________________ 22 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः ॥सू० 135 // इमं निरुद्धाउयं संपेहाए, दुक्खं च जाण अदु यागमेस्स, पुढो फासाइं च फासे, लोयं च पास विपदमाणं, जे निव्वुडा पावेहि कम्मेहिं अणियाणा ते वियाहिया, तम्हा अतिविजो नो पडिसंजलिजासि त्ति बेमि ॥सू० 136 // // इति तृतीय उद्देशकः // 4-3 // // अध्ययनं-४ : उद्देशकः-४ // श्रावीलए पवीलए निप्पीलए जहित्ता पुव्वसंजोगं हिचा उवसमं, तम्हा अविमणे वीरे, सारए समिए सहिए सया जए, दुरणुचरो मागो वीराणं अनियट्टगामीणं, विगिच मंससोणियं, एस पुरिसे दविए वीरे, यायाणिज्जे वियाहिए, जे धुणाइ समुस्सयं वसित्ता बंभचेरंसि ॥सू० 137 // नित्तेहिं पलिच्छिन्नेहिं पायाणसोयगड्डिए बाले, अव्वोच्छिन्नबंधणे अणभिक्कंतसंजोए तमंसि अवियाण यो ग्राणाए लंभो नथि ति बेमि ॥सू० 138 // जस्स नत्थि पुरा पच्छा मज्झे तस्स कुयो सिया ?, से हु पन्नाणमंते बुद्धे प्रारंभोवरए संममेयंति पासह, जेण बंधं वहं घोरं परियावं च दारुणं पलिछिंदिय बाहिरगं च सोयं, निवकंमदंसी इह मचिएहि, कम्माणं सफलं दट्ठण तयो निज्जाइ वेयवी ॥सू. 136 // जे खलु भो ! वीरा ते समिया सहिया सया जया संघऽदसिणो यायोवरया ग्रहातह लोयं उवेहमाणा पाइणं पडिणं दाहिणं उइणं इय सच्चंसि परि(चिए)चिट्ठिसु, साहिस्सामो नाणं वीराणं समियाणं सहियाणं सयाजयाणं संघऽ सीणं बायोवरयाणं यहातहं लोयं समुवेहमाणाणं किमस्थि उवाही ?, पासगस्स न विजइ नत्थि ति बेमि ॥सू० 140 // // इति चतुर्थ उद्देशकः // 4-4 // इति चतुर्थमध्ययनम् // 4 // ...