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________________ श्री आचाराङ्गसूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 5 ] [ 23 // 5 // लोकसाराध्ययनं-५ : उद्देशकः-१ // यावंती केयावंती लोयंसि विष्परामुसंति प्रहार अगट्टाए, एएसु चेव विपरामुसंति, (जावंति केइ लोए छक्कायवहं समारभंति पट्ठाए अणट्ठाए) गुरु से कामा, तयो से मारते, जयो से मारते तयो से दूरे, नेव से तो नेत्र दूरे ॥सू. 14 1 // से पासइ फुसियमिव कुसग्गे पगुन्नं निवइयं वाएरियं एवं बालस्त जीवियं मंदस्स वियाणयो, कुराई कम्माई बाले पकुवमाणे, तेण दुक्खेण मूढे विप्परियासमुवेइ, मोहेण गम्भं मरणाइ एइ, एत्थ मोहे पुणो पुणो ॥सू. 142 // संसयं परियाणयो संसारे परिन्नाए भवइ, संसयं अपरियाणयो संसारे अपरिनाए भवइ ।।सू. 143 // जे छेए से सागारियं न सेवइ, कटुं एवमवियाणयो बिइया मंदस्स बालया, (जे खलु विसए सेवइ, सेवित्ता वा णालोएइ, परेण वा पुट्ठो निराहवइ ग्रहवा तं परं सएम वा दोसेण पाविठ्ठयरेण वा दोसेण उवलिंपिजति) लद्धा हुरत्था पडिलेहाए आगमित्ता याणविज्जा अणासेवणय त्ति बेमि ॥सू. 144 // पासह एगे ख्वेसु गिद्धे परिणिजमाणे, इत्थ फासे पुणो पुणो, (एत्थ मोहे पुणो पुणो) श्रावंती केयावंती लोयंसि प्रारंभजीवी, एएसु चेव आरंभजीवी, इत्थवि बाले परिपञ्चमाणे रमइ पावेहिं कम्मेहिं असरणे सरणंति मन्नमाणे, इहमेगेसि एगचरिया भवइ, से बहुकोहे बहुमाणे बहुमाए बहुलोभे बहुरए बहुनडे बहु सढे बहुसंकप्पे पासवसत्ती पलिउच्छन्ने उट्ठियवायं पवयमाणे, मा मे केइ अदक्खू अन्नायपमायदोसेणं, सययं मूढे धम्मं नाभिजाणइ, अट्टा पया माणव ! कंमकोविया जे अणुवरया अविज्जाए पलिमुक्खमाहु यावट्टमेव अणुपरियति ति बेमि ॥सू० 145 // // इति प्रथमोद्देशकः // 5-1 //
SR No.004360
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 01 of 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1974
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size16 MB
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