थ जे प्रारिया ते एवं वयासी-से दुट्टि च भे, दुस्सुयं च भे, दुम्मयं च भे, दुविण्णायं च भे, उड्ड ग्रहं तिरियं दिसासु सव्वयो दुप्पडिलेहियं च भे, जं णं तुम्भे एवं ग्राइक्खह, एवं भासह, एवं परूवेह,एवं पराणवेह-सव्वे पाणा () हंतव्वा (5), इत्थवि जाणह नत्थित्थ दोसो, अणारिय-वयणमेयं, वयं पुण एवमाइक्खामो, एवं भासामो, एवं परूवेमो, एवं पराणवेभो-सब्वे पाणा (4) न हंतव्वा 1 न अजावेयव्या 2 न परिघितव्वा 3 न परियावयव्वा 4 न उद्दवेयव्वा 5, इत्थवि जाणह नत्थित्थ दोसो यायरियवयणमेयं पुव्वं निकाय समयं पत्तेयं पत्तेयं पुच्छिस्सामि, हं भो पावाइया (पावाउया) ? किं भे सायं दुक्खं उयाहु असायं ? समिया पडिवराणे यावि एवं ब्रूया-सव्वेसिं पाणाणं, सव्वेसिं भूयाणं; सव्वेसि जीवाणं, सव्वेसि सत्ताणं असायं अपरिनिव्याणं महब्भयं दुक्खं त्ति बेमि ॥सू. 133 // // इति द्वितीय उद्देशकः // 4-2 / / / // अध्ययनं-४ : उद्देशकः-३॥ उवेहि णं बहिया य लोग, से सव्वलोगमि जे केइ विराणू , अणुवीइ पास निक्खित्तदंडा, जे केइ सत्ता पलियं चयंति, नरा मुयचा धम्मविउत्ति यंजू , प्रारंभजं दुक्खमिण ति णचा, एवमाहु संमत्तदंसिणो, ते सध्वे पावाइया दुक्खरस कुसला परिराणमुदाहरंति इय कम्मं परिराणाय सवसो ॥सू० 134 // इह प्राणाकखी पंडिए अणिहे, एगमप्पाणं संपेहाए धुणे सरीरं, कसेहि अप्पाणं जरेहि अप्पाणं-जहा जुनाई कट्ठाई हलवाहो पमत्थइ। एवं अत्तसमाहिए अणिहे, विगिंच कोहं अविकंपमाणे Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 22 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः ॥सू० 135 // इमं निरुद्धाउयं संपेहाए, दुक्खं च जाण अदु यागमेस्स, पुढो फासाइं च फासे, लोयं च पास विपदमाणं, जे निव्वुडा पावेहि कम्मेहिं अणियाणा ते वियाहिया, तम्हा अतिविजो नो पडिसंजलिजासि त्ति बेमि ॥सू० 136 // // इति तृतीय उद्देशकः // 4-3 // // अध्ययनं-४ : उद्देशकः-४ // श्रावीलए पवीलए निप्पीलए जहित्ता पुव्वसंजोगं हिचा उवसमं, तम्हा अविमणे वीरे, सारए समिए सहिए सया जए, दुरणुचरो मागो वीराणं अनियट्टगामीणं, विगिच मंससोणियं, एस पुरिसे दविए वीरे, यायाणिज्जे वियाहिए, जे धुणाइ समुस्सयं वसित्ता बंभचेरंसि ॥सू० 137 // नित्तेहिं पलिच्छिन्नेहिं पायाणसोयगड्डिए बाले, अव्वोच्छिन्नबंधणे अणभिक्कंतसंजोए तमंसि अवियाण यो ग्राणाए लंभो नथि ति बेमि ॥सू० 138 // जस्स नत्थि पुरा पच्छा मज्झे तस्स कुयो सिया ?, से हु पन्नाणमंते बुद्धे प्रारंभोवरए संममेयंति पासह, जेण बंधं वहं घोरं परियावं च दारुणं पलिछिंदिय बाहिरगं च सोयं, निवकंमदंसी इह मचिएहि, कम्माणं सफलं दट्ठण तयो निज्जाइ वेयवी ॥सू. 136 // जे खलु भो ! वीरा ते समिया सहिया सया जया संघऽदसिणो यायोवरया ग्रहातह लोयं उवेहमाणा पाइणं पडिणं दाहिणं उइणं इय सच्चंसि परि(चिए)चिट्ठिसु, साहिस्सामो नाणं वीराणं समियाणं सहियाणं सयाजयाणं संघऽ सीणं बायोवरयाणं यहातहं लोयं समुवेहमाणाणं किमस्थि उवाही ?, पासगस्स न विजइ नत्थि ति बेमि ॥सू० 140 // // इति चतुर्थ उद्देशकः // 4-4 // इति चतुर्थमध्ययनम् // 4 // ... Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आचाराङ्गसूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 5 ] [ 23 // 5 // लोकसाराध्ययनं-५ : उद्देशकः-१ // यावंती केयावंती लोयंसि विष्परामुसंति प्रहार अगट्टाए, एएसु चेव विपरामुसंति, (जावंति केइ लोए छक्कायवहं समारभंति पट्ठाए अणट्ठाए) गुरु से कामा, तयो से मारते, जयो से मारते तयो से दूरे, नेव से तो नेत्र दूरे ॥सू. 14 1 // से पासइ फुसियमिव कुसग्गे पगुन्नं निवइयं वाएरियं एवं बालस्त जीवियं मंदस्स वियाणयो, कुराई कम्माई बाले पकुवमाणे, तेण दुक्खेण मूढे विप्परियासमुवेइ, मोहेण गम्भं मरणाइ एइ, एत्थ मोहे पुणो पुणो ॥सू. 142 // संसयं परियाणयो संसारे परिन्नाए भवइ, संसयं अपरियाणयो संसारे अपरिनाए भवइ ।।सू. 143 // जे छेए से सागारियं न सेवइ, कटुं एवमवियाणयो बिइया मंदस्स बालया, (जे खलु विसए सेवइ, सेवित्ता वा णालोएइ, परेण वा पुट्ठो निराहवइ ग्रहवा तं परं सएम वा दोसेण पाविठ्ठयरेण वा दोसेण उवलिंपिजति) लद्धा हुरत्था पडिलेहाए आगमित्ता याणविज्जा अणासेवणय त्ति बेमि ॥सू. 144 // पासह एगे ख्वेसु गिद्धे परिणिजमाणे, इत्थ फासे पुणो पुणो, (एत्थ मोहे पुणो पुणो) श्रावंती केयावंती लोयंसि प्रारंभजीवी, एएसु चेव आरंभजीवी, इत्थवि बाले परिपञ्चमाणे रमइ पावेहिं कम्मेहिं असरणे सरणंति मन्नमाणे, इहमेगेसि एगचरिया भवइ, से बहुकोहे बहुमाणे बहुमाए बहुलोभे बहुरए बहुनडे बहु सढे बहुसंकप्पे पासवसत्ती पलिउच्छन्ने उट्ठियवायं पवयमाणे, मा मे केइ अदक्खू अन्नायपमायदोसेणं, सययं मूढे धम्मं नाभिजाणइ, अट्टा पया माणव ! कंमकोविया जे अणुवरया अविज्जाए पलिमुक्खमाहु यावट्टमेव अणुपरियति ति बेमि ॥सू० 145 // // इति प्रथमोद्देशकः // 5-1 // Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 24 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः // अध्ययन-५ : उद्देशकः-२ // यावन्ती केयावन्ती लोए अणारंभजीविणो तेसु, एत्थोवरए तं झोसमाणे, अयं संधीति अवखू, जे इमस्स विग्गहस्स अयं खणे ति अन्नेती एस मग्गे ग्रारिएहिं पवेइए, उठ्ठिए नो पमायए, जाणित्तुं दुक्खं पत्तेयं सायं, पुढोछंदा इह माणवा पुढो दुक्खं पवेइयं, से अविहिंसमाणे अणवयमाणे, पुट्ठो फासे विपणुन्नए ॥सू. 146 // एस समिया परियाए वियाहिए, जे असत्ता पावेहिं कम्मेहिं उदाहु ते पायंका फुसंति, इति उदाहु धीरे ते फासे पुट्ठो अहियासइ, से पुब्बिंपेयं पच्छापेयं भेउरधम्म, विद्धंसणधम्ममधुवं, अणिइयं, असासयं चयावचइयं, विप्परिणामधम्म, पासह चेयं स्वसंधि ॥सू. 147 // समुप्पेहमाणस्स इकाययणरयस्स इह विष्पमुकस्स नत्थि मग्गे विरयस्स ति बेमि ॥सू. 148 // श्रावंती केयावंती लोगंसि परिग्गहावंती, से अप्पं वा बहुं वा अणुवा थूलं वा चित्तमंतं वा अचित्तमंतं वा एएसु चेव परिग्गहावंती, एतदेव एगेसि महब्भयं भवइ, लोगवित्तं चणं उवेहाए, एए संगे अवियाणयो ॥सू. १४६॥से सुपडिबद्धं सूवणीयंति नचा पुरिसा परमचक्खू विपरिकमा, एएसु चेव बंभचेरं त्ति बेमि, से सुयं च मे. अज्झत्थयं च मे, बंधपमुक्खो अज्झत्थेव, इत्थ विरए यणगारे दीहरायं तितिक्खए. पमत्ते बहिया पास, अप्पमत्तो परिव्वए, एयं मोणं सम्मं अणुवासिज्जासि ति बेमि ॥सू० 150 // // इति द्वितीय उद्देशकः // 5--2 / / // अध्ययन-५ उद्देशकः-३ // - यावंती केयावंती लोयंसि अपरिग्गहावंती, एएसु चेव अपरिग्गहावंती. सुच्चा वइ मेहावी पंडियाण निसामिया समियाए धम्मे पारिएहिं पवेइए जहित्थ मए संधी झोसिए, एवमन्नत्थ संधी दुज्जोसए भवइ, तम्हा बेमि नो निहणिज्ज वीरियं ॥सू० 151 // जे पुटवुट्टाइ नो पच्छानिवाइ, Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आचाराङ्गसूत्रम् : श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 5 ] [ 25 जे पुबुदाइ पच्छानिवाइ जे नो पुबुढायी नो पछानिवाइ, सेवि तारिसिए सिया, जे परिन्नाय लोगमन्नेसयंति ॥सू० 152 // एवं नियाय मुणिमा पवेइयं, इह याणाकंखी पंडिए अणिहे, पुव्यावररायं जयमाणे, सया सीलं सुपेहाए सुणिश भवे अकामे अझंझे, इमेण चेव जुमाहि किं ते जुज्झेण बज्मायो ? ॥सू. 153 // जुद्धारिहं खलु दुल्लहं, जहित्थ कुसनेहिं परिन्नाविवेगे भासिए, चुए हु बाले गभाइसु रजइ (रिज्जइ) अस्मि चेयं पवुच्चइ, रूवंसि बा, छणंसि वा से हु एगे संविद्धपहे (संवद्धिभयेसंचिटुपहे) मुणी, अन्नहा लोग वेहमाणे, इय कम्म परिगणाय सबसो से न हिसइ, संजमइ नो पगभइ, उवेहमाणो पत्तेय सायं, वराणाएसी नारंभे कंचणं सबलोए एगप्पमुहे विदिसप्पइन्ने निबिराणचारी अरए पयासु ॥सू. 154 // से वसुमं सबसमन्नागयपन्नाणेणं यप्पाणेणं अकरणिज्ज पावकम्मं तं नो अन्नेसी, जं संमंति पासहा तं मोणंति पासहा, जं मोणंति पासहा तं संमंति पासहा, न इमं सक्कं सिढिलेहिं अदिज्जमाणेहिं गुणासाएहि वंकसमायारेहिं पमत्तेहिं गारमावसंतेहिं, मुणी मोणं समायाए धुणे सरीरगं पंतं लुहं सेवंति वीरा सम्मत्तदंसिणो, एस योहन्तरे मुणी, तिराणे मुत्ते विरए वियाहिए त्ति बेमि ॥सू. 155 // // इति तृतीयोद्देशकः // 5-3 // // अध्ययनं-५ : उद्दशकः-४ // गामाणुगामं दूइज्जमाणस्स दुज्जायं दुप्परक्कंतं भवइ अवियत्तस्स "भिक्खुणो ॥सू. 156 // वयसावि एगे बुझ्या कुप्पंति माणवा, उन्नयमाणे य नरे महया, मोहेण मुज्झइ, संवाहा बहवे भुज्जो (2) दुरइक्कम्मा अन्नाणयो अपासयो, एयं ते मा होउ, एयं कुसलस्स दंसणं, तहिट्ठिए तम्मुत्तिए तप्पुरकारे तस्सन्नी तन्निवेसणे, जयं विहारी चित्तनिवाइ पंथनिभाइ पलिबाहिरे, पासिय पाणे गच्छिज्जा ॥सू० 157 // से अभिकममाणे, पडिकममाणे Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 16 ] [ श्रीमदगिमसुधासिन्धुः : प्रथमो विभागः संकुचमाणे पसारेमामो विणिवट्टमाणे संपलिज्जमाणे, एगया गुणसमियस्स रीयत्रो कायसंकासं समणुचिन्ना एगतिया पाणा उद्दायंति, इहलोग वेरणविजावडियं, जं पाउट्टिकयं कम्मं तं परिनाय विवेगमेइ, एवं से अप्पमाएण विवेगं किट्टइ वेयवी ॥सू. 158 // से पभूयदंसी पभूयपरिन्नाणे उवसंते समिए सहिए सयाजए, द? विष्पडिवेएइ अप्पाणं किमेस जणो करिस्मइ ? एस से परमारामो जाओ लोगमि इत्थीयो, मुणीणा हु एवं पवेइय, उव्वाहिजमाणो, गामधम्मेहिं अबि निब्बलासए अवि योमोयरियं कुन्जा,. अवि उट्ठ अणं ठाइजा, अवि गामाणुगाम दूइज्जिज्जा, अवि थाहारं वुच्छिदिज्जा, अवि चए इत्थीसु मणं, पुव्वं दडा पच्छा फासा, पुत्वं फासा पच्छा दंडा, इच्चेर कलहासंगकरा भवंति, पडिलेहाए श्रागमित्ता पाणविज्जा अणासेवणाए तिबेमि, से नो काहिए नो पासणिए नो संपसारणिए नो मामए णो कपकिरिए बइगुत्ते अभयसंवुडे परिवज्जइ सया पावं एवं मोणं समणुवासिज्जासि त्तिवेमि ॥सू. 156 // // इति चतुर्थ उद्देशकः // 5-4 // // अध्ययनं-५ : उद्देशकः-५ // से बेमि तं जहा-यवि हरए पडिपुराणे समंसि भोमे चिटइ उवसंतरए सारक्खमाणो, से चिट्ठइ सोयमझमए से पास सवश्रो गुत्ते, पास लोए महेसिणो जे य पन्नाणमंता पदुद्धा प्रारम्भोवरया सम्ममेयंति पासह, कालस्स कंखाए परिव्वयंति त्ति बेमि ।।सू० 160 // वितिगिच्छसमावन्नेणं अप्पाणेणं नो लहइ समाहि, सिया वेगे अणुगच्छंति असिता वेगे अनुगच्छंति अणुगच्छमाणेहिं अणणुगच्छमाणे कह न निविज्जे ? सू० 161 // तमेव सच्चं नीसंकं जं जिणेहिं पवेड्यं ॥सू. 162 // सड्डिस्स णं समणुनस्स संपवयमाणस समियंति मन्नमाणस्स एगया समिया होइ 1, समियंति मन्नमाणस्स एगया असमिया होइ 2, असमियंति मन्नमाणस एगया समिया Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आचाराङ्गमूत्रम् : श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 1] होइं 3, असमियंति मन्त्रमाणस्स एगया असमिया होइ 1, समियंति मनमागस्स समिया वा असमिया वा समिया होइ उवेहाए 5, ममियति मन्नमाणस्स समिया वा अप्समिया वा असमिया होइ उवेहाए 6, उवेहमाणो अणुवेहमाणं ब्रूया-उवेहाहि समिाए, इच्चेवं तत्थ संधी झोसियो भवइ, से उडियस ठि-स्स गई समणुपासह, इत्थवि बालभावे अपार्ण नो वृदं मिज्जा ॥सू० 163 // तुमंसि नाम सच्चेव ज हुँतवंति मनसि, तुमंसि नाम सब्चेव जं यज्जावेयवति मनसि, तुमंसि नाम सच्चेव ज परियावेयबंति मनमि, एवं जं परिचित्तव्वति मनसि, जं उद्दवेयर्वति मन्नसि, यंजू चेयपडिबुद्धजीवी, तुम्हान हता नवि घायए, अणुसंवेयणमप्पाणणं जं हंतवं नाभिपत्थर ॥सू. 164 // जे पाया से विन्नाया, जे विनाया से थाया, जेण वियाणइ से याया, तं पडुन्न पडिसंखाए, एस यायावाइ समियाए परिवाए वियाहिर तिमि ॥सू० 165 // // इति पंचमोद्देशकः // 5-5 // / अध्ययन-५ : उद्देशकः-६ // यणाणाए एगे सोवट्ठाणा याणाए एगे निस्वट्टाणा, एयं ते मा होउ, एवं कुसलस्स देसणं, तदिवीए तम्मुत्तीए तप्पुरकारे तस्सन्नी तन्निवेसणे वासू० 166 // अभिभूय अद्भक्खू श्रणभिभूए पभू निरालंबणयाए जै महं अबहिमणे, पाएण प्रवायं जाणिज्जा, सहसंमइयाए परवागरणेणं अन्नेसिं या यंलिए सुच्चा ॥सू० १६७निसं नाइवटेज्जा मेहावी सुपडिलेहिया सब्बयो सवप्पणा सम्मं समभिराणाय, इह यारामं परिणाय अल्लीणगुत्तो यारामो परिधए निट्ठियट्टी वारे श्रागमेण सथा परकमे ॥सू० 168 // उठे सोया अहे सोया, तिरियं सोया वियाहिया / एए सोया विअक्खाया, जेहिं सँगति पासह // 2 // पावट्ट तु पेहाए इत्थ विरमिज्ज़ वेयवी, विणइत्तु सोयं निक्खम्म एसमहं अकम्मा जाणइ पासइ पडिलेहाए नावकंखइ इह Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 28 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः श्रागइं गई परिन्नाय ॥सू० 169 // अच्चेइ जाइमरणस्स वट्टमग्गं विक्खायरए, सव्वे सरा नियति, तका जत्थ न विज्जइ, मइ तत्थ न गाहिया, श्रोए, अप्पइट्ठाणस्स खेयन्ने, से न दीहे न हस्से न वट्टे न तंसे न चउरंसे न परिमंडले न किराहे न नीले न लोहिए न हालिद्दे न सुकिल्ले न सुरभिगंधे न दुरभिगंधे न तित्ते न कडए न कसाए न अंबिले न महुरे न कक्खडे न मउए न गरुए न लहुए न उरहे न निद्धे न लुवखे न काऊ न रहे न संगे न इत्थी न पुरिसे न अन्नहा, परिन्ने सन्ने उवमा न विज्जए, अरूवी सत्ता अपयस्स पयं नत्थि ।।सू 170 // से न सद्देन रूवे न गंधे न रसे न .. फासे इच्चेव तिबेमि ॥सू० 171 // // इति षष्ठ उद्देशकः / / 5-6 // इति पंचममध्ययनम् // 5 // // 6 // धूताध्ययनं-६ :: उद्देशकः-१ // योबुज्झमाणे इह माणवेसु अाघाइ से नरे, जस्स इमायो जाइयो सव्वो सुपडिलेहियायो भवंति, आघाइ से नाणमणेलिसं, से किट्टइ तेसिं समुट्ठियाणं निक्खित्तदंण्डाणं समाहियाणं पन्नाणमंताणं इह मुत्तिमग्गं, एवं (अवि) एगे महावीरा विपरिकमंति पासह एगे अवसीयमाणे अणत्तपन्ने से बेमि, से जहावि (सेवि) कुमे हरए विणिविट्ठचित्ते पच्छन्नपलासे उम्मग्गं से नो लहइ भंजगा इव संनिवेसं नो चयंति, एवं (अवि) एगे अणेगरूवेहिं कुलेहिं जाया रूवेहिं सत्ता कलुणं थणंति, नियाणयो ते न लभंति मुक्खं, यह पास तेहिं कुलेहिं यायत्ताए जाया // 172 // गंडी ग्रहया कोढी, रायंसी अवमारियं / काणियं झिमियं चेव, कुणियं खुज्जियं तहा // 1 // उदरिं च पास मूयं च, सूणीयं च गिलासणिं / वेवई पीढसप्पिं च, सिलिवयं महुमहणिं // 2 // सोलस एए रोगा, अक्खाया अणुपुव्वसो। अह णं फुसंति पायंका, फासा य असमंजसा // 3 // मरणं तेसिं संपेहाए उववायं चवणं च नच्चा, परियागं च संपेहाए ॥सू. 173-76 // Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [29 श्री आ चारागसूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 6 ] तं सुणेह जहा तहा संति पाणा अंधा तमसि विवाहिया, तामेव सई यसई ग्रइयच उच्चावयफासे पडिसंवेएइ, बुद्धेहिं एवं पवेइयं-संति पाणा वासगा रसगा उदए उदए चरा यागासगामिणो पाणा पाणे किलेसंति, पास लोर महब्भयं सू. 177 // बहुदुक्खा हु जन्तबो, सत्ता कामेसु माणवा, अबलेण वहं गच्छन्ति सरीरेणं पभंगुरेण घट्ट से बहुदुक्खे इइ वाले पकुबइ एए रोगा बहू नचा ग्राउरा परियावए नालं पास, ग्रलं तवेएहिं, एयं पास मुणी! महब्भयं नाइवाइज्ज कंचणं ।सू. 178 // प्रायाण भो सुस्सूस ! भो धूयवायं पवेयइस्सामि, (धुतोवायं पवेयंति) इह खनु अत्तत्ताए तेहिं तेहिं कुलेहिं अभिसेएण अभिसंभूया अभिसंजाया अभिनिब्बुडा यभितंबुड्डा अभिसंबुद्धा अभिनिक्कता अणुपुव्वेण महामुणी सू. 176 // ___ तं परिकमंतं परिदेवमाणा मा चयाहि इय ते वयंति-छंदोवणीया यझोववन्ना अक्कंदकारी जणगा स्यंति अतारिसे मुणी (ण य) योहं तरए जणगा जेण विप्पजटा, सरणं तत्थ नो समेइ, कहं नु नाम से तत्थ रमइ ?, एयं नाणं सया समणुवासिज्जासि त्ति बेमि ।।सू० 180 // // इति प्रथमोदेशकः // 6-1 / / // अध्ययन-६ :: उद्देशकः-२ // ग्राउरं लोगमायार चइत्ता पुवसंजोगं हिचा उवसमं वसित्ता बंभचे. रंसि वसु वा अणुवसु वा जाणित्तु धम्मं यहा तहा ग्रहेगे तमचाइ कुसीला ॥सू. 181 // वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुछणं विउसिज्जा, अणुपुब्वेण यणहियासेमाणा परीसहे दुरहियासए, कामे ममायमाणस्स इयाणिं वा मुहुत्तेण वा अपरिमाणाए भेए, एवं से अंतराएहिं कामेहिं याकेवलिएहिं ग्रवइन्ना चेए ॥सू० 182 // ग्रहेगे धम्ममायाय पायाणप्पभिइसु पणिहिए चरे अप्पलीयमाणे दढे सव्वं गिद्धिं परिन्नाय, एस पणए महामुणी, Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विमागः श्रइयच्च सव्वश्रो संगं न महं अस्थिति इय एगो थह, अस्सि जयमाणे इत्थ विरए अणगारे सव्वश्रो मुडे रीयंते, जे अचेले परिसिए संचिवखइ योमोयरियाए, से याकुठे वा हए वा लुचिए (लूसिए) वा पलियं पकत्थ अदुवा पकत्थ अतहेहिं सदफासेहिं इय संखाए एगयरे थन्नयरे अभिन्नाय तितिक्खमाणे परिव्वए जे य हिरी जे य अहिरीमाणा (मणा।सू० 183 // चिच्चा सव्वं विसुत्तियं फासे समियदसणे, एए भो णगिणा वुत्ता जे लोगंसि यणागमण-धम्मिणो प्राणाए मामगं धम्म एम उत्तरवाए इह माणवाणं वियाहिए, इत्थोवरए तं झोसमाणे यायाणिज्ज परिन्नाय परियाएण, विगिचइ, इह एगेसि एगचरिया होइ तत्थियरा इयरेहिं कुलेहिं सुद्धसणाए सब्वेसणाए से मेहावी परिवए सुन्भिं अदुवा दुन्भिं अदुवा तत्थ भेरवा पाणापाणे किलेसँति, ते फासे पुट्ठो धीरे यहियासिज्जासि त्ति बेमि पासू० 184 // // इति द्वितीयोद्देशकः / / 6-2 // अध्ययन-६ : उद्देशकः-३ // एये खु मुणी पायर्ण सम सुक्खाधम्मे विहूयकप्पे निज्मोसइत्ता, जे अचेले परिवुसिए तस्स णं भिक्खुस्स नो एवं भाइ-परिजुराणों में वत्थे वत्थं जाइस्सामि, सुत्नं जाहस्सामि, सूई जाइस्सामि संधिरसामि सीविस्सामि उकसिमसामि वुकसिमसामि परिहिस्सामि पाणि, रसामि, अदुवा तत्थ परिकमंतं भुज्जो यस्ले तपासा फुसति, सीयफासा फुसंति, तेउफासा फुसंति, दंसमसयामा फुसेंति, एयगरे यन्नयरे विरूवरूवे फ.से अहियासेड़ अचेले लाघवे यागममाणे, (एवं खलु से उवगरणलापवियं तवं कम्मक्खयकारणं करेइ) तवे से अभिसमनागए भवइ, जहेयं भगवा पवेइयं तमेव अभिसमिचा सक्यो सव्वत्ताए समत्वमेव समभिजाणिज्जा, एवं तेसिं महान चीराणं चिरायं पुवाई वासाणि रीयमाणाणं प्रियाणं पास अहियासिर्थ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भी आचाराङ्ग-सूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 6 ] ॥सू. 185 // यागयपन्नाणाणं किसा बाहयो भवंति पाणुर य मंसप्लोणिए विस्लेणि कटु परित्राय, एस तिराणे मुत्ते विरए रियाहिए ति वेमि ॥सू० 186 // विरयं भिक्युरीयंत विररायो मियं अरइ तत्थ किं विधारए ?, संधेमाणे समुट्ठिए, जहा से दीवे असंदीणे, एवं से धम्मे यारियपदसिए, ते अणवकंखमाणा पाणे अणइवाएमाणा जइया मेहाविणो पंडिया, एवं तेसि भगवयो अणुटाणे जहा से दियापोए एवं ते सिस्सा दिया य रायो य यणुपुट्वेण वाक्य त्ति बेमि ॥सू. 187] // इति तृतीयोदेशकः / 6.3 / / // अध्ययन --6 : उद्देशकः-४ // एवं ते सिस्मा दिया य रायो य अणुपुव्वेण वाइया तेहिं महावीरेहिं पन्नाणमन्तेहिं तेसिमंतिए पन्नाणमुवलभ हिचा असम फारुसियं समाइयंति, वसित्ता बंभचेरंसि पाणं तं नोत्ति मन्नमाणा प्राचार्य तु सुच्चा निसम्म, ममणुना जीविस्सामो एगे निक्खमंते असंभवंता विडज्झमाणा कामेहि गिद्धा अज्झोववन्ना समाहिमाघायमजोसयंता सत्थारमेव फरसं वयंति सू. 188 // सीलमंता उवसंता संखाए रीयमाणा असीला अणुवयमा. गास्स विझ्या मंदस्स बाल ना ॥सू. 186 // नियट्टमाणा वेगे श्रायरगोयरमाइक्वंति, नाणभट्टा दंसरणलूसिणो // 10 110 // नममाणा वेगे जीवियं विष्परिणामंति पुट्ठा वेगे नियति जीवियस्सेव कारणा, निखंतपि तेसिं दुन्निक्वंतं भवइ, बालवयणिज्जा हु ते नरा, पुणो पुणो जाइं पकप्पिति ग्रहे संभवंता विदायमाणा ग्रहमंसीति विउकसे उदासीणे फरस वयंति, पलियं 'पकथे अदुवा पकथे यतहेहिं तं वा मेहावी जाणिज्जा धम्मं ॥सू. 111 // अहम्मट्ठी तुमंसि नाम बाले प्रारंभट्ठी अणुवरमाणे हण पाणे घायमाणे हणयो यावि समणुजाणमाणे घोरे धम्मे, उदीरिए उवेहइ णं अणाणाए एस विसन्ने विद्दे विवाहिए त्ति बेमि ॥सू. 192 // किमगोगा भो ! जगोण करिस्मामित्ति Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 32 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : प्रथमो विभागः मन्नमाणे एवं एगे वइत्ता मायरं पियरं हिचा नाययो यपरिग्गहं वीरायमाणा समुटाए अविहिंसा सुव्वया दंता (समणा भविस्सामो अणगारा यकिंचणा अपुत्ता अपसुया अविहिंसगा सुव्वया दंता परदतमोइणो पावं कम्मं न करेस्सामो समुट्टाए) पस्स दीणे उप्पइए पडिवयमाणे वसट्टा कायरा जणा लूसगा भवंति, अहमेगेसि सिलोए पावए भवइ, से समणो भवित्ता विभंते 2 पासहेगे समन्नागएहिं सह असमन्नागए नममाणेहिं अनममाणे विरएहिं अविरए दविहिं यदविए अभिसमिचा पंडिए मेहावी निट्टिय? वीरे थागमेणं सया परक्कमिजासि त्ति बेमि ॥सू० 163 // // इति चतुर्थ उद्देशकः // 6-4 // // अध्ययन--६ : उद्देशकः-५ // से गिहेसु वा गिहतरेसु वा गामेसु वा गामंतरेसु वा नगरेसु वा नगरं. तरेसु वाजणवयेसु वा जणवयंतरेसु वा गामनगरंतरे वा गामजणवयंतरे वा नगरजणवयंतरे वा संतेगइया जणा लूसगा भवंति अदुवा फासा फुसंति ते फासे पुटे वीरो अहियासए, श्रोए समिदंसणे, दयं लोगस्स जाणित्ता पाइणं पडोणं दाहिणं उदीणं बाइक्खे, विभए किट्ट वेयवि, से उठ्ठिएसुवा अणट्ठिएसु वा सुस्सूलपाणे पवेयए संतिं विरइं उवसमं निव्वाणं सोयं यजवियं महवियं लापवियं अणइवत्तियं सब्वेसिं पाणाणं सब्वेसिं भूयाणं सव्वेसिं सत्ताणं सध्वेसिं जीवाणं अणुवीइ भिक्खू धम्ममाइक्खिज्जा ।सू० 194|| अणुवीइ भिक्खू धम्ममाइक्खमाणे नो अत्ताणं यासाइजा नो परं श्रासाइज्जा नो अन्नाई पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताई यासाइजा से यणासायए अणासायमाणे वज्झमाणाणं पाणाणं भूयाणं जीवाणं सत्ताणं जहा से दीवे असंदीणे एवं से भवइ सरणं महामुणी, एवं से उठ्ठिए ठियप्पा अणिहे अचले चले अबहिल्लेसे परिव्वए संक्खाय पेसलं धम्मं दिटिमं परिनिव्वुडे, तम्हा संगति पासह गंथेहिं गढिया नरा विसन्ना कामक्कंता तम्हा लूहायो Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 33 श्री आचाराङ्ग-सूत्रम् श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 8 ] नो परिवित्तसिज्जा, जस्सिमे यारंभा सव्वयो सव्वप्पयाए सुपरिन्नाया भवंति जेसिमे लूसिणो नो परिवित्तसंति, से वंता कोहं चमाणं य मायं च लोभं च एस तु वियाहिए त्ति बेमि ॥सू० 115 // कायस्स वियाघाए एस संगामसीसे वियाहिए से हु पारंगमे मुणी, अविहम्ममाणे फलगावयट्ठी कालोवणिए कंखिज कालं जाव सरीरभेउ त्ति बेमि ॥सू० 116 // // इति पंचमोद्देशकः // 6-6 // इति षष्ठमध्ययनम् / / 6 // (सप्तममध्ययनं व्युच्छिन्नम् ) // 8 // विमोक्षाध्ययन-८ : उद्देशकः-१ // से बेमि समणुनस्स वा असमणुनस्स वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुच्छणं वा नो पादेजा नो निमंतिजा नो कुजा वेयावडियं परं वाढायमाणे ति बेमि ।।सू० ११७॥धुवं चेयं जाणिज्जा असणं वा जाव पायपुंछणं वा लभिया नो लभिया भुजिया नो भुजिया पंथं विउत्ता विउक्कम विभत्तं धम्मं जोसेमाणे समेमाणे चलेमाणे (पलेमाणे) पाइजा वा निमंतिजा वा कुन्जा वेयावडियं परं अणादायमाणे त्ति बेमि॥ ॥सू० 118 // इहमेगेसिं पायारगोयरे नो सुनिसंते भवति ते इह प्रारंभट्ठी अणुवयमाणा हण पाणे घायमाणा हणयो यावि समणुजाणमाणा अदुवा अदिनमाययंति अदुवा वायाउ विउज्जंति, तं जहा-अस्थि लोए नथि लोए, धुवे लोए, अधुवे लोए, साइए लोए प्रणाइए लोए, सपजवसिए लोए अपजवसिए लोए, सुकडेत्ति वा दुक्कडेत्ति वा, कल्लाणेत्ति वा पावेत्ति वा, साहुत्ति वा असाहुत्ति वा, सिद्धित्ति वा असिद्धत्ति वा निरएत्ति वा अनिरएत्ति वा, जमिणं विप्पडिवन्ना मामगं धम्मं पनवेमाणा इत्थवि जाणह अकस्मात् एवं तेसिं नो सुयक्खाए धम्मे नो सुपन्नत्ते धम्मे भवइ ॥सू० 111 // से जहेयं भगवया पवेइयं वासुपन्नेण जाण्या पासया अदुवा गुत्ती वोगोयरस्स तिबेमि सम्वत्थ संमयं पावं, तमेव उवाइकम्म एस महं विवेगे Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 34 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः वियाहिए, गामे वा अदुवा रगणे नेव गामे नेव रगणे धम्ममायाणह पवेइयं माहणेण मइमया, जामा तिन्नि उदाहिया जेसु इमे पायरिया संज्ममाणा समुट्ठिया, जे णिवुया पावेहिं कम्मेहिं अणियाणा ते वियाहिया ॥सू० 200 // उट्ठ अहं तिरियं दिसासु सञ्चयो सव्वावंति च णं पाडियक्कं जीवहिं कम्मसम्मारम्भे णं तं परिन्नाय मेहावी नेव सयं एएहिं काएहिं दंड समारंभिजा, नेवन्ने एएहिं काएहिं दंड समारंभाविजा, नेवन्ने एहिं कायेहिं दंडं समारंभंतेवि समगुजाणेजा नेवऽन्ने एएहिं कारहिं दंड समारभंति तेसि पि वयं लज्जामो तं परिन्नाय मेहावी तं वा दंड अन्नं . . वा नो दंडभी दंड समारंभिजासि ति बेमि ॥सू० 201 // // इति प्रथमोद्देशकः / / 8-1 // // अध्ययनं-८ : उद्देशकः-२ // से भिक्खू परिकमिज वा चिटिज वा निसीइज वा तुयट्टिज वा सुसाणंसि वा सुन्नागारंसि वा गिरिगुहंसि वा रुक्खमूलंसि वा कुंभाराययणंसि वा हुरस्था वा कहिंचि विहरमाणं तं भिक्खु उवसंकमित्तु गाहावइ बूयाथाउसंतो समणा ! अहं खलु तव अट्टाए असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वां पायपुच्छणं वा पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छिज्ज अणिसट्ठ अभिहडं पाहट्ट चेएम श्रावसह वा सवस्सिणोमि से भुजह वसह, बाउसंतो समणा ! भिक्खू तं गाहावई समणसं सवयसं पडियाइवखे-पाउसंतो! गाहावई नो खलु ते वयणं थाढामि नो खलु ते वयणं परिजाणामि, जो तुमं मम अट्टाए असणं वा (४)वत्थं वा (1) पाणाई वा (4) समारब्भ समुदिरस कीयं पामिच्चं अछिज अणिसटुं अभिहडं पाहटु चेएसि श्रावसहं वा समुस्सि णासि, से विरो बाउसो गाहावई ! एयरस अकरणयाए॥सू० 202 // से भिक्खू परिकमिज वा जाव हुरत्था वा कहिंचि विहरमाणां तं भिक्खु उव Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आचागङ्ग-सूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 8 ] [35 संकमित्तु गाहावई यायगयाए पेहाए असणं वा (4) वत्थं वा (1) जाव थाह१ चेएइ पावसहं वा समुस्सिणाइ भिक्खू परिघासउं,तं च भिक्खू जाणिजा महसम्मइयाए परवागरणेणं अन्नेसि वा सुच्चा अयं खलु गाहावई मम अट्टाए असणं वा (4) वत्थं वा (4) जाव पावसहं वा समुस्सिणाइ, तं च भिवम्बू पडिलेहाए ग्रागमित्ता आणविजा यणासेवणाए ति बेमि ॥सू० 203 / / भिक्खु च खलु पुट्ठा वा अपुट्ठा वा जे इमे ग्राहच गंथा वा फुसंति, से हंता हणह खणह छिदह दहह पयह धालु पह विलुपह सहसाकारेह विष्णरामुसह, ते फासे धीरो पुट्ठो अहियासए अदुवा अायारगोयरमाइक्खे, तकिया णमणेलिसं अदुवा वइगुत्तीए गोयरस्स अणुपुब्वेण संमं पडिलेहाए अायतगुत्ते बुद्धेहिं एयं पवेइयं ॥सू० 201 // से समणुन्ने असमणुन्नस्स असणं वां जाव नो पाइजा नो निमंतिजा नो कुजा वेयावडियं परं यादायमाणे ति बेमि ॥सू० 205 // धम्ममायाणह पवेइयं माहणेण मइमया समणुन्ने समणुनस्स असणं वा जाव कुजा वेयावडियं परं पाढायमाणे त्ति बेमि ॥सू० 206 // // इति द्वितीय उद्देशकः // 8-2 // . // अध्ययनं-८ : उद्देशकः-३ // मज्झिमेणं वयसावि एगे संबुज्झमाणा समुट्ठिया, सुचा मेहावी वयणं पंडियाणं निसामिया समियाए धम्मे पारिएहिं पवेइए ते अणवकंखमाणा अणइवाएमाणा अपरिग्गहेमाणा नो परिग्गहावंती सव्वावंती च णं लोगंसि निहाय दंडं पाणेहिं पावं कम्मं अकुञ्चमाणे एस महं अगंथे वियाहिए श्रोए जुइमस्स खेयन्ने उववायं चवणं च नचा ॥सू० 207 // याहारोवचया देहा परीसहपभंगुरा पासह एगे सबिदिएहिं परिगिलायमाणेहिं ॥सू० 208 // ओए दयं दयइ, जे संनिहाणसत्थस्स खेयन्ने से भिक्खू कालन्ने बलन्ने मायन्ने खणन्ने विणवन्ने समयन्ने परिग्गहं अममायमाणे कालेणुढाई Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 36 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः अपडिन्ने दुहयो छित्ता नियाई ॥सू० 201 // तं भिक्खुसीयफासपरिवेवमाणगायं उवसंकमित्ता गाहावई ब्रूया-याउसंतो समणा ! नो खलु गामधम्मा उव्वाहंति, अाउसंतो गाहावई ! नो खलु मम गामधम्मा उत्वाहंति, सीयफासं च नो खलु यहं संचाएमि अहियासित्तए, नो खलु मे कप्पइ अगणिकायं उज्जालित्तए वा पजालित्तए वा कायं यायावित्तए वा पयावित्तए वा, अन्नेसिं वा वयणायो, सिया स एवं वयंतस्स परो अगणिकायं उज्जालित्ता पजालित्ता कायं आयारिज वा, पयाविज वा, तं च भिवखू पडिलेहाए श्रागमित्ता आणविजा अणासेवणाए त्ति बेमि ॥सू० 210 // // इति तृतीयोद्देशकः // 8-3 // // अध्ययनं-८ : उद्देशकः-४ // जे भिक्खू तिहिं वत्थेहिं परिसिए पायचउत्थेहिं तस्स णं नो एवं भवइ चउत्थं वत्थं जाइस्सामि, से अहेसणिजाई वत्थाई जाइजा अहापरिग्गहियाई वत्थाई धारिजा, नो धोइजा (नो रइन्जा) नो धोयरत्ताई वत्थाई धारिजा, अपलियोवमाणे (अपलिउंचमाणे) गामंतरेसु अोमचेलिए, एवं खु वत्थधारिस्स सामग्गियं ॥सू० 211 // ग्रह पुण एवं जाणिज्जा-उवाइक्कते खलु हेमंते गिम्हे पडिवन्ने ग्रहापरिजुन्नाई वत्थाई परिविज्जा, अदुवा संतरुत्तरे अदुवा योमचेले अदुवा एगसाडे अदुवा अचेले ॥सू०२१२॥लाघवियं यागममाणे, तवे से अभिसमन्नागए भवइ ।सू० 213 // जमेयं भगवया पवेइयं तमेव अभिसमिच्चा सव्वयो सव्वत्ताए सव्वत्तमेव समभिज्जाणिजा ॥सू. 214 // जस्स गां भिक्खुस्स एवं भवइ पुट्ठो खलु ग्रहमंसि नालमहमंसि सीयफासं अहियासित्तए, से वसुमं सव्वसमन्नागयपन्नाणेणं अप्पाणेणं केइ अकरणयाए बाउट्टे तवरिसणो हुतं सेयं जमेगे विहमाइए तत्थावि तस्स कालपरियाए, सेवि तत्थ विअंतिकारए इच्चेयं विमोहायतणं हियं सुहं खमं निस्सेसं पाणुगामियं त्ति बेमि ॥सू० 215 // // इति चतुर्थ उद्देशकः // 8-4 // Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 37 श्री आचाराङ्ग-सूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 8 ] // अध्ययन-८ :: उद्देशकः-५ // जे भिक्खू दोहिं वत्थेहिं परिसिए पायतईएहिं तस्स णं नो एवं भवइ तइयं वत्थं जाइस्सामि, से अणेसणिज्जाई वत्थाई जाइज्जा जाव एवं खु तस्स भिक्खुस्स सामग्गियं, ग्रह पुण एवं जाणिज्जा-उवाइक्कते खलु हेमन्ते गिम्हे पडिवराणे, अहापरिजुन्नाई वत्थाई परिदृविज्जा, ग्रहापरिजुन्नाई परिवत्ता अदुवा संतरुत्तरे अदुवा श्रोमचेले अदुवा एगसाडे अदुवा अचेले लाघवियं श्रागममाणे तवे से अभिसमन्नागए भवइ जमेयं भगवया पवेश्यं तमेव अभिसमिच्चा सव्वयो सव्वत्ताए सम्मत्तमेव समभिजाणिया, जस्स णं भिकावुस्स एवं भवइ-पुट्ठो अबलो अहमंसि नालमहमंसि गिहतरसंकमणं भिक्खायरियं गमणाए, से एवं वयंतस्स परो अभिहडं असणं वा (4) ग्राहट्ट दलइज्जा, से पुवामेव बालोइज्जा-याउसंतो ! नो खलु मे कप्पइ अभिहडं असणं वा (4) भुत्तए वा पायए वा अन्ने वा एयप्पगारे ॥सू० 216 // जस्स णं भिक्खुस्स अयं पगप्पे-ग्रहं च खलु पडिन्नत्तो अपडिन्नतेहिं गिलाणो अगिलाणेहिं अभिकंख साहम्मिएहिं कीरमाणं वेयावडियं साइज्जस्सामि, अहं वावि खलु अप्पडिन्ननो पडिन्नत्नस्स अगिलाणो गिलाणस्स अभिकंख साहम्मियस्स कुज्जा वेयावडियं करणाए ग्राहट्टु परिन्न अणुक्खिस्सामि ग्राहडं च साइज्जिस्सामि 1, बाहट्ट परिन्नं प्राणक्खिस्सामि ग्राहडं च नो साइज्जिस्सामि 2, ग्राहटु परिनं नो आणक्खिस्सामि ग्राहडं च साइज्जिस्सामि ३,थाहटु परिनं नो अाणक्खिस्सामि ग्राहडं च नो साइज्जिस्सामि 4, एवं से ग्रहाकिट्टियमेव धम्म समभिजाणमाणे संते विरए सुसमाहियलेसे तत्थवि तस्स कालपरियाए से तत्थ वियंतिकारए, इच्चेयं विमोहाययणं हियं सुहं खमं निस्सेसं ग्राणुगामियं त्ति बेमि ॥सू० 217 // // इति पंचमोद्देशकः // 8-5 // Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 38] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः // अध्ययन-८ : उद्देशकः-६ // जे भिक्खू एगेण वत्थेण परिसिए पायबिईएण, तस्स णं नो एवं भवइ-विईयं वत्थं जाइस्सामि, से अहेसणिज्ज वत्थं जाइज्जा ग्रहापरिग्गहियं वत्थं धारिज्जा जाब गिम्हे पडिवन्ने ग्रहापरिजुन्नं वत्थं परिदृविज्जा (2) अदुवा एगसाडे अदुवा अचेले लाघवियं बागममाणे जाव सम्मत्तमेव समभिजाणिया ॥सू० 218 // जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ-एगे अहमसि, न मे अस्थि कोइ, न याहमवि कस्सवि, एवं से एगागिणमेव अप्पाणं ममभिजाणिज्जा, लाघवियं अागममाणे तवे से अभिसमन्नागए भवइ जाव समभिजाणिया ॥सू० 216 // से भिक्खू वा भिक्खुणी वा असणं वा (4) थाहारेमाणे नो वामाश्रो हणुयायो दाहिणं हणुयं संचारिज्जा श्रासाएमाणे, दाहिणायो वाम हणुयं नो संचारिज्जा आसाएमाणे (पाढायमाणे) से अणासायमाणे लापवियं यागममाणे तवे से अभिसमन्नागए भवइ, जमेयं भगवया पवेइयं तमेवं अभिसमिच्चा सव्वश्रो सव्वत्ताए सम्मत्तमेव अ(सम)भिजाणिया ।सू० २२०॥जस्स णं भिवखुस्स एवं भवइ-से गिलामि च खलु यहं इमंमि समये इमं सरीरगं अणुपुब्वेण परिवहित्तए, से अणुपुब्वेणं याहारं संवट्टिज्जा, अणुपुव्वेणं याहारं संवट्टित्ता कसाए पयणुए किचा समाहियच्चे फलगावयट्ठी उट्ठाय भिक्खू अभिनिवुडच्चें ॥सू. 221 // अणुपविसित्ता गाम वा नगरं वा खेडं वा कब्बडं वा मडंबं वा पट्टणां वा दोणमुहं वा श्रागरं वा यासमं वा सन्निवेसंवा नेगमं वा रायहाणिं वा तणाई जाइज्जा तणाई जाइत्ता से तमायाए एगंतमवक्कमिज्जा, एगंतमवक्कमित्ता अप्पंडे अप्पपाणे अप्पबीए अप्पहरिए अप्पोसे अप्पोदए अप्पुत्तिंगपणगदगमट्टियमक्कडासंताणए पडिलेहिय (2) पमज्जिय (2) तणाई संथरिज्जा, तणाई संथरित्ता इत्थवि समए इत्तरियं कुज्जा, तं सच्चं सच्चवाई श्रोए तिन्ने छिन्नकहकहे आईय? अणाईए चिच्चाण भेउरं कायं संविहूय विरू Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आचाराङ्गसूत्रम् / श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 8 ] [ 36 वरूवे परीसहोवसग्गे अस्सि विस्तंभणयाए भेरवमणुचिन्ने तत्थवि तस्म कालपरियाए जाव प्राणुगामियं त्ति बेमि ।।सू० 222 // // इति षष्ट उद्देशकः / / 8-6 / / // अध्ययनं-८ : उद्देशकः-७॥ जे भिक्खू अचेले परिवुसिए तस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ-चाएमि अहं तणफा अहियासित्तए सीयफासं पहियासित्तए तेउफासं यहियासित्तए दंसमसगफासं अहियासित्तए एगयरे अन्नतरे विख्वरूवे फासे अहियासित्तए हिरिपडिच्छायणं चहं नो संचाएमि अहियासित्तए, एवं से कप्पेइ कडिबंधणं धारितए ॥सू० 223 // अदुवा तत्थ परक्कमंतं भुजो अचेलं तणफासा फुसन्ति सीयफासा फुसन्ति तेउफासा फुसन्ति दंसमसगफासा फुसन्ति एगयरे अनयरे विरूवरूवे फासे ग्रहियासेइ, अवेले लाघधियं यागममाणे जाव समभिजाणिया ॥सू० 224 // जस्स णं भिकास्स एवं भाइ-यहं च खलु अन्नेसि भिक्खूणं असणं वा (4) बाहर्ट्स दलइस्सामि ग्राहडं च साइज्जिस्सामि 1, जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ-ग्रह च खलु धन्नेसिं भिक्रवृणं असणं वा (4) बाहटु दलइस्सामि ग्राहडं च नो साइस्सामि 2, जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ-अहं च खलु असणं वा (2) याहट्ट नो दलइस्सामि ग्राहडं च साइजिस्सामि 3, जस्स गां भिक्खुस्स एवं भवइ-अहं च खलु अन्नेसिं भिक्खूगां असणां वा (4) ग्राहटु नो दलइस्सामि ग्राहडं च नो साइजिस्सामि 4, अहं च खलु तेण अहाइरितेण अहेसणिज्जेण ग्रहापरिग्गहिएणं असणेण वा (4) अभिकंख साहम्मियस्स कुज्जा वेयावडियं करणाए, अहं वावि तेण ग्रहाइरितेण अहेसणिज्जेण ग्रहापरिग्गहिएणं असणेण वा (4) अभिकंख साहम्मिएहिं कीरमाणं वेयावडियं साइज्जिस्सामि लापवियं यागममाणे जाव सम्मत्तमेव समभिजाणिया ॥सू. 225 / / जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ-से Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 40 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः गिलामि खलु अहं इमम्मि समए इमं सरीरगं अणुपुब्वेणं परिवहित्तए, से अणुपुवेणं याहारं संवट्टिजा (2) कसाए पयणुए किचा समाहियच्चे फलगावयट्ठी उट्ठाय भिक्खू अभिनिव्वुडच्चे अणुपविसित्ता गाम वा नगरं वा जाव रायहाणिं वा तणाई जाइजा जाव सन्यरिजा, इत्थवि समए कार्य च जोगं च ईरियं च पञ्चक्खाइजा, तं सच्चं सचावाई योएतिन्ने छिन्नकहकहे आईय? अणाईए चिचाणं भेउरं कायं संविहुणिय विरुवरूवे परीसहोवसग्गे अस्सिं विस्संमणाए भेरवमणुचिन्ने तत्थवि तस्स कालपरियाए, सेवि तत्थ वियन्तिकारए, इच्चेयं विमोहाययणां हियं सुहं खमं निस्सेसं पाणुगामियं तिबेमि ॥सू० 226 // // इति सप्तमोद्देशकः / / 8-7 // // अध्ययनं-८ : उद्देशकः-८ // अणुपुब्वेण विमोहाई, जाइं धीरा समासज वसुमन्तो मइमन्तो, सव्वं नचा अणेलिसं // 1 // दुविहंपि विइत्ता गां, बुद्धा धम्मरस पारगा। अणुपुव्वीइ संखाए, प्रारंभात्रो (य) (कम्मुणा उ) तिउट्टइ // 2 // कसाए पयगू किचा, अप्पाहारे तितिक्खए / श्रह मिक्व गिलाइजा, याहारस्सेव अन्तियं // 3 // जीवियं नाभिकंखिज्जा, मरणां नोवि पत्थए; दुहयोऽवि न सजिज्जा, जिवीए मरणे तहा // 4 // मज्झत्यो निज्जरापेही, समाहिमणुपालए अन्तो बहिं विऊस्सिज्ज, अज्झत्थं सुद्धमेसए // 5 // जं किंचुवकमं जाणे, थाउखेमस्समप्पणो / तस्सेव अन्तरद्धाए, खिप्पं सिविखज्ज पंडिए // 6 // गामे वा अदुवा रराणे, थंडिलं पडिलेहिया / अप्पपाणां तु विनाय, तणाई संथरे मुणी // 7 // श्रणाहारो तुयट्टिज्जा, पुट्ठो तत्थाहियासए। नाइवेलं उवचरे, माणुस्सेहि विपुटुवं // 8 // संसप्पगा य जे पाणा, जे य उड्डमहाचरा। भुजन्ति मंससोणिय, न छणे न पमज्जए // // पाणा देहं विहिंसन्ति, ठाणायो नवि उम्भमे ग्रासवेहिं विवित्तेहिं, तिप्पमाणोहियासए // 10 // Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आचाराङ्गसूत्रम् : श्रुतस्कंधः 1 अध्ययन 6 ] [41 गन्येहि विवित्तेहिं, याउकालस्स पारए पग्गहियतरग चेय, दवियस्म वियाणयो // 11 // अयं से अवरे धम्मे, नायपुत्तेण साहिए / श्रायवज्ज पडोयार, विजहिज्जा तिहा तिहा // 12 // हरिएसु न निवज्जिज्जा, थंडिलं मुणिया सए / विप्रोसिज्ज अणाहारो, पुट्टो तत्थहियासए // 13 // इन्दिएहिं गिलायन्तो, सभियं श्राहरे मुणी / तहावि से अगरिहे, अचले जे समाहिए // 14 // अभिक्कमे पडिकमे, संकुचए पसारए / कायसाहारणट्ठार, इथं वावि अचेयणो // 15 // परिकमे परिकिलन्ते, अदुवा चिटठे ग्रहायए। ठाणे ण परिकिलन्ते, निसीइजा य अंतसो // 16 // श्रासीणेऽणेलिसं मरणं, इन्दियाणि समीरए / कोलावासं समासज्ज वितहं प्रउरे सए // 17 // जया वज समुप्पज्जे, न तत्थ अवलम्बए; तउ उकसे अप्पाणं, फासे तत्थ हियासए // 18 // अयं चाययतरे सिया, जो एवमणुपालए सव्वगायनिरोहेवि, ठाणायो नवि उब्भमे // 19 // श्रयं से उत्तमे धम्मे, पुव्वट्ठाणस्स पग्गहे / अचिरं पडिलेहिता, विहरे चिट्ठ माहणे // 20 // श्रचित्तं तु समासज्ज, गवए तत्थ अप्पगं / वोसिरे सबसो कायं, न मे देहे परीसहा, // 21 // जावज्जीवं परीसहा, उवसग्गा इति संखया संबुडे देह भेयाए, इय पन्नेऽहियासए // 22 // भेउरेसु न रज्जिज्जा, कामेसु बहुतरेसुवि (बहुलेसुवि) इच्छा लोभं न सेविज्जा, धुववन्नं सपेहिया // 23 // सासएहिं निमन्तिज्जा, दिव्वमायं न सदहे / तं पडिबुझ माहणे, सव्वं नूमं विहूणिया // 2 // सब्बठेहिं अमुच्छिए, अाउकालस्स पारए / तितिक्खं परमं नचा, विमोहन्नयरं हियं 25|| तिबेमि // ॥इति अष्टमोद्देशकः 8-8 // इति अष्टममध्ययनम् ||8|| // उपधानश्रुताख्यमध्ययनं 6 : उद्देशकः 1 // अहासुयं वइस्सामि जहा से समणे भगवं उट्ठाए। संखाए तंसि हेमते श्रहुणो पव्वइए रीइत्था // 1 // णो चेविमेण वत्थेण पिहिस्सामि तसि हेमं. Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 42 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्युः : प्रथमो विभागः ते। से पारए श्रावकहाए, एयं खु अणुधम्मियं तस्स // 2 // चत्तारि साहिए मासे, बहवे पाणजाइया बागम्म / अभिाज्झ कायं विहरिसु, पारुसिया णं तत्थ हिंसिसु // 3 / / संवच्छरं साहियं मासं जं न रिकासि वत्थगं भगवं। अचेलए तयो चाइ तं वोसिज्ज वत्थमणगारे // 1 // अदु पोरिसिं तिरियं भित्ति, चक्खुमासज्ज अन्तसो झायइ / अह चक्खुभीया संहिया ते, हन्ता हन्ता बहवे कंदिसु // 5 // सयणेहिं वितिमिस्सेहिं इथियो तत्थ से परिनाय सागारियं न सेवेइ य, से सयं पवेसिया झाइ // 6 // जे के इमे अगारत्था मीसीभावं पहाय से झाइ। पुट्ठोवि नाभिभासिंसु गच्छइ नाइवत्तइ अंजू (पुट्ठो व सो अपुट्टो व नो अणुनाइ पारगं भगव) // 7 // णो सुकरमेयमेगेसि नाभिभासे य अभिवायमाणे / हयपुटवे तत्थ दंडेहिं लूसियपुव्वे अपपुराणेहिं // 8 // फरसाइं दुत्तितिक्खाइ अइयच्च मुणी परवकममाणे। श्राघाय नट्टगीयाइं दराडजुदाई मुट्ठिजुधाई // 6 // गढिए मिहुकहासु समयंमि नायसुए विसोगे अदक्खु / एयाइ से उरालाइं गच्छइ नायपुत्ते असरणयाए // 10 // अवि साहिए दुवे वासे सीयोदं अभुच्चा निक्खन्ते / एगत्तगए पिहियच्चे से अहिन्नायदंसणे सन्ते // 11 // पुढविं च पाउकायं च तेउकायं च वाउकायं च / पणगाई बीयहरियाई तसकायं च सव्वसो नच्चा // 12 // एयाइं सन्ति पडिलेहे, चित्तमन्ताइ से अभिनाय / परिवज्जिय विहरिस्था इयं संखाय से महावीरे // 13 // यदु थावरा य तसत्ताए, तसा य थावरत्ताए / अदुवा सव्वजोणिया सत्ता कम्मुणा कप्पिया पुढो बाला // 14 // भगवं च एवमनेसि सोवहिए हु लुप्पइ बाले। क मंच सबसो नच्चा तं पडियाइक्खे पावगं भगवं // 15 // दुविहं समिच्च मेहावी किरीयमक्खायऽणेलिसं नाणी। श्रायाण सोयमवायसोयं जोगं च सव्वसो णच्चा // 16 // श्रइवत्तियं अणाउट्टि सयमन्नेसिं अकरणयाए / जस्सित्थियो परिन्नाया सव्वकम्मावहा उ से अदक्खु // 17 // अहाकडं न से सेवे सव्वसो कम्म (कम्मुणा). अद Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 43 श्री आचाराङ्गसूत्रम् :: श्रुतरकंधः 1 अध्ययनं 9 ] खू / जं किंचि पावगं भगवं तं यकुछ वियर्ड भुजित्था // 18 // णो सेवइ य परवत्थं परपाएवि से न भुजित्था / परिवज्जियाण उमाणं गच्छइ संखडिं असरणयाए // 16 // मायराणे असणपाणस नाणुगिद्धे रसेसु अपडिन्ने / थच्छिपि नो पमज्जिज्जा नोवि य कंडूयए मुणी गायं // 20 // अप्पं तिरियं पेहाए अप्पिं पिट्ठयो पेहाए / अप्पं बुइएऽपडिभाणी पंथपेही चरे जयमाणे // 21 // सिसिरंसि अद्धपडिवन्ने तं वोसिज्ज वत्थमणगारे / पसारितु बाई परक्कमे नो अवलम्बियाण कंधमि // 22 // एस विही अणुक्कन्तो माहणेण मइमया / बहुसो अपडिन्नेण भगवया एव रियंति // 23 // तिबेमि // // इति प्रथमोद्देशकः // 6-1 // // अध्ययन 6 :: उद्देशकः 2 // चरियासणाई सिज्जायो एगइयायो जायो बुझ्यायो। बाइक्ख ताई सयणासणाई जाइं सेवित्था से महावीरे // 1 // श्रावेसणसभापवासु पणियसालासु एगया वासो। अदुवा पलियठाणेसु पलालपुजेसु एगया वासो // 2 // श्रागन्तारे पारामागारे तह य नगरे व एगया वासो / सुसाणे सुराणगारे वा रुक्खमूले व एगया दासो // 3 // एएहिं मुणी सयणेहिं समणे पासि पतेरसवासे / राइं दिवंपि जयमाणे अपमत्ते समाहिए झाइ // 4 // णिपि नो पगामाए, सेवइ भगवं उट्ठाए। जग्गावइ य अप्पाणां इसिं साइ य अपडिन्ने // 5 // संबुज्झमाणे पुणरवि ग्रासिंसु भगवं उट्टाए / निवखम्म एगया रायो बहि चंकमिया मुहुत्तागं // 6 // सयणेहिं तत्थुवसग्गा भीमा अासी अणेगरूवा य / संसप्पगा य जे पाणा अदुवा जे पक्खिणो उवचरन्ति / 7 // अदु कुचरा उवचरन्ति गामरक्खा य सत्ति-हत्था य / अदु गामिया उवसग्गा इत्थी एगइया पुरिसा य // 8 // इहलोइयाई परलोइयाइं मीमाई अगोगरूवाइं / अवि सुभि दुभिगन्धाइं सदाई अगोगरूवाई // 9 // अहियासए सया समिए Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 44 ... [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः फासाई विरूवरूवाईं। अरई रई अभिभूय रीयइ माहगो अबहुवाई // 10 // स जगोहिं तत्थ पुच्छिंसु एगचरावि एगया रात्रो। श्रवाहिए कसाइत्था पेहमायो समाहिं अपडिन्ने // 11 // अयमंतरंसि को इत्थ ? अहमंसित्ति भिक्खु बाहट्ट / अयमुत्तमे से धम्मे तुसिसीए कसाइए झाइ // 12 // जंसिप्पेगे पवेयन्ति सिसिरे मारुए पवायन्ते / तंसिप्पेगे अणगारा हिमवाए निवायमेसन्ति // 13 // संघाडीयो पवेसिरसामो एहा य समादहमाणा / पिहिया च सक्खामो अइदुक्खे हिमगसफासा // 14 // तंसि भगवं अपडिन्ने अहे विगडे अहियासए / दविए निक्खम्म एगया रात्रो ठाइए भगवं समियाए // 15 // एस विही अणुक्कन्तो माहोगा मइमया / बहुसो अपडिगणोणा भगवया एवं रीयन्ति // 16 // तिबेमि। // इति द्वितीयोद्देशकः 6.2 // .. // अध्ययन 9 : उद्देशकः 3 // तणफासे सीयफासे य तेउफासे य दंसमसगे य / अहियासए सया समिए फासाई विरूवरूवाई // 1 // अह दुच्चरलाढमचारी वज्जभूमि च सुब्भभूमित्र / पंतं सिज्ज सेविंसु आसरागाणि चेव पंताणि // 2 // लादेहिं तस्तुवसग्गा बहवे जाणवया लूसिंसु / श्रह लूहदेसिए भत्ते कुक्कुरा तत्थ हिंसिसु निवइंसु // 3 // श्रप्पे जो निवारेइ लूसणए सुणए दसमागो छुन्छुकारिंति श्राहंसु समयां कुक्कुरा दसंतुत्ति // 4 // एलिक्खए जणा (जो) भुज्जो बहवे वज्जभूमि फरसासी / लढि गहाय नालियं समणा तस्थ य विहरिंसु // 5 // एवंपि तत्थ विहरन्ता पुटपुव्वा अहेसि सुणिएहिं / संलुचमाणा सुणएहिं दुच्चराणि तत्थ लादेहिं // 6 // निहाय दराडं पाणेहिं तं कायं वोसज्जमणगारे / श्रह गामकराटए भगवन्ते अहिश्रासए अभिसमिच्चा॥७॥ Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आचाराङ्गसूत्रम् / श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 6 ] [ 45 नागो संगामसीसे वा पारए तत्थ से महावीरे / एवंपि तत्थ लादेहिं अलद्धपुवोवि एगया गामो॥। उवसंकमन्तमपडिन्नंगामं तियम्मि अप्पत्तं / पडिनिकखमितु लूसिंसु एयायो परं पलेहित्ति // 1 // हयपुवो तत्थ दराडेण अवा मुट्ठिणा अदु कुन्तफलेण / अदु लेलुणा कवालेण हन्ता हन्ता बहवे कन्दिसु // 10 // मंसाणिं (मंसूणि) छिन्नपुवाणि उभिगा एगया कायं / परीसहाइंलुं चिंसु अदुवा पंसुणा उवकरिसु // 11 // उच्चालय निहणिंसु अदुवा पासणाउ खलइंसु / वोसट्टकायपणयाऽसी दुवखसहे भंग अपडिन्ने // 12 // सूरो संगामसीसे वा संवुडे तत्थ से महावीरे / पडिसेवमाणे फरुसाइं अचले भगवं रीयित्था // 13 // एस विही अणुक्कन्तो माहणेण मइमया। बहुसो अपडिगणेण भगवया एवं रीयंति // 14 // त्ति बेमि॥ // इति तृतीयोदेशकः // 9-3 // // अध्ययनं 9 : उद्देशकः 4 // श्रोमोयरियं चाएइ अपुढेवि भगवं रोगेहिं / पुटूठे वा अपुढे वा . * नो से साइजइ तेइच्छ // 1 // संसोहणं च वमणं च गायभंगणं च सिणाणं च / संबाहणं च न से कप्पे दन्तपक्खालणं च परिन्नाए(य) // 2 // विरए गामधम्मेहिं रीयइ माहणे अबहुवाइ / सिसिरंमि एगया भगवं छायाए भाइ यासीय // 3 // पायावइ य गिम्हाणं अच्छइ उक्कुडुए अभित्तावे / अदु जाव इत्थ लूहेणं योयणमंथुकुम्मासेणं // 4 // एयाणि तिन्नि पडिसेवे अट्टमासे श्र जावयं भगवं / अपि इत्थ एगया भगवं श्रद्धमासं अदुवा मासपि // 5 // अवि साहिए दुवे मासे छप्पि मासे अदुवा विहरित्था (अपिबित्ता)। रायोवराय अपडिन्ने अनगिलाणमेगया भुजे // 6 // छ?ण एगया भुजे अदुवा अट्ठमण दसमेणं / दुवालसमेण एगया भुजे पेहमाणे समाहिं अपडिन्ने Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः // 7 // णच्चा णं से महावीरे नोऽविय पावगं सयमकासी / अन्नेहिं वा ण कारित्था कीरतपि नाणुजाणित्था॥ .. ___ गाम पविसे नगरं वा घासमेसे कर्ड परट्टाए / सुविसुद्धमेसिया भगवं वायतजोगयाए सेवित्था // 1 // अदु वायसा दिगिछत्ता जे अन्ने रससिणो सत्ता / घासेसणाए चिठति सययं निवइए य पेहाए // 10 // अदुवा माहणं च समणं वा गामपिण्डोलगं च अतिहिं वा / सोवागमूसियारि वा कुकुरं वावि विट्ठियं पुरयो // 11 // वित्तिच्छेयं वज्जन्तो तेसिमप्पत्तियं परिहरन्तो / मन्दं परकमे भगवं अहिंसमाणो घासमेसित्था // 12 // अवि सूइयं वा सुक्कं वा सीयं पिंड पुराणकुम्मासं। अदु बुक्कसं पुलागं वा लद्धे पिंडे अलद्धे दविए // 13 // अवि झाइ से महावीरे पासणत्थे अकुक्कुए माणं / उड्डे अहे तिरियं च पेहमाणे समाहिमपडिन्ने // 14 // अकसाइ विगयगेही य सद्दरूवेसु अमुच्छिए भाइ / छउमत्थोऽवि परकममाणो न पमायं सइंपि कुवित्था // 15 // सपमेव अभिसमागम्म अायतजोगमायसोहीए। अभिनिव्वुडे अमाइल्ले श्रावकहं भगवं समियासी // 16 // एस विही अणुकतो, माहणेण मइमया / बहुसो अपडिन्नेण, भगवया एवं रीयन्ति // 17 // तिबेमि // इति चतुर्थ उद्देशकः // 1-4 // इति नवममध्ययनम् // 6 // // प्रथमो ब्रह्मचर्य-श्रुतस्कंधः समाप्तः // Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥अथ द्वितीयोऽग्र-श्रुतस्कंधः // ॥चूलिका 1 // पिण्डेसणाध्ययनं 1 : उद्देशकः 1 // ___ से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविठे समाणे से जं पुण जाणिज्जा-असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइम वा पाणेहिं वा पणगेहिं वा बीएहिं वा हरिएहिं वा संसतं उम्मिस्सं सीयोदएण वा योसित्तं रयसा वा परिघासियं (परिवासियं) वा तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा परहत्थंसि वा परपायंसि वा अफासुयं अणेसणिज्जति मन्नमाणे लाभेऽवि संते नो पडिग्गाहिजा॥ से य ग्राहच्च पडिग्गहे सिया से तं पायाय एगंतमवक्कमिज्जा, एगंतमवक्कमित्ता अहे बारामंसि वा अहे उवस्सयंसिवा अप्पंडे अप्पपाणे अप्पबीए अप्पहरिए अप्पोसे अप्पुदए अप्पुत्तिंग-पणगदग-मट्टिय-मक्कडासंताणए विगिंचिय (2) उम्मीसं विसोहिय (2) तयो संजयामेव भुजिज्ज वा पीइज्ज वा, जं च नो संचाइज्जा भुत्तए वा पायए वा से तमायाय एगंतमवक्कमिजा, अहे झामथंडिलंसि वा अट्ठिरासिसि वा किट्टरासिसि वा तुसरासिंसि वा गोमयरासिसि वा अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि पडिलेहिय पडिलेहिय पमज्जिय पमजिय तो संजयामेव परिदृविज्जा ॥सू. 1 // से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइकुलं जाव पविठे समाणे से जायो पुण योसहीयो जाणिज्जा-कसिणायो सासियानो अविदलकडायो अतिरिच्छच्छिन्नायो अवुच्छिण्णायो तरुणियं वा छिवाडिं श्रणभिक्कंतभज्जियं पेहाए अफासुयं अणेसणिज्जति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिग्गाहिज्जा // से भिक्खू वा (2) जाव पविढे समाणे से जायो पुण ग्रोसहीयो जाणिज्जा-अकसिणायो असासियायो विदलकडायो तिरिच्छच्छि Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः नायो वुच्छिन्नायो तरुणियं वा छिवाडि अभिक्कतं भजियं पेहाए फा नुयं एसणिज्जति मन्नमाणे लाभे संते पडिग्गाहिज्जा 2 ॥सू. 2 // से भिक्खू वा (2) जाव समाणे से जं पुण जाणिज्जा पिहुयं वा बहुरयं वा भुजियं वा मंथुवा चाउलं वा चाउलपलं वा सई संभज्जियं अफासुयं जाव नो पडिगाहिज्जा 1 // से भिवम्बू वा(२) जाव समाणे से जं पुण जाणिज्जा-पिहुयं वा जाव चाउलपलं वा असई भज्जियं दुक्खुत्तो वा तिक्खुत्तो वा भज्जियं फासुयं एसणिज्जं जाव पडिगाहिज्जा 2 ॥सू० 3 // से मिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइकुलं जाव पविसिउकामे नो. अन्नउत्थिएण वा गारथिएण वा परिहारियो वा अप्परिहारिएणं सद्धिं गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए पविसिज्ज वा निक्खमिज्ज वा 1 // भिक्खू वा (2) बहिया वियारभूमि वा विहारभूमि वा निक्खममाणे वा पविसमाणे वा नो अन्नउत्थिएण वा गारथिएण वा परिहारियो वा अपरिहारिएण सद्धिं बहिया वियारभूमि वा विहारभूमि वा निक्खमिज्ज चा पविसिज्ज वा 2 // से भिक्खू वा(२) गामाणुगाम दूइज्जमाणे नो अन्नउथिएण वा जाव गामाणुगाम दूइज्जिज्जा 3 ॥सू० 4 // से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जाव पविठे समाणे नो अन्नउत्थियस्स या गारत्थियस्स वा परिहारियो वा अपरिहारियस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा दिज्जा वा अणुपवइज्जा वा // सू० 5 // से भिक्खू वा (2) जाव समाणे जाव असणं वा (4) अस्सिंपडियाए एगं साहम्मियं समुहिस्स पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छिज्ज अणिसठं अभिहडं ग्राह? चेएइ, तं तहप्पगारं असणं वा (4) पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकडे वा बहिया नीहडं वा अनीहडं वा अत्तट्ठियं वा अणत्तट्ठियं वा परिभुत्तं वा अपरिभुत्तं वा श्रासेवियं वा अणासेवियं वा अफासुर्य जाव नो पडिग्गाहिज्जा, एवं बहवे साहम्मिया एगा Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वा 2 46 समारम्भ जाव मागे से जं पुण जाव चेण्इ त तपारभुत्तं श्री आचाराङ्ग-सूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 1 ] [ 46 साहम्मिणी बहवे साहम्मिणीयो समुद्दिस्स चत्तारि घालावगा भाणियव्वा ॥सू० 6 // से भिक्खू वा (2) जाव समाणे से जं पुण जाणिज्जा असणं वा 4 बहवे समण-माहण-यतिहि-किवणवणीमए पगणिय 2 समुद्दिस्स पागाइं वा 4 समारब्भ जाव नो पडिग्गाहिज्जा ॥सू० 7 // से भिक्खू वा भिक्षुणी वा जाव पविठे समाणे से जं पुण जाणिज्जा असणं वा 4 हवे समण-माहण-अतिहि-किवणवणीमए समुद्दिस्स जाव चेएइ तं तहप्पगारं असणं वा (4) अपुरिसंतरकडं वा अबहियानीहडं अणत्तट्ठियं अपरिभुत्तं गासेवियं अफासुयं अणेसणिज्जं जाव नो पडिग्गाहिज्जा१ ग्रह पुण एवं जाणिज्जा पुरिसंतरकडं बहियानीहडं अत्तट्टियं परिभुत्तं ग्रासेवियं फा सुयं एमणिज्जं जाव पडिगाहिज्जा ॥सू० 8 // से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइकुलं पिंडवाय-पडियाए पविसिउकामे से जाइं पुण कुलाई जाणिज्जा-इमेसु खलु कुलेसु निइए पिंडे दिज्जइ अग्गपिंडे दिज्जइ नियए भाए दिज्जइ नियए अबडभाए दिज्जइ, तहप्पगाराइं कुलाई निइयाई निइउमाणाई नो भत्ताए वा पाणाए वा पविसिज्ज वा निवखमिज्जं वा 1 // एयं खलु तस्स भिक्खुस्स भिक्खुणीए वा सामग्गियं जं सव्वट्ठेहिं समिए सहिए सया जए ति बेमि २॥सू. 6 // // इति प्रथमोद्देशकः / / श्रु० २-चू० १-अ० 1 उ०.१ / / // अध्ययन-१ : उद्देशकः-२ // से भिक्खू वा भिवखुणी वा गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविठ्ठे समाणे से जं पुण जाणिज्जा असणं वा (1) पट्टमिपोसहिएसु वा अद्धमासिएसु वा मासिएसु वा दोमासिएसु वा तेमासिएसु वा चाउम्मासिएसु वा पंचमासिएसु वा छम्मासिएसु वा उऊसु वा उउसंधीसु वा उउपरियट्टेस वा बहवे समणमाहणयतिहिकिवणवणीमगे एगायो उक्खायो परिएसिज्जमाणे पेहाए दोहिं उक्खाहिं परिएसिज्जमाणे पेहाए तिहिं उक्खाहिं परिए Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 50 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः। प्रथमो विभागः सिज्जमाणे पेहाए कुभीमुहायो वा कलोवाइयो वा संनिहिसंनिचयायो वा परिएसिज्जमाणे पेहाए तहप्पगारं असणं वा (4) अपुरिसंतरकडं जाव प्रणासेवियं अफासुयं जाव नो पडिग्गाहिज्जा 1 // यह पुण एवं जाणिज्जा पुरिसंतरकडं जाव यासेवियं फासुयं पडिग्गाहिज्जा 2 ॥सू० 10 // से भिक्खू वा (2) जाव समाणे से जाई पुण कुलाई जाणिज्जा, तंजहाउग्गकुलाणि वा भोगकुलाणि वा राइन्नकुलाणि वा खत्तियकुलाणि या इक्खागकुनाणि वा हरिवंसकुलाणि वा एसियकुलाणि वा वेसियकुलाणि वा गंडागकुलाणि वा कोट्टागकुलाणि वा गामरक्खकुलाणि वा बुक्कासकुलाणि वा पोकासाईयकुलाणि अन्नयरेसु वा तहप्पगारेसु कुलेसु अदुगुछिएसु अगरहिएसु असणं वा (4) फासुयं जाव पडिग्गाहिज्जा ॥सू. 11 // से भिक्खू वा (2) जाव समाणे से जं पुण जाणिज्जा असणं वा (4) समवाएसु वा पिंडनियरेसु वा इंदमहेसु वा खंदमहेसु वा एवं रुद्दमहेसु वा मुगुदमहेसु वा भूयमहेसु वा जखमहेसु वा नागमहेसु वा थूभमहेसु वा चेइयमहेसु वा रुक्खमहेसु वा गिरिमहेसु वा दरिमहेसु वा अगडमहेसु वा तलागमहेसु वा दहमहेसु वा नइमहेसु वा सरमहेसु वा सागरमहेसु वा आगरमहेसु वा अन्नयरेसु वा तहप्पगारेसु विरूवरूवेसु महामहेसु वट्टमाणेसु बहवे ममणमाहण-अतिहिकिवणवणीमगे एगायो उक्खायो परिएसिज्जमाणे पेहाए दोहिं जाव संनिहिसंनिचयायो वा परिएसिज्जमाणे पेहाए तहप्पगारं असणं वा (4) अपुरिसंतरकडं जाव नो पडिग्गाहिज्जा१॥ अह पुण एवं जाणिज्जा दिन्नं जं तेसिं दायव्वं, यह तत्थ भुजमाणे पेहाए गाहावइभारियं वा गाहावइभगिणिं वा गाहावइपुत्तं वा धूयं वा सुराहं वा धाई वा दासं वा दासिं वा कम्मकरं वा कम्मकरिं वा से पुव्वामेव बालोइज्जा अाउसित्ति वा भगिणित्ति वा दाहिसि मे इत्तो अन्नयरं भोपणजायं, से सेवं वयंतस्स परो असणं वा (4) बाहटु दलइज्जा तहप्पगारं असणं वा (1) सयं वा पुण Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आचाराङ्गसूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 1 ] [ 51 जाइज्जा परो वा से दिजा फासुयं जाव पडिगाहिज्जा 2 ॥सू. 12 // से भिक्खू वा (2) परं पद्धजोयणमेराए संखडिं नच्चा संखडिपडियाए नो अभिसंधारिजा गमणाए 1 // से भिक्खू वा (2) पाइणं संखडिं नचा पडीणं गच्छे अणाढायमाणे, पडीणं संखडिं. नच्चा पाइणं गच्छे अणा दायमागे, दाहिणं संखडिं नचा उदीणं गच्छे अणादायमाणे उइणं संखडिं नचा दाहिणं गच्छे अणादायमाणे, जत्थेव सा संखडि सिया तंजहा-गामंसि वा नगरंसि वा खेडंसि वा कम्बसि वा मडंबंसि वा पट्टणंसि वा ग्रागरंसि वा दोणमुहंसि वा नेगमंसि वा बासमंसि वा संनिवेसंसि वा जाव रायहाणिसि वा संखडि संखडिपडियाए नो अभिसंधारिजा गमणाए 2 / केवली ब्रूया-श्रायाणमेयं (पाययणमेयं) संखडिं संखडिपडियाए अभिधारेमाणे याहाकम्मियं वा उद्दसियं वा मीसजायं वा कीयगडं वा पामिच्चं वा अच्छिज्ज वा अणिसिट्ठं वा अभिहडं वा ग्राह दिजमाणं भुजिजा३॥ अस्संजए भिक्खुपडियाए खुड्डियदुवारियायो महल्लिदुवारियायो कुजा, महल्लियदुवारियायो खुड्डियदुवारियायो कुजा, सम यो सिजायो विसमायो कुन्जा, विसमायो सिजायो समायो कुजा, पवायायो सिजायो निवायायो कुन्जा, निवायायो सिज्मायो पवायायो कुजा, अंतो वा बहिं वा उवस्तयस्स हरियाणि बिंदिय बिंदिय दालिय दालिय संथारंगं संयारिजा, एस विलुगयामो सिजाए, तम्हा से संजए नियंठे तहप्पगारं पुरेसंखडिं वा पच्छासंखडिं वा संखडि संखडिपडियाए नो अभिसंधारिजा गमणाए, 4 / एयं खलु तस्स भिक्खुस्स जाव सया जए त्ति बेमि ॥सू. 13 // // इति द्वितीय उद्देशकः // 2-1-1-2 // Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 52 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / प्रथमो विभागः // अध्ययन-१ : उद्देशकः-३ // से एगइयो अन्नयरं संखडिं ग्रासित्ता पिबित्ता छड्डिज वा वमिन्ज वा भुत्ते वा से नो सम्मं परिणमिज्जा अन्नयरे वा से दुक्खे रोगायके समुप्पज्जिज्जा केवली ब्रूया यायाणमेयं ॥सू० 14 // इह खलु भिवरखू गाहावईहिं वा गाहावईणीहिं वा परिवायएहिं वा परिवाइयाहिं वा एग्गज्ज सद्धिं सुडं पाउं भो वइमिस्सं हुरत्था वा उवस्सयं पडिलेहेमाणो नो लभिज्जा तमेव उपस्सयं संमिस्सीभावमावज्जिज्जा, अन्नमणे वा से मत्ते विप्परियासियभूए इत्थिविग्गहे वा किलीबे वा तं भिक्खु उवसंकमितु ब्रूया--पाउसंतो समणा अहे यारामंसि वा अहे उवस्सयंसि वा रायो वा वियाले वा गामधम्मनियंतियं कट्ट रहस्सियं मेहुणधम्मपरियारणाए बाउट्टामो, तं चेवेगइयो सातिज्जिज्जा-अकरणिज्ज चेयं संखाए एए आयाणा (यायतमाणि) संति संविज्जमाणा पञ्चवाया भवंति, तम्हा से संजये नियंठे तहप्पगारं पुरेसंखडि वा पच्छासंखडिं वा संखडिं संखडिपडियाए नो अभिसंधारिज्जा गमणाए ॥सू. 15 // से भिक्खु वा (2) अन्नयरिं संखडिं सुच्चा निसम्म संपहावइ उस्सुयभूएण, अप्पाणेणं, धुवा संखडी, नो संचाएइ तत्थ इयरेयरेहिं कुलेहिं सामुदाणियं एसियं वेसियं पिंडवायं पडिग्गाहित्ता याहारं पाहारित्ताए माइहाणं संफासे, नो एवं करिजा१॥ से तत्थ कालेण अणुपविसित्ता तत्थिय. रेयरेहिं कुलेहिं समुदाणियं एसियं वेसियं पिंडवायं पडिगाहित्ता याहारं थाहारिजा२॥ (सू० 16) से भिक्खू वा (2) से जं पुण जाणिजा गाम वा जाव रायहाणिं वा इमंसि खलु गामंसि वा जाव रायहाणिसि वा संखडी सिया तंपि य गाम वा जाव रायहाणिं वा संखडि संखडिपडियाए नो अभिसंधारिज्जा गमणाए 1 // केवली बूया-पायाणमेय श्राइन्नाऽवमा णं संखडिं अणुपविस्समाणस्स पाएण वा पाए अक्कंतपुव्वे भवइ, हत्थेण वा हत्थे संचालियपुव्वे भवेइ, पाएण वा पाए प्रावडियपुव्वे Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 53 श्री आचारङ्गमूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 1 ] भाइ, सीसेण वा सीसे संघट्टियपुब्वे भवइ, कारण वा कार संखोभियपुञ्चे भवइ, दंडेण वा अट्ठीण वा मुट्ठीण वा लेलुणा वा कवालेण वा अभिहय. पुव्वेण वा भवइ, सोयोदएण वा उस्सितपुब्वे भवइ, रयसा का परिवासियपुवे भाइ, अणे पणिज्जे वा परिभुत्तपुञ्चे भवइ, अन्नेसि वा दिज्जमाणे पडिग्गाहियपुब्वे भाइ, तम्हा से संजर नियंठे तहप्पगारं याइन्नावमा णं मंखडिं संखडियडियार नो अभिसंधारिज्जा गमणाए ।सू. 17 // से भिक्खू व (2) जाव समाणे से जं पुण जाणिज्जा असणं वा (2) एसणिज्जे सिया अणेसणिज्जे सिया वितिगिछसमावन्नेण अप्पाण्ण असमाहडाए लेसाए तहप्पगारं असणं वा (4) लाभे संते नो पडिगाहिज्जा ॥सू. 18 // से भिक्खू वा (2) गाहावइकुलं पविसिउकामे सव्वं भंडगमायाए गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए पविसिज्ज वा निक्खमिज्ज वा 1 // से भिक्खू वा (2) बहिया विहारभूमि वा वियारभूमि वा निक्खममाणे वा पविसमाणे वा म.वं भंडगमायाए बहिया विहारभूमि वा वियारभूमि वा निक्खमिज्ज वा पविसिज्ज वा 2 // से भिक्खू वा (2) गामणुगामं दूइज्जमाणे सव्वं भंडगमागर गामाणुगाम दूइजिज्जा 3 // ॥सू. 19 // से भिक्खू वा (2) ग्रह पुण एवं जाणिज्जा तिव्वदेसियं वासं वासेमाणं पेहाए तिव्वदेसियं महियं संनि चयमाणं पेहार महवाएगा वा रयं समुद्भुयं पेहाए तिरिच्छसंपाइमा वा तसा पाणा संथडा संनिचयमाणा पेहाए से एवं नच्चा नो सव्वं भंडगमायाए गाहावइकुलं पिंडबायपडियाए पविसिज्ज वा निक्खमिज्ज वा बहिया विहारभूमि वा वियारभूमि वा निक्खमिज्ज वा पविसिज्ज वा गामाणुगामं दूइज्जिज्जा॥सू. 20 // से भिक्खू वा (2) से जाई एण कुलाई जाणिज्जा त जहा खत्तियाण वा राइण वा कुराइण वा रायपेसियाण वा रायवंसट्ठियाण वा अंतो वा बाहिं वा गच्छंताण वा संनिविट्ठाण वा निमंतेमाणाण वा अनिमंतेमाणाण वा असणं वा (4) लाभे संते नो पडिगाहिज्जा ॥सू. 21 // // इति सृतीयोदेशकः // 2-1-1-3 / / Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 54 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः // अध्ययन-१ : उद्देशकः-४ // से भिक्खू वा (2) जाव समाणे से जं पुण जाणेज्जा मंसाइयं वा मच्छाइयं वा मंसखलं वा मच्छखलं वा आहेणं वा पहेणं वा हिंगोलं वा संमेलं वा हीरमाणं पेहाए अंतरा से मग्गा बहुपाणा बहुबीया बहुहरिया बहुमोसा बहुउदया बहुउत्तिंग-पणगदगमट्टीय-मकडासंताणया बहवे तत्थ समणमाहणयतिहिकिवणवणीमगा उवागया उवागमिस्संति (उवागच्छंति) तत्थाइन्ना वित्ती नो पन्नस्स निक्खमणपवेसाए नो पन्नस्स वायण-पुच्छणपरियट्टणाणुप्पेहधम्माणुयोगचिंताए, से एवं नच्चा तहप्पगारं पूरेसंखडिं वा .. पच्छासंखडिं वा संखडि संखडिपडियाए नो अभिसंधारिज्जा गमणाए॥ से भिक्खू वा (2) से जं पुण जाणिज्जा मंसाइयं वा मच्छाइयं वा जाव हीरमाणं वा पेहाए अंतरा से मग्गा अप्पा पाणा जाव संताणगा नो जत्थ बहवे समण. जाव उवागमिस्संति अप्पाइन्ना वित्ती पन्नस्स निक्खमणपवेलाए पन्नस्स वायणपुच्छणपरियट्टणाणुप्पेहधम्माणुयोगचिंताए, सेवं नच्चा तहप्पगारं पुरेसंखडिं वा० अभिसंधारिज्जा गमणाए 2 |सू. 22 // से भिक्खू वा (2) जाव पविसिउकामे से जं पुण जाणिज्जा खीरिणियायो गावीयो खीरिज्जमाणीयो पेहाए असणं वा (4) उवसंखडिज्जमाणं पेहाए पुरा अप्पजूहिए सेवं नचा नो गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए निक्खमिज्ज वा पविसिज्ज वा 1 // से तमादाय एगंतमवक्कमिज्जा अणावायमसंलोए चिट्ठिज्जा ग्रह पुण एवं जाणिज्जा-खीरिणियायो गावीयो खीरियायो पेहार असणं वा (4) उवक्खडियं पेहाए पुराए जूहिए सेवं नचा तो संजयामेव गाहारइकुलं पिडवायपडिय.ए निक्खमिज्ज वा २.२॥सू. 23 // भिक्खागा नामेगे एवमाहंसु-समाणा वा वसमा वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे खुडाए खलु अयं गामे संनिरुद्धाए नो महालए से हेता भयंतारो बाहिरगाणि गामाणि भिक्खायरियार Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आचाराङ्ग-सूत्रम् // श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 1 ] . [ 55 वयह, संति तत्थेगइयस्स भिक्खुस्स पुरेसंथुया वा पच्छासंथुया वा परिवसंति, तंजहा-गाहावइ वा गाहावइणीयो वा गाहावइपुत्ता वा गाहावइधूयायो वा गाहावइसुराहायो धाइयो वा दासा वा दासीयो वा कम्मकरा वा कम्मकरीयो वा तहप्पगराई कुलाई पुरेसंथुयाणि वा पच्छासंथुयाणि वा पुवामेव भिक्खारियाए अणुपविसिस्सामि 1 / यविय इत्थ लभिरसामि पिंडं वा लोयं वा खीरं वा दहिं वा नवणीयं वा घयं वा गुल्लं वा तिल्लं वा महुवा मज्जं वा मंसं वा सक्कुलिं वा फाणियं वा पूयं वा सिहिरिणिं वा, तं पुवामेव भुच्चा पिच्चा पडिग्गहं च संलिहिय संमजिय तयो पच्छा भिक्खूहिं सद्धिं गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए पविस्सिस्सामि वा निक्खमिस्सामि वा, माइट्ठाणं संफासे, तं नो एवं करिजा 2 // से तत्थ भिक्खूहिं सद्धिं कालेण अणुपविसित्ता तत्थियरेयरेहिं कुलेहिं सामुदाणियं एसियं वेसियं पिंडवायं पडिगाहित्ता याहारं पाहारिजा, 3 / एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं जं सव्वट्ठेहिं समिए सहिए सया जए तिबेमि 4 ॥सू० 24 // // इति चतुर्थ उद्देशकः 2-1-1-4 // // अध्ययनं-१: उद्देशकः-५ // से भिक्खू वा (2) जाव पविठे समाणे से जं पुण जाणिज्जा-अग्गपिंडं उक्खिप्पमाणं पेहाए अग्गपिंडं निक्खिप्पमाणं पेहाए अग्गपिंडं हीरमाणं पेहाए अग्गपिंडं परिभाइजमाणं पेहाए अग्गपिंडं परिभुजमाणं पेहाए अग्गपिंडं परिविजमाणं पेहाए पुरा असिणाइ वा अवहाराइ वा पुरा जत्थऽराणे समण-माहणअतिहिकिवण-वणीमगा खद्धं (2) उवसंकमंति से हंता अहमवि खद्धं (2) उवसंकमामि, माइट्टाणं संफासे, नो एवं करेजा ॥सू० 25 // भिक्खू वा (2) जाव समाणे अंतरा से वप्पाणि वा फलिहाणि वा पागाराणि वा तोरणाणि वा अग्गलाणि वा अग्गलपासगाणि वा सति परक्कमे संजयामेव परिकमिज्जा Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 56 ] * [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः नो उज्जुयं गच्छिन्जा 1 / केवली ब्रूया घायाणमेयं, से तत्थ परकममाणे पयलिज्ज वा पक्खलेज वा पवडिज वा, से तत्थ पर लमाले वा पवखलेन्जमाणे वा पवडमाणे वा, तत्थ से काए उच्चारेण वा पासवणेण वा खेलेण वा सिंघाणेण वा तेण वा पित्तेण वा पूरण वा सुक्केण वा सीणिएण वा उवलिते सिया, तहप्पगारं कायं नो अणंतरहियाए पुढवीए नो ससिणिद्धाए पुढवीए नो ससरक्खाए पुढवीए नो चित्तमंताए सिलाए नो चित्तमंताए लेलुए कोलावासंसि वा दारुए जीवपइट्ठिए सग्रंडे सपाणे जाव ससंताणए नो श्रामजिज वा पमजिज वा संहिलिज वा निलिहिज वा उव्वलेज वा. . उव्वट्टिज वा अायाविज वा पयाविज वा 2) से पुव्वामेव अप्पससरक्वं तणं वा पत्तं वा कटुं वा सकरं वा जाइजा, जाइत्ता से तमायय एगतमवकमिजा 2 अहे झामथंडिलंसि वा जगव अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि पडिलेहिय पडिलेहिय पमन्जिय पमन्जिय तो संजयामेव ग्रामजिज वा जाव पयाविज्ज वा 3 ॥सू० 26 // से भिक्खू वा (2) जाव से जं पुण जाणिज्जा गोणं वियालं पडिपहे पेहाए महिसं वियालं पडिपहे पेहाए एवं मगुस्सं यासं हत्थिं सीह वग्धं विगं दीवियं अच्छं तरच्छ परिसरं सियालं विरालं सुणयं कोलसुणयं कोकंतियं चित्ताचिल्लडय वियालं पडिपहे पेहाए सइ परकमे संजयामेव परकमेज्जा, नो उज्जुयं गच्छिज्जा 11 से भिवस्व वा (2) जाव समाणे अंतरा से उवायो वा खाणुए वा कंटए वा घसी वा मिलुगा वा विसमे वा विज्जले वा परियावजिजा, सइ परकमे संजयामेव, नो उज्जुयं गच्छिज्जा २।।सू. 27 // से भिक्खू वा (2) गाहावइकुलस्स दुवारबाहं कंटगबुंदियाए परिपिहियं पेहाए तेसिं पुवामेव उग्गह यणगुन्नविय यपडिलेहिय अप्पमजिय नो अवंगुणिज्ज वा पविसिज्ज वा निक्खमिज वा तेमि पुयामेव उग्गहं अणुनविय पडिलेहिय पडिलेहिय पमज्जिा पमज्जिय तो संजयामेव अवंगुणिज्ज वा पविसेज्ज वा निक्खमेज्ज वा सू० 28 // Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आचाराङ्गसूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 1 ] [ 57 से भिक्खू वा (2) जाव से जं पुण जाणिजा समणं वा माहणं वा गामपिंडोलगं अतिहिं वा पुयपविट्ठ पेहाए नो तेसिं संलोए सपडिदुवारे चिट्ठिज्जा, (केवली ब्रूया-पायाणमेयं पुरा पेहाए तस्सट्टाए परो असणं वा 4 ग्राहटटु दलइज्जा, ग्रह भिक्षुणं पुव्वोवइटुं एस पइन्ना एस उवएसो जं नो तेसिं संलोए सपडिदुवारे चिट्ठिज्जा) से तमायाय एगंतमवक्कमिज्जा (2) अणावायमसंलोए चिट्ठिज्जा 1 / से से परो अणावायमसंलोए चिट्ठमाणस्स असणं वा (4) ग्राहट्ट दलइज्जा, से य एवं वइज्जा अाउसंतो समणा इमे भे असणे वा (4) सब्बजणाए निसट्ठे तं भुजह वा णं परिभाएह वा णं, तं गइयो पडिगाहित्ता तुसिणीयो उहिज्जा, अवियाई एयं मममेव सिया, माइट्ठाणं सफासे नो एवं करिज्जा 2 / से तमायाए तत्थ गच्छिज्जा (2) से पुब्बामेव आलोइज्जा-याउसंतो समणा ! इमे भे असणे वा (4) सब्बजणाए निसिढे तं भुजह वा णं जाव परिभाएह वा णं, सेणमेवं वयंत परो वइज्जाअाउसंतो समणा ! तुमं चेव णां परिभाएहि से तत्थ परिभाएमाणे नो अप्पणो खद्धं (2) डायं (2) ऊसदं (2) रसियं (2) मणुन्नं (2) निद्धं (2) लुक्खं (2) से तत्थ अमुच्छिए अगिद्धे अग(ना)ढिए अणझोववन्ने बहुसमममेव परिभाइज्जा 3 / से गां परिभाएमाणां परो वइज्जा-अाउसंतो समणा, मा गां तुमं परिभाएहि सब्वे वेगइया ठिया उ भुक्खामो वा 4 पाहामो वा / से तत्थ भुजमाणे नो अप्पणा खद्धं खद्धं जाव लुक्खं, से तत्थ अमुच्छिए (4) बहुसममेव भुजिजा वा पाइजा वा 5 ॥सू. 26 // से भिक्खू वा (2) जाव से जं पुण जाणिज्जा समणं वा माहणं वा गामपिंडोलगं वा अतिहिं वा पुवपविट्ठं पेहाए नो ते उवाइकम्मं पविसिज वा श्रोभासिज्ज वा, से तमायाय एगंतमवकमिजा (2) अणावायमसंलोए चिट्ठिजा, ग्रह पुणेवं जाणिज्जा-पडिसेहिए वा दिन्ने वा तयो तमि नियत्तिए संजयामेव पवि Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 58] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः सिज वा योभासिज्ज वा एवं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गिय जाव जएजासित्ति बेमि ॥सू. 30 // // इति पंचमोद्देशकः // 2-1-1-5|| // अध्ययनं-१ : उद्देशकः 6 // से भिक्खू वा (2) जाव से जे पुण जाणिजा-रसेसिणो वहवे पाणा घासेसणाए संथडे संनिवइए पेहाए, तं जहा कुक्कुडजाइयं वा सूयरजाइयं अग्गपिंडसि वा वायसा संथडा संनिवइया पेहाए सइ परक्कमे संजया नो उज्जुयं गच्छिजा ॥सू. 31 // से भिक्खू वा (2) जाव नो गाहावइ. कुलस्स वा दुवारसाहं अवलंबिय 2 चिट्ठिज्जा, नो गाहावइकुलस्स वा दगच्छड्डणमत्तए चिट्ठिज्जा नो गाहावइकुलस्स वा चंदणिउयए चिट्ठिज्जा, नो गाहावइकुलस्स वा सिणाणस्स वा वच्चस्स वा संलोए सपडिदुवारे चिट्ठिज्जा, नो अलोयं वा थिग्गलं वा संधि वा दगभवणं वा बाहायो पगिभिय (2) अंगुलियाए वा उदिसिय (2) उराणमिय (2) अवनमिय (2) निज्झाइज्जा, नो गाहावइयंगुलियाए उद्दिसिय (2) जाइज्जा, नो गाहावइअंगुलिए चालिय (2) जाइज्जा, नो गाहावइअंगुलिए तज्जिय (2) जाइज्जा, नो गाहावइगुलिए उकखुलंपिय (उक्खलुदिय) (2) जाइज्जा, गाहावई वंदिय (2) जाइज्जा नो वयणं फरसं वइज्जा ।सू० 32 // श्रह तत्थ कंचि भुजमाणं पेहाए गाहावई वा जाव कम्मकरिं वा से पुवामेव थालोइज्जा-पाउसोति वा भइणित्ति वा दाहिसि मे इत्तो अन्नयर भोयणजायं ? 1 / से सेवं वयंतस्स परो हत्थं वा मत्तं वा दविं वा भायणं वा सीयोदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण या उच्छोलिज्ज वा पहोइज्ज वा 2 से पुवामेव वालोइज्जा-अाउसोत्ति वा भइणित्ति वा ! मा एयं तुम हत्थं वा (4) सीयोदगवियडेण वा (2) उच्छोलेहि वा (2), अभिकखसि मे दाउं एवमेव दलयाहि 3 // से सेवं वयंतस्स परो हत्थं वा (1) सीयोदग Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भी आचाराङ्ग-सूत्रम् : श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 1 ] [ 56 वियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलित्ता पहोइत्ता ग्राहटु दलइज्जा, तहप्पगारेणं पुरेकम्मकएणं हत्येण वा (4) असणं वा (4) अफासुयं जाव नो पडिगाहिज्जा 4 / यह पुण एवं जाणिज्जा नो पुरेकम्मकएणं उदउल्लेणं तहप्पगारेणं वा उदउल्लेण वा हत्थेण वा (4) असणं वा (4) अफासुयं जाव नो पडिगाहिज्जा 5 // अहं पुणेवं जाणिज्जा-उदउल्लेण ससिणिर्तण सेसं तं चेव 6 / एवं-ससरक्खे उदउल्ले, ससिणिद्ध मट्टिया उसे // हरियाले हिंगुलुर, मणोसिला अंजणे लोणे // 1 // गेरुय वन्निय सेडिय सोरट्ठिय पिट्ट कुकुस उक्कुटुसंसठेण 7 / यह पुणेवं जाणिज्जा नो असंसठे संसठे तहप्पगारेण संसाठेण हत्थेण वा (4) असणं वा (1) फासुयं जाव पडिगाहिज्जा 8 ॥सू० ३३॥से भिकखू वा (2) जाव से जं पुण जाणिज्जा पिहुयं वा बहुरयं वा जाव चाउलपलंबं वा असंजए भिकवृपडियाए चित्तमंताए सिलाए जाव संताणाए कुट्टिसु वा कुट्टिति वा कुट्टिस्संति वा उप्फणिंसु वा (3) तहप्पगारं पिहुयं वा बहुरयं वा जाव अप्फासुयं नो पडिगाहिज्जा ॥सू. 34|| से भिकरवू वा (२)जाव समागणे से जे पुण जाणिज्जा बिलं वा लोणं उभियं वा लोणं अस्संजए जाव संताणाए भिंदिसु (3) रुचिंसु (3) बिलं वा लोणं उभियं वा लोणं अफासुयं नो पडिगाहिज्जा ॥सू० 35 // से भिकावू वा (2) जाव से जं पुण जाणिज्जा असणं वा (4) अगणि निकिखत्तं तहप्पगारं असणं वा (4) अफासुयं नो पडिगाहिज्जा केवली बूया यायाणमेयं, अस्संजए भिकखुपडियाए उस्सिंचमाणे वा निरिसंचमाणे वा ग्रामज्जमाणे वा पमज्ज.माणे वा योयारेमाणे वा उब्वत्तमागे वा अगणिजीवे हिंसिज्जा 1 / यह भिकखणं पुब्बोवइट्टा एस पइन्ना एस हेऊ एस कारणे एसुवएसे जं तहप्पगारं असणं वा (4) अगणि निक्खित्तं अफासुयं नो पडिगाहिज्जा 2 / एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुीए वा सामग्गियं जाव सया जगज्जासि ति बेमि 3 / ॥सू. 36 // // इति षष्ठ उद्देशकः // 2-1-1-6 // Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 60 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः // अध्ययन 1 . उद्देशकः 7 // से भिक्खू वा (2) जाव समाणे जं पुण जाणिज्जा असणं वा (4) खंधंसि वा थंभंसि वा मंचंसि वा मालंसि वा पासायंसि वा हम्मियतलंसि वा अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि तलिक्वजायंसि उवनिक्खित्त सिया तहप्पगारं मालोहडं असणं वा (4) अकासुयं नोपडिगाहिज्जा 1 / केवली ब्रूया यायाणमेयं, अस्संजए भिक्खुपडियाए पीढं वा फलगं वा निस्सेणिं वा उदूहलं बाहट्ट उस्सविय दुरूहिज्जा, से तत्थ दुरूहमाणे पयलिज्ज वा पवडिज्ज वा 2 / से तस्थ पयलमाणे वा (2) हत्थं वा पायं वा बाहुं वा ऊरुं वा उदरं वा सीसं वा अन्नयरं वा कायंसि इंदियजालं लूसिज्ज वा पाणाणि वा (4) अभिहणिज्ज वा वित्तासिज्ज वा लेसिज्ज वा संघसिज्ज वा संघट्टिज्ज वा परियाविज्ज वा किलामिज्ज वा ठाणायो ठाणं संकामिज्ज वा, तं तहप्पगारं मालोहडं असणं वा (4) लाभे संते नो पडिगाहिज्जा से भिक्खू वा 2 जाव समाणे से जं पुण जाणिज्जा असणं वा (4) कुट्ठियायो वा कोलेज्जाउ वा अस्संजए भिक्खुपडियाए उक्कुज्जिय अवउज्जिय श्रोहरिय बाहटु दलइज्जा, तहप्पगारं असणं वा (4) लाभे संते नो पडिगाहिज्जा 3 ॥सू० 37 // से भिवखू वा (2) जाव से जं पुण जाणिज्जा असणं वा मट्टियाउलित्तं तहप्पगारं असणं वा (4) लाभे संते नो पडिगाहिज्जा 1 / केवली व्या पायाणमेयं अरसंजए भिक्खुपडियाए मट्टियोलितं असणं वा 4 उम्भिंदमाणं पुढवीकार्य समारंभिज्जा तह तेउवाउवणस्सइ-तसकायं समारंभिज्जा पुणरवि उल्लिंपमाणे पच्छाकम्मं करिज्जा 2 / अह भिक्खूणं पुवोवइट्टा एस पइन्ना एस हेउ एस कारणे एसुवएसे जं तहप्पगारं मट्टियोलित्तं असणं वा (4) लाभे संते नो पडिगाहिज्जा 3 // से भिक्खू वा 2 से जं पुण जाणिज्जा असणं वा (4) पुढविकायपइटिव्यं तहप्पगारं असणं वा (4) अफासुयं वा नो पडिगाहिज्जा 4 / Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आचारागसूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 1 ] [ 61 से भिवखू वा (2) से जं पुण जाणिज्जा असणं वा (4) बाउकायपइठ्यिं चेव, एवं अगणिकायपइटिठ्यं लाभे संते नो पडिगाहिज्जा 5 / केवली व्या पायाणमेयं अस्संजए भिक्खुपडियाए अगणिं उस्सकिय निस्सकिय योहरिय बाहटु दलइजा यह भिक्खूणं जाव नो पडिगाहिजा॥सू०३८॥ से भिक्खू वा (2) जाव से जं पुण जाणिज्जा असणं वा (4) अच्चुसिणं अस्संजए भिक्ण्वुपडियाए सुषेण वा विहुयणेणं वा तालियंटेण वा पत्तेण वा साहाए वा साहाभंगेण वा पिहुणेण वा पिहुणहत्थेण वा चेलेण वा चेलकाणेण वा हत्थेण वा मुहेण वा फुमिज वा वीइज वा 1 / से पुवामेव पालोइजा-याउसोत्ति वा भइणित्ति वा मा एतं तुमं असणं वा (4) यच्चुसिणं सुप्पेण वा जाव फुमाहि वा वीयाहि वा अभिकंखसि मे दाउं, एमेव दलयाहि, से सेवं वयंतस्स परो सुप्पेण वा जाव वीइत्ता ग्राहटु दलइज्जा तप्पगारं असणं वा 4 अफासुयं वा नो पडिगाहिज्जा 2 ॥सू० 36 // से भिक्खू वा (2) जाव से जं पुण जाणिज्जा असणं वा (4) वणस्सइकायपइट्ठियं तहप्पगारं असणं वा (4) वणस्सइकायपइट्ठियं लाभे संते नो पडिगाहिज्जा एवं तसकाएवि ॥सू० 40 // से भिक्खू वा (2) जाव से जं पुण पाणगजायं जाणिज्जा, तंजहा-उस्सेइमं वा 1 संसेइमं वा 2 चाउलोदगं वा 3 अन्नयरं वा तहप्पगारं पाणगजायं पहुणाधोयं अणंविलं अव्वुकतं अपरिणयं अविद्धत्थं अफासुयं जाव नो पडिगाहिजा 1 / ग्रह पुण एवं जाणिजा चिराधोयं अंबिलं वुक्कंतं परिणयं विद्धत्थं फासुयं पडिगाहिज्जा 2 / से भिक्खू वा (2) से जं पुण पाणगजायं जाणिज्जा, तंजहा-तिलोदगं वा 4 तुसोदगं वा 5 जवोदगं वा 6 अायाम वा 7 सोवीरं वा 8 सुद्धवियडं वा 1 अन्नयरं वा तहप्पगारं वा पाणगजायं पुव्वामेव आलोइज्जा, पाउसोत्ति वा भइणित्ति वा ! दाहिसि मे इत्तो अन्नयरं पाणगजायं ! से सेवं वयंतस्स परो वइजा-अाउसंतो समणा ! तुमं चेवेयं पाणगजायं पडि Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 62 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : प्रथमो विभागः गहेण वा उस्सिंचिया णं उयत्तिया णं गिराहाहि, तहप्पगारं पाणगजायं सयं वा गिरिहजा परो वा से दिजा, फासुर्य लाभे संते पडिगाहिजा 3 ॥सू० 41 // से भिक्खू वा (2) जाव से जं पुण पाणगं जाणिज्जा अणंतरहियाए पुढवीए जाव संताणए उद्धटु (2) निक्खिते सिया, असंजए भिक्खुपडियाए उदउल्लेण वाससिणिरेण वा सकसारण वा मत्तेण वा सीयोदगेण वा संभोइता ग्राहटु दलइजा, तहप्पगारं पाणगजायं अफासुयं नो पडिगाहिजा, एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं जाव सया जएजासि त्ति बेमि ॥सू. 42 // // इति सप्तम उद्देशकः // 2-1-1-7 // // अध्ययनं-१ उद्देशकः 8 // से भिक्खू वा (2) जाव पविठे समाणे से जं पुण पाणगजायं जाणिज्जा, तंजहा-अंबपाणगं वा 10 अंबाडगपाणगं वा 11 कविठ्ठपाणगं वा 12 माउलिंगपाणगं वा 13 मुहियापाणगं वा 14 दालिमपाणगं वा 15 खज्जुरपाणगं वा 16 नालियेरपाणगं वा 17 करीरपाणगं वा 18 कोलपाणगं वा 11 श्रामलपाणगं वा 20 चिंचापाणगं वा 21 अन्नयरं वा तहप्पगारं पाणगजातं सयट्ठियं सकणुयं सवीयगं अस्संजए भिक्खुपडियाए छब्बेण वा दूसेण वा वालगेण वा अविलियाण परिवीलियाण परिसावियाण ग्राहट्ट दलइजा तहप्पगारं पाणगजायं अफासुग्रं लाभे संते नो पडिगाहिज्जा ॥सू०४३॥ से भिक्खू वा (2) जाव पविठे समाणे श्रागंतारेसु वा बारामागारेसु वा गाहावइगिहेसु वा परियावसहेसु वा अन्नगंधाणि वा पाणगंधाणि वा सुरभिगंधाणि वा पापाय (2) से तत्थ पासायपडियाए मुच्छिए गिद्धे गढिए अभोववन्ने अहो गंधो (2) नो गंधमाघाइजा ॥सू. 41 // से भिक्खू वा (2) जाव से जं पुण जाणिजा सालुयं वा विरालियं वा सासवनालियं वा अन्नयरं वा तहप्पगारं श्रामगं असत्थपरिणयं अफासुनो Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आचाराङ्गसूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 1 ] [ 63 पडिगाहिज्जा 1 / से भिक्खू वा (2) जार से जं पुण जाणिजा पिप्पलिं वा पिप्पलचुराणं वा मिरियं वा मिरियचुराणं वा सिंगबेरं वा सिंगबेरचुराणं वा अन्नयरं वा तहप्पगारं वा श्रामगं वा असत्थपरिणयं अफासुयं नो पडिगाहिजा 2, से भिक्खू वा (2) जाव से जं पुण पलंबजायं जाणिजा, जहा-अंबपलंबं वा अंबाडगपलवं वा तालपलं वा झिझिरिपलं वा सुरहिपलंवं वा सल्लरपलं वा अन्नयरं वा तहप्पगारं पलंबजायं ग्रामगं असत्थपरिणयं अफासुग्रं नो पडिगाहिजा 3 / से भिक्खु वा 2 जाव से जं पुण पवालजायं जाणिज्जा, तं जहा-यासोट्ठपवालं वा निग्गोहपवालं या पिलुखुपवालं वा निप(यू)रपवालं वा सल्लइपवालं वा अन्नयरं वा तहप्पगारं पवालजायं श्रामगं असस्थपरिणयं अफासुग्रं नो पडिगाहिजा 4 / से भिक्खु वा (2) जाव से जं पुण सरडुयजायं जाणिजा, नंजहा-सरडुयं वा (यंबसरडुयं वा अंबाडसरडुयं वा) कविट्ठसरडुयं दाडिमसरडुयं बिल्लसरड्यं अन्नयरं वा तहप्पगारं सरडुयजायं ग्रामं असत्थपरि. गणयं अफासुग्रं जाव नो पडिगाहिजा 5 / से भिक्खू वा (2) जाव से जं पुण जाणिज्जा तंजहा-उंबरमंथु वा नग्गोहमंथु वा पिलुखुमंथु वा पासोत्थमयूवा अन्नयरं वा तहपगारं वा मथुजायं यामयं दुरुषकं साणुबीयं अफासुयं नो पडिग्गाहिज्जा 6 ॥सू. 45 // से भिक्खू वा (2) जाव समाणे से जं पुण जाणिज्जा ग्रामडागं वा पूइपिन्नागं वा महुं वा मज्म वा सप्पिं वा खोलं वा पुराणगं वा इत्थ पाणा अणुप्पसूयाइं जायाई संवुड्डाई अव्वुवकताई अपरिणया इत्थ पाणा अविद्वत्था नो पडिगाहिजा॥सू० ४६॥से भिवखू वा (2) जाव समाणे से जं पुण जाणिज्जा उच्छुमेरगं वा ग्रंकरेलुगं वा कसे मगं वा सिंघाडगं वा पूइयालुगं वा यन्नयरं वा तहप्पगारं ग्रामगं असस्थपरिणयं जाव नो पडिगाहिजा 1 / से भिक्खू वा (2) से जं पुण जागि,ज्जा उप्पलं वा उप्पलनालं वा भिसं वा भिसमुणालं वा पुक्खलं पुवखल. Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 64 / [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः विभंग वा अन्नयरं वा तहप्पगारं जाव नो पडिगाहेजा 2 ॥सू० 47 // से भिक्खू वा (2) जाव समाणे से जं पुण जाणिज्जा अग्गबीयाणि वा मूल बीयाणि वा खंधबीयाणि वा पोरबीयाणि वा अग्गजायाणि वा मूलजा. याणि वा खंधजायाणि वा पोरजायाणि वा नन्नत्थ तकलिमत्थएण वा तकलिसीसेण वा नालियेरमत्थएण वा खज्जुरीमत्थएण वा तालमत्थएण वा अनयरं वा तहप्पगारं ग्रामं असत्थपरिणयं जाव नो पडिगाहिजा 1 / से भिक्खू वा (2) जाव से जं पुण जाणिजा उच्छुवा काणगं वा अंगारियं वा संमिस्सं विगदूमियं वित(न)ग्गगं वा कंदलीऊसुगं अन्नयरं वा तहप्पगारं ग्रामं असत्थपरिणयं जाव नो पडिगाहिज्जा 2 / से भिकबू वा (2) जाव से जं पुण जाणिज्जा लसुणं वा लसुणपत्तं वा लसुणनालं वा लसुणकंदं वा लसुणचोयगं वा अन्नयरं वा तहप्पगारं श्रामं असत्थपरिणयं जाव नो पडिगाहिजा 3 / से भिक्खू वा (2) जाव से जं पुण जाणिजा अच्छियं वा कुभिपक्कं तिदुगं वा वेलुगं वा कासवनालियं वा अन्नयरं वा तहप्पगारं ग्रामं असत्थपरिणयंजाव नो पडिग्गाहिजा 4 / से भिक्खू वा (2) जाव से जं पुण जाणिजा कणं वा कणकुंडगं वा कमायलियं वा चाउलं वा चाउलपिटुं वा तिलं वा तिलपिटवा तिलपप्पडगं वा अन्नयरं वा तहप्पगारं ग्रामं असत्थपरिणयं जाव लाभे संते नो पडिगाहिज्जा 5 / एवं खलु तस्स भिक्खुस्स भिक्खुणीए वा सामग्गियं जाव सया जएज्जासि ति बेमि० 6 ॥सू० 48 // // इति अष्टम उद्देशकः // 2-1.1-8 // Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आचाराङ्ग-सूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 1 ] [ 65 // अध्ययन 1 : उद्देशकः 9 // इह खलु पाइणं वा (4) संतेगइया सड्ढा भवंति, गाहावई वा जाव कम्मकरी वा, तेसिं च णं एवं वृत्तपुव्वं भवइ-जे इमे भवंति समणा भगवंता सीलवंतो वयवंतो गुणवंतो संजया संवुडा बंभयारी उवरया मेहुणायो धम्मायो, नो खनु एएसिं कप्पइ याहाकम्मिए असणे वा (4) भुत्तए वा पायए वा 1 // से जं पुण इमं अम्हं अप्पणो अट्ठाए निट्ठियं तं असणं सव्वमेयं समणाणं निसिरामो, अवियाई वयं पच्छा अप्पणो अट्ठाए असणं वा (4) चेइस्सामो 2 / एयप्पगारं निग्योसं सुच्चा निसम्म तहप्पगर असणं वा अकासुयं अणेसणिज्ज लाभे संते नो पडिगाहिज्जा 3 ॥सू. 46 // से भिक्खू वा (2) जाव समाणे वसमाणे वा गामाणुगामं वा दूइजमाणे से जं पुण जाणिजा गाम वा जाव रायहाणिं वा इमंसि खलु गामंसि वा रायहाणिसि वा संतेगइयम्स भिक्खुस्स पुरेसंथुया वा पच्छासंधुया वा परिवसंति, तंजहागाहावई वा जाय कामकरी वा तहप्पगाराई कुलाई नो पुब्यामेव भत्ताए वा निक्खमिज वा पविसेज वा (2) 1 / केवली ब्रूया-यायाणमेयं, पुरा . पेहाए तस्स परो अट्ठार असणं वा (4) उवकरिज वा उवक्खडिज वा, ग्रह मिक्वृणं पुब्योवइट्ठा (4) जं नो तहप्पगाराइं कुलाई पुवामेव भत्ताए वा पाणाए / पविसिज वा निक्खमिज्ज वा (2) 2 / से तमायाय एगंतमवकमिज्जा (2.) अणावायमसंलोए चिट्ठिज्जा, से तत्थ कालेणं अणुपपिसिजा (2) तत्थियरेयरेहिं कुलेहिं सामुदाणियं एसियं वेसियं पिंडवायं एसित्ता थाहारं ग्राारिजा सिया से परो कालेण अणुपविट्टरस याहाकम्मियं असणं वा उवकरिज वा उबक्सडिज्ज या तं चेगइयो तुसिणीयो उवेहेजा, याहडमेव पचाइक्खिस्सामि, माइट्ठाणं संफासे, नो एवं करिजा 3 / से पुवामेव यालोइजा-ग्राउसोत्ति वा भइणित्ति वा नो खलु मे कप्पइ याहाकम्मियं असणं वा (4) भुत्तए वा पायए वा, मा उवकरेहि मा उववखडेहि, से सेवं Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 66 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः वयंतस्स परो याहाकम्मियं असणां वा (4) उवक्खडावित्ता ग्राहटु दलइन्जा तहप्पगारं असणं वा (4) अफासुयं जाव लाभे संते नो पडिगाहिजा 4 ॥सू० 50 // से भिक्खू वा (2) जाव से जं पुण जाणिज्जा मंसं वा मच्छं वा भजिजमाणं पेहाए तिल्लपूयं वा याएसाए उवक्खडिज्जमाणं पेहाए नो खद्धं (2) उवसंकमित्तु योभासिज्जा, ननस्थ गिलाणणीसाए ।सू० 51 // से भिक्खू वा (2) जाव समाणे अन्नयरं भोयणजायं पडिगाहित्ता सुभि सुभि भुच्चा दुभि 2 परिहवेइ, माइट्टाणं संफासे नो एवं करिजा / सुभि वा दुभि वा सव्वं भुजिजा नो किंचिवि परिदृविज्जा (सव्वं भुजे न छड्डए) ॥सू० 52 // से भिक्खू वा (2) जाव समाणे अन्नयरं पाणगजायं पडिगाहित्ता पुष्फ 2, प्राविइत्ता कसायं 2, परिढुवेइ, माइट्टाणं संफासे नो एवं करिजा, 1 // पुष्फ पुप्फेइ वा कसायं कसाइ वा सव्दमेयं भुजिजा, नो किंचिवि परिट्ठवेजा 2 ॥सू० 53 // से भिक्खू वा (2) बहुपरियावन्नं भोयणजायं पडिगाहित्ता बहवे साहम्मिया तत्थ वसंति संभोइया समणुन्ना अपरिहारिया अदूरगया तेसिं प्रणालोइया अणामते परिहवेइ माइट्ठाणं संफासे, नो एवं करेजा 1 / से तमायाए तत्थ गच्छिज्जा (2) से पुत्वामेव वालोइज्जा अाउसंतो समणा ! इमे मे असणे वा पाणे वा (4) बहुपरियावन्ने तं भुजह णं 2 / से सेवं वयंत परो वजा-याउसंतो समणा ! थाहारमेयं असणं वा (4) जावइयं (2) सरइ तावइयं (2) भुक्खामो वा पाहामो वा सव्वमेयं परिसडइ सव्वमेयं भुवखामो वा पाहामो वा ३॥सू० 54 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण जाणिज्जा असणं वा (4) परं समुद्दिस्स बहिया नीहडं जं परेहि असमणुन्नायं अणिसिट्ठ अफासुयं जाव नो पडिगाहिज्जा जं परेहिं समणुन्नायं सम्मं णिसिटठं फासुयं जाव पडिगाहिजा, 1 / एवं खलु तस्स भिक्खुस्स भिक्खुणीए वा सामग्गियं जाव सया जएज्जासि त्ति बेमि 2 ॥सू० 55 // // इति नवम उद्देशकः // 2.1-1-6 / / Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 67 श्री आचाराङ्गसूत्रम् : श्रुतस्कंध 2 अध्ययनं 1 ] ॥अध्ययनं-१ :: उद्देशकः-१०॥ से एगइयो साहारणं वा पिंडवायं पडिगाहित्ता ते साहम्मिए अणापुच्छित्ता जस्स जस्स इच्छइ तस्स तस्स खद्धं खद्धं दलइ, माइट्ठाणं संफासे, नो एवं करिजा 1 / से तमायाय तत्थ गच्छिज्जा 2, एवं वइज्जा-अाउसंतो समणा ! संत मम पुरेसंथुया वा पच्छासंथुया तंजहा–अायरिए वा 1, उवज्झाए वा 2, पवित्ती वा 3, थेरे वा 4, गणी वा 5, गणहरे वा 6, गणावच्छेइए वा 7, अवियाई एएसि खद्धं खद्धं दाहामि, सेणेवं वयंत परो वइज्जाकामं खलु अाउसो ! अहापज्जत्तं निसिराहि, जावइयं (2) परो वयइ तावइयं (2) निसिरिज्जा, सबमेवं परो वयइ सव्वमेयं निसिरिज्जा 2 / ॥प्सू० 56 // से एगइयो मणुन्नं भोयणजायं पडिगाहित्ता पंतेण भोयणेण पलिच्छाएइ मा मेयं दाइयं संतं दट्टण सयमाइए पायरिए वा जाव गणा. वच्छेए वा; 1 / नो खलु मे कस्सइ किंचि दायव्वं सिया, माइट्ठाणं संफासे, नो एवं करिज्जा 2 / से तमायाए तत्थ गच्छिज्जा, (2) पुवामेव उत्ताणए हत्थे पडिग्गहं कटु इमं खलुत्ति बालोइज्जा, नो किंचि वि णिमूहिज्जा 3 / से एगइयो अन्नयरं भोयणजाय पडिगाहित्ता भयं (2) भुच्चा विवन्नं विरसमाहरइ, माइट्ठाणं संफासे, नो एवं करेज्जा 4 ॥सू० 57 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण जाणिज्जा अंतरुच्छियं वा उच्छुगंडियं वा उच्छुचोयगं वा उच्छुमेरगं वा उच्छुसालगंवा उच्छुडालगं वा सिंबलिं वा सिंबलथालगं वा अस्सि खलु पडिग्गहियंसि अप्पे भोयणजाए बहुउझियधम्मिए तहप्पगारं अंतरुच्छुयं वा जाव सिंबलवालगंवा अफासुग्रं जाव नो पडिगाहिज्जा १॥से भिक्खू वा 2, से जं पुण जाणिज्जा बहुअट्ठियं वा मंसं वा मच्छं वा बहुकंटयं अस्सि खलु पडिगाहितंसि अप्पे सिया भोयणजाए बहुउज्मियधम्मिए तहप्पगारं बहुअट्ठिय वा मंसं वा मच्छं वा बहुकटयं वा लाभे संते जाव नो पडिगाहिज्जा 2 / से भिक्खू वा (2) जाव समाणे सिया णं परो बहुअट्ठिएणं मंसेण वा मच्छेण Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 68 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः वा उवनिमंतिज्जा-याउसंतो समणा ! अभिकखसि बहुट्टियं मंसं पडि. गाहित्तए ? एव पगारं निग्योसं सुच्चा निसम्म से पुवामेव ग्रालोइज्जायाउसोति वा (2) नो खलु मे कमइ बहुअट्ठियं मंसंपडिगाहिगत्लए अभिकंखसि मे दाउंजावइयं तावइयं पुग्गलं दलयाहि, मा य यट्टियाई 3 / से सेवं वयंतस्स परो अभिहटु यतो पडिग्गहगंसि बहुयढ़ियं मंसं परिभाइत्ता निहटु दलइज्जा / तहप्पगारं पडिग्गहं परहत्थंसि वा परपायसि वा अफासुयं यसणिज्जं लामे संते जाव नो पडिगाहिज्जा 5 // से ग्राहब पडिमाहिए सिया तं नोहित्ति वइज्जा नो अणिहित्ति वइज्जा 6 / से तमायाय एगंतमवद मिज्जा (2) ग्रहे बारामंसि वा ग्रहे उवस्सयंसि वा अप्पंडे जाव संवाय.ए मंसगं मच्छगं भुना अष्ट्रियाई कंटए गहाय से तमाशय एगंतमवकमिज्जा (2) ग्रहे झामथंडिलंसि वा जाव पमज्जिय पमज्जिय परविज्जा ७॥सू०५८॥ से भिक्खू वा (2) जाव समाणे सिया से परो अभिहटु यतो पडिग्गहे बिलं वा लोणं उभियं वा लोणं परिभाइत्ता नीहटु दलइज्जा, तहपगारंपडिग्गहं परहत्थंसि वा परपायंसि वा अफासुयं जाव नो पडिगाहिज्जा 1 / से ग्राहंञ्च पडिगाहिए सिया तं च नाइदूरगए जाणिज्जा; से तमायाए तत्थ गच्छिज्जा (2) पुवामेव बालोइज्जा-पाउसोत्तिवा (2) इमं किं ते जाणया दिन्नं उयाहु अजाणया 2 / से य भणिज्जा-नो खलु मे जाणया दिन्नं, अजाण्या दिन्नं, कामं सलु थाउसो ! इयाणि निसिरामि, तं भुजह वा णं परिभाएह वा णं तं परेहि समणुन्नायं समणुसटुं तयो संजयामेव भुजिन्ज वा पीइज वा 3 / जं च नो संचाएइ भोत्तए वा पायए वा साहम्मिया तस्थ वसंति संभोइया समगुन्ना अपरिहारिया अदूरगया, तेसिं अणुप्पयायव्वं सिया, नो जत्थ साहम्मिया जहेव बहुपरियावन कीरइ तहेव कायव्वं सिया 4 / एवं खलु तस्स भिवखुस्स भिक्खुणिए वा सामग्गियं जाव सया जएज्जासि त्ति बेमि 5 ॥सू. 51 // // इति दशम उद्देशकः / / 2-1-1-10 / / Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आचाराङ्गसूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 1 ] [69 // अध्ययनं-१ : उद्देशकः-११ // भिक्खागा नामेगे एवमाहंसु समाणे वा वसमाणे वा गामाणुगामं वा दूइज्जमाणे मणुन भोयणजायं लभित्ता से भिक्खू गिलाइ, से हंदह णं तस्साहरह से य भिवखू नो भुजिजा तुमं चेव णं भुजिज्जासि, से एगइयो भोक्खामि त्ति कटु पलिउंचिय (2) बालोइजा, तं जहा-इमे पिंडे इमे लोए इमे तित्ते इमै कडुयए इमे कसाये इमे अंबिले इमे महुरे, नो खलु इत्तो किंचि गिलाणस्स सयइत्ति माइट्ठाणं संफासे, नो एवं करिजा 1 / तहाठियं बालोइजा जहाठियं गिलाणस्स सयइत्ति, तं तित्तयं तित्तएत्ति वा कडुयं कडुयं कसायं कसायं अंबिलं अंबिलं महुरं महुरं त्ति वा 2 ॥सू. 60 // भिक्खागा नामेगे एवमाहंसु-समाणे वा वसमाणे वा गामाणुगामं दूइजमाणे वा मणुन्न भोयणजायं लभित्ता से य भिवाखू गिलाइ से हंदह णं तस्स ग्राहरह, से य भिक्खू नो भुजिजा पाहारिजा, से णं नो खलु मे अंतराए ग्राहरिस्सामि, इच्चेयाइं अायतणाई उवाइक्म्म ।।सू० 61 // ग्रह भिवग्यू जाणिजा सत्तपिंडेसगायो सत्त पाणेसरणायो-तत्थ खलु इमा पदमा पिंडेसणायसंसट्ठे हत्थे असंसट्ठे मत्ते, तहपगारेण असंसठेण हत्थेण वा मत्तेण वा अंसणं वा (2) सयं वा णं जाइजा परो वा से दिजा फासुयं पडिगाहिजा, पढमा पिंडेसणा 1 // ग्रहावरा दुचा पिंडेसणा-संसठे हत्थे संसठे मत्ते, तहेव दुच्चा पिंडेसणा 2 // ग्रहावरा तचा पिंडेसणा-इह खलु पाइणं वा (1) संतेगइया सड्डा भवंति-गाहावई वा जाव कम्मकरी वा, तेसिं च णं अन्नयरेसु विरूवरूवेसु भायणजाएसु उवनिविखत्तपुव्वे सिया, तं जहा-थालंसि वा पिढरंसि वा सरगसि वा परगंसि वा वरगंसि वा, ग्रह पुणेवं जाणिजाअसंसठे हत्थे संसठे मत्ते, संसठे वा हत्थे असंसट्ठे मत्ते, से य पडिग्गहधारी सिया पाणिपडिग्गहिए वा, से पुत्वामेव बालोएजा-अाउसोत्ति वा भगिणि त्ति वा, एएण तुमं असंसठेण हत्थेण संसठेण मत्तेणं संसठेण Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 70 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः वा हत्थेण असंसटेण मत्तेण अस्सि पडिग्गहगंसि वा पाणिसि वा निहट्टु उचित्तु दलयाहि तहप्पगारं भोयणजायं सयं वा णं जाइजा परो वा देजा, फासुयं जाव पडिगाहिजा, तइया पिंडेसणा 3 // ग्रहावरा चउत्था पिण्डेसणा-से भिक्खू वा (2) से जं पुण जाणिज्जा पिहुयं वा जाव चाउलपलं वा अस्सिं खलु पडिग्गहियंसि अप्पे पच्छाकम्मे अप्पे पजवजाए, तहप्पगारं पिहुयं वा जाव चाउलपलं वा सयं वा णं जाइजा जाव पडिगाहिजा, चउत्था पिंडेसणा 4 // ग्रहावरा पंचमा पिडेसणा-से भिक्खू वा (2) उग्गहियमेव भोयणजायं जाणिजा, तं जहा-सरावंसि वा डिडिमंसि वा कोसगंसि वा, ग्रह पुणेवं जाणिज्जा बहुपरियावन्ने पाणीसु दगलेवे, तहप्पगारं असणं वा (4) सयं वा णं जाएजा जाव पडिगाहिजा, पंचमा पिंडेसणा 5 ॥ग्रहावरा छट्ठा पिंडेसणा-से भिक्खू वा (2) पग्गहिय व भोयणजायं जाणिज्जा, जं च सयट्ठाए पग्गहियं, जं च परट्ठाए पग्गहियं, तं पायपरियावन्न तं पाणिपरियावन्नं फासुयं पडिगाहिजा, छट्टा पिंडेसणा 6 // अहावरा सत्तमा पिंडेसणा-से भिक्खू वा (2) जाव समाणे बहु. उझियधम्मियं भोयणजायं जाणिज्जा, जं चऽन्ने बहवे दुपयचउप्पयसमणमाहणयतिहिकिविणवणीमगा नावखंति, तहप्पगारं उज्मियधम्मियं भोयणजायं सयं वा णं जाइजा परो वा से दिजा जावए फासुग्रं पडिगाहिज्जा, सत्तमा पिंडेसणा 7 / इच्चेयायो सत्त पिंडेसणायो ग्रहावरायो सत्त पाणेसणायो 8 / तत्थ खलु इमा पढमा पाणेसणा-असंसट्ठे हत्थे असंसठे मत्ते, तं चेवं भाणियब्वं, नवरं चउत्थाए नाणत्तं 1 / से भिक्खू वा (2) जाव समाणे से जं पुण पाणगजायं जाणिजा, तं जहा-तिलोदगं वा तुसोदगं वा जवोदगं वा आयाम वा सोवीरं वा सुद्धवियडं वा अस्सि खलु पडिग्गहियंसि अप्पे पच्छाकम्मे तहेव पडिगाहिजा १०॥सू० 62 // इच्चेयासिं सत्तराहं पिंडेसणाणं सत्तरहं पाणेसणाणं अन्नयरं पडिम पडिवजमाणे नो एवं वइजा–मिच्छा Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 71 श्री आचाराङ्ग-सूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 2 ] पढिवन्ना खलु एए भयंतारो, ग्रहमेगे सम्म पडिवन्ने, जे एए भयंतारो एयायो पडिमायो पडिवजित्ता णं विहरंति जो य अहमंसि एवं पडिमं पडिवजित्ता णं विहरामि सम्वेऽवि ते उ जिणाणाए उवट्ठिया अन्नुन्नसमाहिए, एवं च णं विहरति, एयं खलु तस्स भिक्खुस्स भिक्खुणीए वा सामग्गियं जाव सया जएजामि त्ति बेमि ॥सू० 63 // // इति एकादशम उद्देशकः // 2-1-1-11 // // इति प्रथममध्ययनम् ॥श्रु० २-चू० 1-201 // 2: शय्यैषणा-अध्ययनं 2 :: उद्देशकः-१ से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखिजा उवस्सयं एसित्तये अणुपविसित्ता गामं वा जाव रायहाणि वा. से जं पुण उवस्सयं जाणिज्जा सग्रंडं जाव ससंताणय तहप्पगारे उवस्सए नो ठाणं वा सिज वा निसीहियं वा चेइजा 1 / से भिक्खू वा (2) से जं पुण उवस्सयं जाणिजा अप्पंड जाव अप्पसंताणयं तहप्पगारे उवस्सए पडिलेहित्ता पमजित्ता तो संजयामेव ठाणं वा (3) चेइजा 2 / से जं पुण उवस्मयं जाणिज्जा अस्सि पडियाए एगं साहम्मियं समुदिस्स पाणाई (1) समारब्भ समुदिरस कीयं पामिच्चं अच्छिज्ज अणिसट्ठ अभिहडं ग्राहट्ट चेएइ, तहप्पगारे उवस्सए पुरिसंतरकडे वा जाव अणासेविए वा नो ठगणं वा (3) चेइजा 3 // एवं बहवे साहम्मिया एगं साहम्मिणिं बहवे साहम्मिणीयो 4 / से भिक्खू वा (2) से जं पुण उवस्मयं जाणेजा अस्संजए भिक्खुपडियाए बहवे समणमाहणपतिहिकिवणवणीमए पगणिय (2) समुद्दिस्स तं चेव भाणियव्वं 5 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण उवस्मयं जाणिज्जा, बहवे समणमाहणपतिहिकिविणवणीमए पगणिय (2) समुदिस्स पाणाई (4) जाव चेएत्ति, तहप्पगारे उवस्सए अपुरिसंतरकडे जाव अणासेविए नो ठगणं वा (3) चेइज्जा (3) 6 / अह पुणेवं Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 72 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः जाणिज्जा पुरिसंतरकडे जाव सेविए पडिलेहित्ता पमजित्ता तयो संजयामेव चेइज्जा 7 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण उपस्सयं जाणिज्जा अस्संजए भिक्खुडियाए कडिए वा उक्कंबिर वा छन्ने वा लिने वा घठे वा मोठे वा संमठे वा संपवूमिए वा तहप्पगारे उवस्सए अपुरिसंतरकडे जाव यणासेविए नो ठाणं वा सेज्ज वा निसीहिं वा चेइज्जा, यह पुण एवं जाणिज्जा पुरिसंतरकंडे जाव ग्रासेविए पडिलेहित्ता 2, तयो चेइज्जा 8 ॥सू० 64 // से भिक्खू वा (2) से जं पुगण उवस्मयं जाणिज्जा अस्संजए भिक्खुपडियाए खुडियायो दुवारियायो महल्लियायो कुजा जहा पिंडेसणाए जाव संथारगं संथारिजा बहिया वा निन्नक्खु तहप्पगारे उबस्सए अपुरिसंतरकडे जाव अणासेविए ठाणं वा (3) चेइज्जा, अह पुणेवं जाणिज्जा पुरिसंतरकडे श्रासेविए पडिलेहित्ता पमजित्ता, तयो संजयामेव जाव चेइज्जा 1 / से भिक्खू वा (2) से जं पुण उवस्सयं जाणिज्जा, अस्संजए भिक्खुपडियाए उदग्गप्पसूयाणि कंदाणि वा मूलाणि वा पत्ताणि वा पुष्पाणि वा फलाणि वा बीयाणि वा हरियाणि वा ठाणायो ठाणं साहरइ बहिया वा निराणवू तहप्पगारे उवस्सए अपुरिसंतरकडे जाव नो ठाणं वा (3) चेइज्जा, अह पुण एवं जाणिज्जा पुरिसंतरकडे जाव चेइज्जा 2 / से भिक्ग्य वा (2) से जं पुण जाणिज्जा अस्संजए भिक्खुपडियाए पीटं वा फलगं या निस्सेणिं वा उदूखलं वा ठाणायो ठाणं साहरइ बहिया वा निराणवायू तेहप्पगारे उवस्सए अपुरिसंतरकडे जाव नो ठाणं वा सेज्ज वा निसीहियं वा चेइज्जा 3 / ग्रह पुणा एवं जाणिज्जा पुरिसंतरकरे जाव घेइज्जा 4 ॥सू० 65 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण उवस्मयं जाणिज्जा, तंजहा - खंधसि वा मंचंसि वा मालंसि वा पासायंसि वा हम्मियतलंसि वा यन्नयरंसि वा तहप्यगारंसि अंतलिक्खजायंसि, ननस्थ ागाढाणागाढेहिं कारणेहि गणं वा (3) नो चेइज्जा 1 // से श्राहच चेइए सिया नो तत्थ सीयो Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदाचाराङ्ग-सूत्रम् / श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 2 ] [ 73 दगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा, हत्थाणि वा पायाणि वा अच्छीणि वा दंताणि वा मुहं वा उच्छोलिज्ज वा पहोइज्ज वा, नो तत्थ ऊसद पकरेज्जा, तंजहा-उच्चारं वा पासवणं वा खेलं वा सिंघाणं वा वंतं वा पित्तं वा पूर्व वा सोणियं वा अन्नयरं वा सरीरावयवं वा 2 / केवली ब्रूया यायाणमेयं, से तत्थ ऊसई पगरेमाणे पयलिज वा पवडेज वा 3 से तत्थ पयलमाणे वा पवडमाणे वा हत्थं वा जाव सीसं वा अन्नयरं वा कार्यसि इंदियजालं लूसिज्ज वा पाणाणि वा (4) अभिहणिज्ज वा जाव ववरोविज्ज वा / अथ भिक्खूणं पुव्योवइट्टा जाव जंतहप्पगारे उवस्सए अंतलिक्खजाए नो ठाणं वा (3) चेइज्जा 5 ॥सू. 66 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण उवस्सयं जाणिज्जा सइत्थियं सखुड्ड सपसुभत्तपाणं तहप्पगारे सागारिए उपस्सए नो ठाणं वा (3) चेइज्जा 1 / ग्रायाणमेयं भिखुरस गाहावइकुरनेण मद्धिं संवसमाणस्स अलसगे वा विसूझ्या वा छड्डी वा उव्वाहिज्जा अन्नयरे वा से दुक्खे रोगायक समुपज्जिज्जा, अस्संजए कलुणपडियाए तं भिवखुस्स गायं तिल्लेण वा घएण वा नवणीएण वा वसाए वा अगिज्ज वा मक्खिज्ज वा सिणाणेण वा कक्केण वा लुद्दे ण वा वराणेण वा चुराणेण वा पउमेण वा ग्रासिज्ज वा पघंसिज्ज वा उब्वलिज्ज वा उवट्टिज्ज वा सीयोदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलिज्ज वा (पहोएज्ज वा) पक्खालिज्ज वा सिणाविज्ज वा सिंचिज्ज वा दारणा वा दारुपरिणाम कट्टु अगणिकायं उज्जालिज्ज वा पज्जालिज्ज वा उज्जालित्ता कार्य प्रायाविज्जा वा पयावेज्जा वा 2 / यह भिक्खुणं पुव्योपइट्ठा एस पतिन्ना जं तहप्पगारे सागारिए उवस्सए नो ठाणं वा (3) चेइज्जा 3 ॥सू० 67 // यायाणमेयं भिक्खुस्स सागारिए उवस्सए संवसमाणस्स इह खलु गाहावई वा जाव कम्मकरी वा अन्नमन्न अकोसंति वा पति वा (बंधन्ति वा पचंति वा वहन्ति वा) भंति वा उद्दविंति वा, ग्रह भिक्खूणं उच्चावयं मणं नियंछिज्जा, Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 74 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः एए खलु अन्नमन्नं अकोसंतु वा मा अक्कोसंतु जाव मा वा उद्दवितु, यह भिक्खूणं पुव्वोवइट्टा एस पइन्ना जाव जंतहप्पगारे सागारिए उवस्सए नो ठाणं वा (3) चेइज्जा ॥सू०६८॥ आयाणमेयं भिक्खुस्स गाहावइहिं सद्धि संवसमाणस्स. इह खलु गाहावई अप्पणो सयटाए अगणिकायं उज्जालिज्ज वा पज्जालिज्ज वा विज्झविज्ज वा 1 / ग्रह भिवरखू उच्चावयं मणं नियंछिज्जा, एए खलु अगणिकायं उज्जालेंतु वा मा वा उज्जालेंत, पज्जालिंतु वा मा वा पज्जालिंतु, अविझवितु वा मावा विज्जवितु। यह भिक्खूणं पुबोवदिट्ठा जाव जं तहप्पगारे उवस्सए नो ठाणं वा (3) चेइज्जा 3 ॥सू. 6 // आयाणमेयं भिवखुस्स गाहावइहिं सद्धिं संवसमाणस्स, इह खलु गाहावइस्स कुंडले वा गुणे वा मणी वा मुत्तिए वा हिरराणेसु वा सुवराणेसु वा कडगाणि वा तुडियाणि वा तिसराणि वा पालंबाणि वा हारे वा श्रद्धहारे वा एगावली वा कणगावली वा मुत्तावली वा रयणावली वा तरुणीयं वा कुमारिं अलंकियविभूसियं पेहाए, 1 / ग्रह भिक्खू उच्चावयं मणं नियच्छेज्जा, एरिसिया वा सा नो वा एरिसिया-इय वा बूया इय वा णं मणं साइज्जा 2 / यह भिक्खूणं पुत्वोवदिट्ठा जावजं तहप्पगारे उवस्सये नो ठाणं वा जाव चेइज्जा 3 ॥सू० 70 // बायाणमेयं भिक्खुस्स गाहावइहिं सद्धिं संवसमाणस्स, इह खलु गाहावइणीयो वा गाहावइधूयायो वा गाहावइ सुराहायो वा गाहावइधाइंयो वा गाहावइदासीयो वा गाहावइकम्मफरीयो वा तासिं च णं एवं वुत्तपुव्वं भवइ-जे इमे भवंति समणा भगवन्तो जाव उवरया मेहुणायो धम्मायो, नो खलु एएसिं कप्पइ मेहुणधम्म परियारणाए श्राउट्टित्तए, जा य खलु एएहिं सद्धिं मेहुणधम्म परियाणाए अाउट्टाविज्जा पुत्तं खलु सा लभिजा उयस्सिं तेयस्सिं वचस्सिं जसस्सिं संपराइयं आलोयणदरसणिज्ज, एयप्पगारं निग्रोसं सुच्चा निसम्म तासिं च णं अन्नयरी सड्डी तं तवस्सि भिक्खु मेहुणधम्मपडियारणाए बाउट्टाविजा 1 / श्रह भिक्खूणं पुव्वोवइट्टा जाव जं तहप्पगारे सागारिए उवस्सए Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [75 श्रीमदाचाराङ्गसूत्रम् :श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 2 ] ना ठाणं वा (3) चेइज्जा 2 / एयं खलु तस्स भिक्खुस्स भिक्खुणीए वा सामग्गियं जाव सया जएजासि त्ति बेमि 3 ॥सू० 71 // ॥इति प्रथम उद्देशकः // 2-1-2-1 // ॥अध्ययन- 2 : उद्देशकः-२ // गाहावइ नामेगे सुइसमायारा भवंति, से भिक्खू य असिणाणाए मोयसमायारे से तग्गंधे दुग्गंधे पडिकूने पडिलोमे यावि भवइ, जं पुव्वं कम्मं तं पच्छा कम्म, जं पच्छा कम्मतं पुरे कम्म, तं भिक्खुपडियाए वट्टमाणा करिजा वा नो करिज्जावा, अह भिक्खूणं पुबोवइट्टा जाव ज तहप्पगारे उवस्सए नो ठाणं वा (2) जाव चेइज्जा ॥सू० 72 // यायाणमेयं भिक्खुरस गाहावइहिं सद्धिं संवसमाणस्स इह खलु गाहावइस्स अप्पणो सयट्टाए निख्वरूवे भोयणजाए उवक्खडिए सिया, ग्रह पच्छा भिक्खुपडियाए असणं वा (4) उवक्खडिज्ज वा उवकरिज्ज वा, तं च भिक्खू अभिकंखिज्जा भुत्तए वा पायए वा वियद्वित्तए वा, अह भिवखुणं पूवोवइट्ठा जाव जं नो तहप्पगारे उवस्सए ठाणं वा (3) चेइज्जा ॥सू० 73 // पायाणमेयं भिक्खुस्स गाहावइणा सद्धिं संवसमाणस्स इह खलु गाहावइस्स अप्पणो सयट्ठाए विरूवरूवाई दारुयाइं भिन्नपुवाई भवंति, ग्रह पच्छा भिक्खुपडियाए विरूवरूवाई दास्याई भिंदिज्ज वा किणिज्ज वा पामिच्चेज्ज वा दारुणा वा दारुपरिणामं कटु अगणिकायं उज्जालेज्ज वा पज्जालेज वा तत्थ भिक्व अभिकंखिज्जा यायावित्तए वा पयावित्तए वा वियट्टित्तए वा, यह भिक्खूणं पुयोवइट्टा जाव जं नो तहप्पगारे उवस्सए ठाणं वा (3) चेइज्जा ॥सू० 74 // से भिक्खू वा (2) उच्चारपासवणेण उवाहिज्जमाणे रायो वा वियाले वा गाहावइकुलस्स दुवारबाहं अवंगुणिज्जा, तेणे य तस्संधिचारी अणुपविसिज्जा, तस्स भिक्खुस्स नो कप्पइ एवं वइत्तए--अयं तेणो पविसइ वा नो वा पविसइ, उवल्लियइ वा नो वा Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 76 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः उवल्लियइ, श्रावयइ वा नो वा श्रावयइ, वयइ वा नो वा वयइ, तेण हडं यन्नेण हडं तस्स हडं यन्नस्स हडं अयं तेणे अयं उवचरए अयं हंता ग्रयं इत्थमकासी, तं तवरिसं भिवखु अतेणं तेणंति संकइ, अह भिक्खूणं पुब्बोवइट्टा जाव नो ठाणं वा (2) चेइज्जा ॥सू. 75 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण उवस्सयं जाणिज्जा तणपुजेसु वा पलालपुंजेसु वा सग्रंडे जाव ससंताणए तहप्पगारे उवस्सए नो ठाणं वा (3) चेइज्जा 1 ।से भिक्खू वा (2) से जं पुण उवरसयं जाणिज्जा, तणपुंजेसु वा पलालपुजेसु वा अप्पंडे जाव चेइज्जा २॥सू० 76 // से यागंतारेसु वा बारामागारेसु वा गाहावइकुलेसु. वा परियावसहेसु वा अभिवखणं 2 साहम्मिएहिं उवयमाणेहिं नो उवइज्जा ॥सू० 77 // से आगंतारेसु वा (4) जे भयंतारो उडु(उ)बद्धियं वा वासावासियं वा कप्पं उवाइणित्ता तत्थेव भुज्जो भुज्जो संवसंति, अयमाउसो ! कालाइक्कंतकिरियावि भवति 1 ॥॥सू० ७८॥से यागंतारेसु वा (4) जे भयंतारो उड(उ)वद्धियं वासावासियं वा कप्पं उवाइणावित्ता तं दुगुणा दु(ति)गुणेण वा अपरिहरित्ता तत्थेव भुज्जो भुज्जो संवसंति अयमाउसो : उवट्ठाणकिरिया यावि भवति 2 ॥सू० 76 // इह खलु पाइणं वा पडीणं वा दाहिणं वा उदीणां वा संतेगइया सड्ढा भवंति, तं जहा-गाहापई वा जाव कम्मकरीयो वा, तेसिं च णं अायारगोयरे नो सुनिसते भवइ, तं सदहमाणेहिं पत्तियमाणेहिं रोयमाणेहिं बहवे समण-माहण-अतिहि-किवणवणीमए समुद्दिस्स तत्थ तत्थ अगारीहिं अगाराइं चेइयाइं भवंति, तंजहा–याएसणाणि वा अायतणाणि वा देवकुलाणि वा सहायो वा पवाणि वा पणियगिहाणि वा पणियसालायो वा जाणगिहाणि वा जाणसालायो वा सुहाकम्मंताणि वा दब्भकम्मंताणि वा वद्धकंमंताणि वा वकयकम्ताणि वा वणकम्मंताणिवा इंगालकम्मंताणि वा कट्टकम्मंताणि सुसाणकम्मंताणि वा सुराणागार-गिरिकंदर-संतिसेलोवट्ठाण-कम्मंताणि वा भवणगिहाणि वा, जे भयंतारो Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 77 श्रीमदाचाराग-सूत्रम् : श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 2 ] तहप्पगाराइं पाएसणाणि वा जाव गिहाणि वा तेहिं उवयमाणेहिं उवयंति अयमाउसो ! अभिक्कंतकिरिया यावि भवइ 3 ॥सू. 80 // इह खलु पाइणां वा (2) जाव रोयमाणेहिं बहवे समणमाहणयतिहिकिवणवणिमए समुहिस्स तत्थ तत्थ अगारिहिं अगाराई झ्याई भवंति, तंजहा-पाएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा जे भयंतारो तहप्पगाराइं पाएसणाणि जाव भवणगिहाणि वा तेहि अणोक्यमाणेहिं उवयंति अयमाउसो ! ग्रणभिक्कंतकिरिया यावि भवइ 4 // ॥सू० 81 // इह खलु पाइयां वा (4) जाव कम्मकरीयो वा; तेसिं च गां एवं वृत्तपुव्वं भवइ-जे इमे भवंति समणा भगवंतो जाव उवरया मेहुणायो धम्मायो, नो खलु एएसिं भयंताराणां. कप्पइ याहाकम्मिए उवस्सए वत्थए, से जाणि इमाणि अम्हं अप्पणो सयट्ठाए चेइयाई भवंति, तं जहा-याएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा, सज्वाणि ताणि समणाणं निसिरामो, अवियाइं वयं पच्छा अप्पणो सयट्ठाए चेइस्सामो, तंजहा-याएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा एयप्पगारं निग्योसं सुच्चा निसम्म जे भयंतारो तहप्पगाराई पाएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा उवागच्छंति इयराइयरेहिं पाहुडेहिं वटंति, अयमाउसो वज्जकिरियावि भवइ 5 // ॥सू०८२॥ इह खलु पाइणं वा (1) सतेगइया सड्ढा भवंति, तेसिं च गां अायारगोयरे जाव तं रोयमाणेहिं बहवे समगमाहण-अतिहि-किवण-वणीमगे पगणिय (2) समुद्दिस्स तत्थ (2) अगारीहिं अगाराई चेझ्याई भवंति, तंजहा-पाएसगाणि वा जाव भवणगिहाणि वा, जे भयंतारो तहप्पगाराई याएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा, बागच्छंति इयराइयरेहिं पाहुडेहिं वदंति, ययमाउसो ! महावज्जकिरियावि भवइ 6 ॥सू० 83 // इह खलु पाइणं वा (4) संतेगइया जाव तं सदहमाणेहिं तं पत्तियमाणेहिं तं रोयमाणेहिं बहवे समणमाहणयतिहिकिवणवणीमगे पगणिय (2) समुद्दिस्स तत्थ (2) अगाराई चेइयाई भवंति तंजहा-याएस Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 78 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः णाणि वा जाव भवणगिहाणि वा, जे भयंतारो तहप्पगाराणि अाएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा उवागच्छंति इयराइयरेहिं पाहुउहि, अयमाउसो ! सावज्जकिरिया यावि भवइ ७॥सू० 84 // इह खलु पाइणं वा (4) जाव तं रोयमाणेहिं एगं समणजायं समुदिरस तत्थ (2) अगारीहिं श्रगाराइं चेइयाई भवन्ति, तंजहा-पाएसणाणि जाव गिहाणि वा महया पुढवीकाय-समारंभेण जाव महया तसकायसमारंभेण महया विरूवरूवेहिं पावकम्मकिच्चेहि, तंजहा छायणयो लेवणयो संथारदुवारपिहणयोसीयोदए वा परट्टवियपुव्वे भवइ, अगणिकाये वा उज्जालियपुब्वे भवइ, जे भयंतरो तहप्पगाराइं पाएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा उवागच्छंति इयराइयरेहिं, पाहुडेहिं वदंति दुपक्खं ते कम्मं सेवंति, अयमाउसो! महासावज्जकिरिया यावि भवइ 8 ॥सू. 85 // इह खलु पाइणं वा जाव तं रोयमाणेहिं अप्पणो सयट्ठाए तत्थ (2) अगारीहिं अगाराई चेइयाइं भवंति, तंजहा-याएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा महया पुढविकायसमारंभेणां जाव अगणिकाए वा उज्जालियपुव्वे भवइ, जे भयंतारो तहप्पगाराइं पाएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा उवागच्छंति इयराइयरेहिं पाहुडेहिं एगपक्खं ते कम्म सेवंति, अयमाउसो ! अप्पसावज्जकिरिया यावि भवइ 1 // एवं खलु तस्स भिक्खुस्स भिक्खुणीए वा सामग्गियं जाव सया जएज्जासि त्ति बेमि ॥सू. 86 // // इति द्वितीयोद्देशकः / / 2-1- 2-2 // // अध्ययनं-२ : उद्देशक-३ः॥ से य नो सुलभे फासुए उंछे अहेसणिज्जे नो य खलु सुद्धे इमेहिं पाहुडेहिं, तंजहा-छायणो लेवणयो संथारदुवारपिहणयो पिंडवाएसणायो, से य भिक्खू चरियारए ठाणरए निसीहियारए सिज्जासंथारपिंडवाएसणारए, संति भिक्खूणो एवमक्खाइणो उज्जुया नियागपडिवन्ना Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदाचाराङ्ग-सूत्रम् / श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 2 ] [76 अमायं कुचमाणा वियाहिया, संतेगइया पाहुडिया उक्खित्तपुव्वा भवइ, एवं निवखत्तपुब्वा भवइ, परिभाइयपुव्वा भवइ, परिभुत्तपुव्वा भवइ परिट्ठवि. यपुवा भाइ, एवं वियागरेमाणे समियाए वियागरेइ ? हंता भवइ ॥सू० 87 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण उवस्मयं जागि.ज्जा खुडिडयायो खुड्डदुवारियायो निययायो संनिरुद्धायो भवन्ति, तहप्पगारे उवस्सए रायों वा वियाले वा निक्खममाणे वा पविसमाणे वा पुरा हत्येण वा पच्छा पाएण वा तो संजयामेव निक्खमिज्ज वा (2) 1 / केवली बूया पायाणमेयं, जे तत्थ समणाणं वा माहणाण वा छत्तए वा मत्तए वा दंडए वा लट्ठिया वा भिसिया वा नालिया वा चेले वा चिलिमिली वा चम्मए वा चम्मकोसए वा चम्मछेयणए वा दुब्बद्ध दुन्निविखत्ते अणिकपे चलाचले भिक्खु य रायो वा वियाले वा निक्खममाणे वा (2) पयलिज्ज वा पवडेज्ज वा 2 / से तत्थ पयलमाणे वा पवडेमाणे वा हत्थं वा पायं वा जाव इंदियजायं वा लूसिज्ज वा पाणाणि वा (4) अलिहणेज्ज वा जाव ववरोविज्ज वा 3 / अह भिख्खूणं पुखोवइ8 जाव जं तहपगारे उवस्सए पुरा हत्थेण वा पच्छा पाएणं वा तयो संजयामेव निखमिज्ज वा पविसिज्ज वा ४॥सू. 88 // से श्रागंतारेसु वा अणुवीय उवस्सयं जाइज्जा, जे तत्थ इसरे जे तत्थ समहिट्टाए ते उवस्सयं अणुन्नविज्जा काम खलु ग्राउसो! अहालंदं ग्रहापरिन्नायं वसिस्सामो जाव अाउसंतो ! जाव अाउसंतस्स उवस्सए जाव साहग्मियाई ततो उवस्मयं गिरिहस्सामो तेण परं विहरिस्सामो॥सू० 81 // से भिक्खू वा (2) जस्सुवस्सए संवसिज्जा तस्स पुवामेव नामगुत्तं जाणिज्जा, तो पच्छा तस्स गिहे निमंतेमाणस्स वा अनिमंतेमाणस्स वा असणं वा (2) अफासुयं जाव नो पडिगाहेज्जा ॥सू. 10 // से भिवखू वा (2) से जं पुण उवस्सयं जाणिज्जा, ससागारियं सागणियं सउदयं नो पन्नरस निवखमणपवेसाए जावऽणुचिंताए तहप्पगारे उवस्मए नो ठाणं वा सेज्जं वा Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 80 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः निसीहियं वा चेइज्जा ।।प्यू० 1 1 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण उवस्मयं जाणिज्जा गाहावइकुलस्स मज्झमज्मेणं गंतु पंथए पडिबद्धं वा नो पन्नस्स जाव चिंताए तहप्पगारे उवस्सए नो ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेइज्जा ॥सू. 12 // से भिखू वा (2) से जं पुण उवस्सयं जाणिज्जा, इह खलु गाहावई वा कम्मकरीयो वा यन्नमन्नं अकोसंति वा जाव उद्दवंति वा नो पन्नस्स जाव चिंताए सेवं नचा तहप्पगारे उवस्सए नो ठाणं वा जाव चेइज्जा ॥सू. 13 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण उवस्मयं जाणिज्जा इह खलु गाहावई वा कम्मयरीयो वा यन्नमन्नस्स गायं तिल्लेण वा नवनीएण वा घएण वा वसाए वा अभंगेति वा मक्खेति वा नो पराणस्स जाव चिंताए तहप्पगारे उवस्सए नो ठाणं वा जाव चेइजा ॥सू० 14 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण उवस्सयं जाणिज्जा-इह खलु गाहावई वा जाव कम्मकरीयो वा अन्नमन्नस्स गायं सिणाणेण वा कक्केण वा लुण वा (वराणोण वा चुराणेण वा पउमेण वा प्रासंति वा पसंति वा उव्वलंति वा उत्पट्टिति वा) नो पन्नस्स निक्खमण जाव चिंताए, तहप्पगारे उवम्सए नो ठाणं वा जाव चेइज्जा॥सू० 15 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण उवस्मयं जाणिज्जा, इह खलु गाहावती वा जाव कम्मकरी वा अगणमगणस्स गायं सीयोदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलिति वा पहोयंति वा सिंचंति वा सिणावंति वा नो पन्नस्स जाव नो ठाणं वा जाव चेइज्जा ॥सू. 16 // से भिक्खू वा वा से जं पुण उवस्मयं जाणिज्जा इह खनु गाहावई वा जाव कम्मकरीयो वा निगिणा ठिया निगिणा उल्लीणा मेहुणधम्मं विनविंति रहस्सियं वा मंतं मंतंति नो पनस्स जाव नो ठाणं वा (3) चेइज्जा ॥सू० 17 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण उपस्तयं जाणिन्जा पाइन्नसंलिक्खं नो पन्नस्स जाव चिंताए जाव नो ठाणं वा (3) चेइज्जा ॥सू. 18 // से भिक्खु वा (2) अभिकंखिज्जा संथारगं एसित्तए, से जं पुण संथारगंजाणिज्य सघंडं जाव Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आचारागसूत्रम् " श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 2 ] [81 ससंताणय, तहप्पगारं संथारं लाभे संते नो पडिगाहिजा 1 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण संथारयं जाणिजा अप्पंडं जाव संताणगगरुयं तहप्पगारं लाभे संते नो पडिगाहिज्जा 2 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण संथारयं जाणिज्जा अप्पंडं जाव संताणयं लहुयं अपाडिहारियं तहप्पगारं नो पडिगाहिजा 3 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण संथारगं जाणिज्जा, अप्पंड जाव अप्पसंताणगं लहुयं पाडिहारियं नो अहाबद्धं तहप्पगारं लाभे संते नो पडिगाहिजा 4 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण संथारगं जाणिज्जा अप्पंडं जाव संताणगं लहुग्रं पाडिहारिगं ग्रहाबद्धं, तहप्पगारं संथारगं लाभे संते पडिगाहिज्जा 5 ॥सू० 11 // इच्चेयाई यायतणाई उवाइकम-ग्रह भिक्खू जाणिज्जा इमाई चउहि पडिमाहिं संथारगं एसित्तए, तत्थ खलु इमा पढमा पडिमा से भिक्खू वा (2) उदिसिय (2) संथारगं जाइजा, तंजहाइक्कडं वा कढिणं वा जंतुयं वा परगं वा मोरगं वा तणगं वा सोरगं वा कुसं वा कुच्चगं वा पिप्पलगं वा पलालगं वा, से पुवामेव पालोइजा-पाउ. सोत्ति वा भइणीत्ति वा दाहिसि मे इत्तो अन्नयरं संथारगं ? तहप्पगारं संथारगं सयं वा णं जाइजा, परो वा देजा फासुयं एसणिज्जं जाव पडिगाहिज्जा, पढमा पडिमा // 1 ॥सू० 100|| ग्रहावरा दुचा पडिमा-से भिक्खू वा (2) पेहाए संथारगं जाइजा, तंजहा-गाहावई वा कम्मकरिं वा से पुवामेव थालोइजा-पाउसो त्ति वा भइणी त्ति वा दाहिसि मे एत्तो अन्नयरं संथारगं ? तहप्पगारं संथारगं सयं वा णं जाएजा परो वा से देजा, फासुयं एसणिज्जं जाव पडिगाहिज्जा, दुचा पडिमा 2 // ग्रहावरा तच्चा पडिमा-से भिक्खू वा (2) जस्सुवस्सए संवसिज्जा जे तत्थ ग्रहासमन्नागए, तंजहा-इक्कडे इ वा जाव पलालेइ वा तस्स लाभे संवसिज्जा तस्सालामे उक्कुडुए वा नेसज्जिए वा विहरिज्जा, तचा पडिमा 3 ॥सू. 101 // अहावरा चउत्था पडिमा-से भिक्खू वा (2) अहासंथडमेव संथारगं जाइजा, Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 82 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः तंजहा-पुढविसिलं वा कट्ठसिलं वा अहासंथडमेव, तस्स लाभे संते संवसिज्जा, तस्स अलाभे उकळुडुए वा (2) विहरिजा, चउत्था पडिमा 4 ॥सू. 102 // इच्चेयाणं चउराहं पडिमाणं अन्नयरं पडिमं पडिव जमाणे तं चेव जाव अन्नोऽन्नसमाहीए एवं च णं विहरंति ॥सू. 103 // से भिक्खू वा (2) अभिकंखिज्जा संथारगं पञ्चप्पिणित्तए, से जं पुण सथारगं जाणिज्जा सग्रंडं जाव ससंताणयं तहप्पगारं संथारगं नो पञ्चप्पिणिज्जा ॥सू० 10 // से भिक्खू वा (2) अभिकंखिज्जा संथारगं पञ्चपिणित्तए से जं पुण संथारगं जाणिजा, अप्पंडं तहप्पगारं जाव संताणगं संथारगं पडिलेहिय (2) पमन्जिय (2) अायाविय (2) विहुणिय (2) तयो संजयामेव पचप्पिणिज्जा ॥सू. 105 // से भिक्खू वा (2) समाणे वा वसमाणे वा गामाणुगाम दूइजमाणे वा पुवामेव पन्नस्स उच्चारपासवणभूमि पडिलेहिजा, केवली बूया यायाणमेयं-अपडिलेहियाए उच्चारपासवणभूमीए, से भिवखू वा (2) रायो वा वियाले वा उच्चारपासवणं परिहवेमाणे पयलिज वा पवडेज वा से तत्थ पयलमाणे वा (2) हत्थं वा पायं वा जाव लूसेज वा पाणाणि वा (4) जाव ववरोविजा; ग्रह भिक्खूणं पुबोवइट्टा जाव जं पुब्बामेव पन्नस्म उच्चारपासवणभूमि पडिलेहिज्जा / सू० 106 // से भिक्खू वा (2) अभिकंखिजा सिज्जासंथारंगभूमि पडिलेहित्तए नन्नत्थ पायरियेण या उवज्झाएण वा जाव गणावच्छेएण वा बालेण वा वुड्ढेण वा सेहेण वा गिसाणेण वा पाएसेण वा यंतेण वा मज्झेण वा समेण वा विसमेण वा पवाएण वा निवारण वा, तयो संजयामेव पडिलेहिय (2) पमन्जिय (2) तयो संजयामेव बहुफासुयं सिज्जासंथारगं संथरिजा ॥सू. 107 // से भिक्खू वा (2) बहुफासुयं सेज्जा संथारगं संथरित्ता अभिकंखिज्जा बहुफासुए सिज्जासंथारए दुरूहित्तए // से भिक्खू (2) बहुफासुए सेज्जासंथारए दुरूहमाणे से पुवामेव ससीसोवरियं कायं पाए य पमज्जिय (2) तयो संज Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आचाराङ्ग-सूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 3 ] [83 यापेव बहुफासुए सेज्जासंथारगे दुरूहित्ता तयो संजयामेव, बहुफासुए सेज्जासंथारए सइज्जा ॥सू० 108 // से भिक्खू वा (2) बहुफासुए सेज्जासंथारए सयमाणे नो अन्नमन्नस्स हत्थेण हत्थं पाएण पायं कारण कार्य प्रासाइज्जा से अणासायमाणे तो संजयामेव बहुफासुए सिज्जासंथारए सइज्जा // से भिक्खू वा (2) उस्सासमाणे वा नीसासमाणे वा कासमाणे वा छीयमाणे वा जंभाषमाणे वा उड्डोर वा वायनिसग्गं वा करेमाणे पुवामेव ग्रासयं वा पोसयं वा पाणिणा परिपेहित्ता तयो संजयामेव ऊससिज्जा वा जाव वायनिसग्गं वा करेज्जा |सू. 106 // से भिक्खू वा (2) समा वेगया सिज्जा भविज्जा, विसमा वेगया सिज्जा भविज्जा, पवाया वेगया सिज्जा भविज्जा, निवाया वेगया सिज्जा भविज्जा, ससरक्खा वेगया सिज्जा भविज्जा, अप्पससरक्खा वेगया सिज्जा भविज्जा, सदंसमसगा वेगया सिज्जा भविज्जा, अप्पदंसमसगा वेगया सिज्जा भविज्जा, सपरिसाडा वेगया सिज्जा भविज्जा, अपरिसाडा वेगया सिज्जा भविज्जा, सउवसग्गा वेगया सिज्जा भविज्जा, निरुवसग्गा वेगया सिज्जा भविज्जा, तहप्पगाराहिं सिज्जाहिं संविज्जमाणाहिं पग्गहियतरागं विहारं विहरिज्जा नो किंचिवि गिलाइज्जा, एवं खलु तस्स भिक्खुस्स भिक्खुणीए वा सामग्गियं जं सवठेहिं सहिए सया जए ति बेमि ॥सू० 110 // // इति तृतोयोद्देशकः / / 2-1-2-3 // // इति द्वितीयमध्ययनम् / / श्रु०२-०१-अ०२ / / // 3: ईर्या-अध्ययनं 3 : उद्देशकः 1 // ___अब्भुवगए खलु वासावासे अभिपवुठे. बहवे पाणा अभिसंभूया बहवे बीया अहुणाभिन्ना अंतरा से मग्गा बहुपाणा बहुबीया जाव ससंतागागा अणभिक्कता पंथा, नो विनाया मग्गा, सेवं नच्चा नो गामाणुगामं दूइज्जिज्जा, तो संजयामेव वासावासं उवल्लिइज्जा ॥सू० 111 // से Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 84 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः भिक्खू वा (2) से ज्जं पुण जाणिज्जा गामं वा जाव रायहाणिं वा इमंसि खलु गामंसि वा जाव रायहाणिसि वा नो महई विहारभूमी नो महई वियारभूमी नो सुलभे पीढफलगसिज्जासंथारगे नो सुलभे फासुए उंछे अहेसणिज्जे जत्थ बहवे समणमाहण-अतिहि-किवण-वणीमगा उवागया उवागमिस्संति य अचाइन्ना वित्ती नो पन्नस्स निवखमणे जाव चिंताए, सेवं नचा तहप्पगारं गाम वा नगरं वा जाव रायहाणिं वा नो वासावासं उवल्लिइज्जा 1 // से भिवखू वा (2) से जं पुण जाणिज्जा गाम वा जाव रायहाणिं वा इमंसि खलु गामंसि वा जाव वा महई विहारभूमी महई वियारभूमी सुलभे जत्थ पीढफलग-सिज्जासंथारगे स्लभे फासुए उंछे अहेसणिज्जे नो जत्थ बहवे समणमाहणयतिहिकिवणवणिमागा उवागया उवागमिस्सं ते वा अप्पाइना वित्ती जाव रायहाणिं वा तयो संजयामेव वासावासं उवलिइन्जा ॥सू. 112 // ग्रह पुणेवं जाणिजा-चत्तारि मासा वासावासाणं वीइकंता हेमंताण य पंचदसरायकप्पे परिवुसीए, अंतरा से मग्गे बहुपाणा जाव ससंताणगा नो जत्थ बहबे जाव उवागमिस्संति, सेवं नचा नो गामाणुगाम दूइजिजा॥अह पुणेवं जाणिज्जा-चत्तारि मासा वासावासाण वीईक्कता, हेमंताणं य पंचदसराय कप्पे परिसिए, अंतरा से मग्गे अप्पंडा जाव ससंतागागा बहवे जत्थ समणमाहण-अतिहिकवणवणिगा उवागया उवागमिस्संति, सेवं नचा तयो संजयामेव गामाणुगामं दूइजिज्ज ।सू० 113 // से भिक्व वा (2) गामाणुगामं दूइज्जमाणे पुरयो जुगमायाए(यं) पेहमाणे दवण तसे पाणे उद्धटु पादं रीइज्जा, वितिरिच्छ वा कटु पायं रीइज्जा, सइ परकमे संजयामेव परिकमिज्जा नो उज्जुयं गच्छिज्जा, तो संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जिज्जा 1 // से भिक्खू वा (2) गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से पाणाणि वा बीयाणि वा हरियाणि वा उदए वा मट्टिया वा अविद्धत्थे सइ परकमे जाव नो उज्जुयं गच्छिज्जा, तो संजयामेव गामाणुगामं Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आवाराङ्गसूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 3 ] [85 दूइज्जिज्जा ॥सू० ११४॥से भिक्खू वा (2) गामाणुगामं दुइज्जमाणे अंतरा से विरूवरूवाणि पञ्चंतिगाणि दसुगाययाणि मिलक्खूणि अणायरियाणि दुसन्नप्पाणि दुप्पन्नवणिज्जाणि अकालपडिबोहीणि अकालपरिभोइणि सइ लाढे विहाराए संथरमाणेहिं जाणवएहि नो विहारवडियाए(वत्तियाए) पवज्जिज्जा गमणाए 1 / केवली ब्रूया-यायाणमेयं, तेणं बाला अयं तेणे अयं उवचरए अयं ततो पागएत्ति कट्टु तं भिक्खुकोसिज्ज वा जाव उद्दविज्ज वा वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुच्छणं अच्छिदिज्ज वा भिंदिज्ज वा वा अवहरिज्ज वा परिविज्ज वा 2 / ग्रह भिक्खूणं पु० ज तहप्पगाराई विरूवरूवाणि पच्चंतियाणि दस्सुगायतणाणि जाव विहारवत्तियाए नो पवज्जिज्ज वा गमणाए तयो संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जिज्जा ॥सू० 115 // से भिखू वा (2) दूइज्जमाणे अंतरा से अरायाणि वा गणरायाणि वा जुवरायाणि वा दोरज्जाणि वा वेरज्जाणिवा विरुद्ध रज्जाणि वा सइ लाढे विहाराए संथरमाणेहि जणवएहिं नो विहारवडियाए पवज्जेज्ज गमणाए; केवली ब्रूया आयाणामेयं, ते णं वाला अयं तेणे तं चेव जाव गमणाए तयो संजयामेव गामाणुगाम, दूइज्जिज्जा॥सू० ११६॥से भिक्खू वा (2) गामाणुगाम दूइज्जमाणे अंतरा से विहं सिया, से जं पुण विहं जाणिज्जा एगाहेण वा दुबाहेण वा तियाहेण वा उग्राहेण वा पंचाहेण वा पाउणिज्ज वा नो पाउणिज्ज वा नहप्पगारं विहं अणेगायगमणिज्ज सइ लाढे जाव गमणाए, केवली ब्रूया आयाणमेयं, अंतरा से वासे सिया पाणेसुवा पणएसु वा बीएसु वा हरिएसुवा उदएसु वा मट्टियाए वा अविद्धत्थाए, ग्रह भिक्खूणं पुव्वोवइट्टा जाव जं तहप्पगारं अणेगाहगमणिज्जंजाव नो पवज्जेज्ज गमणाए तो संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जिज्जा ॥सू० 117 // से भिक्खू वा (2) गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से नावासंतारिमे उदए सिया, से जं पुण नावं जाणिज्जा, असंजए अ भिक्खुपडियाए किणिज्ज वा पामिचेज्ज वा नावाए नावं परि Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 86 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः णामं कटु थलायो वा नावं जलंसि योगाहिजा जलायो वा नावं थलंसि उकसिज्जा पुराणं वा नावं उस्सिचिजा सन्नं वा नावं उप्पीलाविजा तहप्प. गारं नावं उडढगामिणिं वा अहेगामिणिं तिरियगामिणि परं जोयणभेराए श्रद्धजोयणमेराए अप्पतरे वा भुजतरे वा नो दूमहिजा गमणाए 11 से विक्खू वा (2) पुवामेव तिरिच्छसंपाइमं नावं जाणिजा, जाणित्ता से तमायाए एगंतमवकमिज्जा 2, भण्डगं पडिलेहिजा 2, एगयो भोयणभंडगं करिजा 2, ससीसोवरियं कायं पाए पमजिजा सागारं भत्तं पञ्चक्खाइजा, एगं पायं जले किच्चा एगं पायं थले किच्चा तयो संजयामेव नावं दूरुहिज्जा 2 // सू० 118 // से भिक्खू वा (2) नावं दुरूहमाणे नो नावाए पुरो दुरूहिजा नो नावाए अग्गयो दुरूहिज्जा नो नावाए मझयो दुहिज्जा नो बाहायो पगिज्झिय (2) अंगुलियाए उदिसिय (2), श्रोणमिय (2), उन्नमिय (2), निज्माइजा 1 / सेणं परो नावागयो नावागयं वइजाघाउसंतो समणा। एयं ता तुमं नाव उकसाहिं वा वुकसाहिवा खिवाहि वा रज्जूयाए वा गहाय श्राकसाहि नो से तं परिन्नं परिजाणिजा, तुसिणीयो उवेहिजा 2 ! से णं परो नावागयो नावागय वइजा-पाउसंतो समणा ! नो संचारसिं तुमं नाव उक्कसित्तए वा (3) रज्जू गए वा गहाय याकसित्तए वा बाहर एवं नावाए रज्जूयं सयं चेव णं वयं नाव उकसिस्सामो वा जाव रज्जूए वा गहाय ग्राकस्सिसामों नो से तं परिन्न परियाणेज्जा तुसिणीयो उवेहेजा 3 / से णं परो नावागयो नावागयं वइजा अाउसंतो समणा, एयं ता तुमं नावं ग्रालित्तेण वा पीढएण वा वंसेण वा वलएण वा अवलुएण वा वाहेहि, नो से तं परिगणं परिजाणिज्जा तुसिणीयो उवेहेज्जा 4) से णं परो नावागयो नावागणं वज्जा, एयं ता तुम नावाए उदयं हत्थेण वा पाएण वा मत्तेण वा पडिग्गहेण वा नाराउस्सिंचणेण उस्सिंचाहि, नो से तं परिएणं परिजाणिज्जा, से णं परो नावागों नावा Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीआचाराङ्गसूत्रम् / श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 3 ] [87 गयं वएज्जा अाउसंतो समणा ! एयं तुमं नावाए उत्तिगं हत्थेण वा पाएण वा बाहुणा वा अरुणा वा उदरेण वा सीसेण वा कारण वा उस्सिंचणेण वा चेलेण वा मट्टियाए वा कुसपत्तएण वा कुविंदएण वा पिहेहि, नो से तं परिगणं परिजाणिजा 5 / से भिक्खू वा (2) नावाए उत्तिगेण उदयं थासवमाणं पेहाए उवस्वरिं नाव कज्जलावेमाणिं पेहाए नो परं उवसंकमित्तु एव बया-थाउसंतो! गाहावइ एयं ते नावाए उदयं उत्तिंगेण यासवइ उवस्वरि नावा वा कजलावेइ, एयप्पगारं मणं वा वायं वा नो पुरो कटु विहरिजा, अप्पुस्सुए अबहिल्लेसे एगंतगएण अप्पाणं विउसेज्जा, समाहीए, तो संजयामेव नावासंतारिमे उदए अहारियं रीइज्जा,६ / एयं खलु जाव सया जइज्जा सि तिबेमि, 7 ॥सू० 111 // // इति प्रथम उद्देशकः / / 2-1-3-1 // // अध्ययनं-३ : उद्देशकः 2 // - से | परो णावागयो नावागयं वइज्जा-अाउसंतो समणा ! एयं ता तुमं छत्तगं वा जाव चम्मछेयणगं वा गिराहाहि, एयाणि तुमं विरूवरूवाणि सत्थजायाणि धारेहि, एयं ता तुमं दारगं वा पज्जहि, नो से तं परिगणं परिजाणिज्जा तुसिणीयो उवेहेज्जा ॥सू० 120 // से णं परो नावागयो नावागयं वएज्जा-याउसंतो ! एस णं समणे नावाए भंडभारिए भवइ, से णं बाहाए गहाय नावायो उदगंसि पक्खिविज्जा, एयप्पगारं निग्योसं सुच्चा निसम्म से य चीवरधारी सिया खिप्पामेव चीवराणि उव्वेढिज्ज वा निवेटिन्ज वा उप्फेसं वा करिज्जा 1 / यह पुण एवं जाणिज्जा, अभिकंतकूरकम्मा खलु बाला बाहाहिं गहाय नावायो उदगंसि पविखविज्जा, से पुवामेव वइज्जा-याउसंतो गाहावइ ! मा मेत्तो बाहाए. गहाय नावायो उदगंसि पक्खिवह, सयं चेव णं अहं नावायो उदगंसि योगाहिस्सामि 2 / से गोव Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 88] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः वयंत परो सहसा बलसा बाहाहिं गहाय उदयगंसि पक्खिविज्जा, तं नो सुमणे सिया नो दुम्मणे सिया नो उच्चावयं मणं नियंछिज्जा, नो तेसिं बालाणं घायाए वहाए समुट्ठिज्जा अप्पुस्सुए जाव समाहीए तो संजयामेव उदगंसि पवज्जिजा 3 ॥सू. 121 // से भिक्खू वा (2) उदगंसि पवमाणे नो हत्थेण हत्थं पाएण पायं कारण कार्य यासाइज्जा, से अणासायणाए अणासायमाणे तयो संजयामेव उदगंसि पविज्जा 1 / से भिक्खू वा (2) उदगंसि पवमाणे नो उम्मुग्गनिमुग्गियं करिज्जा, मा मेयं उदगं कन्नेसु वा अच्छीसु वा नवकसि वा मुहंसि वा परियावज्जिज्जा, तो संजयामेव उदगंसि पविज्जा 2 // से भिक्खू वा (2) उदगंसि पवमाणे दुबलियं पाउणिज्जा खिप्पामेव उवहिं विगिरिज्ज वा विसोहिज्ज वा, नो चेव णं साइज्जिज्जा 3 / ग्रह पुण एवं जाणिज्जा, पारए सिया उदगायो तीरं पाउणित्तए, तो संजयामेव उदउल्लेण वा ससिणिद्धेण वा कारण उदगतीरे चिट्ठिज्जा 4 // से भिक्खू वा (2) उदउल्लं वा ससिणिद्धं वा कायं नो ग्रामज्जिजा वा पमज्जिज्जा वा वा संलिहिज्जा वा निल्लिहिज्जा वा उव्वलिज्जा वा उवट्टिज्जा वा बायाविज वा पयाविज वा 5 / यह पुण एवं जाणिज्जा, विगयोदयो मे काए छिन्नसिणेहे काए तहप्पगारं कायं ग्रामज्जिज्ज वा जाव पयाविज्ज वा, तो संजयामेव गामाणुगामं दूइजिज्जा 6 ॥सू. 122 // से भिक्खू वा (2) गामाणुगामं दूइज्जमाणे नो परेहिं सद्धिं परिजविय (2) गामाणुगामं दूइज्जिज्जा, तो संजयामेव गामानुगामं दूइज्जिजा ॥सू० 123 // से भिक्खू वा (2) गामाणुगा दूइजमाणे अंतरा से जंघासंतारिमे उदगे सिया, से पुवामेव ससीसोवरियं कायं पाए य पमजिज्जा 2, एगं पायं जले किच्चा एगं पायं थले किच्चा तयो संजयामेव जंघासंतारिमे उदगंसि अहारियं रीएजा 1 / // से भिक्खू वा (2) जंघासंतारिमे अहा Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदाचाराङ्ग-सूत्रम् : श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 2 ] [81 रियं रीयमाणे नो हत्थेण हत्थं पादेण वा पादं कारण वा कायं श्रासाएजा, से अणालाइए अणासायमाणे तयो संजयामेव जंघासंतारिमे उदए अहारियं रीएजा 2 // से भिक्खू वा (2) जंघासंतारिमे उदए ग्रहारियं रीयमाणे नो सायावडियाए नो परिदाहपडियाए महइमहालयंसि उदयंसि कायं विउसिजा, तयो संजयामेव जंघासंतारिमे उदए ग्रहारियं रीएजा 3 / ग्रह पुण एवं जाणिजा पारए सिया उदगायो तीरं पाउणित्तए, तो संजयामेव उदउल्लेण वा ससिणिण वा काएण दगतीरए चिट्ठिजा 4 // से भिक्खू वा (2) उदउल्लं वा कार्य ससिणिद्धं वा कार्य नो ग्रामज्जिज्ज वा नो पमज्जे. ज्ज वा 5 / ग्रह पुण एवं जाणिज्जा विगयोदए मे काए छिन्नसिणेहे तहप्पगारं कायं ग्रामज्जिज्ज वा जाव पयाविज्ज वा, तयो संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जिज्जा६ ॥सू. 124 // से भिक्खू वा (2) गामाणुगामं दूइज्जमाणे नो मट्टियागएहिं पाएहिं हरियाणि बिंदिय (2), विकुन्जिय (2), विफालिय (2), उम्मग्गेण हरियवहाए गच्छिज्जा, जमेयं पाएहिं मट्टियं खिप्पामेव हरियाणि अवहरंतु, माइट्ठाणं संकासे, नो एवं करिज्जा से पुवामेव अप्पहरियं मग्गं पडिलेहिज्जा, तो संजयामेव गामा गुगामंदूइज्जिज्जा 1 / से भिक्खू वा (2), गामाणुगामं. दूइज्जमाणे अंतरा से वप्पाणि वा फलिहाणि वा पागाहाणि वा तोरणाणि वा अग्गलाणि वा अग्गलपासगाणि वा गड्डायो वा दरीयो वा सइ परकमे संजयामेव परिकमिज्जा नो उज्जुयं गच्छेज्जा 2 / केवली बूया-पायाणं एयं, से तत्थ परकममाणे पयलिज वा पवडिज वा, से तत्थ पयलमाणे वा पवडेमाणे वा रुवखाणि वा गुच्छाणि वा गुम्माणि वा लयायो वा वल्लीयो वा तणाणि वा गहणाणि वा हरियाणि वा अवलंबिय (2) उत्तरिजा, जे तत्थ पाडिपहिया उवागच्छति ते पाणी जाइजा, तो संजयामेव अवलंबिय (2) उत्तरिजा तो संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जिजा 3 // से भिक्खू वा (2) गामाणुगाम Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 90 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः दूइज्जमाणे अंतरा से जवसाणि वा सगडाणि वा रहाणि वा सचकाणि वा परचक्काणि वा से णं वा विरुवरूवं संनिरुद्धं पेहाए सइ परक्कमे संजयामेव नो उज्जुयं गच्छिजा, 4 / से णं परो सेणागयो वइजा-अाउसंतो ! एस णं समणे सेणाए अभिनिवारियं करेइ, से णं बाहाए गहाय बागसह, से णं परो बाहाहिं गहाय श्रागसिज्जा, तं नो सुमणे सिया जाव समाहीए तो संजयामेव गामाणुगामं दूइजिजा 5 ॥सू० 125 // से भिक्खू वा (2) गामाणुगामं दूइजमाणे अंतरा से पाडिवहिया उवागच्छिज्जा, ते णं पाडिवहिया एवं वइजा-याउसंतो समणा ! केवइए एस गामे वा जाव रायहाणी वा केवइया इत्थ यासा हत्थी गामपिंडोलगा मणुस्सा परिवसंति, से बहुभत्ते बहुउदए बहुजणे बहुजवसे से अप्पभत्ते अप्पुदए अप्पजणे अप्पजवसे एयप्पगाराणि पसिणाणि नो पुच्छिज्जा, एयप्पगराणि पसिणाणि पुठे वा अपुठे वा नो वागरिजा 1 / एवं खलु तस्स भिक्खुस्स भिक्खुणीए वा सामग्गियं जं सवठेहिं समिए सहिए सया जएत्ति बेमि 2 ॥सू. 126 // // इति द्वितीयोद्देशकः // 2-1-3-2 // // अध्ययन 3 : उद्देशकः 3 // से भिक्खू वा गामाणुगामं दूइजमाणे अंतरा से वप्पाणि वा जाव दरीयो वा जाव कूडागाराणि वा पासायाणि वा नूमगिहाणि वा रुक्खगिहाणि वा पव्वयगिहाणि वा रुक्खं वा चेइयकडं शुभं वा चेइयकडं पाएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा नो बाहायो पगिन्भिाय (2), अंगुलियाए उदिसिय (2), श्रोणमिय (2), उन्नमिय (2), निझाइजा, तो संजयामेव गामाणुगामं दूइजिज्जा 1 ।से भिक्खू वा (2) गामाणुगामं दूइजमाणे अंतरा से कच्छाणि वा दवियाणि वा नूमाणि वा वलयाणि वा गहणाणि वा गहणविदुग्गाणि वणाणि वा वणपव्वयाणि वा पव्वयविदुग्गाणि वा पव्वयगिहाणि वा, अगडाणि वा तलागाणि वा दहाणि वा नइयो वा Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदाचाराङ्ग-सूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 3 ] [61 वावीयो वा पुक्खरिणीयो वा दीहियायो वा गुजालियायो वा सराणि वा सरपंतियाणि वा सरसरपंतियाणि वा नो बाहायो पगिझिय (2); जाव निज्झाइजा 2 / केवली बूया पायाणमेयं, जे तत्थ मिगा वा पसू वा परखी वा सरीसिवा वा सीहा वा जलचरा वा थलचरा वा खहचरा वा सत्ता ते उत्तसिज वा वित्तसिज वा वाडं वा सरणं वा कंखिजा, चारित्ति मे अयं समणे 3 / अह भिक्खूणं पुब्वोवइट्टा पतिराणाजं नो बाहायो पगिझिय (2) निझाइजा, तयो संजयामेव थायरिउवज्माएहिं सद्धिं गामाणुगामं दूइजिजा 4 ॥सू. 127 // से भिक्खू वा (2) पायरिउवज्झाएहिं सद्धिं गामाणुगामं दूइज्जमाणे नो थायरियउवझायस्स हत्येण वा हत्थं जाव अणासायमाणे तयो संजयामेव पायरिउवज्झाएहिं सद्धि जाव इज्जिज्जा 1 // से भिक्ख वा थायरियउवज्झाएहिं सद्धिं दूइज्जमाणे अंतरा से पाडिवहिया उवागच्छिज्जा, ते णं पाडिपाहिया से एवं वइजा-थाउसंतो ! समणा ! के तुब्भे ? कयो वा एह ? कहिं वा गच्छिहिह ?, जे तत्थ पायरिए वा उवज्झाए वा से भासिज वा वियागरिज वा, यायरिउवज्झायस्स भासमाणस्स वा वियागरेमाणरस वा नो अंतरभासं करिजा, तयो संजयामेव गामाणुगामं दूइजिजा 2 / से भिक्खू वा (2) अहाराइणियं गामाणुगाम दूइजमानो नो राइणियस्स हत्थेण हत्थं जाव यणासायमाणे तयो संजयामेव अहाराइगियं गामाणुगाम दूइजिज्जा 3 / से भिक्खू वा (2) बहाराइणियं गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से पाडिवहिया उवागच्छिज्जा, ते णं पाडिपहिया एवं वइज्जा-याउसंतो ! समणा ! के तुम्भे ?, जे तत्थ सव्वराइणिए से भासिज्ज वा वागरिज्ज वा, रायणियस्स भासमाणस्स वा वियागरेमाणस वा नो अंतरा भासं भासिज्जा,तयो संजयामेव ग्रहाराइणियाए गामाणुगाम दूइज्जिज्जा ४॥॥सू० 128 // से भिक्खू वा (2) गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से पाडिवहिया उवागच्छिज्जा, ते णं पाडिपहिया एवं Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 62 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः बइज्जा--ग्राउसंतो समणा ! अवियाई इत्तो पडिवहे पासह, तंजहा-मणुस्सं वा गोणं वा महिसं वा पसु वा पक्खि वा सरीसिवं वा जलयरं वा से बाइक्खह दंसेह, तं नो श्राइक्खिज्जा नो दंसिज्जा, नो तस्स तं परिन्नं परिजाणिज्जा, / तुसिणीए उवेहिज्जा, जाणं वा नो जाणंति वइजा तथो संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जिज्जा 1 / से भिक्खू वा (2) गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंरा से पाडिपहिया उवागच्छेज्जा, ते णं पाडिपहिया एवं वइजा--ग्राउसंतो समणा / अवियाई इत्तो पडिवहे पासह उदग-पसूयाणि कंदाणि वा मूलाणि वा तया पत्ता पुप्फा फला बीया हरिया उदगं वा संनिहियं अगणिं वा संनिखित्तं से श्राइवखह जाव दूइजिज्जा 2 // से भिवरखू वा (2) गामाणुगामं दूइजमाणे अंतरा से पाडिपहिया उवागच्छेजा, ते णं पाडिपहिया एवं वइजा-पाउसंतो समणा ! अवियाई इत्तो पडिवहे पासह जवसाणि वा जाव से णं वा विरूवस्वं संनिविट्ठ से बाइक्खह जाव दूइजिजा 3 // से भिवव वा (2) गामाणुगामं दूइजमाणे अंतरापाडिपहिया एवं वइज्जा-याउसंतो समणा ! केवइए इत्तो गामे वा जाव रायहाणिं वा से बाइक्खह जाव दूइजिज्जा 4 // से भिक्खू वा (2), गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से पाडिपहिया एवं वइजायाउसंतो समणा ! केवइ ए इत्ता गामस्स नगरस्स वा जाव रायहाणीए वा मंग्गे से बाइक्खह, तहेव जाव दूइजिज्जा 5 // ॥सू० 121 // से भिक्खु (2) गामाणुगाम दूइजमाणे अंतरा से गोणं वियालं पडिवहे पेहाए जाव चित्तचिल्लडं वियालं पडिपहे पेहाए नो तेसिं भीयो उम्मग्गेणं गच्छिजा, नौ मग्गायो उम्मग्गं संकमिजा, नो गहणं वा वणं वा दुग्गं वा अणुपविसिजा, नो रूक्खंसि दूरुहिज्जा, नो महइमहालयंसि उदयसि कायं विउसिजा, नो वाडं वा सरणं वा सेणं वा सत्थं वा कंखिजा, अप्पुसुए जाव समाहीए तो संजयामेव गामाणुगामं दूइजिजा 1 // से भिक्खू वा (2) Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [63 श्रीमदाचाराङ्ग-सूत्रम् / श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 4 ] गामाणुगामं दूइजमाणे अंतरा से विहं सिया, से जं पुण विहं जाणिज्जा इमंसि खलु विहंसि बहवे अामोसगा उवगरणपडियाए संपिंडिरा गच्छिज्जा, नो तेसिं भीयो उम्मरगेण गच्छिजा जाव समाहीए तो संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा 2 // ॥सू० 130 // से भिक्खू वा (2) गामाणुगा दूइजमाणे अंतरा से ग्रामोसगा संपिंडिया गच्छिज्जा, ते णं ग्रामोसमा एवं वइज्जा-अाउसंतो समणा : अाहर एवं वत्थं वा पायं वा कंबलं वा पायपुच्छणं वा, देहि निक्खिवाहि,तं नो दिजा निविखविजा, नो वंदिय (2) जाइजा, नो अंजलि कटु जाइजा, नो कलुणपडियाए जाइजा, धम्मियाए जायणपए जाइजा, तुसिणीयभावेण वा उहिज्जा, ते णं ग्रामोसगा सयं करणिज्जं तिकटु अक्कोसंति वा जाव उद्दविति वा वत्थं वा (4) अच्छिदिन का जाव परिदृविज्ज वा, तं नो गामसंसारियं कुज्जा, नो रायसंसारियं राजा नो परं उवसंकमित्तु बूया-पाउसंतो गाहावइ ! एए खलु ग्रामोसमा उखगरणपडियाए सयं करणिज्जं तिकटु अकोसंति वा जाव परिवति वा एयप्पगारं मणं वा वायं वा नो पुरयो कटु विहरिज्जा, अप्पुस्सुएं जाव समाहीए तयो संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जिज्जा / एयं खलु तस्स भिवखुस्स भिक्खुणीए वा सामग्गियं जं सव्वठेहिं समिए सहिए सया जइज्जामि ति बेमि ॥सू. 131 // - // इति तृतीयोद्देशकः // 2-1-3-3 // // इति तृतीयमध्ययनम् // 2-1-3 // // 4: भाषाजात-अध्ययनं 4 :: उद्देशक से भिक्खू वा (2) इमाई वयायाराई सुच्चा निसम्म इमाई,श्रणापागाई प्रणारियपुव्वाइं जाणिज्जा--जे कोहा वा वायं विउजंति, जे मागा वाजे मायाए वा, जे लोभा वा वायं विउंजंति, जाणश्रो वा फारसं बसंन्ति प्रजा णयो वा फरुसं वयंति, सव्वं चेयं सावज्जं वन्जिज्जा विवेगमागमए, सुकं ले Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 94 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः जाणिज्जा, अधुवं चेयं जाणिज्जा, असणं वा (1) लभिय नो लभिय भुजिय नो भुजिय, अदुवा आगयो अदुवा नो भागयो, अदुवा एइ अदुवा नो एइ, अदुवा एहिइ अदुवा नो एहिइ, इत्थवि बागए इत्थवि नो पागए, इत्थवि एइ इत्थवि नो एति, इत्थवि एहिति इत्थवि नो एहिति 1 // अणुवीइ निट्ठाभासी समियाए संजए भासं भासिज्जा, तंजहा—एगवयणं 1, दुवयणं 2, बहुवयणं 3, इथिवयणं 4, पुरिसवयणं 5, नपुंसगवयणं 6, अज्झत्थवयणं 7, उवणीयवयणं 8, श्रवणीयवयणं 1, उवणीय-अवणीयवयणं 10, श्रवणीयउवणीयवय 11, तीयवयणं 12, पडुप्पन्नवयणं 13, अणागयवयणं 14, पञ्चक्खवयणं 15, परुक्खवयणं 16, से एगवयणं वइस्सामीति एगवयगां वइजा जाव परुक्खवयणां वइस्सामिति परुक्खवयणां वइज्जा, इत्थी वेस पुरिसो वेस नपुसगं वेस एयं वा चेयं अन्नं वा चेयं अणुवीइ निट्ठाभासी समियाए संजए भासं भासिज्जा, इच्चेयाई प्राययणाई उवातिकम्म 2 // ग्रह भिक्खूणं जाणिज्जा चत्तारि भासज्जायाई तंजहा–सचमेगं पढमं भासज्जायं 1, बीयं मोसं 2, तइयं सच्चामोसं 3, जं नेव सच्चं नेव मोसं नेव सच्चामोसं असचामोसं नाम तं चउत्थं भासजायं 4 // से बेमि 3 जे अइया जे य पडुपन्ना जे अणागया अरहंता भगवंतो सव्वे ते एयाणि चे चत्तारि भासज्जायाई भासिंसु वा भासंति वा भासिस्संति वा पनविंसु वा पराणब्वंति वा पराणविसंति वा 1, सव्वाइं च णं एयाई अचित्ताणि वरणमंताणि गंधमंताणि रसमंताणि फासमंताणि चोवचइयाई विपरिणामधम्माई भवंतीति अक्खायाई 5 // ॥सू. 132 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण जाणिज्जा पुदि भासा अभासा भासिज्जमाणी भासा भासा, भासासमयवीइक्कंता च णं भासिया भासा अभासा 1 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण जाणिज्जा जा य भासा सच्चा 1, जा य भासा मोसा 2, जा य भासा सच्चामोसा 3, जा य भासा असच्चऽमोसा 4, तह Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदाचाराङ्गसूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 4 ] [ 95 प्पगारं भासं सावज्जं सकिरियं ककसं कडुयं निठुरं फरसं अराहयकरिं इयणकरिं भेयणकरि परियावणकरिं उद्दवणकरिं भूयोवघाइयं अभिकख नो भासिज्जा 2 // से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण जाणिज्जा, जा य भासा सच्चा सुहुमा जा य भासा असच्चामोसा तहप्पगारं भासं असावज्ज जाव अभूयोवघाइयं अभिकंख भासं भासिज्जा 3 // ॥सू० 133 // से भिक्व वा (2) पुमं ग्रामंतेमाणे आमंतिए वा अपडिसुणेमाणे नो एवं वइज्जा-होलित्ति वा गोलित्ति वा वसुलेत्ति कुपवखेत्ति वा घडदासित्ति वा साणेत्ति वा तेणित्ति वा चारिएत्ति वा माइत्ति वा मुसावाइत्ति वा, एयाई तुमं ते जणगा वा, एयप्पगारं भासं सावज्जं सकिरियं जाव भूयोवघाइयं अभिकंख नो भासिज्जा 1 // से भिक्खू वा (2) पुमं यामतेमाणे ग्रामंतिए वा अप्पडिसुगोमाणे एवं वइज्जा-अमुगे इ वा पाउसोत्ति वा पाउसंतारोत्ति वा सावगेत्ति वा उवासगेत्ति वा धम्मिएत्ति धम्मपिएत्ति वा, एयपगारं भासं असावज्जं जाव अभिकंख भासिज्जा 2 // से भिक्खू वा (2) इत्थिं थामतेमाणे आमंतिए य अप्पडिसुणीमाणी नो एवं वइज्जा-होली इ वा गोलीति वा इत्थीगमेणं नेय वं 3 // से भिक्खू वा (2) इत्थिं ग्रामंतेमाणे आमंतिए य अप्पडिसुोमाणी एवं वइज्जा-पाउसोत्ति वा भइणित्ति वा भोइत्ति वा भगवइति वा साविगेति वा उवासिएत्ति वा धग्मिएत्ति वा धम्मप्पिएत्ति वा, एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव अभिकंख भासिज्जा 4 // ॥सू. 134 // से भिक्खू वा (2) नो एवं वइज्जा-नभोदेवित्ति वा गज्जदेवित्ति वा विज्जुदेवित्ति वा पवुट्ठदेवेत्ति वा निवुट्ठदेवेत्ति वा पडउ वा वासं मा वा पडउ, निष्फज्जउ वा सस्सं मा वा निप्फज्जउ, विभाउ वा रयणी मा वा विभाउ, उदेउ वा सूरिए मा वा उदेर, सो वा राया जयउ वा मा जयउ, नो एयप्पगारं भासं भासिज्जा पन्नवं 1 / से भिक्व वा (2) अंतलिक्खेत्ति वा गुज्माणुचरिएत्ति वा समुच्छिए वा निवइए वा पश्रो वइज्जा Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 16] ___[ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : प्रथमो विभागः घुटवलाहगेत्ति वा 2 / एयं खलु तस्स भिवखुस्स भिवखुणीए वा सामग्गियं जं सवठेहिं समिए सहिए सया जइज्जासि तिबेमि 3 ॥सू० 135 // : // इति प्रथम उद्देशकः // 2-1-4-1 // // अध्ययनं-४ उद्देशकः- 2 // से भिक्खू वा (2) जहा वेगझ्याई रूवाई पासिज्जा तहावि ताई नो एवं वइजा, तंजहा गंडी गंडीति वा कुट्टी कुट्ठीति वा जाव महुमेहुणीति वा हत्थच्छिन्नं हत्थच्छिन्नेत्ति वा एवं पायचिन्नेत्ति वा नकछिराणेइ वा कराणाछिन्नेइ वा उट्ठछिन्नेति वा जेयावन्ने तहप्पगारा एयप्पगाराहिं भासाहिं बूझ्या (2) कुप्पंति माणवा ते यावि तहप्पगाराहिं भासाहिं अभिकंख नो भासिज्जा 1 // से भिक्खू वा (2) जहा वेगइयाई रूवाई पासिजा तहावि ताई एवं वइजा तंजहाश्रोयंसी ोयंसित्ति वा, तेयंसी तेयंसीति वा,जसंसी जसंसीइ वा, वच्चंसी वच्चसोइ वा, अभिरुयंसी (2), पडिरूवंसी (2) पासाइयं (2), दरिसणिज्ज दरिसणीयत्तिवा, जे यावन्ने तहप्पगारा तहप्पगाराहिं भासाई बुझ्या 2 नो कुप्पंति माणंवा तेयावि तहप्पगारा एयप्पगाराहिं भासाहिं अभिकख भासिज्जा 2 // से भिक्खू वा (2) जहा वेगइयाई रुवाई पासिजा, तंजहा-वप्पाणि वा जाव गिहाणि वा, तहावि ताई नो एवं वइजा, तंजहा-सुक्कडे इ वा सुटुकडे इ वा साहुकडे इ वा कल्लाणे इ वा करणिज्जे इवा, एयप्पगारं भासं सावज्जं जाव नो भासिजा 3 // से भिक्खू वा (2) जहा वेगइयाइं स्वाइं पासिज्जा, संजा-वप्पाणि वा जाव गिहाणि वा तहावि ताई एवं वइजा, तंजहा-पारंमकड़े इवा, सावजबड़े इवा, पयत्तकड़े इ वा, पासाइयं पासाइए वा, दरिसणीय दरिमणीयंति वा, अभिरूवं त्यभिरुवंति-वा, पडिरूवं पडिरूवंति वा पमारं भासं असावज जार भासिजा 4 // RAam से भिक्खू (2) सण मा 64) उचक्खड़ियं पेहार, तहाविहं नो एवं वहा तंजहा, Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदाचाराङ्गसूत्रम् :: श्रुतस्कंध 2 अध्ययनं 4] [ 67 सुकडेत्ति वा सुळुकडे इ वा साहुकडे इ वा कल्लाणे इ वा करणिज्जे इ वा, एयप्पगारं भासं सावज्जं जाध नो भासिज्जा 1 // से भिक्खू वा (2), असणां वा (4) उववखडियं पेहाय एवं वइजा, तंजहा-प्रारंभकडेत्ति वा सावजकडेत्ति वा पयत्तकडे इ वा, भद्दयं भद्दति वा ऊसढं उसढे इ वा, रसियं (2), मणुन्नं (2), एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव भासिज्जा 2 // ॥सू. 137 // से भिक्खू वा भिक्खुणी वा मणुस्सं वा गोणं वा महिसं वा मिगं वा पसुवा पक्खिं वा सरीसि वा जलचरं वा से तं परिवूढकायं पेहाए नो एवं वइज्जा--थूले इ वा पमेइले इ वा वट्टे इ वा वझे इ वा पाइमे इ वा, एयप्पगारं भासं सावज्जं जाव नो भासिज्जा 1 // से भिवखू वा भिक्खुणी वा माणुस्सं वा जाव जलयरं वा सेत्तं परिवूटकायं पेहाए एवं वइज्जा--परिवूढकाएत्ति वा उवचियकाएत्ति वा थिरसंघयणेत्ति वा चियमंससोणिएत्ति वा बहुपडिपुन्नइंदिइए-त्ति वा, श्यप्पगारं भासं असावजं जाव भासिज्जा 2 // से भिवस्खू वा (2) विरूवरूवायो गायो पेहाए नो एवं वइज्जा, तंजहा---गायो दुज्मायोत्ति वा दम्मेत्ति वा गोरहत्ति वा वाहमत्ति वा रहजोग्गत्ति वा, एयप्पगारं भासं सावज्जं जाव नो भासिज्जा 3 // से भिखू वा (2) विरूवरूवायो गायो पेहाए एवं वइज्जा, तंजहा---जुवंगवित्ति वा घेणुत्ति वा रसवइत्ति वा हस्से इ वा महल्ले इ वा महव्वए इ वा संवहणित्ति वा, एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव अभिकख भासिज्जा 4 // से भिक्खू वा (2) तहेव गंतुमुज्जाणाई पव्वयाई वणाणि वा रुक्खा महल्ले पेहाए नो एवं वइज्जा, तंजहा---पासायजोग्गात्ति वा तोरणजोग्गाइ वा गिहजोगाइ वा फलिहजोग्गाइ वा अग्गलग्गिाइ वा नावाजोग्गाइ वा उदगजोग्गाइ वा दोणजोग्गाइ वा पीढ-चंगबेर-नंगलकुलिय-जंतलट्ठी-नाभि(लि)गंडीपासणजोग्गाइ वा सयणजाणउवस्सयजोगाई वा, एयप्पगारं भासं सावज्जं जाव नो भासिज्जा 5 // से भिक्खू वा (2) तहेव गंतुमुज्जाणाई Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 98] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः पव्ययाणि वणाणि य रुख महल्ला पेहाए एवं वइज्जा, तंजहा-जाइमंता इ वा दीहवट्टा इ वा महालया इ वा पयायसाला इ वा विडिमसाला इ वा पासाइया इ वा जाव पडिरूवाति वा एयप्पगारं भासं असावज्ज जाव अभिकख भासिज्जा 6 // से भिक्खू वा (2) बहुसंभूया वणफला पेहाए तहावि ते नो एवं वइज्जा, तंजहा—पक्का इ वा पायखज्जा इ वा, वेलोइया इ वा, टाला इवा, वेहिया इवा, एयप्पगारं भासं सावज्जं जाव नो भासिज्जा खा से भिक्खू वा (2) बहुसंभूया वणफला ग्रंबा पेहाए एवं वइज्जा, तंजहा-- मंथडा इ वा बहुनिवट्टिमफला इ वा बहुसंभूया इ वा भूयरुचित्ति वा, एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव भासिज्जा 8 // से बहुसंभूया योसही पहाए तहावि तायो न एवं वइज्जा, तंजहा-पका इ वा, नीलीया 3 वा, छवीइया इवा, लाइमा इ वा, भज्जिमा इ वा बहुखजा इ वा. एयप्पगारं भासं सावज्जं जाव नो भासिज्जा // से भिक्खू वा (2) बहुसंभूयायो योसहीयो पेहाए तहावि एवं वइज्जा, तंजहा–रूढा इवा, बहुसंभूया इ वा, थिरा इ वा, ऊसदा इवा, गन्भिया इवा, पसूया इ वा, ससारा इवा, एयप्पगारं भासं असावज्ज जाव भासिज्जा 10 // ॥सू. 138 // से भिक्खू वा (2) तहप्पगाराई सदाइं सुणिज्जा तहावि एयाइं नो एवं वइज्जा. तंजहा--सुसहोत्ति वा, दुसरेत्ति वा, एयप्पगारं भासं सावज्जं नो भासिज्जा 1 // से भिवखू वा (2) तहावि ताई एवं वइज्जा, तंजहा--सुसह सुसद्दित्ति वा दुसद्द दुसदित्ति वा एयप्पगारं असावज्जं जाव भासिज्जा, एवं स्वाइं किराहेत्ति वा 5, गंधाई सुरभि-गंधित्ति वा (2) रसाइं तित्ताणि वा (5) फासाइं कक्खडाणि वा (8) 2 // ॥सू. 131 / से भिवरखू वा (2) वंता कोहं च माणं च मायं च लोभं च अणुवीइ निट्ठाभासी निसग्मभासी अतुरियभासी विवेगभासी समियाए संजए भासं भासिज्जा 5 // एवं खलु तस्स भिवखुस्स भिक्खुणीए वा जाव सया जइज्जासि तिबेमि ॥सू० 140 // // इति द्वितीयोद्देशकः // 2-1-4-2 // // इति चतुर्थमध्ययनं // 2-1-4 // Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदाचाराङ्ग-सूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 5 ] [66 // 5 // वस्त्रैषणा-अध्ययनं-५ :: उद्देशकः-१॥ से भिक्खू वा (2) अभिकखिजा वत्थं एसित्तए, से जं पुण वत्थं जाणिजा, तं जहा जंगियं वा भंगियं वा साणियं वा पोत्तगं वा, खोमियं वा तूलकडं वा, तहप्पगारंवत्थं वा जे निग्गंथे तरुणे जुगवं बलवं अप्पायक थिरसंघयणे से एगंवत्थं धारिजा नो बीयं, जा निग्गंथि सा चत्तारिसंघाडीयो धारिजा, एगं दुहत्थवित्थारं दो तिहत्यवित्थाराश्रो एगं चउहत्थवित्थारं, तहप्पगारेहिं वत्थेहिं असंधिजमाणेहि, ग्रह पच्छा एगमेगं संसिविजा ॥सू० 141 // से भिक्खु वा (2) परं पद्धजोयणमेराए वत्थपडियाए नो अभिसंधारिज गमणाए ॥सू० १४२॥से भिक्खू वा (2) से जं पुण वत्थं जाणिजा, अस्सिं. पडियाए एगं साहम्मियं समुद्दिस्स पाणाई जहा पिंडेसणाए भाणियवं // एवं बहवे साहम्मिया एगं साहम्मिणिं बहवे साहम्मिणीयो बहवे समणमाहणा तहेव पुरिसंतरकडा जहा पिंडेसणाए / सू० 143 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण वत्थं जाणिजा, असंजए भिक्खुपडियाए कीयं वा धोयं वा रत्तं वा घट्ट वा मट्ठ वा संपधूमियं वा तहप्पगारं वत्थं पुरिसंतरकडं जाव नो पडिग्गाहिज्जा, अह पुण एवं जाणिजा, पुरिसंतरकडं जाव पडिगाहिजा.॥सू० 144 // से भिक्खू वा (2) से जाईपुण वत्थाई जाणिजा विरुवरूवाई महद्भणमुल्लाई, तंजहा-ग्राइणगाणि वा सहिणाणि वा सहिणकल्लाणाणि वा ग्रायाणि वा कायाणि वा खोमियाणि वा दुगुल्लाणि वा पट्टाणि वा मलयाणि वा पन्नुन्नाणि वा अंसुयाणि वा चीणंसुयाणि वा देसरागाणि वा अमिलाणि वागजफलाणि वा फालियाणि वा कोयवाणि वा कंबलगाणि वा पावराणि वा अन्जयराणि वा तहप्पगाराई वस्थाई महद्धण-मुल्लाई लाभे संते नो पडिगाहिजा 1 // से भिवखू वा (2) थाइराणपाउरणाणि वत्थाणि जाणिजा, तंजहा-उद्दाणि वा पेसाणि वा पेसलाणि वा किराहमिगाइणगाणि वा नीलमिगाईणगाणि वा गोरमि Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 100 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः गाईणगाणि कणगाणि वा कणगकताणि वा कणगपट्टाणि वा कणगखइयाणि वा कणगफुसियाणि वा वग्याणि वा विवग्घाणी वा (विगाणि वा) याभरणाणि वा याभरणविचित्ताणि वा, अन्नयराणि तहप्पगाराणि बाईणपाउर. णाणि वत्थाणि लाभे संते नो पडिग्गहिज्जा-२ ॥सू० 145 // इच्च्याई अायतणाई उवाइकम्म ग्रह भिक्खू जाणिज्जा चउहि पडिमाहिं वत्थं एसित्तए, तत्थ खलु इमा पढमा पडिमा, से भिखू वा (2) उद्देसिय, वत्थं जाइजा, तं जहा-जंगियं वा जाव तूलकडं वा, तहप्पगारं वत्थं सयं वा ण जाइजा, परो वा णं देज्जा, फासुयं एसणीयं लाभे संते पडिगाहिज्जा, पढमा पडिमा 1 / ग्रहावरा दुच्चा पडिमा से भिवखू वा (2) पेहाए वत्थं जाइज्जा गाहावइ वा जाव कम्मकरी वा से पुव्वामेव अालोइजा-याउसोत्ति वा 2 दाहिसि मे इत्तो अन्नयरं वत्थं ? तहप्परगारं वत्थं सयं वा णं जाइजा, परो वा देजा जाव फासुयं एसणीयं लाभे संते पडिग्गाहिज्जा, दुचा पडिमा 2 / ग्रहावरा तच्चा पडिमा से भिक्खू वा (2) से जं पुण वत्थं जाणिज्जा, तंजहा -अंतरिज्जं वा उत्तरिज्जं वा तहप्पगारंवत्थं सयं वा णं जाइजा जाव पडिगाहिजा, तच्चा पडिमा 3 / ग्रहावरा चउत्था पडिमा--से भिक्खू वा (2) उझियधम्मियं वत्थं जाइजा जं चन्ने बहवे समण-माहण अतिहि किवण वणीमगा नावखंति तहप्पगारं उभियधम्मियं वत्थं सयं वाणं जाइजा, परो वा से दिजा, फासुयं जाव पडिग्गाहिज्जा, चउत्था पडिमा 4 // इच्चेयाणं चउराहं पडिमाणं जहा पिंडेसणाए 1 // सिया गां एताए एसणाए एसमाणं परो वइजा-याउसंतो समणा ! इजाहि तुमं मासेण वा दसराएण वा पंचरागण वा सुते सुततरे वा तो ते वयं अन्नयरं वत्थं दाहामो, एयप्पगारं निग्योसं सुच्चा निसम्म से पुवामेव वालोइजा--ग्राउसोत्ति वा भइणि त्ति वा, नो खलु मे कप्पइ एयप्पगारं संगारं पडिसुणित्तए, अभिकंखसि मे दाउं इयाणिमेव दलयाहि, से सेवं वयंतं परो वइजा--पाउसंतो समणा ! अणुग Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदाचाराङ्ग-सूत्रम् / श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 5 ] [ 101 च्छाहि तो ते वयं अन्नयरं वत्थं दाहामो, से पुब्बामेव पालोइजा—ग्राउसोत्ति वा भइणि त्ति वा नो खलु मे कप्पइ संगारवयणे पडिसुणित्तए अभिकखसि मे दाउं इयाणिमेव दलयाहि, से सेवं वयंतं परो नेया वइज्जा थाउसोत्ति वा भइणित्ति वा ! बाहरेयं वत्थं समणस्स दाहामो, अवियाई वयं पच्छावि अप्पणो सयट्ठाए पाणाई (4) समारंभ समुद्दिस्स जाव चेइस्सामो, एयप्पगारं निग्यो / सुच्चा निसम्म तहप्पगारं वत्थं अफासुग्रं जाव नो पडिगाहिजा 2 // सिया णं परो नेता वइन्जा–पाउसोत्ति वा (2) थाहर एवं वत्थं सिणाणेण वा (4) जाव ग्रापंसित्ता वा पघंसित्ता वा समणस्स णं दाहामो, एयपगारं निग्योसं सुच्चा निसन से पुवामेव अालोइज्जा ग्राउसोत्ति वा भयणित्ति वा मा एयं तुमं वत्थं सिणाणेण वा जाव पसाहि वा, अभिकंखसि मे दातु, एमेव दलयाहि, से सेवं वयंतस्स परो सिणाणेण वा पघंसित्ता दलइज्जा तहप्पग्गारं वत्थं अफासुयं नो पडिगाहिज्जा 3 / से गां परो नेत्ता वइज्जा अाउसोत्ति वा भइणित्ति वा! बाहर एयं वत्थं सीयोदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा, उच्छोलेत्ता वा पहोलेत्ता वा समणस्स णं दाहामो, एयप्पगारं निग्धोसं तहेव नवरं मा एयं तुमं वत्थं सीयोदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेहि वा पहोलेहि वा, अभिकंखसि, सेसं तहेव जाव नो पडिगाहिज्जा 4 // से गां परो नेत्ता वत्थं निसिरिज्जा, से पुवामेव आलोइज्जा अाउसोत्ति वा भइणि त्ति वा ! बाहरेयं वत्थं कंदाणि वा जाव हरियाणि वा विसोहित्ता समणस्स णं दाहामो, एयप्पगारं वत्थं निग्धोसं तहेव, नवरं मा एयाणि तुमं कंदाणि वा जाव विसोहेहि, नो खलु मे कप्पइ एयप्पगारे वत्थे पडिगाहित्तए, से से वयंतस्स परो जाव विसोहित्ता दलइज्जा, तहप्परगारं वत्थं अफासुयं जाप नो पडिगाहिज्जा 5 // सिया से परो नेता वत्थं निसिरिज्जा, से पुवामेव वालोइज्जा—ग्राउसोत्ति वा भइणि त्ति वा ! तुमं चेव गां Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 102 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / प्रथमो विभागः संतियं वत्थं अंतोतेणं पडिलेहिज्जिस्सामि, केवली ब्रूया अायाणमेयंवत्थतेण बद्धे सिया कुडले वा गुणे वा हिरराणे वा सुवराणे वा मणी वा जाव रयणावली वा पाणे वा बीए वा हरिए वा, ग्रह भिक्खू णं पुरोवइष्टा जाव जं पुब्वामेव वत्थं अंतोतेण पडिलहिज्जा 6 // ॥सू. 146 / / से भिक्खू वा (2) से जं पुण वत्थं जाणिज्जा, सग्रंडं जाव ससंताणं तहप्पगारं वत्थं अफानुयं जाव नो पडिगाहिज्जा 11 से भिवस्खू वा (2) से जं पुण वत्थं जाणिज्जा, अप्पडं जाव संताणगं अनलं अथिरं अधुवं अधारणिज्ज रोइज्जं तं न रुचइ तह अफासुयं जाव नो पडिगाहिज्जा 2 // से भिक्खू वा (1) से जं पुणवत्थं जाणिज्जा, अप्पंडं जाव संताणगं अलं थिरं धुवं धारणिज्ज रोइज्जतं रुच्चइ, तहप्पगारंवत्थं फासुयं जाव पडिगाहिज्जा 3 / से भिक्खू वा (2) नो नवए मे वत्थेत्ति कटु नो बहुदेसिएण सिणाणेण वा जाव पघंसिजा // से भिक्खू वा (2) नो नवए मे वत्थेत्ति कटु नो बहुदेसिएण सिणाणेण वा तहेव सीयोदगविएडेण वा (2) जाव पहोइजा 5 // से भिक्खू वा (2) दुन्भिगंधे मे वत्थित्ति कटु नो बहुदेसएण सिणाणेण वा तहेव, बहुसीयोदगवियडेण वा उस्सिणोदगवियडेण वा जाव पहोइजा 6 // बालावयो।सू. 147 // से भिक्खू वा (2) अभिकखिज्ज वत्थं यायावित्तए वा पयावित्तए वा, तहप्पगारं वत्थं नो ग्रंणंतरहियाए पुढवीए जाव संताणाए यायाविज्ज वा पयाविज्ज वा (2) से भिक्खू वा (2) अभिकखेज्जा वत्थं यायावित्तए वा पयावित्तए वा, तहप्पगारं वत्थं थूणंसि वा गिहेलुगंसि वा उसुयालंसि वा कामजलंसि वा अन्नयरे तहप्पगारे अंतलिक्खजाए दुबद्धे दुन्निविखत्ते अणिकपे चलाचले नो यायाविज्ज वा नो पयाविज्ज वा 2 से भिक्खू वा (2) अभिकखेज्जा अायावित्तए वा (2) तहप्पगारं वत्थं कुकियंसि वा भित्तंसि वा सिलसि वा लेलु सि वा अन्नयरे वा तहपगारे अंतलिक्खजाए जाव नो ग्रायाविज्ज वा Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदाचारागसूत्रम् / श्रुनस्कंध 2 अध्ययनं 5 ] [ 103 पयाविज्ज वा 3 // से भिवग्व वा (2) वत्थं अभिकखेज्जा यायावित्तए वा पयावित्तए वा तहप्पगारं वत्थं खंधंसि वा मंचंसि वा मालंसि वा पासायसि वा हम्मियतलंसि वा अन्नयरे वा तहप्पगारे अंतलिखज्जाए जाव नो बायाविज्ज वा पयाविज्ज वा से तमायाए एगंतमवकमिज्जा (2), अहे झामर्थडिल्लंसि वा जाव अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिल्लंसि पडिलेहिय (2) पमज्जिय (2) तो संजयामेव वत्थं पायाविज्ज वापयाविज्ज वा (5) एयं खलु तस्स ज़ाव सया जइज्जासि त्ति बेमि 6 // सू० 148 // . ॥इति प्रथमोद्दे कः // 2-1-5-1 // .. // अध्ययन- 5 :: उद्देशकः-२ // से भिक्खू वा (2) अहेसणिज्जाई वत्थाई जाइज्जा ग्रहापरिग्गहियाई वत्थाई धारिज्जा नो धोइज्जा नो रएज्जा नो धोयरत्ताई वत्थाई धारिज्जा अपलिउंचमाणो गामंतरेसु श्रोमचेलिए, एयं खलु वत्थधारिस्स सामग्गिनं 1 // से भिक्खु वा गाहावइकुलं पविसिउकामे सव्वं चीवरमायाए गाहावइकुलं निक्खमिज्ज वा, पविसिज्ज वा, एवं बहिय विहारभूभिं वा वियारभूभिं वा गामाणुगामं वा दूइज्जिज्जा, 2 / ग्रह पुण एवं जाणिज्जा, तिब्बदेसियं वा वासं वासमाणं पेहाए जहापिडेसणाए नवरं सव्वं चीवरमायाए 3 / ॥सू० 141 // से एगइयो मुहुत्तगं (2) पाडिहारियं वत्थं जाइज्जा जाव एगाहेण वा दुयाहेण वा तियाहेण वा चउयाहेण वा पंचाहेण वा विप्पवसिय (2) उवागच्छिज्जा नो तह वत्थं अप्पणो गिरिहज्जा नो अन्नमन्नस्स दिज्जा, नो पामिच्चं कुज्जा, नो वत्थेण वत्थपरिणामं करिज्जा, नो परं उवसंकमित्ता एवं वइज्जा-याउसंतो समणा ! अभिकंखसि वत्थं धारित्तए वा परिहरित्तए वा ? थिरं वा संतं नो पलिच्छिदिय (2) परट्ठविज्जा, तहप्पगारं वत्थं ससंधियं वत्थं तस्स चेव निसिरिज्जा नो णं साइजिज्जा 1 // से एगइयो एयप्पगारं निग्घोसं सुच्चा निसम्म जे भयंतारो तहप्पगाराणि Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 104 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः वत्थाणि ससंधियाणि मुहुनगं (2) जाव एगाहेण वा (5) विष्पवसिय (2) उवागच्छंति, तहप्पगाराणि वत्थाणि नो अप्पणा गिराहंति नो अन्नमन्नस्स दलयंति तं चेव जाव नो साइज्जति, बहुवयणेण भाणियव्वं, से हंता ग्रहमवि मुहुत्तगं पाडिहारियं वत्थं जाइत्ता जाव एगाहेण वा (5) विप्पवसिय (2) उवागच्छिस्सामि, अवियाई एयं ममेव सिया, माइट्ठाणं संफासे नो एवं करिज्जा 2 ॥सू. 150 // से भिक्खू वा (2) नो वराणमंताई वत्थाई विवरणाई करिज्जा, विवराणाई न वराणमंताई करिज्जा, यन्नं वा वत्थं लभिस्सामि त्तिक टु नो अन्नमन्नस्स दिज्जा, नो पामिच्चं कुज्जा, नो वत्थेण क्थपरिणामं छज्जा, नो परं उवसंकमित्तु एवं वदेज्जा-याउसंतो समण ! समभिकखसि मे वत्थं धारित्तए वा परिहरित्तए वा ! थिरं वा संतं नो पलिछिदिय (2) परिविज्जा, जहा मेयं वत्थं पावगं परो मन्नइ, परं च णं अदत्तहारी पडिपहे पेहाए तस्स वत्थस्स नियाणाय नो तेसिं भीयो उम्मग्गेणं गच्छिज्जा, जाव अप्पुस्सुए, तो संजयामेव गामाणुगामं दूइजिन्जा 1 // से भिक्खू वा (2) गामाणुगामं दूइजमाणे अंतरा से विहं सिथा, से जं पुण विहं जाणिज्जा इमंसि खलु विहंसि बहवे ग्रामोसगा वत्थपडियाए संपिंडिया गच्छेजा, णो तेसिं भीयो उम्मग्गेणं गच्छेजा जाव गामागुगामं दूइज्जेज्जा 2 // से भिक्खू वा (2) दूइज्जमाणे अंतरा से ग्रामोसगा पडियागच्छेज्जा, ते णं ग्रामोसगा एवं वदेज्जा--ग्राउसंतो समणा ! बाहरेयं वत्थं देहि णिविखवाहि जहा रियाए णाणत्तं वत्थपडियाए 3 / एयं खलु जाव सपा जइज्जास्सि त्ति बेमि 4 ॥सू० 151 // // इति द्वितीयोद्देशकः / / 2-1-5-2 // // इति पंचममध्ययनम् // 2-1.5 // Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदाचाराङ्गसूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 6 ] [ 105 // 6: पात्रैषणा-अध्ययनं 6 : उद्देशकः 1 // से भिक्व वा (2) अभिकंखिज्जा पायं एसित्तए, से जं पुणा पादं जाणिज्जा, तंजहा–अलाउयपायं वा दारुपायं वा मट्टियापायं वा तहप्पगारं पाय जे निग्गंथे तरुणे जाव थिरसंघयणे से एगं पायं धारिज्जा नो बिईयं१॥ से भिक्खू वा (2) परं अद्धजोयणमेराए पापपडियाए नो अभिसंधारिजा गमणाए 2 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण पायं धरिज्जा अस्सिंपडियाए एगं साहम्मियं समुदिस्त पाणाई (4) जहा पिंडेसणाए चत्तारि बालावगा, पंचमे बहवे समणमाहणा पगणिय (2) तहेव 3 // से भिक्खू वा (2) अस्संजए भिक्खुपडियाए बहवे समणमाहणा वत्थेसणाऽऽलावो 4 // से भिक्खू वा (2) से जाई पुण पायाइं जाणिजा विरूवरूवाइं महद्घणमुल्लाई, तंजहा-अयपायाणि वा तउपायाणि वा तंबपायाणि वा सीसगपायाणि वा हिरमणपायाणि वा सुवगण पायाणि वा रीरियपायाणि वा हारपुडपायाणि वा मणिकायकंसपायाणि वा संखसिंगपायाणि वा दंतपायाणि वा चेलपायाणि वा सेलपायाणि वा चम्मपायाणि वा अन्नयराइ वा तहप्पगाराई विरूवरूवाई महघणमुल्लाई पायाइं अफासुयाइं जाव नो पडिगाहिजा 5 // 151 // से भिक्खू वा (2) से जाइं पुण पायाइं विरूवरूपाइं महवणवंधणाई तंजहा-अयबंधणाणि बाजार चम्मबंधणाणि वा, अन्नपराई तहप्पगाराइं महद्घणबंधणाई अफासुयाई जाव नो पडिगाहिज्जा 1 / इच्चेयाई वायत्तणाइं उवाइकम्म ग्रह भिक्खू जाणिज्जा चरहिं पडिमाहिं पायं एसित्तए, तत्थ खलु इमा पढमा पडिमा से भिक्खू वा (2) उद्दिसिय (2) पायं जाएजा, तंजहा-अलाउपाय वा 3 तहप्पगारं पायं सयं वा णं जाइजा जाव पडिगाहिज्जा। पढमा पडिमा 1 / ग्रहावरा दोचा पडिमा, से भिक्खू वा पेहाए पायं जाइज्जा, तंजहा–गाहावई वा कम्मकरी वा से पुत्वामेव पालोइज्जा अाउसोत्ति वा भइणीत्ति वा ? दाहिसि मे इत्तो अन्नयरं पादं तंजहा–लाउयपाय वा 3, तहप्पगारं पायं सयं वा जाव पडि. Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः गाहिज्जा, दुचा पडिमा 2 // ग्रहावरा तच्चा पडिमा, से भिक्खू वा (2) से जं पुण पायं जाणिज्जा संगइयं वा वेजइयंतियं वा तहप्पगारं पायं सयं वा जाव पडिगाहिज्जा, तच्चा पडिमा 3 / ग्रहावरा उत्था पडिमा-से भिक्खू वा (2) उझियधम्मियं जाएज्जा जावऽन्ने बहवे समगा जाव नावकखंति तहप्पगारं जाएज्जा जाव पडिगाहिज्जा, चउत्था पडिमा 4 / इच्चेइयाणं चउराहं पडिमाणं अन्नयरं पडिमं जहा पिंडेसणाए 2 / / से णं एयाए एसणाए एसमाणं पासित्ता परो वइज्जा, ग्राउसंतो समणा ! एज्जासि तुम मासेण वा जहा वत्थेसणाए, से णं परो नेता वदेज्जा,--ग्राउसोत्ति वा भइणीत्ति वा ? थाहारेयं पायं तिल्लेण वा घएण वा नवनीएण वा वसाए वा अभंगित्ता वा तहेव सिणाणादि तहेव सीयोदगाई कंदाई तहेव 3 // से णं परो नेत्ता वदेज्जा-अाउसंतो समणा ! मुहुत्तगं (2) जाव अच्छाहि ताव अम्हे असणं वा उपकरेंसु वा उवक्खडेंसु वा, तो ते वयं ग्राउसो ? सपाणं सभोयणं पडिग्गहं दाहामो, तुच्छए पडिग्गहे दिन्ने समणस्स नो सुट्ठ साहु भवइ, से पुवामेव पालोइज्जा--बाउसोत्ति वा भइणीत्ति वा ? नो खलु मे कप्पइ अाहाकम्मिए असणे वा (4) भुत्तए वा; मा उवकरेहि मा उबक्खडेहि, अभिकंखसि मे दाउं एमेव दलयाहि, से सेवं वयंतस्स परो असणं वा (4) उवकरिता उवक्खडित्ता सपाणं सभोयणं पडिग्गहगं दलइज्जा, तहप्पगारं पडिग्गहगं अफासुयं जाव नो पडिगाहिज्जा४॥ सिया से परो उवणित्ता पडिग्गहगं निसिरिज्जा, से पुवामेव आलोइज्जा ग्राउसोत्ति वा भइणीत्ति वा ? तुमं चेव णं संतियं पडिग्गहगं अंतोतेणं पडिलेहिस्सामि 2 / केवली ब्रूया अायाणमेयं, अंतो पडिग्गहगंसि पाणाणि वा बीयाणि वा हरियाणि वा श्रह भिक्खूणं पुब्बोवइट्टा एस पतिराणा जं पुवामेव पडिग्गहगं अंतोयंतेणं पडिलेहिज्जा, सभंडाई सव्वे आलावगा भाणियव्वा जहा वत्थेसणाए, नाणत्तं तिल्लेण वा घएण वा नवनीएण वा Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदाचारागसूत्रम् / / श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 6 ] [107 वसाए वा सिणाणादि जाव अनयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि पडिलेहिय (2) पमज्जिय (2) तो संजयामेव ग्रामज्जिज्जा 6 / एवं खलु जाव सया जएज्जा तिबेमि 7 ॥सू० 152 // // इति प्रथमोद्देशकः // 2-1-6-1 // // अध्ययनं-६ : उद्देशकः-२॥ से भिवखू वा (2) गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए पविठे समाणे पुवामेव पेहाए पडिग्गहगं अवहट्ट पाणे पमज्जिय रयं तो संजयामेव, गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए निक्खमिज्ज वा पविसिज्ज वा केवली ब्रूया, अायाणमेयं ? अंतो पडिग्गहगंसि पाणे वा बीए वा हरिए वा परियावज्जिज्जा, ग्रह भिक्खूणं पुव्वोवइट्ठा एस पतिराणा, जं पुवामेव पेहाए पडिग्गहं यवहट्ट पाणे पमज्जिय रयं, तो संजयामेव,गाहावइकुलं पिडवायपडियाए निक्खमिज्ज वा 2 ॥सू. 153 // से भिक्खू वा (2) जाव समाणे सिया से परो ग्राहट्ट अंतो पडिग्गहगंसि सीयोदगं परिभाइत्ता नीहट्ट दलज्जा , तहपगारं पडिग्गहगं परहत्यंसि वा परपायसि वा अफासुयं जाव नो पडिगाहिज्जा, से य ग्राहच्च पडिग्गहिए सिया खिप्पामेव उदगंसि साहरिजा, से पडिग्गहमायाए पाणं परिविज्जा, ससिणिद्धाए वा भूमिए नियमिजा 1 // से भिक्खू वा (2) उदउल्लं वा ससिणिद्धं वा पडिग्गहं नो श्रामजिज वा जाव पयाविज वा, अह पुण एवं जाणिजा, विगयोदए मे पडिग्गहए छिन्नसिणेहे तहप्पगारं पडिग्गहं तयो संजयामेव श्रामज्जिज वा जाव पयाविज वा 2 // से भिक्खू वा (2) गाहावाहकुलं, पविसिउकामे पडिग्गहमायाए गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए पविसिज वा निक्खमिज वा, एवं बहिया वियारभूमि विहारभूमि वा गामाणुगामं दूइजिजा, तिब्वदेसीयाए जहा बिझ्याए वत्थेसणाए नवरं इत्थ पडिग्गहे 3 / एयं खलु तस्स भिक्खुस्स भिक्खु Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 108 ] - [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः णीए वा सामग्गिय जं सवठेहिं सहिए सया जए जासि तिबेमि 4 // ॥सू. 154 // // इति द्वितीयोद्देशकः / / 2- 1.6-2 / / इति षष्ठमध्ययनम् // 2--1.-6 / / : // 7: अवग्रहप्रतिमा-अध्ययनं 7 :: उद्देशकः 1 // समणे भविस्सामि अणगारे यकिंचणे अपुरे अपसू परदत्तभोइ पावं कम्मं नो करिस्सामिोत्ते समुट्ठाए सव्वं भंते ? अदिन्नादाणं पञ्चक्खामि, से अणुपविसित्ता गामं वा जाव रायहाणिं वा नेव सयं अदिन्नं गिरिहज्जा नेवऽन्नेहिं अदिन्नं गिराहाविजा अदिन्नं गिराहतेवि अन्ने न समणुजाणिजा, जेहिंवि सद्धिं संपव्वइए तेसिपि जाइं छत्तगं वा जाव चम्मछेयणगं वा तेसिं पुवामेव उग्गहं अणणुन्नविय अपडिलेहिय (2) अपमजिय (2) नो उग्गिरिहजा वा परिगिरिहज वा, तेसिं पुत्वामेव उग्गहं जाइजा अणुन्नविय पडिलेहिय पमजिय तो संजयामेव उग्गिरिहज वा परिगिरिहज वा ॥सू० 155 // से यागंतारेसु वा (4) अणुवीइउग्गहं जाइजा, जे तत्थ इसरे जे तत्थसमहिए ते उग्गहं अणुन्नविजा-कामं खलु पाउसो० ? ग्रहालंदं यहापरिन्नायं वसामो जाव अाउसो ? जाव ग्राउसंतस्स उग्गहे जाव साहम्मियाए ताव उग्गहं उग्गिरिहस्सामो, तेण परं विहरिस्सामो 1 // से किं पुण तत्थोग्गहंसि एवोग्गहियंसि जे तत्थ साहम्मिया संभोइया समगुन्ना उवागच्छिज्जा जे तेण सयमेसित्तए असणे वा (4) तेण ते साहम्मिया (3) उवनिमंतिज्जा, नो चेव गां परवडियाए योगिझिय (2) उवनिमंतिजा 2 ॥सू० 156 // से पागंतारेसु वा (4) जाव से किं पुण तत्योग्गहंसि एवोग्गहियंसि जे तत्थ साहम्मिया अन्नसंभोइया समगुन्ना उवागच्छिजा जे तेण सयमेसित्तए पीढे वा फलए वा सिन्जा वा संथारए वा तेण ते साहम्मिए अन्नसंभोइए समणुन्ने उवनिमंतिजा नो चेव णं परवडियाए भोगिझिय उवनिमंतिज्जा 1 // से आगंतारेसु वा (4) जाव से किं पुण Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदाचाराङ्गसूत्रम् / श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 7 ] [109 तत्युग्गहंसि एवोग्गहियंसि जे तत्थ गाहावइण वा गाहावइपुत्ताण वा सूई वा पिप्पलए वा कराणसोहणए वा नहच्छेयणए वा तं अप्पणो एगस्स यहाए पाडिहारियं जाइज्जा नो अन्नमन्नल्स दिज्ज वा अणुपइज्ज वा, सयंकराणज्जतिकटु 2 / से तमायाए तत्थ गच्छिज्जा (2) पुवामेव उत्ताणए हत्थे कटु भूमीए वा ठवित्ता इमं खलु इमं खलु त्ति बालोइज्जा, नो चेव णं सयं पाणिणा परपाणिसि पच्चप्पिणिज्जा ३सू. 157 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण उग्गहं जाणिज्जा अणंतरहियाए पुढवीए जाव संताणए तहप्पगारं उग्गह नो उगिरिहज्ज वा पगिरिहज वा 1 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण उग्गहं जाणिज्जा, थूणंसि वा (4) तहप्पगारे अंतलिक्खजाए दुबद्धे जाव नो उगिरिहज्ज वा (2) २॥से भिक्खू वा (2) से जं पुण उग्गहं जाणिज्जा, कुलियंसि वा (4) जाव नो उगिरिहज्ज वा (2) 3 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण उग्गहं जाणिज्जा खंधसि वा अन्नयरे वा तहप्पगारे जाव नो उग्गहं उगिरिहज्ज वा (2) 4 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण उग्गहं जाणिज्जा ससागारियं सागणियं सउदयं सइत्थिं सक्खुड्डपसुभत्तपाणं नो पन्नस्स निक्खमणपवेसे जाव धम्माणुयोगचिंताए, सेवं नच्चा तहप्पगारे उवस्सए ससागारिए जाव सक्खुड्डपसुभत्तपाणे नो उवग्गहं उगिरिहज्ज वा (2) 5 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण उग्गहं जाणिज्जा गाहावइकुलस्स मज्झमज्झेणं गंतु पंथे पडिबद्धं वा नो पन्नस्स जाव सेवं नच्चा तहप्पगारे उवस्सए नो उग्गहं उगिरिहज्ज वा (2) 6 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण उग्गहं जाणिज्जा, इह खलु गाहावइ वा जाव कम्मकरीयो वा अन्नमन्नं अक्कोसंति वा तहेव तिल्लादि सिणाणादि सीयोदगवियडादि निगिणाइ वा जहा सिज्जाए अालावगा, नवरं उग्गहवत्तव्वया 7 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण उग्गहं जाणिज्जा, पाइन्नसंलिक्खे नो पन्नस्स जाव चिंताए तहप्पग.रे उबस्सए नो उग्गहं उगिरिहज्ज वा (2) Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 110 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः 8 // एयं खलु जाव सया जएज्जासि त्ति बेमि १॥॥सू० 158 // || इति प्रथमोद्देशकः // 2-1-7-1 // // अध्ययनं-७ : उद्देशकः-२॥ से श्रागंतारेसु वा (4) अणुवीइ उग्गहं जाइज्जा, जे तत्थ इसरे समाहिट्ठाए ते उग्गहं अणुन्नविज्जा काम खलु पाउसो ! श्रहालंदं अहापरिन्नायं वसामो जाव थाउसो ! जाव अाउसंतस्स उग्गहे जाव साह म्मिश्राए ताव उग्गहं उग्गिरिहस्सामो तेण परं विहरिस्सामो // से किं पुण तत्थ उग्गहंसि एवोग्गहियंसि ? जे तत्थ समणाण वा माहणाण वा दंडए वा छत्तए वा जाव चम्मछेदणए वा तं नो अंतोहितो बाहिं नीणिज्जा बहियायो वा नो अंतो पविसिज्जा, सुत्तं वा नो पडिबोहिज्जा, नो तेसिं किंचिवि अप्पत्तियं पडिणीयं करिज्जा // सू० 151 // से भिक्खू वा (2) अभिकंखिजा अंबवणं उवागच्छित्तए जे तत्थ इसरे जे तत्थ समाहिट्ठाए, ते उग्गहं अणुजाणाविजा-कामं खलु जाव विहरिस्सामो, से किं पुण तत्थोग्गहंसि एवोग्गहियंसि ग्रह भिवखू इच्छिज्जा यं भुत्तए वा से जं पुण अंचं जाणिजा सग्रंडं ससंताणं तहप्पगारं ग्रंवं अफासुयं जाव नो पडिगाहिज्जा 1 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण ग्रंवं जाणिजा अप्पंडं अप्पसंताणगं अतिरिच्छछिन्नं वोच्छिन्नं अफासुयं जाव नो पडिगाहिजा 2 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण अंबं जाणिज्जा, अप्पंड वा जाव संताणगं तिरिच्छछिन्नं छिन्नं फासुयं पडिगाहिजा 3 // से भिक्खू वा (2) अभिकंखिजा, अंबभित्तगं वा अंबपेसियं वा अंबचोयगं वा अंबसालगं वा अंबडालगं वा भुत्तए वा पायए वा, से जं पुण जाणिज्जा अंबभित्तगं वा (5) सयंडं ससंताणं अफासुयं जाव नो पडिगाहिजा // से भिक्खू वा (2) से जं पुण जाणिज्जा अंबं वा अंबभित्तगं वा अप्पंडं जाव Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदाचाराङ्ग-सूत्रम् : श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 7 ] [ 111 संताणगं अतिरिच्छछिन वा अवोच्छिन्न वा अफासुयं जाव नो पडिगाहिज्ज 5 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण जाणिजा अंबडालगं वा अप्पंडं वा (5) तिरिच्छच्छिन्नं वुच्छिन्नं फासुयं जाव पडिगाहिजा // से भिक्खू वा (2) अभिकंखिज्जा उच्छवणं उबागच्छित्तर, जे तत्थ इसरे जाव उग्गहंसि 7 // ग्रह भिक्खू इच्छिज्जा उच्छु भुत्तए वा पायए वा, से जं उच्छुजाणिजा सडं जाव नो पडिगाहिजा अतिरिच्छच्छिन्नं तहेव, तिरिच्छछिन्नेऽवि तहेवः॥ से भिवरख वा (2) से जं पुण अभिकंखिजा यंतरुच्छुयं वा उच्छुगंडियं वा उच्छुचोयगं वा उच्छुसालगं वा उच्छुडालगं वा भुत्तए वा पायए वा है। से जं पुण जाणिजा अंतरुच्छुयं वा जाव डालगंवा सग्रंडं जाव नो पडिगाहिजा १०॥से भिखू वा से जं पुण जाणिजा अंतरुच्छुयं वा जाव डालगंवा अप्पंडं वा जाव नो पडिगाहिज्जा, अतिरिच्छछिन्नं // तहेव तिरिच्छछिन्नं पडिगाहिज्जा 11 // से भिक्खू वा (2) अभिकंखिजा, ल्हसणवणं उवागच्छित्तए तहेव तिनिवि पालावगा, नवरं ल्हसुणं 12 // से भिक्खू वा (2) अभिकखिजा लहसुणं वा ल्हसुणकंदं वा ल्हसुणंचोयगं वा ल्हसुणनालगं वा भुत्तए वा (2) से जं पुण जाणिजा लसुणं वा जाव लसुणवीयं वा समंडं जाव नो पडिगाहिजा 13 // एवं अतिरिच्छच्छिन्ने वि तिरिच्छछिन्ने जाव पडिगाहिजा ॥सू०१६०॥ से भिक्खू वा (2) पागंतारेसु वा (4) जावोग्गहियंसि जे तत्थ गाहावइण वा गाहावइपुत्ताण वा इच्चेयाई प्रायत्तणाई उवाइक्कम्म, ग्रह भिक्खू जाणिज्जा, इमाहिं सत्तहिं पडिमाहिं उग्गहं उग्गिरिहत्तए, तत्थ खलु इमा पढमा पडिमा-से आगंतारेसु वा (4) अणुवीइ उग्गहं जाइजा जाव विहरिस्सामो पढमा पडिमा 1 / ग्रहावरा दुचा पडिमा जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ-अहं च खलु अन्नेसिं भिक्खूणं यहाए उग्गहं उग्गिरिहस्सामि, अराणेसि भिक्खूणं उग्गहे उग्गहिए उवल्लिसामि, दुच्चा पडिमा 2 / ग्रहावरा तच्चा पडिमा-जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ-अहं च खलु अन्नेसिं Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 112 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः भिक्खूण अट्ठाए उग्गहं उग्गिरिहस्सामि, अन्नेसिं च उग्गहे उग्गहिए नो उवल्लिस्सामि, तच्चा पडिमा 3 / अहावरा चउत्था पडिमा-जस्स णं भिवखुस्स एवं भवइ-ग्रहं च खलु अन्नेसि भिक्खूणं अट्ठाए नो उग्गहं उग्गिरिहस्सामि, अन्नेसि च उग्गहे उग्गहिए उवल्लिस्सामि, चउत्था पडिमा 4 / ग्रहावरा पंचमा पडिमा-जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ-अहं च खलु अप्पणो अट्ठाए उग्गहं च उगिरिहस्सामि नो दुराहं नो तिराहं नो चउराहं, नो पंचराहं, पंचमा पडिमा 5 / हावरा छट्ठा पडिमा से भिक्खू वा (2) जस्स एव उग्गहे उवल्लिइजा, जे तत्थ अहासमन्नागए तं जहा-इकडे वा जाव पलाले वा तस्स लाभे संवसिज्जा, तस्स अलाभे उक्कुडुबो वा नेसजियो वा विहरिज्जा, छट्ठा पडिमा 6 / ग्रहावरा सत्तमा पडिमा-जे भिक्खू वा (2) अहासंथडमेव उग्गहं जाइज्जा, तंजहा--पुढविसिलं वा कट्ठसिलं वा ग्रहासंथडमेव तस्स लाभे संते संवसिज्जा, तस्स अलाभे उक्कुडुबो वा नेसजियो वा विहरिजा, सत्तमा पडिमा 7 / इच्चेयासिं सत्तरहं पडिमाणं अन्नयरं जहा पिंडेसणाए ॥सू. 161 // सुयं मे पाउसंतेणं भगवया एवमक्खायं-इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं पंचविहे उग्गहे पन्नत्ते, तंजहादेविंदउग्गहे 1, रायउग्गहे 2, गाहावइउग्गहे. 3, सागारियउग्गहे 4, साहम्मियउग्गहे 5, एवं खलु तस्स भिक्खुस्स भिक्खुणी ए वा सामग्गियं जं सव्वठेहिं सहिए सया जएजासि तिबेमि, उग्गहपडिमा सम्मत्ता।सू० 162 / / // इति द्वितीय उद्देशकः // 2-1-7-2 // // इति सप्तममध्ययनम् // 2-1-7 // मूलतः षाडशमध्ययनम् // 16 // // इति प्रथमा चूला // श्रु० २-चू० 1 // Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदाचाराङ्गसूत्रम् : श्रुतस्कंधः 2 चू० 2 अध्ययनं 1 ] [113 // 2H सप्तसप्तिका-द्वितीया चूला // // 1: स्थान-अध्ययनं 1 // से भिक्खू वा (2) अभिकंखेजा ठाणं ठाइत्तए, से अणुपविसिज्जा गाम वा जाव रायहाणिं वा, से जं पुण ठाणं जाणिज्जा—सअंडं जाव समकडासंताणयं तं तहप्पगारं ठाणं अफासुयं अणेसणिज्जं लाभे संते नो पडिगाहिज्जा, एवं सिज्जागमेण नेयवं जाव उदयपसूयाई ति 1 // इच्चेयाइं श्रायतणाई उवाइकम्म (2) ग्रह भिक्खू इच्छिज्जा चाहिं पडिमाहिं ठाणं ठाइत्तए, तत्थिमा पढमा पडिमा॥ अचित्तं खलु उवसज्जेज्जा अवलंबिज्जा कारण विप्परिकम्माइ (म्मिज्जा) सवियारं ठाणं ठाइस्सामि, पढमा पडिमा / ग्रहावरा दुच्चा पडिमा अचित्तं खलु उवसज्जेज्जा अवलंबिज्जा कारण विप्परिकम्माइ नो सवियारं ठाणं ठाइस्सामित्ति, दुचा पडिमा। ग्रहावरा तच्चा पडिमा- अचित्तं खलु उवसज्जेज्जा अवलंबिज्जा नो कारण विपरिकम्माइ नो सवियारं ठाणं ठाइस्सामित्ति, तचा पडिमा। अहावरा चउत्था पडिमा अचित्तं खलु उवसज्जेज्जा अवलंबिज्जा नो कारण नो परकमाइ नो सवियारं ठाणां ठाइस्सामित्ति वोसट्टकाए वोस?केसमंसुलोमनहे संनिरुद्धं वा ठाणं ठाइस्मामित्ति, चउत्था पडिमा / इच्चेयासिं चउराह पडिमाण जाव पग्गहियतरायं विहरिज्जा, नो किंचिवि वइज्जा 2 / एयं खलु तस्स भिक्खुस्स जाव जइज्जासि तिबेमि 3 ॥सू० 163 // ठाणसत्तिकयं सम्मत्तं॥ // इति प्रथममध्ययनम् // 2 श्रु०-२ चू०-१.अ. आदितः८ // Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 114 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः // निषीधिका-अध्ययनं 2 // से भिक्खू वा (2) अभिकंखिज्जा निसीहियं फासुयं गमणाए, से पुण निसीहियं जाणिज्जा—सअंडं सपाणं जाव मक्कडसंताणयं तहप्पगारं अफासुयं लाभे संते नो चेइस्सामि 1 // से भिक्खू वा (2) अभिकखेज्जा निसीहियं गमणाए, से पुण निसीहियं अप्पपाणं अप्पबीयं जाव सताणयं तहप्पगारं निसीहियं फासुयं चेइस्सामि, एवं सिज्जागमेणं नेयव्वं जाव उदयप्पसूयाई 2 // जे तत्थ दुवग्गा तिवग्गा चउवग्गा पंचवग्गा वा अभिसंधारिति निसीहियं गमणाए ते नो यन्नमन्नस्स कायं ग्रालिंगिज वा विलिंगिज वा चुबिज वा दंतेहिं वा नहेहिं वा अचिंदिज वा वुच्छिदिज वा 3 / एयं खलु तस्स भिक्खुस्स भिक्खुणीए वा सामग्गियं जं सवठेहिं सहिए समिए सया जएजा, सेयमिणं मन्निजासि तिबेमि 4 ॥सू. 164 // निसीहियामत्तिकयं।। // इति द्वितीयमध्ययनम् / / 2-2-2.9 // // 3 :: उच्चारप्रश्रवणा-अध्ययनं 3 // से भिक्खू वा (2) उच्चारपासवणकिरियाए उबाहिजमाणे सयस्स पायपुंछणस्स असइए तो पच्छा साहम्मियं जाइज्जा 1 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण थंडिल्लं जाणिजा सग्रंडं सपाणां जाव मक्कडासत्ताणयं तहप्पगारंसिथंडिलंसि नो उच्चारपासवणां वोसिरिजा 2 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण थंडिल्लं जाणिजा, अप्पपाणं जाव संताणयं तहप्पगारंसि थंडिलंसि उच्चारपासवणं वोसिरिजा 3 / से भिक्खू वा (2) से जं थंडिल्ले जाणिज्जा, अस्सिंपडियाए एगं साहम्मियं समुस्मि वा, अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिया समुहिस्स, अस्सिंपडियाए एगं साहम्मिणिं समुहिस्स, अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिणीयो समुद्दिम्स, अस्सिपडियाए बहवे समणमाहणवणीमगा पगणिय (2) समुहिस्स पाणाई (4) जाव उद्दोसियं चेएइ Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदाचाराङ्ग-सूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 2 चू० 2 अध्ययनं 3 ] [ 115 तहप्पगारं थंडिल्लं पुरिसंतरकडं जाव बहियानीहडं वा अनीहडं वा अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि उच्चारपासवणं नो वोसिरिजा 4 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण थंडिलं जाणिजा, बहवे समणमाहणकिवणवणीमग-अतिही-समुद्दिस्स पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताई जाव उद्देसियं चेएइ, तहप्पगारं थंडेलं पुरिसंतरगडं जाव बहियायनीहडं अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिल्लंसि नो उच्चारपासवणं वोसिरिज्जा, अह पुण एवं जाणिज्जा--अपुरिसंतरगडं जाव बहिया नीहडं अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थडिलंसि उच्चारपासवणं वोसिरिजा ५॥से भिक्खू वा (2) से जं पुण थंडिलं जाणिज्जा, अस्सिंपडियाए कयं वा कारियं वा पामिच्चियं वा छन्नं वा घट्ट वा मठं वा लित्तं वा संमटुं वा संपधूवियं वा अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि नो उच्चारपासवां वोसिरिजा 6 // से भिखू वा (2) से जं पुण थंडिलं जाणेजा, इह खलु गाहावइ वा गाहावइपुत्ता वा कंदाणि वा जाव हरियाणि वा अंतरायो वा बाहिं नीहरंति बहियायो वा अंतो माहरंति अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि नो उच्चारपासवणं वोसिरिजा 7 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण थंडिलं जाणेजा खधंसि वा पीढंसि वा मंचंसि वा मालंसि वा (हम्मियतलंसि वा अट्टालंसि वा) अट्टांसि वा पासायंसि वा अन्नयरंसि वा थंडिलंसि नो उच्चारपासवणं वोसिरिजा 8 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण थंडिलं जाणिज्जा, अणंतरहियाए पुढवीए मसीणिद्धाए पुढवीए ससरक्खाए पुढवीए मट्टियाए मकडाए (मट्टियाकम्मकडाए) चित्तमंताए सिलाए चित्तमंताए लेलुयाए कोलावासंसि वा दास्यसि वा जीवपइट्ठियंसि वा जाव मकडासंताणयंसि वा अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि नो उच्चारपासवणं वोसिरिजा १॥॥सू० 165 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण थंडिलं जाणेजा-इह खलु गाहावई वा गाहावइपुत्ता वा कंदाणि वा जाव बीयाणि वा परिसाडिंसु वा परिसाडिंति वा परिसाडिस्संति वा Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 116 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि नो उच्चारपासवणं वोसिरिज्जा / से भिक्खू वा (2) से जं पुण जाणिज्जा 1 // इह खलु गाहावई वा गाहावइपुत्ता वा सालीणि वा वीहीणि वा मुग्गाणि वा मासाणि वा कुलत्थाणि वा जवाणि वा जवजवाणि वा पइरिंसु वा पइरिति वा पइरिस्सति वा अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसेि थंडिलंसि नो उच्चारपासवणं वोसिरिज्जा 2 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण थंडिलं जाणिज्जा, ग्रामोयाणि वा घासाणि वा भिलुयाणि वा विज्जुलयाणि वा खाणुयाणि वा कडयाणि वा पगडाणि वा दरीणि वा पदुग्गाणि वा समाणि वा 2 अन्नयरसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि नो उच्चारपासवणं वोसिरिज्जा 3 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण थंडिल्लं जाणिज्जा माणुसरंधणाणि वा महिसकर. णाणि वा वसहकरणाणि वा अस्सकरणाणि का कुक्कुडकरणाणि वा मकडकरणाणि वा हयकरणाणि वा लावयकरणानि वा वट्टयकरणाणि तित्तिरकरणाणि वा कवोयकरणाणि वा कविंजलकरणाणि वा अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि नो उच्चारपासवणं वोसिरिज्जा 4 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण थंडिलं जाणेज्जा वेहाणसट्ठाणेसु वा गिद्धपट्टठाणेसु वा तरुपडणट्ठाणेसु वा मेरुपडणठाणेसु वा विसभिक्खणयहाणेसु वा अगणिपडणट्ठाणेसु वा अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि नो उच्चारपासवणं वोसिरिज्जा 5 // से भिक्खू वा (2) से जं पुणं थंडिलं जाणिज्जा, बारामाणि वा उज्जाणाणि वा वणाणि वा वणसंडाणि वा देवकुलाणि वा सभाणि वा पवाणि वा अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि वा नो उच्चारपासवणं वोसिरिज्जा 6 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण थंडिलं जाणिज्जा, अट्टालयाणि वा चरियाणि वा दाराणि वा गोपुराणि वा अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलसि नो उच्चारपासवणं वोसिरिजा 7 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण थंडिलं जाणेजा, तिगाणि Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदाचाराङ्गसूत्रम् / श्रुतस्कंध 2 चू० 2 अध्ययनं 3 ] [ 117 वा चउकाणि वा चचराणि वा चउम्मुहाणि वा अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि नो उच्चारपासवणं वोसिरिजा 8 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण थंडिलं जाणेजा इंगालदाहेसु खारदाहेसु वा मडयदाहेसु वा मडयथूभियासु वा मडयचेइएसु वा अनयरंसि वा तहप्पगारंसि वा थंडिलंसि नो उच्चारपासवणं वोसिरिजा 1 / / से भिक्खू वा (2) से जं पुण थंडिलं जाणेजा, नइयायतणेसु वा पंकाययणेसु वा अोघाययणेसु वा सेयणवहंसि वा अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि नो उच्चारपासवणं वोसरिजा 10 // से भिक्खू वा से जं पुर्ण जाणेज्जा नवियासु वा मट्टियखाणियासु नवियासु गोप्पहेलियासु वा गवाणीसु वा खाणी वा अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंांडेलांसे नो उच्चारपासवणं वोसेरिजा, 11 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण थंडिलं जाणिज्जा, डागवच्चंसि वा सागवच्चंसि वा मूलगवच्चंसि वा हत्थंकरवच्वंसे वा अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि नो उच्चारपासवणं वोसिरिज्जा 12 // से भिक्खू वा (2) से जं पुण थंडिलं जाणिजा, असणवणंसि वा सणवणंसि वा धायइवणंसि वा केयइवणंसि वा अंबवणांसि वा असोगवगांसि वा नागवांसि वा पुन्नागवणंसि वा चुल्लगवणांसि वा अन्नयरेसु तहप्पगारेसु पतोवेएसु वा पुष्फोवेएसु वा फलोवेएसु वा बीथोवेएसु वा हरियोवेएसु वा नो उच्चारपासवणं वोसिरिजा 13 / ॥सू० 166 // से भिक्खू वा(२) सयपायवं वा परपायवं वा गहाय से तमायाए एगंतमवक्कमे अणावायंसि असंलोयंसि अष्षपाणंसि जाव मक्कडासंताणयंसि यहारामंसि वा उवस्सयंसि तयो संजयामेव उच्चारपासवणं वोसिरिज्जा, से तमायाए एगंतमवकमे अणावाहंसि जार संताणयंसि अहारामंसि वा झामर्थंडिल्लंसि वा अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिल्लंसि अचित्तंसि तो संजयामेव उच्चारपासवणं वोसिरिजा, एयं खलु तस्स जाव सया जइजासि ॥सू. 167 // तिबेमि // उच्चारपासवणसत्तिकयो सम्मत्तो। // इति तृतीयमध्ययनम् // 2-2-3-10 // Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1- 1 [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः // 4 : शब्द-अध्ययनं 4 // से भिक्खू वा (2) मुइंगसदाणि वा नंदीसदाणि वा झल्लरीसदणि वा अन्नयराणि वा तहप्पगाराणि विख्वरूवाइं सदाई वितताई कन्नसोयणपडियाए नो अभिसंधारिजा गमगाए 1 // से भिक्खू वा (2) ग्रहावेगझ्याई सहाई सुगोइ, तं-वीणामहाणि वा विपंचीसदाणि वा पिप्पी(सद्धी)सगलबाणिवा तूणयसहाणि वा वणवीणि यसदाणि वा तुबवीणियसहाणि वा ढेकुण महाई यन्नयराई तहप्पगाराई विख्वरूवाई सद्दाई वितताई करागासोयपडियाए नो अभिसंधारिजा गमणाए 2 // से भिक्ग्यू वा (2) यहादेगइयाइं महाई सुगोइ, तंजहा-तालसद्दाणि वा कंसतालसहाणि वा लत्तियसदाणि वा गोधियसदाणि वा किरिकिरियासदाणि वा यन्नवराणि वा तहप्पगाराणि विरूवरूवाई सदाणि कराणसोयपडियाए नो अभिसंधारेजा गमणाए 3 // से भिक्खू वा (2) ग्रहावेगइयाई सद्दाणि सुगोइ तंजह.-संखसदाणि वा वेणुसद्दागिा वा वंमसहाणि या खरमुहिमहाणि वा परिपिरियासदाणि वा अन्नयराई तहप्पगाराई विरूवरूवाई महाई झुमिराई कन्नसायपडियाए नो अभिसंधारेजा गमणाए 4 ॥सू० 168 // से भिक्ग्यू वा (2) ग्रहावेगइयाइं सहाई सुणेइ तंजहा- बप्पाणि वा फलिहाणि वा जाव मराणि वा सागराणि वा सरसरपंतियाणि वा अन्नयराई वा तहप्पगाराई विख्वरूवाइं सहाई कगणसोयपडियाए नो अभिसंधारिजा गमणाए १॥से भिक्खू वा (2) ग्रहावेगइयाइं सदाइं सुणोई तंजहा-कच्छाणि वा माणि वा गहणाणि या वणाणि वा रणदुग्गाणि पव्वयाणि वा पव्वयदुगाणिं वा यन्नयराई वा तहप्पगाराई विरूवरूवाई सदाई सो य पडियाए नो अभिसंधारिजा गमणाए / से भिक्खू वा (2) ग्रहावेगइयाई सद्दाइं सुणेइ, तंजहा-गामाणि वा नगराणि वा निगमाणि वा रायहाणाणि वा यासम Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदाचाराङ्गसूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 2 चू० 2 अध्ययनं 3 ] [116 पट्टणसंनिवेसाणि वा अन्नयराइं तहप्पगाराई सद्दाई नो अभिधारेजा गमणाए 3 // से भिक्खू वा (2) अहावेगइयाई सदाई सुणेइ, तंजहा-बारामाणि वा उजाणाणि वा वणाणि वा वणसंडाणि वा देवकुलाणि वा सभाणि वा पवाणि वा अन्नयराइं तहप्पगाराई सदाइं नो अभिसंधारेजा गमणाए // से भिक्खू वा (2) ग्रहावेगइयाइं सहाई सुोइ, तंजहा-अट्टाणि वा अट्टालयाणि वा चरियाणि वा दाराणि वा गोपुराणि वा अन्नयराई तहप्प. गाराई सदाइं नो अभिसंधारिजा गमगाए 5 // से भिक्खू वा (2) ग्रहावेगझ्याइ सदाइं सुणेइ, तंजहा-तियाणि वा चउक्काणि वा चच्चराणि वा चउम्मुहागण वा अन्नयराइं तहप्पगाराई सदाई नो अभिसंधारिजा गमणाए 6 // से भिक्खू वा (2) ब्रह्मवेगइयाइं सदाई सुोड, तंजहा-महिसकरणट्ठाणाणि वा वसमकरणट्ठाणाणि वा अस्सकरणट्ठाणाणि वा जाव कविजलकरणट्टाणाणि वा अन्नयराई तह पगाराई नो अभिसंधारिजा गमणाए 7 // से भिक्खू वा (2) यहा वगइयाई सदाई सुणेइ तंजहा-महिसजुद्धाणि वा जाव कविंजलजुद्धाणि वा अन्नयराई तहप्पगाराई सदाइं नो अभिसंधारिजा गमणाए 8 // से भिवखू वा (2) ग्रहावेगड्याई सदाइं सुगाइ तंजहा-पूवहियठाणाणि वा हयजहियठाणाणि वा गयजूहियठाणाणि वा यन्नयराइं तहप्पगाराई नो अभिसंधारिजा गमणाए 1 ॥सू. 169 // से भिक्खू वा (2) जाव सुणेइ, तंजहा--अक्खाइयठाणाणि वा माणुम्माणियट्ठागाणि वा महताऽऽहयनट्ट-गीय-वाइय-तंती-तलताल-तुडिय-पडुप्पवाइयट्टाणाणि वा अन्नयराई वा तहप्पगाराई सदाइं नो अभिसंधारेजा गमगाए / से भिवरखू वा (2) जाव सुणेइ, तंजहा—कलहाणि वा डिंबाणि वा डमराणि वा दोरजाणि / वरजाणि वा विरुद्धरजाणि यन्नवराई वा तहप्पगाराई सदाई नो अभिसंधारेजा गमणाए 2 // से भिक्खू वा (2) जाव सुणेइ, खुड्डियं दारियं परिभूत्तमंडियं अलंकियं निवुज्भमाणि पेहाए एग वा पुरिसं वहाए नीणिज. Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 120 ] . .. [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः माणं पेहाए अन्नयराइं वा तहप्पगाराइं नो अभिसंधारिजा गमणाए 3 // से भिक्खू वा (2) अन्नयराइं विरूवख्वाइं महासवाई एवं जाणेज्जा तंजहा--बहुसगडाणि वा बहुरहाणि वा बहुमिलक्वृणि वा बहुपच्चंताणि वा अन्नयराइं वा तहप्पगाराई विरूवरूबाई महासवाई कन्नसोयपडियाए नो अभिसंधारिजा गमणाए 4 / से भिक्व वा (2) अन्नयराइं विरूवरूवाइं महुस्सवाइं एवं जाणिजा, तंजहा--इत्थीणि वा पुरिसाणि वा थेराणि वा डहराणि वा मज्झिमाणि वा श्राभरणविभूसियाणि वागायंताणि वा वायंताणि वा नच्चं. ताणि वा हसंताणि वा रमंताणि वा मोहंताणि वा विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं परिभुजंताणि वा परिभायंताणि वा विछड्डियमाणाणि वा विगोवयमाणाणि वा अन्नयराइं वा तहप्पगाराई विरूवरूवाई महुस्सवाई कन्नसोयपडियाए नो अभिसंधारेजा गमणाए / से भिक्खू वा (2) नो इहलोइएहिं सहहिं नो परलोइएहिं सहहिं नो सुएहिं सहोहिं नो असुएहिं सोहिं नो दिठेहिं सदहिं नो अदिठेहिं सहोहिं नो कंतेहिं सोहि सजिजा नो गिझिजा नो मुज्झिज्जा नो अमोवजिज्जा 6 / एवं खलु तस्स जाव जएजासि त्ति बेमि 7 ॥सू. 170 / / सद्दसत्तिक्कयो॥ // इति चतुथमध्ययनम् // 2-2-4-11 / / // 5: रूप-अध्ययनं 5 // से भिनल वा (2) ग्रहावेगइयाई रूवाइं पासइ, तंजहा-गंथिमाणि वा वेदिमाणि वा पूरिमाणि वा संघाइमाणि वा कट्टफम्माणि वा पोत्थकम्माणि वा वित्तकम्माणि वा मणिकम्माणि वा दंतकम्माणि वा (मालकम्माणि वा) पत्तछिजकम्माणि वा विविहाणि वा वेढिमाई अन्नयराइं तहप्पगाराई विस्वरूवाई चक्खुदंसणपडियाए नो अभिसंधारिज गमणाए, एवं नायव्वं जहा सहपडिमा सव्वा वाइत्तवज्जा रूवपडिमावि ॥सू० 171 // पंचमं सत्तिक्कयं // // इति पचममध्ययमम् // 2-2-5-12 / / . Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदाचाराङ्ग-सूत्रम् : श्रुतस्कंधः 2 चू० 2 अध्ययनं 6 ] [ 121 // 6: परक्रिया-अध्ययनं 6 // परकिरियं अज्झत्थियं संसेसियं नो तं सायए नो तं नियमे, सिया से परो पाए ग्रामज्जिज्ज वा पमज्जिज्ज वा नो तं सायए नो तं नियमे 1 / से सिया परो पायाई संवाहिज्ज वा पलिमदिज्ज वा नो तं सायए नो तं नियमे 2 / से सिया परो पायाई कुसिज्ज वा रइज्ज वा नो तं सायए नो तं नियमे 3 / से सिया परो पायाइं तिल्लेण वा घएण वा वसाए वा मक्खिज्ज वा अभिंगिज्ज वा नो तं सायए (2) 4 / से सिया परो पायाइं लुद्रेण वा कक्केण वा चुन्नेण वा वराणेण वा उल्लोढिज्ज वा उव्वलिज्ज वा नो तं सायए (2) 5 // से सिया परो पायाइं सीयोदगवियडेण वा 2 उच्छोलिज्ज वा पहोलिज्ज वा नो तं सायए (2) 6 / से सिया परो पायाइं अन्नयरेण विलेवणजाएण प्रालिंपिज्ज वा विलिंपिज्ज वा नो तं सायए (2) 7 से सिया परो पायाइं अन्नयरेण धूवणजाएण धूविज्ज वा पधूविज्ज वा नो तं सायए (2) 8) से सिया परो पायायो प्राणुयं वा कंटयं वा नीहरिज वा विसोहिज वा नो तं सायए (2) 1 ।से सिया परो पायायो पूयं वा सोणियं वा नाहरिज्ज वा विसोहिज्ज वा नो तं सायए (2) 10 से सिया परो कार्य श्रामज्जेज्ज वा पमज्जिज्ज वा नो तं सायए नोतं नियमे ११॥से सिया परो कायं लोटेण वा संवाहिज वा पलिमदिज वा नो तं सायए (2) 12 / से सिया परो कायं तिल्लेण वा घएण वा वसाए वा मक्खिज वा अभंगिज वा नो तं सायए (2) 13 // से सिया परो कायं लुढेण वा कक्केण वा चुराणेण वा वराणेण वा उल्लोढिज वा उव्वलिज वा नो तं सायए (2) 14 // से सिया परो कायं सीयोदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलिज वा पधोविज वा नो तं सायए (2) 15 / से सिया परो कायं अन्नयरेण विलेवणजाएण प्रालिंपिज वा विलिंपिज वा नो तं सायए (2) Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 122 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः 16 / से सिया परो कार्य अन्नयरेण धूवणजाएण धूविज वा पविज वा नो तं सायए (2) 17 / से सिया परो कार्यसि वणं ग्रामजिज वा एमजिज वा नो तं सायए (2) से सिया परो कार्यसि वणं संवाहिज वा पलिमहिज्ज वा नो तं सायए (2) 18 / से सिया परो कायंसि वणं तिल्लेण वा घएण वा वसाए वा मक्खिज वा अभंगिज वा नो तं सायए (2) 11 / से सिया परो कार्यसि वणं लुद्धेण वा (4) उल्लोटिज वा उव्वलेज वा नो तं सायए (2) 20 / से सिया परो कायंसि वणं सीयोदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलिज वा पधोविज वा नो तं सायए 21 / से सिया परो कायंसि वणं वा गंडं वा अरई वा पुलयं वा भगंदलं वा अन्नयरेणं सत्थजाएणं अछिदिज वा विच्छिदिज वा नो तं सायए (2) 22 / से सिया परो अन्नयरेणं सत्थजाएण याच्छिदित्ता वा विच्छिंदित्ता वा पूयं वा सोणियं वा नीहरिज वा विसोहिज वा नो तं मायए (2) 23 / से सिया परो कायंसि गंडं वा अरइं वा पुलइयं वा भगंदलं वा यामजिज वा पमजिज वा नो तं सायए (2) 24 / से सिया परो कार्यसि गंडं वा (4) संवाहिज वा पलिमदिज वा नो तं सायए (2) 25 / से सिया परो कार्यसि गंडं वा (4) तिल्लेण वा (3) मविखज वा अभिगिज्ज वा नो तं सायए (2) 26 / से सिया परो गंडं वा (4) लुइँण वा (4) उल्लो. दिज्ज वा उध्वलिज्ज वा नो तं सायए (2) 27. से सिया परो गंडं वा (4) सीयोदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलिज या पधोविज वा नो तं सायए (2) 281 से सिया परो कार्यसि गंडं या (4) अन्नयरेणं सत्थजाएणं अच्छिदिज वा विच्छिदिज वा अन्नयरेणं सत्थजाएगणं अच्छिंदित्ता वा विछिदित्ता वा पूयं वा सोणियं वा नीहरिज वा विसोहिज वा नो तं सायए (2) 21 / से सिया परो कार्यसि सेयं वा जल्लं वा नीहरिज वा विसोहिज वा नो तं मायए (2) 30 से Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदाचाराङ्गसूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 2 चू० 3 अध्ययनं 6 ] [ 123 सिया परो अच्छिमलं वा कराणमलं वा दंतमलं वा नहमलं वा नीहरिज वा विसोहिज वा नो तं सांयए (2) 31 / से सिया परो दीहाई वालाई दीहाई वा रोमाइं दीहाइंभमुहाई दीहाई कवखरोमाई दीहाइं वत्थिरोमाई कप्पिज्ज वा संठविज्ज वा नो तं सायए (2) 32 / से सिया परो सीसायो लिक्खं वा जूयं वा नीहरिज्ज वा विसोहिज्ज वा नो तं सायए (2) 33 / से सिया परो ग्रंकसि वा पलियंकसि वा तुयट्टावित्ता पायाइं श्रामज्जिज्ज वा पमज्जिज्ज वा, एवं हिटिमो गमो पायाइणं भाणियव्वो (2) 34 / से सिया परो अंकसि वा पलियंकंसि वा तुयट्टावित्ता हारं वा अद्धहारं वा उरत्थं वा गेवेयं वा मउडं वा पालं वा सुवन्नसुत्तं वा ग्राविहिज्ज वा पिणहिज्ज वा नो तं सायए (2) 35 // से सिया परो पारामंसि वा उज्जाणंसि वा नीहरित्ता वा पविसित्ता वा पायाइं ग्रामज्जिज्ज वा पमज्जिज्ज वा नो तं सायए (2) 36 / एवं नेयव्वा अन्नमन्नकिरियावि 37 ॥सू. 172 // से सिया परो सुद्धेणं वइबलेण वा तेइच्छं प्राउट्टे, से सिया परो असुद्धेणं वइबलेणां तेइच्छं प्राउट्टे 1 // से सिया परो गिलाणस्स सचित्ताणि वा कंदाणि वा मूलाणि वा तयाणि वा हरियाणि वा खणित्तु कढिनु वा कड्डावित्तु वा तेइच्छं ग्राउट्टाविज्ज नो तं साइए (2) 2 / कडवेयणा पाणभूयजीवसत्ता वेयणं वेइंति 2 / एवं खलु तस्स भिक्खुस्स भिक्खुणीए वा सामग्गियं जं सवठेहिं सहिए समिए सया जए सेयमिणं मनिज्जासि 3 // ॥सू० 173 // तिबेमि // छट्ठयो सत्तिक्कयो॥ // इति षष्ठमध्ययनम् // 2--2.-6--13 / / Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 124 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः // 7 : अन्योन्यक्रिया-अध्ययनं 7 // से भिक्खू वा (2) अन्नमन्नकिरियं अज्झत्थियं संसेइयं नो तं सायए (2) / से अन्नमन्नं पाए ग्रामजिज वा पमजिज वा नो तं साइए (2) / सेसं तं चेव, एयं खलु जाव जइजासि तिबेमि ॥सू०१७॥ // इति सप्तममध्ययनम् // श्रु०२. चू०२-अ०७ मलतः 23 // // इति द्वितीया चूला / / 2-2 // // तृतीय चूलिका-भावना अध्ययनं 1 // तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पंचहत्थुत्तरे यावि हुत्था, तंजहा-हत्युत्तराई चुए, चइत्ता गभं ववकते, हत्थुत्तराहिं गभायो गम्भं साहरिए, हत्थुत्तराहि जाए, हत्थुत्तराहिं सव्वयो सम्वत्ताए मुंडे भवित्ता अगारायो अणगारियं पव्वइए, हत्थुत्तराहिँ कसिणे पडिपुन्ने श्रब्वाघाए निरावरणे अणते अणुत्तरे केवलवरनाणदंसणे समुप्पन्ने, साइणा भगवं परिनिव्वुए ॥सू. 174 / / समणे भगवं महावीरे इमाए प्रोसिप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए वीइवकताए, सुसमाए समाए वीइवताए, सुसम-दुस्समाए समाए वीइवताए, दूसमसुलमाए समाए बहु विइक्कताए, पनहत्तरीए वासेहिं मासेहिं य श्रद्धनवमेहिं सेसेहिं जे से गिम्हाणं चउत्थे मासे अट्ठमे पक्खे अासाढसुद्धे तस्स णं यासाढसुद्धस्स छट्टीपक्खेणं हत्युत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं महाविजयसिद्धत्थं पुप्फुत्तरवरपुंडरीयदिसासोवत्थियवद्ध-- माणायो महाविमाणायो वीसं सागरोवमाई श्राउये पालयित्ता, अाउवखएणं ठिइकएणं भवक्खएणं चुए चइत्ता, इह खलु जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे दाहिणड्ढभरहे दाहिणमाहणकुंडपुरसंनिवेसंमि उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगोत्तस्स देवाणंदाए माहणीए जालंधरस्स गुत्ताए सीडब्भवभूएणं अप्पाणेणं कुच्छिसि गम्भं वक्कते 1 / समणे भगवं महावीरे तिन्नांणोवगए Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदाचाराङ्गसूत्रम् / / श्रुतस्कंधः 2 चू० 3 अध्ययनं 1 ] __ [ 125 यावि हुत्था, चइस्लामित्ति जाणइ चुएमित्ति जाणइ चयमाणे न याणेइ, सुहुमे णं से काले पन्नते 2 / तयो णं समणे भगवं महावीरे हियाणुकंपएणं (अणुकंपएणं) देवेणं जीयमेयंतिकटु जे से वासाणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे यासोयबहुले तस्स aaN ासोयबहुलस्स तेरसीपक्खेगां हत्युत्तराहिं नखतेगां जोगमुवागएगां बासीहिं राइदिएहिं वइक्कतेहिं तेसीइमस्स राइंदियस्स परियाए वट्टमाणे दाहिणमाहणकुडपुरसंनिवसायो उत्तरखत्तियकुंडपुरसंनिवेसंसि नायागां खत्तियाणां सिद्धत्थस्स खत्तियस्स कामवगुत्तस्स तितलाए खत्तियाणीए वासिट्ठमगुताए असुभाणां पुग्गलागां याहारं करित्ता सुभागां पुग्गलाण पक्खेवं करित्ता कुच्छिसि गभं साहरइ, जे. वि य से तिसलाए खत्तियाणीए कुच्छिसि गम्भे तंपि य दाहिणमाहणकुडपुरसंनिवेसंसि उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगोत्तस्स देवानंदए माहणीए जालंधरायणगुत्ताए कुच्छिंसि गर्भ साहरइ 3 / समणे भगवं महावीरे तिन्नाणेवगए यावि होत्था-साहरिजिस्सामित्ति जाणइ साहरिजमाणे न याणइ साहरिएमित्ति जाणइ समणाउसो 4 / तेणं कालेणं तेणं समएणं तिसलाए खत्तियाणीए ग्रहऽनया कयाइ नवराहं मासाणं बहुपडिपुन्नाणं अट्ठमाणराइंदियाणं वीइक्क ताणं जे से गिम्हाणं पढमे मासे दुच्चे पवखे चित्तसुद्धे तस्स गां चित्तसुद्धस्स तेरसीपक्खेगां हत्थुतराहिं नक्वत्तेणं जोगोरगाएणं-समणं भगवं महावीरं अरोग्गा अरोग्गं पसूया 5 / जराणां राई तिसला खत्तियाणी समणां भगवं महावीरं यरोया अरोयं पसूया, तराणां राई भवणवइवाणमंतरजोइसियविमाणवासिदेवेहिं देवीहिं य उवयंतेहिं उप्पयंतेहिं संपर्यतेहि य एगे महं दिव्वे देवुजोए देवसनिवाए देवकहक्कहए उप्पिंजलगभूए यावि हुत्था 6 / जराणां रयणि तिसला खत्तियाणी समणं भगवं महावीरं अरोया अरोयं पसूया तराणं रयणिं वहवे देवा य देवीयो य एगं महं अमयवासं च 1 गंधवासं च 2 चुन्नवासं Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 126 / [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : प्रथमो विभागः च 3 पुप्फवासं च 4 हिरन्नवासं च 5 रयणवासं च 6 वामिसु 7) जरागा रयणिं तिसला खत्तियाणी समणं भगवं महावीरं यरोया अरोयं पसूया, तगणं रयणि भवणवइ-वाणमंतरजोइसियविमाणवासिणो देवा य देवीयो य समणस्त भगवयो महावीरस्स सूइकम्माई तित्थयराभिसेयं च करिंसु 8/ जयो णं पभिइ भगवं महावीरे तिसलाए खत्तियागीए कुच्छिसि गन्भं ग्राग(हुए तयो णं पभिइ तं कुलं विपुलण हिरगोणं सुवन्नेणं धणे धन्नेगां माणिक्केणं मुत्तिएणं संखमिलप्पदालेगा ग्रइव (2) परिवड्डइ / त्यो गां समस्त भगवयो महावीरस्स अम्मापियरो एयम जागिता निबत्तदशाहमि वुवतंलि मुइभूयंसि विपुलं असणपाणखाइमसाइमं उबक्खडाविति (2) मित्तनाइयणसंबंधिवग्गं उवनिमंतंति उवनिमंतित्ता बहवे समगामाहण-किवण-वणीमगाहिं भिच्छुडगपंडरगाइण विच्छड्डति विग्गोविंति विस्थाणिति दायारेसु दाणं, पजभाइति विच्छड्डित्ता विग्गोवित्ता विम्माणित्ता दायारेसु णं दायं पजभाइत्ता मित्तनाइसयणसंबंधिवग्गं भुजाविति मित्तनाइम्पय. मयणासंबंधिवग्गं भुजावित्ता मित्तनाइसयमसंबंधिवगेण इमम्यारूवं नामधिज्जंकारविति-जयो म पभिइ इमे कुमारे तिमलाए खत्तियाणीए कुच्छिमि गम्भे ग्राहए तणो गां पभिइ इमं कुलं विपुलेगां हिररागोगां मंखमिलप्प बालेगां अतीव (2) परिवड्डइ ता होउ गां कुमारे वद्रमाणे 10 / तयो गां समगणे भगवं महावीरे पंचधाइ-परिवुडे, तंजहा- वीरधाइए ? मजणधाइए 2 मंडणधाइए 3 खेलावणधाइए ? ग्रंकवाइए 5, अंकायो यंकं साहरिजमायो रम्मे मणिकुट्टिमतले गिरिकंदरसमुल्लीोविव चंपयपायवे ग्रहाणुपुबीए संबड्डइ 11 / नयो णं समणे भगवं महावीरे विनायपरिणयमित्ते विणियत्तबालभावे अप्पुसुयाइं उरालाई माणुस्मगाई पंचलवखणाई कामभोगाई सदफरिसरसरुवगंधाई परियारेमागो एवं च णं विहरइ 12 // सू. 176 // समण भगवं महावीरे कासवगुत्ते तस्स गां इमे तिन्नि Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 127 श्रीमदाचाराङ्गसूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 2 चू० 3 अध्ययनं 1 ] नामधिज्जा एवमहिज्जंति, तंजहा—यम्मापिउसंति बद्धमाणे 1 सहसंमुइए समणे 2, भीमं भयभेरवं उरालं अवेलयं परीसह–सहतिकट्टु देवेहि से नामं कयं समणे भगवं महावीरे 3-1 समणस्स ग भगवयो महावीरस्स पिया कासवगुत्तेगां तस्स गां तिन्नि नामधिजा एवमाहिज्जति तंजहा-सिद्धत्थे इ वा, सिज्जंसे इ वा, जसंसे इ वा, 2 / समणस्स णं भगवयो महावीरस्स अम्मा वासिट्ठस्स गुत्ता तीसं णं तिन्नि नामधिजा एवमाहिज्जंति तंजहातिसलाइ वा, विदहदिन्ना इ वा, पियकारिणी इ वा 3 / समणस्स णं भगवयो महावीरस्स पित्तियए, सुपासे कासवगुत्तेणं / / समणस्स णं भगवयो महावीरस्स जिठे भाया नंदिवद्धगो कासवगुत्तेगां 5 / समणस्स गां भगवयो महावीरस्म जेट्टा भइगी सुदंसणा कासवगुत्तेणं 6 / समणरस गां भगवयो महावीरस्स भजा जसोथा कोडिन्नागत्तेगां 7 / समणस्स गां भगवयो महावीरस्स धूया कासवगोनेगां, तीसे गां दो नामधिजा एवमाहिजंति-अणुजा इ वा, पियदंगणा इ वा 8 / समणस्स गां भगवयो महावीरस्स नत्तुडू कोसिया गुत्तेगां, तीसे गां दो नामधिजा अवमाहिज्जति तंजहा-सेवइ इ वा, जसवइ इ वा 1 ॥सू. 177|| समणस्स गां भगवयो महावीरस्स अम्मापियरो पासायच्चिजा समणोवासगा यावि हुत्था, ते गां बहुइं वासाई मममोबासगपरियागं पालइना छराहं जीवनिकायागां सारवखणनिमित्तं बालोइत्ता निंदित्ता गरिहित्ता पडिक्कमित्ता अहारिहं उत्तरगुणपायच्छिताई पडिवजित्ता कुसमंथारगं दुरूहिना भत्तं पञ्चक्खायंति (2) अपच्छिमाए मारणंतियाए संलहणारीए अमियसरीरा कालमासे कालं किच्चा तं सरीरं विषजहिता यच्चुए कप्पे देवत्ताए उववन्ना, तयो णं याउक्खएणं भवक्खएणं रितिक्खएगां चुए चइत्ता महाविदेह वासे चरमेणं उस्साणेगां मिन्झिस्संति युझिस्मंति मुचिस्संति परिनिव्वाइस्मंति सम्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ॥सू. 178 // तेगां कालेगां (2) ममणे भगवं महावीरे नाए Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 128 ] श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः नायपुत्ते नायकुलनिव्वत्ते विदेहे विदेहदिन्ने विदेहजच्चे विदेहसूमाले तीसं वासाई विदेहंसित्ति हेत्ति)कटटु अगारमज्झे वसित्ता अम्मापिऊहिं कालगहि देवलोगमणुपत्तेहिं संमत्तपइन्ने चिच्चा हिरन्न, चिच्चा सुवन्नं, चिच्चा बलं, चिचा वाहणां, चिच्चा धणकणगरयण-संतसारसावइज्जं विच्छड्डित्ता विग्गोवित्ता विस्ताणित्ता दायारेसु णां दाइत्ता परिभाइत्ता संवच्छरं दलइत्ता जे से हेमंताणं पढमे मासे पढमे पक्खे मग्गसिरवहुले तस्स गां मग्गसिरबहुलस्स दसमीपक्खेणं हत्थुत्तराहिं नक्खत्तएणं जोगोवगएणं अभिनिक्खमणाभिप्याए यावि हुत्था 1 / संवच्छरेण होहिइ अभिनिवखमणां तु जिणवरिंदस्स / तो श्रत्थसंपयाणां पवत्तइ पुव्वसूरायो // 1 // एगा हिरनकोडी अठेव अणूणगा सयसहस्सा / सूरोदयमाइयं दिज्जइ जा पायरासुत्ति // 2 // तिन्नेव य कोडिसया अट्ठासीइं च हुति कोडीयो / असिइं च सयसहस्सा एवं संवच्छरे दिन्नं // 3 // वेसमणकुडधारी देवा लोगंतिया महिड्डीया / बोहिंति य तित्थयरं पन्नरससु कम्मभूमीसु // 4 // बंभंमि य कम्पमी बोधवा कराहराइणो मज्झे ! लोगंतिया विमाणा अट्टसु वत्था असंखिजा // 5 // एए देवनिकाया भगवं बोहिति जिणवरं वीरं / सम्वजगज्जीवहियं अरिहं / तित्थं पवत्ते.हे // 6 // 2 / तयो गां समणस्त भगवयो महावीरस्स. अभिनिवखमणाभिप्पायं जाणित्ता भवणवइवाणमंतरजोइसियविमाणवासिणो देवा य देवीयो य सएहिं (2) स्वेहि, सएहिं (2) नेवत्थेहि, सएहिं (2) चिंधेहिं सविडीए सव्वजुइए सव्दबलसमुदएणं, सयाई (2) जाणविमाणाई दुरूहंति सयाई (2), जाणविमाणाई दुरुहित्ता ग्रहाबायराई पुग्गलाई परि. साडंति (2), ग्रहासुहुमाई पुग्गलाई परियाई ति (2), उड्ड उप्पयंति उड्ड उप्पइत्ता ताए उकिट्ठाए सिग्घाए चवलाए तुरियाए दिव्वाए देवगइए अहेगां ग्रोवयमाणा (2), तिरिएणं असंखिजाई दीवसमुद्दाई वीइक्कममाणा (2), जेणेव जंबुद्दीवे दीवे तेणेव उवागच्छति (2), जेणेव उत्तरखत्तियकुडपुरसं Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदाचाराङ्ग-सूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 2 चू० 3 अध्ययनं 1 (24) ] [ 126 निवेसे तेणेव उवागच्छंति (2) जेणेव उत्तरखत्तियकुडपुरसंनिवेसस्स उत्तरपुरच्छिमे दिसिभाए तेणेव झत्ति वेगेण ग्रोवइया 3 / तो णं सक्के देविंदे देवराया सणियं (2) जाणविमाणं पट्ठवेति सणियं (2) जाणविमाणं पट्टवेत्ता सणियं (2) जाणविमाणायो पच्चोरुहइ (2) सणियं (2) एगंतमवक्कमइ एगंतमवकमित्ता महयावेउबिएणं समुग्घाएगांसमोहणइ (2) एगं महं नाणामणिकणगरयणभत्तिचित्तं सुभं चारु कंतरूवं देवच्छंदयं विउव्वइ 4 / तस्स णं देवच्छंदयस्स बहुमझदेसभाए एगं महं सपायपीटं नाणामणिकणयरयणभत्तिचित्तं सुभं चारु कंतरूवं सीहासणां विउव्वइ (2) जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ (2) समयां भगवं महावीरं तिक्खुत्तो थायाहिणां पयाहियां करेइ (2) समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ (2) समणं भगवं महावीरं गहाय जेणेव देवच्छंदए तेणेव उवागच्छइ 5 / सणियं (2) पुरत्थाभिमुहं सीहासणे णिसीयावेइ सणियं (2) निसीयावित्ता सयपागसहस्सपागेहिं तिल्लेहिं अब्भगेइ (2) गंधकासाइएहिं उल्लोलेइ (2) सुद्धोदएण मजावेइ (2) जरस aaN मुल्लं सयसहस्सेगां तिपडोलतित्तिएगां साहिएणं सीतेण गोसीसरत्त-चंदणेगां अणुलिंपइ (2) इसिं निस्सासवाययोज्झ वरनयरपट्टणुग्गयं कुसलनरपसंसिपं अस्सलालापेलवं छेयारियकणगखइयंतकम्मं हंसलक्खगां पट्टजुयलं नियंसावेइ (2) हारं श्रद्धहारं उरत्थं नेवत्थं एगावलिं पालंबसुत्तं पट्टमउडरयणमालाउ प्राविधावेइ श्राविंधावित्ता गंथिमवेढिमपूरिमसंघाइमेणं मल्लेगां कप्परुक्खमिव समलंकरेइ (2) ता दुच्चंपि महया वेउब्वियसमुग्धाएगां समोहणइ (2) एगं महं चंदप्पहं सिबियं सहस्तवाहणियं विउव्वति / तंजहा-ईहामिग-उसभ-तुरग-नर-मकरविहग-वानर-कुंजर--रुरु-सरभ--चमर--सद्द ल-सीह-वणलय भत्ति-चित्त-लयविजाहरमिहुण-जुयल-जंत-जोग-जुत्तं, अच्चीसहस्समालिणीयं सुनिरूवियं मिसिमिसिंतरूवग--सहस्स-कलियं इसि भिसमागां भिभिसमागां चक्खुल्लो Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 130 ] __ [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः यणलेसं मुत्ताहलमुत्ताजालंतरोवियं तवणीय-पवरलंबूस-पलबंत--मुत्तदाम हारद्धहारभूसण-समोणयं अहियपिच्छणिज्जं पउमलयभत्तिचित्तं असोगलयभत्तिचित्तं कुंदलयभत्तिचित्तं नाणालयभत्तिविरइयं सुभं चारु कंतरूवं नागामणिपंचवन्न-घंटा-पडायपडिमंडियग्गसिहरं पासाइयं दरिसणिज्जं सुरूवं, 7 / सीया उवणीया जिणवरस्स-जरमरण--विप्पमुक्कस्स / अोसत्तमल्लदामा जलथलयदिव्वकुसुमहिं // 1 // सिबियाइ मझयारे दिव्वं वररयणरूवचिंचइयं / / सीहासणां महरिहं सपायपीढं जिणवरस्स // 2 // बालइयमालमउडो भासुरबुदी वराभरणधारी / खोमियवत्थनियत्थो जस्स य मुल्लं सयसहस्सं // 3 // छठेण उ भत्तेणं अज्भवसाणेण सुदरेण जिणो / लेसाहि विसुज्झतो पारुहई उत्तमं सीयं // 4 // सीहासणे निविट्ठो सकीसाणा य दोहि पासेहिं / वीयंति चामराहिं मणिरयणविचित्त-दंडाहिं // 5 // पुदि उक्खित्ता माणुसेहिं साहटु रोमकूवेहिं / पच्छा वहंति देवा सुरअसुरा गरुलनागिंदा // 6 // पुरयो सुरा वहंती असुरा पुण दाहिणंमि पासंमि / अवरे वहति गरुला नागा पुण उत्तरे पासे // 7 // वणसंडं व कुसुमियं पउमसरो वा जहा सरयकाले / सोहइ कुसुमभरेगां इय गगणयलं सुरगणेहिं // 8 // सिद्धत्थवां व जहा कणयारवां व चंपयवां वा / सोहइ कुसुमभरेणं इय गगणयले सुरगणेहिं // 1 // वरपडहभेरिझल्लरि-संखसय-सहस्सिएहिं तूरेहिं / गयणयले धरणियले तूरनिनायो परमरम्मो // 10 // Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदाचाराङ्ग-सूत्रम् " श्रुतस्कंधः 2 चू० 3 अध्ययनं 1 (24)] [131 ततविततं घणझुसिरं श्राउज्जं चउविहं बहुविहीयं / वाइति तत्थ देवा बहूहिं पानगसएहिं // 11 // तेषां कालेगां तेषां समएणं जे से हेमंताणं पढमे मासे पढमे पक्खे मग्गसिरबहुले तस्स णं मग्गसिरबहुलस्स दसमीपक्खेणं सुव्वएणं दिवसेगां विजएगां मुहुत्तेणं हत्थुत्तरानक्खत्तेणां जोगोवगएणां पाइणगामिणीए छायाए वियत्ताए बिझ्याए पोरिसीए छठेणं भत्तेणं अपाणएगां एगसाडगमायाए चंदप्पभाए सिवियाए सहस्तवाहिणियाए सदेवमणुयासुराए परिसाए समणिजमाणे उत्तरखत्तिय-कुंडपुरसंनिवेसस्स मज्झमज्झेणं निगच्छइ (2) जेणेव नायसंडे उजाणे तेणेव उवागच्छइ (2) इसिं रयणिप्पमाणं अच्छोप्पेग भूमिभाएगां सणियं (2) चंदप्पभं सिबियं सहस्तवाहिणिं ठवेइ (2), सणियं (2) चंपप्पभायो सीयायो सहस्सवाहिणीयो पच्चोयरइ (2), सणिय (2) पुरत्थाभिमुहे सीहासणे निसीयइ श्राभरणालंकारं प्रोमुग्रइ / तयो गां वेसमणे देवे भतुवायपडियो भगवत्रो महावीरस्स हंसलक्खणेणं पडेणं ग्राभरणालंकारं पडिच्छइ, 10 / तयो णं समणे भगवं महावीरे दाहिणेणं दाहिणं वामेणां वामं पंचमुट्ठियं लोयं करेइ 11 / तयो | सक्के देविंदे देवराया समणस्स भगवयो महावीरस्त जनवायपडिए वइरामएणं थालेण केसाई पडिन्छ। (2) अणुजाणेसि भंते तिकट्टु खीरोयसागरं साहरइ, 12 / तो गां समणे जाव लोयं करित्ता सिद्धाणं नमुक्कारं करेइ (2), सव्वं मे अकरणिज्जं पावकम्मं तिकटु सामाइयं चरित्तं पडिवजइ 2 देवपरिसं च मणुयपरिसं च श्रालिक्खचित्तभूयमिव ठवेइ 13 // दिवो मणुस्सघोसो तुरियनिनायो य सकदयणेणं / खिप्पामेव निलुको जाहे पडि. वजइ चरित्तं // 1 // पडिवजित्तु चरित्तं ग्रहोनिसं सव्वपाणभूयहियं / साहटु लोमपुलया सव्वे देवा निसामिति // 2-14 / तयोणं समणस्स भगवयो महावीरस्स सामाइयं खग्रोवसमियं चरित्तं पडिवनस्स मणपजवनाणे Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 132 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः नाम नाणे समुप्पन्ने अडढाइज्जेहिं दीहिं दोहि य समुद्दोहिं सन्नीणं पंचिंदियाणं पजत्ताणं वियत्तमणसाणं मणोगयाई भावाई जाणेइ 15 / तयो णं समणे भगवं महावीरे पदइए समाणे मित्तनाई सयणसंबंधिवग्गं पडिविसज्जेइ, (2), इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिराहइ-बारस वासाई बोसट्टकाए चियत्तदेहे जे केइ उवसग्गा समुप्पज्जंति, तंजहा-दिव्वा वा माणुस्सा वा तेरिच्छिया वा, ते सव्वे उपसग्गे समुप्पन्ने समाणे सम्मं सहिस्सामि खमिस्सामि अहियासइस्सामि 16 / तयो णं समणे भगवं महावीरे इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिरिहत्ता वोसिट्टचत्तदेहे दिवसे मुहुत्तसेसे कुम्मारगाम समणुपत्ते 17 / तयो णं समणे भावं महावीरे वोसिट्टचत्तदेहे अणुत्तरेणं बालएणं अणुत्तरेणं विहारेणं एवं संजमेणं पग्गहेणं संवरेणं तवेणं बंभचेरवासेणं खंतीए मुत्तीए समिइए गुत्तीए तुट्ठीए ठाणेणं कमेणं सुचरियफलनिव्वाणमुत्तिमग्गेणं अप्पाणं भावमाणे विहरइ, एवं वा विहरमाणस्स जे केइ उवसग्गा समुप्पज्जति-दिव्वा वा माणुस्सा वा तिरिच्छिया वा, ते सव्वे उवसग्गे समुप्पन्ने समाणे यणाउले अव्वहिए यदीणमाणसे तिविहमणवयणकायगुत्ते सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ 18 / तयो णं समणम्स भगवत्रो महावीरस्स एएगां विहारेगां विहरमाणपस बारस वासा बीइक्कंता तेरसमस्स य वासस्स परियार वट्टमाणस्स जे से गिम्हाणां दुच्चे मासे चउत्थे परखे वइसाहसुद्धे तरस गां वेसाहसुद्धस्स दसमीपक्खेगां सुव्वएगां दिवसेगां विजएगां मुहुत्तेगां हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेगां जोगोवगएगां पाइणगामिणीए छायाए वियत्ताए पोरिसीए जंभियगामस्स नगरस्स बहिया नइए उज्जुवालियाए उत्तरकूले सामागस्त गाहावइस्स कट्टकरणांसि उड्ढेजाणूहोसिरस्स भाणकोट्ठोवगयस्स वेयावत्तस्स चेइयस्स उत्तरपुरच्छिमे दिसीभागेसालरुक्खस्स अदूरसामंते उक्कुडुयस्स गोदोहियाए अायावणाए यायावेमाणस्स छठेां भत्तेगां अपाणएगां सुकमागांतरियाए क्माणस्स Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदाचाराङ्ग-सूत्रम् " श्रुतस्कंधः 2 चू० 3 अध्ययनं 1 (24)] / 133 निव्वाणे कसिणे पडिपुन्ने अब्बाहए निरावरणे अणते अणुत्तरे केवलवरनाणदंसणे समुप्पन्ने 11 / से भगवं अरहं जिणे (जाणए) केवली सव्वन्नू सबभावदरिसी सदेवमणुयासुरस्त लोगस्स पजाए जाणइ, तंजहा-बागई गई ठिई चयणं उबवायं भुत्तं पीयं कडं पडिसेवियं प्राविकम्मं रहोकम्म लवियं कहियं मणोमाणसियं सव्वलोए सव्वजीवाणं सब्वभावाई जाणमाणे पासमाणे एवं चणं विहरइ 20 / जगणं दिवसं समणस्त भगवयो महावीरस्त निवाणे कसिणे (नचप्पणो, निचणेए) जाव सुमुप्पन्ने तराणं दिवसं भवणवइवाणमंतर-जोइसियविमाणवासिदेवेहि य देवीहिं उवयंतेहिं जाव उप्पिंजलगभूए यावि हुत्था 21 / तयो णं समणे भगवं महावीरे उप्पन्नवरनाणदसणधरे अप्पाणं च लोगं च अभिसमिक्ख पुध्वं देवाणं धम्ममाइक्खइ 22 / ततो पच्छा मणुस्साणं, तो णं समणे भगवं महावीरे उप्पन्ननाणदनणधरे गोयमाइणं समणाणं पंच महब्बयाई सभावणाई छज्जीवनिकाया पातिक्खति भातइ परूवेइ, तं-पुटवीकाए जाव तसकाए, पढमं भंते ! महव्वयं पच्चक्खामि सव्वं पाणाइवायं से सुहुमं वा बायरं वा तसं वा थावरं वा नेव सयं पाणाइवायं करिजा (3) जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणसा वयसा कायसा तस्स भते पडिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि 23 / तस्तिमायो पंचभावणायो भवंति, तत्थिमा पढमा भावणा-इरियासमिए से निग्गंथे नो अणइरियासमिएत्ति, केवली ब्रूया-अणइरियासमिए से निग्गंथे पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताई अभिहणिज वा वत्तिज वा परियाविज वा लेसिज वा उदविज वा, इरियासमिर से निग्गंथे नो इरिया-असमिइत्ति पढमा भावणा 1 / ग्रहावरा दुच्चा भावणा-मणं परियाणइ से निग्गंथे, जे य मणे पावर सावज्जे सकिरिए अराहयकरे छेयकरे भेयकरे अहिंगरणिए पाउसिए पारियाविए पाणाइवाइए भूगोवघाइए, तहप्पगारं मणं नो पधारिजा गमणाए, मां परिजाणइ से निग्गंथे, जे य मणे अपावएत्ति दुच्चा Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 134 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : प्रथमो विभाग भावणा 2 / अहावरा तच्चा भावणा-वई परिजाणइ से निग्गंथे, जा य वइ पाविया सावजा सकिरिया जाव भूयोवघाझ्या तहप्पगारं वई नो उच्चारिजा, जे वइं परिजाणइ से निग्गंथे, जाव वइ अपावियत्ति तच्चा भावणा 3 / अहावरा चउत्था भावणा-यायाणभंडमत्तनिवखेवणासमिए, से निग्गंथे, नो अणायभंडमत्त-निक्वेवणसमिए, केवली ब्रूया-यायाण--मंडमत्तनिक्वेवणाअसमिए से निग्गंथे पाणाई भूयाई जीवाइं सत्ताइं अभिहणिजा वा जाव उदविज वा, तम्हा बायाणभंडमत्तनिवखेवणासमिए से निग्गंथे, नो प्रायाणभंडमत्तनिवखेवणा--असमिएत्ति चउत्था भावणा 4 / ग्रहावरा पंचमा भावणा-यालोइय--पाणभोयणभोइ से निग्गंथे नो अणालोइय-पाणभोयणभोइ केवली बूया-प्रणालोइयपाणभोयणभोइ से निग्गंथे पाणाणि वा (4) अभिहणिज वा जाव उद्दविज वा, तम्हा यालोइय पाणभोयणभोइ से निग्गंथे नो अणालोइयपाणभोयणभोइति पंचमा भावणा 5 / 24 / एयावता महब्बए सम्मं कारण फासिए पालिए तीरिए किट्टिए अवट्ठिए प्राणाए श्राराहिए यावि भवइ, पढमे भंते ! महब्बए पाणाइवायायो वेरमणं 25 // ग्रहावरं दुच्चं महव्वयं पञ्चक्खामि, सव्वं मुसावायं वइदोसं, से कोहा वा लोहा वा भया वा हासा वा नेव सयं मुसं भासिज्जा नेवन्नेणं मुसं भासाविजा अन्नपि मुसं भासंतं न समणुमनिजा तिविहं तिविहण मणमा वयसा कायसा, तस्स भंते ! पडिक्कमामि जाव वोसिरामि 26 / / तस्लिमायो पंच भावणायो भवंति--तत्थिमा पदमा भावणा -अणुवीइभाली से निग्गंथे नो अणणुवीइभासी केवली ब्रूया-यणणुवीइभासी से निग्गंथे समावजिज मोसं वयणाए, अणुवीइभासी से निग्गंथे नो अणणुवीइभासित्ति पदमा भावणा 1 / अहावरा दुचा भावणा कोहं परियाणइ से निग्गंथे नो कोहणे सिया, केवली ब्रूया-कोहप्पत्ते कोहत्तं समावइजा मोसं वयणाए, कोहं परियाणइ से निग्गंथे न य कोहणे सियत्ति दुच्चा भावणा 2 / ग्रहावरा तच्चा Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदाचाराङ्गसूत्रम् // श्रुतस्कंधः 2 चू० 3 अध्ययनं 1 (24) ] [135 भावणा-लोभं परियाणइ से निग्गंथे नो अलोभणए सिया, केवली ब्रूयालोभपते लोभी समावइजा मोसं वयणाए, लोभ परियाणइ से निग्गंथे नो य लोभणए सियत्ति तच्चा भावणा 3 // ग्रहावरा चउत्था भावणा-भयं परिजाणइ से निग्गंथे नो भयभीरुए सिया, केवली बूया-भयपत्ते भीरूसमावइजा मोसं वयणाए, भयं परिजाणइ से निग्गंथे नो भयभीरुए सिया वउत्था भावणा / ग्रहावरा पंचमी भावणा-हासं परियाणइ से निग्गंथे नो य हासणए सिया, केवली ब्रूया-हासपत्ते हासी समावइजा मोसं वयणाए, हासे परियाणइ से निग्गंथे नो हासणए सियत्ति पंचमी भावणा 5-27 / एतावता दोच्चे महव्वए सम्म कारण फासिए जाव आणाए श्राराहिए यावि भवइ दुञ्चे भंते महब्बए 28 ग्रहावरं तच्चं भंते ! महव्वयं पच्चक्खामि सव्वं अदिन्नादाणं, से गामे वा नगरे वा रन्ने वा अप्पं वा बहु वा अणु वा थूलं वा चित्तमंतं वा अचित्तमंतं वा नेव सयं अदिन्नं गिरिहज्जा नेवन्नेहिं दिन्नं गिराहाविजा दिन्नं अन्नपि गिराहतं न समणुजाणिजा जावज्जीवाए जाव वोसिरामि 24 / तस्सिमायो पंच भावणायो भवंति, तत्थिमा पढमा भावणा-अणुवीइ मिउग्गहं जाइ से निग्गंथे नो अणणुवीइ मिउग्गहं जाइ से निग्गंथे, केवली ब्रूया-अणणुवीइ मिउग्गहं जाइ निग्गंथे, अदिन्नं गिगहेजा, अणुवीइ मिउग्गहं जाइ से निग्गंथे नो अणणुवीइ मिउग्गहं जाइत्ति पढमा भावणा 1 / श्रहावरा दुच्चा भावणा-अणुन्नविय पाणभोयणभोइ से निग्गंथे नो अणणुनविय पाणभोयणभोइ, केवली ब्रूया अणणुनविय पाणभोयणभोइ से निग्गंथे अदिन्नं भुजिजा, तम्हा अणुनविय पाणभोयणभोइ से निग्गंथे नो अणणुनविय पाणभोयणभोइत्ति दुचा भावणा 2 / ग्रहावरा तच्चा भावणा-निग्गंथेणं उग्गहसि उग्गहियंसि एतावताव उग्गहणसीलए सिया, केवली बूया-निग्गंथेणं उग्गर्हसि अणुग्गहियंसि एतावता अणुग्गहणसीले अदिन्नं योगिरिह Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 136 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः जा, निग्गंथेणं उग्गहं उग्गहियंसि एतावताव उग्गहणसीलएति तच्चा भावणा 3 / ग्रहावरा चउत्था भावणा-निग्गंथेणं उग्गहसि उग्गहियंसि अभिवखणं (2) उग्गहणसीलए सिया, केवली ब्रूया निग्गंथेणं उग्गहसि उ अभिक्खणं (2) अणुग्गहणसीले अदिन्नं गिरिहज्जा, निग्गथे उग्गहसि उग्गहियंसि अभिवखणं (2) उग्गहणसीलपत्ति चउत्था भावण 1 / ग्रहावरा पंचमा भावणा-अणुवीइ मिउग्गहजाइ से निग्गंथे साहम्मिएस, नो अणणुवीइ मिउग्गहजाइ, केवली ब्रूया-अणणुवीइ मिउग्गहजाइ से निग्गंथे साहम्मिएसु अदिन्नं उगिरिहज्जा अणुवीइ-मिउग्गहजाइ से निग्गंथे साहम्मिएसु नो अणणुवीइ मिउग्गहजाती इइ पंचमा भावणा 5-30 / एता. वया तच्चे महव्वए सम्मं कारण फासिए जाव प्राणाए धाराहए यावि भवइ, तच्चं भंते ! महव्वयं 31 / ग्रहावरं चउत्थं महव्वयं पच्चक्खामि सव्वं मेहुणं से दिव्वं वा माणुस्सं वा तिरिक्खजोणियं वा नेव सयं मेहुणं गच्छेज्जा तं चेवं अदिनादाणवत्तव्वया भाणियव्वा जाव वोसिरामि 32 / तस्सिमायो पंच भावणायो भवंति, तत्थिमा पढमा भावणा-नो निग्गंथे अभिक्खणं (2) इत्थीणं कहं कहित्तए सिया, केवली ब्रूया-निग्गंथे णं अभिक्खणं (2) इत्थीणं कहं कहेमाणे संतिभेया संतिविभंगा संतिकेवलीपन्नत्तायो धम्मायो भंसिज्जा, नो निग्गंथेणं अभिवखणं (2) इथीणं कह कहित्तए सियत्ति पढगा भावणा 1 / ग्रहावरा दुचा भावणा-नो निग्गंथे इत्थीणं मणोहराई (2) इंदियाइं बालोइत्तए निज्माइत्तए सिया, केवली ब्रूयानिग्गंथेणं इत्थीणं मणोहराई (2) इंदियाइं बालोएमाणे निझाएमाणे संति. भेया संतिविभंगा जाव धम्मायो मंसिज्जा, नो निग्गंथे इत्थीणं मणोहराई (2) इंदियाइं पालोइत्तए निज्झाइत्तए सियत्ति दुचा भावणा 2 / ग्रहावरा तच्चा भावणा-नो निग्गंथे इत्थीणं पुबरयाई पुव्वकीलियाई सुमरित्तए सिया, केवली ब्रूया-निग्गंथेणं इत्थीणं पुवरयाई पुव्वकीलियाई सरमाणे संतिभेया Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनदाचाराङ्गसूत्रम् / श्रुतस्कंधः 2 चू० 3 अध्ययनं 1 (24) ] [ 137 जाव भंसिजा, नो निग्गंथे इत्थीणं पुवरयाई पुब्वकीलियाई सरित्तए सियत्ति तचा भावणा 3 / ग्रहावरा चउत्था भावणा-नाइमत्तपाणभोयणभोइ से निग्गंथे न पणीयरभोयणभोइ से निग्गंथे, केवली बूया-अइमत्तपाणभोयणभोयणभोइ से निग्गंथे पणियरसभोयणभोइ संतिभेया जाव भंसिजा, नाइमचपाणभोयणभोइ से निग्गंथे नो पणीयरसभोयणभोइ त्ति चउत्था भावणा / ग्रहावरा पंचमा भावणा-नो निग्गंथे इत्थीपसुपंडगसंसत्ताई सयणासणाइं सेवित्तए सिया, केवली ब्रूया-निग्गंथे णं इत्थीपसुपंडगसंसत्ताई सयणासणाई सेवेमाणे संतिभेया जाव भंसिज्जा, नो निग्गंथे इत्थीपसुपंडगसंसत्ताई सयणासणाई सेवित्तए सियत्ति पंचमा भावणा 5-33 // एतावया चउत्थे महब्वए सम्मं कारण फासिए जाव धाराहिए यावि भवइ, चउत्थं भंते ! महव्वयं 34 // श्रहावरं पंचमं भंते ! महव्वयं सव्वं परिग्गहं पच्चक्खामि से अप्पं वा बहुं वा श्रणु वा थूलं वा चित्तमंतमचित्तं वा नेव सयं परिग्गह गिरिहज्जा नेवन्नेहिं परिग्गहं गिराहाविजा अन्नपि परिग्गहं गिराहतं न समणुजाणिज्जा जाव वोसिरामि 35 / तस्सिमायो पंच भावणायो भवंति, तत्थिमा पढमा भावणासोयत्रो णं जीवे (मणुन्ना) मणुन्नाई सदाइं सुणेइ मणुन्नामणुन्नेहिं सद्दे हिं नो सजिजा नो रजिजा नो गिज्झेजा नो मुज्झि(च्छे)जा नो अमोववजिजा नो विणिघायमावज्जेज्जा, केवली ब्रूया-निग्गंथे णं मणुनामणुन्नेहि सद्द हिं सज्जमाणो रज्जमाणो जाव विणिघायमावजमायो संतिभेया संतिविभंगा संतिकेवलिपन्नत्तायो धम्मायो भंसिज्जा; न सका न सोउं सद्दा, सोतविसयमागया। रागदोसा उ जे तत्थ, से भिक्खू परिवजए // 1 // सोययो जीवे मणुन्नामणुन्नाई सद्दाई सुणेइ पढमा भावणा 1 / श्रहावरा दुच्चा भावणा-चक्खूयो जीवो मणुनामणुन्नाई रुवाइं पासइ मणुन्नामणुन्नेहिं रूवेहिं सज्जमाणे जाव विणिघायमावजमाणे संतिभेया जाव भंसिज्जा, न सका स्वमद्द, चक्खूविसयमागयं / रागदोसा उ जे Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ श्रीमहागमसुधासिन्धुः : प्रथमो विभागः तस्थ, ते भिक्खू परिवजए // 1 // चक्यो जीवो मणुन्नामणुन्नाई रूवाई पासइ, दुच्चा भावणा। ग्रहावरा तच्चा भावणा-घाणयो जीवे मणुन्नामणुनाई गंधाई अग्घायइ मणुन्नामणुन्नेहिं गंधेहि नो सजिजा नो रजिजा जाब नो विणिघामाजिज्जा, केवली बया-मणुनामणुन्नेहिं गंधेहिं सज्जमाणे जाब विणिघायमावजमाणे संतिमेया जाव भाखिजा, न सका गंधमग्घाउं, नासा. विसयमागयं / रागदोसा उ जे तत्थ, ते मिक्ग्वृ परिवजए॥१॥घाणयो जीवो मणुन्नामणुनाई गंधाइं अग्याइत्ति तचा भावणा 3 / ग्रहावरा चउत्था भावणाजिन्मायो जीवो मणुनामणुनाई रसाइं अस्साएइ, मणुन्नामणुन्नेहिं रसेहि नो सजिजा जाव नो विणिघाय.बजिजा, केवली ब्रूया-निग्गंथेणं मणुनामणुन्नेहिं रसेहिं सन्जमाणे जाव विणिघायमावजमाणे संतिभेया जाव भंसिजा, न सका रसमस्माउं, जीहाविसयमागयं / रागदोमा उ जे तत्थ, ते भिखू परिवजए // 1 // जीहायो जीवो मणुन्नामणुनाई रसाई अस्साएइत्ति चउत्था भावणा 4 / ग्रहावा पंचमा भावणा—फासयो जीवो मणुनामणुनाई फासाइं पडिसेवेएइ मणुन्नामणुन्नेहिं फासेहिं नो सजिजा जाव नो विणिघायमावजिजा, केवली ब्रूयानिग्गंथे णं मणुन्ना- मणुन्नेहि फासहिं सन्जमाणे जाव विणिघायमावजमाणे संतिभेया संतिविभंगा संतिकेवलीपन्नत्तायो धम्मायो भंसिज्जा, न सका फासमवेएउं, फासविसय. मागयं / रागद्दोसा उ जे तत्थ ते भिक्खू परिवज्जए // 1 // फासयो जीवो मणुन्नामणुनाई फासाइं पडिसेवेरति पंचमा भावणा 5 / 36 / एतावता पंचमे महव्वते सम्म अवट्ठिए याणाए बाराहिए यावि भवइ, पंचमं भते ! महब्वयं 37 इन्चेएहिं पंचमहब्बएहिं पणवीसाहि य भावणाहिं संप्पन्ने श्रणगारे अहासुयं अहाकप्पं अहामग्गं सर्म कारण फासित्ता पालित्ता तीरिता किट्टित्ता थाणाए पाराहित्ता यावि भवइ 38 ॥सू० 179 / / // इति तृतीयचूला-भाषनाऽध्ययनम् // श्रु० 2 चू०-३ मूलतः-२४ / / Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदाचाराङ्ग-सूत्रम् / श्रुतस्कंधः 2 चू० 4 अध्ययनं 1 (25) ] // चतुर्थ चूला-विमुक्त्यध्ययनं // श्रणिचमावासमुर्विति जंतुणो, पलोयए सुचमिणं अणुत्तरं / उविसिरे विन्नु अगारबंधणं, अभीरु प्रारंभपरिग्गहं कर // 1 // तहागयं भिक्खुमगांतसंजयं, अणेलिसं विन्नु चरंतमेसणं / तुदंति वायाहि अभिहवं नरा, सरेहिं संगामगयं क कुंजरं // 2 // तहप्पगारेहिं जणेहिं हीलिए, ससद्दफासा फरुसा उइरिया / तितिक्खए नाणी अदुट्टचेयसा गिरिव्य वारण न संपवेयए // 3 // उवेहमामे कुसलेहिं संवंसे, अकंतदुक्खी तप्तथावरा दुही / अलूसए सबसहे महामुणी, तहा हि से सुस्समणे समाहिए // 4 // विऊनए धम्मपयं अणुत्तरं, विणीयतराहस्स मुणिस्स झायो। समाहियस्सऽग्गिसिहा व तेयसा, तवो य पन्ना यजसो य वड्डइ॥५॥ दिसोदिसंऽणंतजिणेण ताइणा, महव्वया खेमपया पवेइया / महागुरू निस्सयरा उइरिया, तमेव तेउत्तिदिसं पगासगा // 6 // सिएहिं भिक्खू असिए परिव्वए, असजमित्थीसु चइज पूयणं / अणिस्सियो लोगमिणं तहा परं, न मिजइ कामगुणेहिं पंडिए॥७॥ तहा विमुकस्स परिनचारिणो, धिइमो दुक्खखमस्स भिक्खुणो। विसुज्झइ जंसि मलं पुरेकडं, समीरियं रुप्पमलं व जोइणा // 8 // से हु परिनासमयंमि वट्टइ, निराससे उवरय मेहुणा चरे / भुयंगमे जुन्नतयं जहा चए. विमुच्चा से दुहसिज्ज माहणे // 6 // जमाहु श्रोहं सलिलं अपारयं, महासमुदं व भुयाहि दुत्तरं। अहे य णं परिजाणाहि पंडिए, से हु मुणी अंतकडेत्ति वुच्चइ॥१०॥ Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः। प्रथमो विभागः जहा हि बद्धं इह माणवेहिं, जहा य तेसिं तु विमुक्खयाहिए। अहा तहा बंध विमुक्ख जे विऊ, से हु मुणी अंतकडेत्ति वुच्चइ // 11 // इममि लोए परए य दोसुवि, न विजइ बंधण जस्त किंचि वि / से हु निरालंबणमप्पइट्ठिए, कलंकली भावपहं विमुच्चइ // 12 // तिबेमि // इति चतुर्थ-चूला-विमुक्त्यध्ययनम् ॥श्रु०२--०४- मूलतः--२५ // इति दितीय-श्रुतस्कन्धः // 2 // // इति श्रीमदाचारांग-सूत्रम् // // ग्रंथाग्रं-२५५४ // Page #154 -------------------------------------------------------------------------- _